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बावची  : स्त्री० दे० ‘बकुची’।
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बाव  : पुं० [सं० वायु] १. वायु। हवा। पवन। २. बात का शारीरिक प्रकोप। बाई। ३. अपान-वायु। पाद। क्रि० प्र०—निकलना।—रसना। पुं० दे० ‘बाब’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बावज  : स्त्री०=बातचीत। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बावजूद  : अव्य० [फा० बावुजूद] १. यद्यपि। २. इतना होने पर भी।
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बावटा  : पुं० [सं० बाव=हवा] झंडा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बावड़ी  : स्त्री०=बावली। (जलाशय)
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बावन  : वि० [सं० द्वि पंचाशतः, पा० द्विपष्णासा, प्रा० विपण्णा] जो गिनती में पचास से दो अधिक हो। पद—बावन तोले पाव रत्ती=हर तरह से ठीक और पूरा। विशेष—कहतें है कि मध्ययुग के रसायनिकों का विश्वास था कि खरा रसायन वही है जो बावन तोले ताँबे में पाव रत्ती मिलाया जाय तो वह सब सोना हो जाता है। इसी आधार पर यह पद बना है। बावनवीर=बहुत बड़ा बहादुर या चालाक। पुं, ० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।—५२। पुं०=वामन।
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बावनवाँ  : वि० [हिं० बावन+वाँ (प्रत्यय)] [स्त्री० बावनवीं] क्रम, संख्या आदि के विचार से ५२ के स्थान पर पड़नेवाला।
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बावना  : वि०=बौना (वामन)। स०=बाहना (हल चलाना)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बावनी  : स्त्री० [हिं० बावन] १. एक ही तरह की ५२ चीजों का वर्ग या समूह। जैसे—शिवा बावनी। २. बहुत से लोगों का जमावड़ा या समूह। ३. मध्ययुग में वह वर्ग या समुदाय जो होली के अवसर पर नाच-गाने आदि की व्यवस्था करता था। ४. ठठोलों या मसखरी का दल या वर्ग। ५. ताश के कोट-पीस के खेल में वह स्थिति जब कोई पक्ष तेरहों हाथ बनाता है और जबकि दूसरा पक्ष एक भी हाथ नहीं बना पाता। इसमें ५२ बाजियों की जीत मानी जाती है।
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बावभक  : स्त्री० [हिं० बाव=वायु+अनु० भक] वायु के प्रकोप के कारण होनेवाला पागलपन। सिड़ीपन। झक।
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बावर  : पुं० [फा०] यकीन। विश्वास। वि० पुं०=बावरा। (बावला)।
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बावरची  : पुं० [फा०] रसोइया। पाचक।
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बावरचीखाना  : पुं० [फा० बावरचीखानाः] रसोईघऱ।
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बावरा  : वि० [हिं० बाव=वायु+रा (प्रत्यय)] १. सऱीर में वायु या बात का प्रकोप उत्पन्न करनेवाला। उदाहरण—काहू को बैगन बावरा काहू को बांगन पत्थ।—कहावत। २. दे० ‘बावला’।
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बावरी  : स्त्री०=बावली (जलाशय) वि० हिं० ‘बावरा’ का स्त्री। स्त्री० [हिं० बावरा=पागल] सम्राट अकबर के समय की एक प्रसिद्ध भक्त महिला जिनके नाम पर एक संप्रदाय भी चला था। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बावल  : पुं० [सं० वायु] आँधी। अंधड़। (डिंगल)
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बावला  : वि० [सं० वातुल, प्रा० बाउल] वायु के प्रकोप के कारण जिसका मस्तिष्क विकृत हो गया हो, अर्थात् पागल। विक्षिप्त।
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बावलापन  : पुं० [हिं० बावला+पन (प्रत्यय)] पागलपन। सिड़ीपन। झक।
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बावली  : स्त्री० [सं० वायु+डी पाली (प्रत्यय)] १. चौड़े मुँह का एक प्रकार का कुआँ या जलाशय जिसमें पानी तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हों। उदाहरण—मजनूँ की प्यास वह बुझाती, लैला कुछ बावली नहीं थी।—कोई शायर। २. ऐसा छोटा तालाब जिसके किनारे सीढ़ियाँ बनी हों। ३. हजामत का एक प्रकार जिसमें माथे से लेकर चोटी के पास तक के बाल चार-पाँच अंगुल की चौड़ाई में मूँड़ दिये जाते हैं।
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बावाँ  : वि० पुं०=बायाँ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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