शब्द का अर्थ
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बलंद :
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वि० [फा०] १. उच्च। ऊँचा। २. महान्। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलंदी :
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स्त्री० [फा०] १. ऊँचाई। २. महत्ता। |
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समानार्थी शब्द-
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बलंधरा :
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स्त्री० [सं०] भीमसेन की पत्नी। (महाभारत) |
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बलंबी :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार का पेड़ जिसके फल खट्टे होते हैं और अचार के काम आते हैं। २. उक्त पेड़ का फल। |
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बल :
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पुं० [सं०√बल् (जीवन देना)+अच्] १. वह शारीरिक तत्त्व जिसके सहारे हम चलते-फिरते और सब काम करते हैं। यह वस्तुतः हमारी शक्ति का कार्यकारी रूप है; और चीजें उठाना, खींचना, ढकेलना, फेंकना आदि काम इसी के आधार पर होते हैं। मुहा०—बल बाँधना=विशेष प्रयत्न करना। जोर लगाना। उदा०—जनि बल बाँधि बढ़ावहु छीति।—सूर। बल भरना=जोर या ताकत दिखाना या लगाना। २. उक्त का वह व्यावहारिक रूप जिससे दूसरों को दबाया, परिचालित किया अथवा वश में रखा जाता है। ३. राज्य या शासन के सशस्त्र सैनिकों आदि का वर्ग जिसकी सहायता से युद्ध, रक्षा, शांतिस्थापन आदि कार्य होते हैं। (फोर्स, उक्त तीनों अर्थों में) ४. शरीर। ५. पुरुष का वीर्य। ६. ऐसा परकीय आधार या आश्रय जिसके सहारे अपने बूते या शक्ति से बढ़कर कोई काम किया जाता है। जैसे—तुम तो उन्हीं के बले पर बढ़-बढ़कर बातें कर रहे हो। पद—किसी के बल=किसी के आसरे या सहारे से। जैसे—हाथ के बल उठना, पैरों के बल बैठना। ७. पहलू। पार्श्व। जैसे—दाहिने (या बाएँ) बल लेटना। पुं० [सं० बलः] १. बलराम। बलदेव। २. कौआ। ३. एक राक्षस का नाम। ४. बरुना नामक वृक्ष। पुं० [सं० बलि=झुर्री, मरोड़ या वलय] १. वह घुमाव, चक्कर या फेरा जो किसी लचीली या नरम चीज के बढ़ने या मरोड़ने के बीच बीच में पड़ जाता है। ऐंठन। मरोड़। जैसे—रस्सी जल गई, पर उसके बल नहीं गये। क्रि० प्र०—डालना।—देना।—निकालना। मुहा०—बल खाना=(क) बटने या घुमाये जाने से घुमावदार हो जाना। ऐंठा जाना। (ख) कुंचित या टेढ़ा होना। बल देना=(क) ऐंठना। मरोड़ना। (ख) बटना। जैसे—डोरी या रस्सी मे बल देना। २. किसी चीज को यों ही अथवा किसी दूसरी चीज के चारों ओर घुमाने पर हर बार पड़नेवाला चक्कर या फेरा। लपेट। जैसे—रस्सी के दो बल डाल दो तो गठरी मजबूती से बँध जायगी। क्रि० प्र०—डालना।—देना। ३. गोलाई लिये हुए वह घुमाव या चक्कर जो लहरों के रूप में दूर तक चला गया हो। ४. ऐसा अभिमान जिसके कारण मनुष्य सरल भाव से आचरण या व्यवहार न करता हो। जैसे—मुझसे डींग हाँकोगे तो मैं तुम्हारा सारा बल निकाल दूँगा। मुहा०—बल की लेना=घमंड करना। इतराना। ५. ऐसा अभाव, त्रुटि या दो जिसके कारण कोई चीज ठीक तरह से काम न करती हो। जैसे—न जाने इस घड़ी में क्या बल है कि यह रोज एक दो बार बंद हो जाती है। क्रि० प्र०—निकालना।—पड़ना। ६. कपड़ों आदि में पड़नेवाली सिलवट। शिकन। जैसे—इस कोट में दो जगह बल पड़ता है; इसे ठीक कर दो। ७. वह अवस्था जिसमें कोई चीज सीधी न रहकर बीच में या और कहीं कुछ झुक, दब या लचक जाती है। लचक। मुहा०—(किसी चीज का) बल खाना=बीच में से कहीं कुछ टेढ़ा होकर किसी ओर थोड़ा मुड़ जाना। झुकना। लचकना। जैसे—कमानी का दबने पर बल खाना। (शरीर का) बल खाना=कोमलता, दुर्बलता, सुकुमारता आदि के कारण अथवा भाव-भंगी सूचक रूप में शरीर के किसी अगं का बीच में से कुछ लचकना। जैसे—चलने से कमर या हँसने से गरदन का बल खाना। ८. सहसा झटका लगने पर शरीर के अन्दर की किसी नस के कुछ इधर-उधर हो जाने की वह स्थिति जिसमें उस नस के ऊपरी स्थान पर कुछ पीड़ा होती है। जैसे—आज सबेरे सोकर उठने (या झुककर लोटा उठाने) के समय कमर में बल पड़ गया है। क्रि० प्र०—पड़ना। ९. अंतर। फरक। जैसे—हमारे और तुम्हारे हिसाब में ५) का बल है। क्रि० प्र०—निकलना।—पड़ना। मुहा०—बल खाना या सहना=हानि सहना। जैसे—चलो, ये पाँच रुपए हम ही बल खायें। स्त्री०=बाल (अनाज की)। पुं० हिं० बाल का संक्षिप्त रूप जो उसे यौगिक पदों के आरंभ में प्राप्त होता है। जैसे—बल-तोड़। |
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बलक :
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पुं० [सं०] स्वप्न, विशेषतः आधी रात के बाद आनेवाला स्वप्न। पुं० [हिं० बलकना] बलकने की अवस्था, क्रिया या भाव। वि० दे० ‘बलकना’। |
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बल-कटी :
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स्त्री० [हिं० बाल (अनाज की)+काटना] मुसलमानी राज्यकाल में फसल काटने के समय किसानों आदि से उगाही जानेवाली कर की किस्त। |
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बलकना :
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अ० [अनु०] १. उबलना। उफान आना। खौलना। २. आवेश या उमंग में आना। ३. उभड़ना। |
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बलकर :
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वि० [सं० ष० त०] [स्त्री० बलकारी] १. बल देनेवाला। २. बल बढ़ानेवाला। पुं० अस्थि। हड्डी। |
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बलकल :
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पुं०=वल्कल (छाल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलकाना :
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स० [हिं० बलकना] १. उबालना। खौलाना। २. उत्तेजित करना। उभाड़ना। ३. उमंग में लाना। उदा०—जोवन ज्वर केहि नहिं बलकावा।—तुलसी। |
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बल-काम :
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वि० [सं०] बल या शक्ति प्राप्त करने का इच्छुक। |
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बलकुआ :
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पुं० [देश०] एक तरह का बाँस। |
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बलक्ष :
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वि० [सं०√बल्+क्विप्, बल्√अक्ष्+घञ्] श्वेत। सफेद। पुं० सफेद रंग। |
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बलख :
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पुं० [फा० बलख़] अफगानिस्तान का एक प्राचीन नगर। |
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बलगम :
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पुं० [अ०] [विं० बलगामी] नाक, मुँह आदि में से निकलनेवाला एक तरह का लसीला गाढ़ा पदार्थ। कफ। श्लेष्मा। |
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बलगमी :
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वि० [फा०] १. बलगम-संबंधी। २. कफ-प्रधान (प्रकृति)। ३. कफजन्य अर्थात् बलगम के कारण होनेवाला। |
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बलगर :
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वि० [हिं० बल+गर] १. बलवान् २. दृढ़। पक्का। मजबूत |
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बलचक्र :
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पुं० [सं० मध्य० स०] १. राज्य। २. राजकीय शासन। ३. सेना। |
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बलज :
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पुं० [सं० बल√जन् (पैदा होना)+ड] १. अन्न की राशि। २. अन्न की फसल। ३. खेत। ४. नगर का मुख्य द्वार। ५. दरवाजा। द्वार। ६. युद्ध। लड़ाई। वि० बल से उत्पन्न। बलजात। |
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बलजा :
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स्त्री० [सं० बलज+टाप्] १. पृथ्वी। २ सुंदर स्त्री। ३. एक तरह की जूही और उसकी कली। ४. रस्सी। |
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बल-तोड़ :
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पुं०=बाल-तोड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलद :
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पुं० [सं० बल√दा (देना)+क] १. बैल। २. जीवक नामक वृक्ष। ३. वह गृह्याग्नि जिससे पौष्टिक कर्म किये जाते थे। वि० बल देनेवाला। |
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बल-दर्शक :
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पुं० [सं० ष० त०] प्राचीन भारत में एक प्रकार का सैनिक अधिकारी। |
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बलदाऊ :
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पुं०=बलदेव (बलराम)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलदिया :
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पुं० [हिं० बलद=बैल] १. बैल आदि चरानेवाला। चरवाहा। २. बनजारा। |
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बलदेव :
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पुं० [सं० बल√दिव्+अच्] १. बलराम। २. वायु। |
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बलन :
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पुं० [सं०√बल् (जीवन)+ल्युट्—अन] बलवान् बनाने की क्रिया। बल देना या बढ़ाना। |
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बलना :
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अ० [सं० बर्हण या ज्वलन] १. जलना। २. किसी चीज का इस प्रकार जलना कि उसमें से लपट या लौ निकले। जैसे—आग या दीआ बलना। |
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बल-नीति :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. आधुनिक राजनीति में वह नीति जिसके अनुसार कोई राष्ट्र सैनिक-बल के प्रयोग या सहायता से अपना बल, प्रभाव, हित आदि बढ़ाने का प्रयत्न करता रहता है। २. प्रतियोगियों की तुलना में अपना बल या शक्ति बढ़ाते चलने की चाल या नीति। (पावर-पॉलिटिक्क) |
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बल-नेह :
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पुं० [हिं० बल+नेह] एक प्रकार का संकर राग जो रामकली, श्याम, पूर्वी, सुंदरी, गुणकली और गांधार से मिलकर बना है। |
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बल-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] १. सेनापति। २. इंद्र। |
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बल-परीक्षा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. वह क्रिया जिससे किसी का बल जाना जाता हो। २. विरोधी दलों या वर्गों में होनेवाला वह द्वंद्व जो बलपूर्वक एक दूसरे को दबाने अथवा एक दूसरे से अपनी बात मनवाने के लिए होता है। (शोडाउन) |
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बल-पुच्छक :
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पं० [सं० ब० स०] कौआ। |
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बल-पूर्वक :
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अव्य० [सं० ब० स०, कप्] १. बल लगाकर। शक्ति-पूर्वक। २. किसी की इच्छी के विरुद्ध और अपने बल का प्रयोग करते हुए। बलात्। जबरदस्ती। |
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बल-पृष्ठक :
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पुं० [सं० ब० स०,+कप्] रोहू (मछली)। |
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बल-प्रयोग :
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पुं० [सं०] १. किसी को उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य करने के लिए शक्ति का किया जानेवाला प्रयोग। (कोअर्सन) २. अनुचित दबाब। |
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बल-प्रसू :
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स्त्री० [सं० ब० स०] बलराम की माता, रोहिणी। |
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बलबलाना :
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अ० [अनु० बलबल] [भाव० बलबलाहट] १. जल अथवा किसी तरल पदार्थ का उबलते समय बल-बल करना। २. ऊँट का बलबल शब्द करना। अ०=बिलबिलाना। अ०=बड़बड़ाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलबलाहट :
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स्त्री० [हिं० बलबलाना] बलबलाने से होनेवाला शब्द। स्त्री०=बिलबिलाहट। स्त्री०=बड़बड़ाहट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलबीज :
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पुं० [सं० बला-बीज] कंघी के बीज। |
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बलबीर :
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पुं० [हिं० बल (=बलराम)+वीर (=भाई)] बलराम के भाई श्रीकृष्ण। |
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बलबूता :
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पुं० [हिं० बल+बूता] १. बल तथा बिसात या सामर्थ्य जो किसी दुष्कर काम के संपादन के लिए आवश्यक होते हैं। २. शारीरिक शक्ति और आर्थिक संपन्नता का समाहार। |
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बलभ :
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पुं० [सं० बल√भा (चमक)+क] एक प्रकार का विषैला कीड़ा। |
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बलभद्र :
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पुं० [सं० बल+अच्, बल-भद्र, कर्म० स०] १. बलदेव जी का एक नाम। २. लोध का पेड़। ३. नील गाय। ४. पुराणानुसार एक पर्वत। |
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बलभद्रा :
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स्त्री० [सं० बलभद्र+टाप्] १. कुमारी कन्या। २. त्रायमाण लता। ३. नील गाय। |
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बलभी :
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स्त्री० [सं० वलभि] मकान की सबसे ऊपरवाली छत पर की कोठरी या कमरा। ऊपर का खंड। चौबारा। |
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बलम :
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पुं० [सं० वल्लभ] प्रियतम। पति। बालम। |
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बलमीक :
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पुं०=वल्मीक (बाँबी)। |
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बल-मुख्य :
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पुं० [सं० स० त०] सेनानायक। |
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बलय :
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पुं०=वलय। |
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बलया :
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स्त्री०=वलय। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलराम :
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पुं० [सं०√रम् (रमण)+घञ्, बल-राम, ब० स०] श्रीकृष्णचन्द्र के बड़े भाई जो रोहिणी से उत्पन्न थे। बलदेव। |
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बलल :
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पुं० [सं० बल√ला (लेना)+क] १. बलराम। २. इंद्र। |
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बलवंड :
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वि० [सं० बलवंत] बलवान्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलवंत :
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वि० [सं० बलवत्] बलवान्। ताकतवर। |
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बलवत् :
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वि० [सं० बल+मतुप्] (ऐसा विधान या नियम) जो चलन में हो और इसी लिए जो अपना बल प्रदर्शित कर रहा हो। (इन-फोर्स) अव्य० बलपूर्वक। बलात्।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलवती :
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वि० स्त्री० [सं० बलवत्+ङीष्] जो बहुत अधिक प्रबल हो और जिसे रोका या मिटाया न जा सकता हो। जैसे—बलवती इच्छा। |
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बलवत्ता :
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स्त्री० [सं० बलवत्+तल्+टाप्] १. बलवान् होने की अवस्था या भाव। २. श्रेष्ठता। |
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बल-वर्धक :
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वि० [सं० ष० त०] बल बढ़ानेवाला। |
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बल-वर्धन :
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पुं० [सं० ष० त०] बल या शक्ति बढ़ाने का काम। |
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बल-वर्धी :
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वि०=बलवर्धक। |
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बलवा :
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पुं० [फा० बल्वः] १. दो दलों या संप्रदायों में होनेवाला वह उग्र संघर्ष जिसमें मार-काट, अग्निकांड आदि उपद्रव भी होते हैं। २. बगावत। विद्रोह। |
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बलवाई :
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पुं० [फा० बलवा+ई (प्रत्य०)] १. बलवा करनेवाला। २. विद्रोही। बागी। |
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बलवान् (न) :
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वि० [सं० बल+मतुप्, वत्व] [स्त्री० बलवती, भाव० बलवत्ता] १. जिसमें अत्यधिक बल हो। शक्तिशाली। २. पुष्ट। मजबूत। बलिष्ठ। |
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बलवार :
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वि०=बलवान्।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बलवीर :
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पुं०=बलबीर। |
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बल-व्यसन :
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पुं० [सं० ष० त०] सेना की हार। सैनिक पराजय। |
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बलशाली (लिन्) :
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वि० [सं० बल√शल् (प्रप्ति)+णिनि] [स्त्री० बलशालिनी] बलवान्। बली। |
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बल-शील :
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वि० [सं० ब० स०] बलवान्। |
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बलसुम :
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वि० [हिं० बालू+?] (जमीन) जिसमें बालू हो। बलुआ। |
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बलसूदन :
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पुं० [सं० बल√सूद् (नाश)+णिच्+ल्यु—अन] १. इन्द्र। २. विष्णु। |
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बल-स्थिति :
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स्त्री० [सं० ष० त०] सैनिक शिविर। छावनी। |
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समानार्थी शब्द-
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बलहन् :
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पुं० [सं० बल√हन् (मारना)+क्विप्] १. इन्द्र। २. कफ। श्लेष्मा। |
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बलहा :
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वि० [सं० बलहन्] १. बल अर्थात् शक्ति का नाश करनेवाला। २. बल अर्थात् सेना का नाश करनेवाला। |
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बल-हीन :
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वि० [सं० तृ० त०] जिसमें बल न हो। अशक्त। शक्तिहीन। |
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समानार्थी शब्द-
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बला :
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स्त्री० [सं० बल+अच्+टाप्] १. बरियारा नामक क्षुप। २. वैद्यक में पौधों का एक वर्ग जिसके अंतर्गत ये चार पौधे हैं—बला या बरियारा, महाबला या सहदेई, अतिबला या कँगनी और नागवला या गँगरेन। ३. वह क्रिया या विद्या जिसके बल से युद्ध-क्षेत्र में योद्धाओं को भूख-प्यास नहीं लगती थी। ४. दक्ष प्रजापति की एक कन्या। ५. नाटकों में छोटी बहन के लिए संबोधन-सूचक शब्द। ६. पृथ्वी। ७. लक्ष्मी। ८. जैनों के अनुसार एक देवी जो वर्तमान अवसर्पिणी के सत्रहवें अर्हत् के उपदेशों का प्रचार करनेवाली कही गई है। स्त्री० [अ०] १. कोई ऐसा काम, चीज या बात जो बहुत अधिक कष्टदायक हो और जिससे सहज में छुटकारा न मिल सकता हो। आपत्ति। विपत्ति। संकट। २. कोई ऐसा काम, चीज या बात जो अनिष्टकारक या कष्टप्रद होने के कारण बहुत ही अप्रिय तथा घृणित मानी जाती हो या जिससे लोग हर तरह से बचना चाहते हों। जैसे—वियोगियों के लिए चाँदनी रात (या बरसात) भी एक बला ही होती है। ३. बहुत ही अप्रिय, घृणित, तुच्छ या हेय वस्तु। जैसे—यह कहाँ की बला तुम अपने साथ लगा लाये। पद—बला का=(क) बहुत अधिक तीव्र या प्रबल। जैसे—आज तो तरकारी (या दाल) में बला की मिरचें पड़ी हैं। (ख) बहुत ही उग्र, प्रचंड, भीषण या विकट। जैसे—वह तो बला का लड़ाका निकला। बला से=कोई चिंता नहीं। कुछ परवाह नहीं। जैसे—वह जाता है तो जाय, हमारी बला से। हमारी बला ऐसा करे=हम कभी ऐसा नहीं कर सकते। मुहा० (किसी की) बलाएँ लेना=किसी के सिर के पास दोनों हाथ ले जाकर धीरे-धीरे उसके दोनों पार्श्वों पर से नीचे की ओर लाना जो इस बात का सूचक होता है कि तुम्हारे सब कष्ट या विपत्तियाँ हम अपने ऊपर लेते हैं। (स्त्रियों का शुभ-चिंतना सूचक एक अभिचार या टोटका) ४ भूत-प्रेत आदि अथवा उनके कारण होनेवाला उपद्रव या बाधा। (स्त्रियाँ) जैसे—उसे तो कोई बला लगी है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाइ :
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स्त्री०=बला (विपत्ति)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाक :
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पुं० [सं० बल√अक् (जाना)+अच्] [स्त्री० बलाका, बलाकिका] १. बक। बगला। २. एक राजा जो भागवत के अनुसार पुरु तथा पुत्र और जह्नु का पौत्र था। ३. एक राक्षस का नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाक :
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स्त्री० [सं० बलाक+टाप्] १. मादा बगला। बगली। २. बगलों की पंक्ति। ३. प्रेयसी। ४. कामुक स्त्री०। ५. नृत्य में एक प्रकार की गति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाकिका :
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स्त्री० [सं० बलाक+कन्+टाप्, इत्व] १. मादा बगला। बलाका। २. बगलों की एक जाति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाग्र :
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पुं० [सं० बल-अग्र, ष० त०] १. सेना का अगला भाग। २. सेनापति। वि० बलवान्। शक्तिशाली। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाघात :
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पुं० [सं० बल+आघात, तृ० त०] १. किसी काम, चीज या बात पर साधारण से कुछ अधिक बल लगाने या जोर देने की क्रिया या भाव। (स्ट्रेस) २. मनोभाव, विचार आदि प्रकट करते समय उनकी आवश्यकता, उपयोगिता, महत्त्व आदि की ओर ध्यान दिलाने के लिए उन पर डाला जानेवाला जोर। (एमफैसिस) ३. दे० ‘स्वराघात’। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाट :
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पुं० [सं० बल√अट् (जाना)+अच्] मूँग। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाढ्य :
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वि० [सं० बल-आढ्य, तृ० त०] बलवान्। पुं० उरद। माष। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलात् :
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अव्य० [सं० बल√अत् (निरन्तर गमन)+क्विप्] १. बल-पूर्वक। जबरदस्ती से। बल से। २. हठ-पूर्वक। हठात्। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलात्कार :
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पुं० [सं० बलात्√कृ (करना)+घञ्] १. बलात् या हठपूर्वक कोई काम करना। विशेषतः किसी या दूसरों की इच्छा के विरुद्ध कोई काम करना। २. पुरुष द्वारा किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक धमकाकर या छलपूर्वक किया जानेवाला संभोग। (रेप) ३. स्मृति में, महाजन का ऋणी को अपने यहाँ रोककर तथा मार-पीटकर पावना वसूल करना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलात्कारित :
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भू० कृ०=बलात्कृत। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलात्कृत :
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भू० कृ० [सं० बलात्√कृ (करना)+क्त] १. जिसके साथ बलात्कार किया गया हो। २. जिससे बलपूर्वक या जबरदस्ती कोई काम कराया गया हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलात्मिका :
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स्त्री० [सं० बलात्√कृ (करना)+क्त] १. जिसके साथ बलात्कार किया गया हो। २. जिससे बलपूर्वक या जबरदस्ती कोई काम कराया गया हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलात्मिका :
|
स्त्री० [सं० बल-आत्मन्, ब० स०,+कप्+टाप्, इत्व] हाथी-सूँड़ नाम का पौधा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाधिक :
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वि० [सं० स० त०] [भाव० बलाधिक्य] अधिक बलवाला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाधिकरण :
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पुं० [सं० बल-अधिकरण, ष० त०] सैनिक कार्रवाई। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाविकृत :
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पुं० [सं० बल-अधिकृत, ष० त०] सेना-विभाग का प्रधान अधिकारी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाध्यक्ष :
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पुं० [सं० बल-अध्यक्ष, ष० त०] सेना का अध्यक्ष। सेनापति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलाना :
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स०=बुलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलानुज :
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पुं० [सं० बल-अनुज, ष० त०] बलराम के छोटे भाई श्रीकृष्ण। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलान्वित :
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भू० कृ० [सं० बल-अन्वित, तृ० त०] १. बल से युक्त किया हुआ। २. बली। बलशाली। |
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समानार्थी शब्द-
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बला-पंचक :
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पुं० [सं० ष० त०] वैद्यक में बला, अतिबला, नागबला, महाबला और राजबला नाम की पाँच ओषधियों का समुदाय। |
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समानार्थी शब्द-
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बलाबल :
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पुं० [सं० द्व० स०] किसी में होनेवाले बल और निर्बलता दोनों का योग। जैसे—पहले अपने बलाबल का विचार करके काम में हाथ लगाना चाहिए। |
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समानार्थी शब्द-
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बलामोटा :
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स्त्री० [सं० बल+आ√मुट् (मर्दन)+अच्+टाप्] नागदमनी नाम की ओषधि। |
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बलाय :
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पुं० [सं० बल-अय, ष० त०] वरुना नामक वृक्ष। बन्ना। बलास। स्त्री० [अ० बला] १. आपत्ति। विपत्ति। संकट। २. कष्टदायक चीज या बात। दे० ‘बला’। ३. एक प्रकार का रोग जिसमें हाथ की किसी उँगली के सिरे पर गाँठ निकल आती है या ऐसा फोड़ा हो जाता है जो उँगली टेढ़ी कर देता है। |
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बलाराति :
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पुं० [सं० बल-आरति, ष० त०] १. इंद्र। २. विष्णु। |
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बलालक :
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पुं० [सं० बल√अल् (पर्याप्त)+ण्वुल्—अक] जलआँवला। |
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बलावलेप :
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पुं० [सं० बल-अवलेप, तृ० त०] १. अपने सम्बन्ध में यह कहना कि मुझमें बहुत अधिक बल है। २. अभिमान। घमंड। |
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बलाश :
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पुं० [सं० बल√अश्+अण्] १. कफ। २. क्षय। |
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बलास :
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पुं० [सं० बल√अस् (फेंकना)+अण्] १. कफ। २. कफ के बढ़ने से होनेवाला एक रोग जिसमें गले और फेफड़े में सूजन और पीड़ा होती है। पुं० [सं० बला] बरुना नाम का पौधा। |
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बलासी (सिन्) :
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वि० [सं० बलास+इनि] बलास अर्थात् क्षय (रोग) से पीड़ित। पुं० [सं० बलास] बरुना या बन्ना नाम का पौधा। |
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बलाहक :
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पुं० [सं० बल+आ√हा (छोड़ना)+क्वुन्—अक] १. बादल। मेघ। २. सात प्रकार के बादलों में से एक प्रकार के बादल जो प्रलय के समय छाते हैं। ३. मोथा। ४. श्रीकृष्ण के रथ के एक घोड़े का नाम। ५. सुश्रुत के अनुसार दर्वीकर साँपों का एक भेद या वर्ग। ६. एक तरह का बगला। ७. कुश द्वीप का एक पर्वत। |
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बलाहर :
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पुं० [देश०] १. मछुओं या धीवरों की एक जाति। २. गाँव का चौकीदार। |
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बलाही :
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पुं० [?] १. चमड़ा कमानेवाला व्यक्ति। २. चमड़े का व्यवसाय करनेवाला-व्यक्ति। |
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बलिदम :
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पुं० [सं० बलि√दम् (दमन करना)+खुश, मुम्] विष्णु। |
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बलि :
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पुं० [सं०√बल (देना)+इन्] १. प्राचीन भारत में (क) भूमि की उपज का वह छठा अंश जो भूस्वामी प्रतिवर्ष राजा को देता था। राजकर। (ख) वह कर जो राजा अपने धार्मिक कृत्यों के लिए प्रजा से लेता था। २. वह अंश या पदार्थ जो किसी देवता के लिए अलग किया गया हो या निकालकर रखा गया हो। ३. देवताओं के आगे रखा जानेवाला भोजन। नैवेद्य। भोग। ४. देवताओं पर चढ़ाई जानेवाली चीजें। चढ़ावा। ५. देवताओं के पूजन की सामग्री। ६. वह पशु जो किसी देवता या अलौकिक शक्ति को प्रसन्न तथा संतुष्ट करने के लिए उसके सामने या उसके उद्देश्य से मारा जाता हो। क्रि० प्र०—चढ़ाना।—देना। २. वह स्थिति जिसमें कोई व्यक्ति अपने प्राण या शरीर तक किसी काम, बात या व्यक्ति के लिए पूर्ण रूप से अर्पित कर देता है। मुहा०—(किसी पर) बलि जाना=किसीके महत्त्व, मान आदि का ध्यान करते हुए अपने आपको उस पर निछावर करना। बलिहारी होना। उदा०—तात जाऊँ बलि वेगि नहाहू।—तुलसी। ८. पंच महायज्ञों में से भूत यज्ञ नामक चौथा महायज्ञ। ९. उपहार। भेंट। १॰. खाने-पीने की चीज। खाद्य सामग्री। ११. चैवर का डंडा। १२. आठवें मन्वन्तर में होनेवाले इन्द्र का नाम। १३. प्रह्लाद का पौत्र और विरोचन का पुत्र जो दैत्यों का राजा था, जिसे विष्णु ने वामन अवतार धारण करके छलपूर्वक बाँध लिया था और ले जाकर पाताल में रख दिया था। स्त्री० १. शरीर के चमड़े पर पड़नेवाली झुर्री। २. बल। शिकन। ३. एक प्रकार का फोड़ा जो गुदार्वत के पास अर्श आदि रोगों में उत्पन्न होता है। ४ बवासीर का मसा। स्त्री० [सं० बला=छोटी बहन] सखी। उदा०—ए बलि ऐसे बलम को विविध भाँति बलि जाऊँ।—पद्माकर। |
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बलि-कर :
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वि० [सं० बलि√कृ (करना)+अच्] १. बलि चढ़ानेवाला। २. कर या राजस्व देनेवाला। ३. शरीर में झुर्रियाँ उत्पन्न करनेवाला। |
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बलि-कर्म (न्) :
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पुं० [सं० ष० त०] बलि देने या चढ़ाने का काम। |
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बलित :
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भू० कृ० [हिं० बलि] (पशु) जो बलि चढ़ाया गया हो। |
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बलि-दान :
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पुं० [सं० ष० त०] [वि० बलिदानी] १. देवताओं आदि को प्रसन्न करने के लिए उनके उद्देश्य से किसी पशु का किया जानेवाला वध। २. किसी उद्देश्य या बात की सिद्धि के लिए अपने प्राण तक दे देना। जैसे—देश-सेवा के लिए अपने आपको बलिदान करना। पद—बलिदान का बकरा-ऐसा व्यक्ति जिस पर किसी काम या बात का व्यर्थ ही सारा अपराध या दोष लाद दिया जाय, और तब उसे पूरा-पूरा दंड दिया जाय। (प्रायः अपने आपको उस अपराध या दोष का भागी बनाने के लिए)। |
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बलिदानी :
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वि० [सं० बलिदान] १. बलिदान-संबंधी। बलिदान का। जैसे—बलिदानी परम्परा, बलिदानी बकरा। २. बलिदान करने या चढ़ानेवाला। स्त्री०=बलिदान। |
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बलिद्विट् (ष्) :
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पुं० [सं० बलि√द्विष् (बैर करना)+क्विप्] विष्णु। |
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बलिध्वंसी(सिन्) :
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पुं० [सं० बलि√ध्वंस (नाश)+णिनि] विष्णु। |
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बलि-नंदन :
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पुं० [सं० ष० त०] बाणासुर। |
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बलि-पशु :
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पुं० [सं० मध्य० स०] वह पशु जो यज्ञ आदि में अथवा किसी देवता को संतुष्ट तथा प्रसन्न करने के लिए उसके नाम पर मारा जाता हो। |
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बलि-पुष्ट :
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पुं० [तृ० त०] कौआ। |
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बलि-प्रदान :
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पुं० [सं० ष० त०]=बलि-दान। |
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बलि-प्रिय :
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पुं० [सं० बलि√प्री+क०] १. लोध का पेड़। २. कौआ। |
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बलि-बंधन :
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पुं० [सं० बलि√बंध्(बाँधना)+णिच्+युच्—अन] विष्णु, जिन्होने राजा बलि को बाँधा था। |
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बलिभुज् (ज्) :
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पुं० [सं० बलि√भुज्+क्विप्] कौआ। |
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बलिभुज् :
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पुं० [सं० ] बलि-भुज् का वह रूप जो उसे सम्बोधन कारक में प्रयुक्त होने पर प्राप्त होता है। उदाहरण—किन्तु कौन पा सकता बलिभुज् अमिट कामना पर जाय।—पंत। |
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बलिभृत् :
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[सं० बलि√भृ (भरण करना)+क्विप्, तुक्] १. बलि अर्थात् राज-कर देनेवाला। २. अधीनस्थ। |
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बलिभोजी (जिन्) :
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पुं० [सं० बलि√भुज् (खाना)+णिनि] कौआ। |
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बलि-मंदिर :
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पुं० [ष० त०] राजा बलि के रहने का स्थान, पाताल लोक। |
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बलि-मुख :
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पुं० [ब० स०]=बलि-मंदिर। |
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बलि-वैश्यदेव :
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पुं० [कर्म० स०] पंच महायज्ञों मे से भूतयज्ञ नाम का चौथा महायज्ञ। |
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बलिश :
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पुं० [सं० बलि√शो (पैना करना)+क] मछली फँसाने की कटिया। बंसी। |
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बलिष्ठ :
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वि० [सं० बलिन्+इष्ठन्] जो सबसे अधिक बलवान हो। पुं० ऊंट। |
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बलिष्ठ :
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वि० [सं०√वल् (संवरण)+इष्णुच्] अपमानित। |
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बलिहरण :
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पुं० [ष० त०] सब प्रकार के जीवों को बलि देना। |
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बलिहारना :
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स० [हिं० बलि+हारना] को चीज किसी पर से न्यौछावर करना। जैसे—जान बलिहारना। |
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बलिहारी :
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स्त्री० [हिं० बलि+हारना] बलिहारने अर्थात् न्यौछावर करने की क्रिया या भाव। कुर्बान करना। मुहावरा—बलिहारी जाना=न्यौछावर होना। बलिहारी लेना=बलाएँ लेना। (दे० बला के अन्तर्गत)। पद—बलिहारी हैं=मैं इतना मोहित या प्रसन्न हूँ कि अपने को न्यौछावर करता हूँ। वाह वाह क्या बात है। |
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बलिहृत :
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वि० [सं० बलि√हृ (हरण करना)+क्विप्, तुक्] १. बलिया भेट लानेवाला। २. कर देनेवाला। पुं० राजा। |
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बलींड़ा :
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पुं० [सं० वरंडक] १. छानज के नीचे लम्बाई के बल लगी हुई लकड़ी। बरेंड़ा। २. संतो की परिभाषा में ज्ञान की उच्च अवस्था। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बली (लिन्) :
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वि० [सं० बल+इनि] बलवान्। बलवाला। पराक्रमी। पुं० १. भैंसा। २. साँड़। ३. ऊँट। ४. सूअर। ५. बलराम। ६. सैनिक। ७. कफष ८. एक तरह की चमेली। स्त्री० [हिं० बल] १. बल। शिन। सिलवट। २. त्वचा पर पड़नेवाली झुर्री। |
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बलीक :
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पुं० [सं०] छप्पर का किनारा। |
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बलीन :
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पुं० [सं० बल+ख-ईन] बिच्छू। वि०=बलवान। |
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बलीना :
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स्त्री० [यू० फैलना] एक प्रकार की ह्वेल मछली। |
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बलीबैठक :
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स्त्री० [हिं० बली+बैठक] एक प्रकार की बैठक (कसरत) जिसमें जंघे पर भार देकर उठना-बैठना पड़ता है। |
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समानार्थी शब्द-
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बलीमुख :
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पुं० [सं० ब० स०] बंदर। |
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समानार्थी शब्द-
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बलीवर्द :
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पुं० [सं०√वृ+क्विप्+वर, ई+वर, द्व० स०,ईवर्√दा+क, बलिन्-ईषर्व, कर्म० स०] १. साँड़। २. बैल। |
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बलुआ :
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वि० [हिं० बालू] [स्त्री० बलुई] (स्थान) जिसकी मिट्टी में बालू भी मिला हुआ हो। पुं० रेतीली जमीन। |
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समानार्थी शब्द-
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बलूच :
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पुं०=बलोच। |
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समानार्थी शब्द-
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बलूचिस्तान :
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पुं०=बलोचिस्तान। |
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समानार्थी शब्द-
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बलूची :
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पुं०=बलोच। |
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बलूत :
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पुं० [अ०] ठंडे प्रदेशों में होनेवाला माजूफल की जाति का एक पेड़। |
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बलूल :
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वि० [सं० बल+लच्-ऊङ] बलवान्। |
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बलूला :
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पुं०=बुलबुला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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बलै :
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पुं०=वलय। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बलैया :
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स्त्री० [अ० बला, हिं० बलाय] बला। बलाय। मुहावरा—(किसी की) बलैया लेना=दे० बला के अन्तर्गत बलाएँ लेना |
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समानार्थी शब्द-
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बलोच :
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पुं० आधुनिक पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर में बसनेवाली एक तरह की मुसलमान जाति। |
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बलोचिस्तान :
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पुं० [फा०] आधुनिक पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर का एक प्रदेश। |
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समानार्थी शब्द-
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बलोची :
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पुं० [हिं० बलोच] बलोचिस्तान का निवासी। स्त्री० बलोचिस्तान की बोली। वि० बलोच जाति का। |
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बल्कल :
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पुं० दे० ‘वल्कल’। |
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बल्कस :
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पुं० [सं० बल्क√अस् (फेंकना)+अच्, शक्० पररूप] आसव की तलछट। |
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समानार्थी शब्द-
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बल्कि :
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अव्य० [फा०] एक अव्यय जिसका प्रयोग यह आशय सूचित करने के लिए होता है कि—ऐसा नहीं, बल्कि इसके स्थान पर...प्रत्युत। वरन्। जैसे—मैं नहीं, बल्कि आप ही वहाँ चले जायँ। |
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समानार्थी शब्द-
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बल्ब :
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पुं० [अ०] १. शीशे की नली का अधिक चौड़ा भाग। २. पतले शीशे का एक उपकरण जो बिलजी के योग से चमकने और प्रकाश करने लगता है। लट्टू। |
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समानार्थी शब्द-
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बल्य :
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वि० [सं० बल+यत्] बलकारक। शक्ति-वर्धक। पुं० वीर्य। शुक्र। |
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बल्या :
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स्त्री० [सं० बल्य+टाप्] १. अतिबला। २. अश्वगंधा। ३. प्रसारिणी ४. चंगोनी। |
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समानार्थी शब्द-
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बल्ल :
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पुं०=बल्ल। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्लकी :
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स्त्री०=वल्लकी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्लभ :
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पुं०=वल्लभ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्लम :
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पुं० [सं० बल, हिं० बल्ला] १. मोटा छड़। २. लकड़ी का बड़ा और मोटा डंडा। बल्ला। ३. डंडा। सोंटा। ४. वह सुनहला या रूपहला डंडा जिसे प्रतिहारी या चोबदार राजाओं या बड़े आदमियों के आगे-आगे शभा के लिए लेकर चलते थे और जो अब भी बरातों आदि के साथ लेकर चलते हैं। पद—आसा-बल्लभ। ५. बरछा। भाला। |
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समानार्थी शब्द-
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बल्लमटर :
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पुं० [अं० वालंटियर के अनुकरम पर हिं० बल्लम से०] १. स्वेच्छापूर्वक सेना में भरती होनेवाला सैनिक। २. दे० स्वंयसेवक। |
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बल्लम-नोक :
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वि० [हिं०] १. जिसकी नोक या अगला सिरा बल्लम के फल की तरह नुकीला हो। २. बहुत ही चुभनेवाला, तीखा या पैना जैसे—तुमने भी खूब बल्लम नोक सवाल किया। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्लम-बरदार :
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पुं० [हिं० बल्लम+फा० बर्दार] वह नौकर जो राजाओं की सवारी या बरात के साथ हाथ में बल्लम लेकर चलता हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्लरी :
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स्त्री०=वल्लरी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्लव :
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पुं० [सं०√बल्ल (छिपना)+घञ्, बल्ल√वा (गमन)+क] [स्त्री० बल्लवी] १. चरवाहा। २. भीम का उस समय का कृत्रिम नाम जब वह राजा विराट के यहाँ रसोइया था। ३. उक्त के आधार पर रसोइया। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्ला :
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पुं० [सं० बल्ल=लट्ठा या डंडा] [स्त्री० अल्पा० बल्ली] १. लम्बी, सीधी और मोटी लकड़ी या लट्ठा जिसका उपयोग छतें आदि पाटने और मकान बनाने के समय पाइट आदि बाँधने के लिए होता है। २. मोटा डंडा। ३. नाव खेने का डंडा या बाँस। ४. गेंद के खेल में छोटे डंडे के आकार का काठ का वह चपटा टुकड़ा जिससे गेंद पर आघात करते हैं। (बैट)। पद—गेंदबल्ला। पुं० [सं० वलय] गोबर की सुखाई हुई गोल टिकिया जो होली जलने के समय उसमें डाली जाती है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्लारी :
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स्त्री० [देश०] सम्पूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें केवल कोमल गांधार लगता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्लि :
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स्त्री०=बल्ली (लता)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्ली :
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स्त्री० [हिं० बल्ला] १. लकड़ी का लम्बा छोटा टुकड़ा। छोटा बल्ला। २. नाव खेने का बाँस। स्त्री०=वल्ली। (लता)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्व :
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पुं० [सं०] गणित ज्योतिष में एक तरण का नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बल्वल :
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पुं० [सं०] इल्वल नामक दैत्य का पुत्र जिसका वध बलराम ने किया था। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |