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बहस  : स्त्री० [अ० बहस्] १. ऐसा तर्क-वितर्क या बात-चीत जिसमें दो पक्ष अपना अपना मत ठीक सिद्ध करने का प्रयत्न करते हों। तर्क, युक्ति आदि के द्वारा होनेवाला खंडन-मंडन। पद—बहस-मुबाहसा। २. उक्त के फलस्वरूप होनेवाली होड़। उदा०—मोहिं तुम्हें बाढ़ी बहस को जीतैं जदुराज। अपने-अपने विरद की दुहँ निबाहैं लाज।—बिहारी। ३. न्यायालय में, मुकदमें में गवाहियों, जिरहों आदि के उपरांत वकीलों का होनेवाला तर्क-वितर्क पूर्ण भाषण।
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बहस-तलब  : वि० [अ० बह्स-तलब] जिसमें तर्क-वितर्क या वाद-विवाद की अपेक्षा हो। जिसके सम्बन्ध में तर्क-वितर्क हो सकता हो या होना आवश्यक तथा उचित हो।
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बहसना  : अ० [अ० बहस+ना] १. बहस या विवाद करना। तर्क-वितर्क करना। २. प्रतियोगिता करना। होड़ लगाना।
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बहस-मुबाहसा  : पुं० [अ० बह्सोम्बाहसः] तर्क-वितर्क या खण्डन-मंडन के रूप में होनेवाला वाद-विवाद।
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