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बरतन  : पुं० [सं० वर्तन] मिट्टी, धातु आदि का बना हुआ कोई ऐसा आधान जो मुख्यतः खाने-पीने की चीजें रखने के काम आता हो। पात्र। जैसे—कटोरा, गिलास, थाली, लोटा आदि। पुं० [सं० वर्त्तन] १. बरतने की क्रिया या भाव। २. बरताव या व्यवहार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
बरतना  : अ० [सं० वर्त्तन] १. पारस्परिक संबंध बनाये रखने के लिए किसी के साथ आपसदारी का व्यवहार होना। बरताव किया जाना। जैसे—भाई-बंदों या बिरादरी के लोगों से बरतना। २. किसी के ऊपर कोई घटना घटित होना। जैसे—जैसी उन पर बरती हैं, वैसी दुश्मन पर भी न बरते। ३. समय आदि के संबंध में व्यतीत होना० गुजरना। जैसे—आज-कल बहुत ही बुरा समय बरत रहा है। ४. उपस्थित या वर्तमान रहना। उदाहरण—लट छूटी बरतै बिकराल।—कबीर। ५. खाने-पीने की चीजों के संबंध में भोजन के समय लोगों के आगे परोसा यार खा जाना। जैसे—दाल बरत गयी है (परोसी जा चुकी है)। स० १. कोई चीज अपने उपयोग, काम या व्यवहार में लाना। जैसे—कपड़ा या मकान बरतना। २. दे० ‘बरताना’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
बरतनी  : स्त्री० [सं० वर्त्तनी] १. लकड़ी आदि की एक प्रकार की कलम जिससे छात्र मिट्टी, गुलाल आदि बिछाकर उस पर अक्षर लिखते हैं अथवा तांत्रिक यंत्र आदि भरते हैं। २. वह शब्द लिखने में अक्षरों का क्रम। हिज्ज। वर्त्तनी। (देखें)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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