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बरो  : स्त्री० [हिं० बार=बाल] १. आलू की जड़ का पतला रेशा। (रंगरेज) २. एक प्रकार की घास।
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बरोक  : पुं० [हिं० बर+रोकना] १. विवाह संबंध निश्चित होने के पहले होनेवाला एक कृत्य। विशेष दे० ‘बरच्छा’। २. वह धन जो उक्त अवसर पर कन्या पक्ष की तरफ से वर-पक्षवालों को दिया जाता है। अव्य० [फा० ब+हिं० रोक] किसी रोकटोक या बाधा के साथ। पुं० [सं० बलौकः] सेना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बरोज  : स्त्री० [सं० वट+ज०] बरगद की जटा। बरोह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बरोठा  : पुं० [सं० द्वार+कोष्ठ, हं० वार-कोठा] १. ड्योढ़ी। पौरी। पद—बरोठे का आचार-विवाह के समय होनेवाली द्वार पूजा। २. दीवानखाना। बैठक।
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बरोधा  : पुं० [देश०] वह खेत जिसमें पिछली फसल कपास की हुई हो।
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बरोबर  : वि०=बराबर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बरोह  : स्त्री० [सं० वा+रोह-आनेवाला] बरगद के पेड़ के ऊपर की डालियों में टँगे हुए सूत या रस्सी के जैसा वह अंग जो क्रमशः नीचे की ओर झुकता तथा जमीन पर पहुँचकर जम जाता तथा नये वृक्ष का रूप धारण करता है।
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बरोही  : अव्य० [हिं० वर-बल] १. किसी के बल या आधार पर। २. बलपूर्वक।
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