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फट  : स्त्री० [अनु०] १. फटने की क्रियाया भाव। २. किसी चीज के फटने से होनेवाला शब्द। ३. मोटर, मशीन आदि के चलने अथवा चिपटी हलकी चीज के आघात से होनेवाला शब्द। पद—फट से या फटाफट=बहुत जल्दी। तुरन्त। स्त्री०=फटकार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फटक  : स्त्री० [हिं० फटकना] १. फटकने की क्रिया या भाव। २. अन्न को फटकने पर उसमें से निकनलेवाला रद्दी अंश। फटकन। पुं०=स्फटिक। पुं०=फाटक। अव्य० [हिं० फट] फट से। तुरन्त। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फटकन  : स्त्री० [हिं० फटकना] १. फटकने की क्रिया या भाव। २. फटकने, झाड़ने आदि पर निकलनेवाली धूल, मिट्टी आदि। ३. अनाज फटकने पर निकलनेवाला निरर्थक या रद्दी अंश।
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फटकना  : अ० [अनु० फट] १. फट-फट शब्द करना। २. कपड़े को इस प्रकार झटके से झाड़ना कि उसमें लगी हुई धूल तथा पड़ी हुई सिलवटें निकल जायँ। ३. पटकना। ४. अस्त्र आदि चलाना या फेंकना। ५. सूप में अनाज रखकर उसे इस प्रकार बार-बार उछालना कि उसमें मिला हुआ कूड़ा-करकट छँटकर अलग हो जाय। मुहावरा—फटकना-पछोड़ना=(क) सूप या छाज पर रखा हुआ अन्न हिलाकर साफ करना। (ख) अच्छी तरह देख-भालकर पता लगाना कि कहीं कोई त्रुटि या दोष तो नहीं है। ६. रूई आदि फटके या धुनकी से धुनना। अ० १. किसी का इस प्रकार कहीं जा या पहुँचकर उपस्थित होना कि लोग उसकी उपस्थिति का अनुभव करने लगें। विशेष—इस अर्थ में इसका प्रयोग अधिकतर नहिक रूप में होता है। जैसे—वहाँ कोई फटक नहीं सकता (या फटकने नहीं पाता)। पर कुछ उर्दू कवियों ने इसका प्रयोग सहिक रूप में भी किया है। जैसे—अक्सर औकात आ फटकते हैं। २.अलग या दूर होना। न रह जाना। ३. विवशता की दशा में हाथ-पैर पटकना। फटफटाना। ४. कुछ करने के लिए हाथ-पैर हिलाना। प्रयत्नशील होना। पुं० गुलेल का फीता जिसमे गुल्ला रखकर फेंकते हैं।
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फटकनी  : स्त्री० [हिं० फटकना] १. फटकने की क्रिया या भाव। २. अनाज फटकने का सूप।
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फटकरना  : अ० [हिं० फटकारना का अ०] फटकारा जाना। स०=फटकना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फटकरी  : स्त्री=फिटकरी।
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फटकवाना  : स० [हिं० फटकना का प्रे०] फटकने में प्रवृत्त करना। फटकने का काम किसी से कराना।
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फटका  : पुं० [अनु०] १. फटफटाने अर्थात् विवश होकर हाथ-पैर पटकने क्रिया या भाव। २. धुनिये की धुनकी जिससे वह रूई आदि धुनता है। क्रि० प्र०—खाना। ३. फले हुए पेड़ों में बँधी हुई वह लकड़ी जिसके साथ बँधी हुई रस्सी हिलाने से उससे फट-फट शब्द होता है। (इससे फल खानेवाली चिड़ियाँ वहाँ से उड़ जाती या पास नहीं आती। ४. काव्य के रस आदि गुणों से हीन कविता जिसमें बहुत सी साधारण तुकबन्दी के सिवाय कुछ भी न हो। क्रि० प्र०—जोड़ना। पुं० [हिं० फटकन] एक प्रकार की बलुई भूमि जिसमें पत्थर के टुकड़े अधिक होते हैं। इसी कारण यह उपजाऊ नहीं होती। पुं० =फाटक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फटकाना  : स० [हिं० फटकना] १. किसी को कुछ फटकने में प्रवृत्त करना। फटकवाना। २. अलग करना। ३. फेंकना।
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फटकार  : स्त्री० [हिं० फटकारना] १. फटकारने की क्रिया या भाव। २. ऐसी कठोर बात जिससे किसी की भर्त्सना की जाय। फटकार कर कही हुई बात। दुतकार। झिड़की। क्रि० प्र०—पड़ना।—बताना।—सुनना।—सुनाना ३. शाप। (क्व०) ४. वह कोड़ा या चाबुक जो घोड़ों को सधाने-सिखाने के समय जोर की आवाज करने के लिए चलाते या फटकारते हैं।
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फटकारना  : स० [अनु] १. कोई चीज इस प्रकार वेगपूर्वक और झटके से हिलाना कि उसमें से फट शब्द हो। जैसे—कोड़ा या चाबुक फटकारना। २. एक में मिली हुई बहुत-सी चीजें इस प्रकार हिलाना या झटका मारना जिसमें वे छितरा जायँ। जैसे—जटा या दाढ़ी फटकारना। ३. इस प्रकार झटके से हिलाना कि कोई चीज दूर जा पड़े। झटकारना। ४. शस्त्र आदि का प्रहार करने के लिए इधर-उधर हिलाना। जैसे—गदा फटकारना। ५. कपड़े को पत्थर आदि पर पटक कर धोना। ६. क्रुद्ध होकर किसी से ऐसी कड़ी बातें कहना जिससे वह चुप हो जाय या लज्जित होकर दूर हट जाय। खरी और कड़ी बातें कहकर चुप कराना। जैसे—आप जब तक उन्हें फटकारेगें नहीं, तब तक वे नहीं मानेंगे। संयों० क्रि०—देना। ७. बहुत शान से या ऐंठ दिखाते हुए धन अर्जित या प्राप्त करना। जैसे—दस-पाँच रुपए रोज तो वह बात में फटकार लेता है। संयो० क्रि०—लेना।
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फटकिया  : पुं० [देश] मीठा नामक विष का एक भेद जो गोबरिया से कम विषैला होता है।
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फटकी  : स्त्री० [हिं० फटक] १. वह झाबा जिसमें बहेलिया पकड़ी हुई चिड़ियाँ रखते हैं। २. दे० ‘फटका’।
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फटकेबाज  : पुं० [हिं० फटका+फा० बाज] [भाव० फटकेबाजी] वह जो बहुत ही निम्नकोटि और बाजारू कविताएँ करता हो।
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फटन  : स्त्री० [हिं० फटना] १. फटने की क्रिया या भाव। फटने के कारण किसी चीज में पड़नेवाली दरार या बननेवाला रेखाकार चिन्ह। ३. भूगोल में, चट्टानों आदि पर दबाव पड़ने के कारण होनेवाली दरार। (क्लीवेज़)
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फटना  : अ० [हिं० फाड़ना का अ० रूप] १. आघात लगने के कारण या यों ही किसी चीज़ का बीच में से इस प्रकार खंडित होना या उसमें दरार पड़ जाना कि अन्दर की चीजें बाहर निकल पड़ें या बाहर से दिखायी देने लगें। जैसे—दमीन या दीवार फटना। मुहावरा—फट पड़ना=अचानक बहुत अधिक मात्रा में आ पहुँचना। सहसा आ पड़ना। जैसे—(क) दौलत तो उनके घर मानों फट पड़ी है। (ख) आफत तो उनके सिर मानों पट पड़ी है। फटा पड़ना-इतनी अधिकता होना कि अपने आधार या आधान में समा न सके। जैसे—उसका रूप तो मानों फटा पड़ता था। २. किसी पदार्थ का बीच से कटकर या दो टुकड़े हो जाना। जैसे—कपड़ा फटना। ३. बीच या सीध में से निकलकर किसी ओर असंगत रूप से बढना या अलग होकर दूर निकल जाना। मुहावरा—फट जाना या पड़ना=बीच या सीध में अचानक निकलकर इधर या उधर हो जाना। जैसे—वह घोड़ा चलते-चलते दाहिनी या बायी ओर बढ़ जाता है। ४. किसी गाढ़े द्रव पदार्थ में ऐसा विकार होना जिससे उसका पानी अलक और सार भाग अलग हो जाय। जैसे—खून फटना, दूध फटना। ५. रोग विकार आदि के कारण शरीर के किसी अंग में ऐसी पीड़ा या वेदना होना कि मानों वह अंग फट जायगा। जैसे—दर्द के मारे आँख या सिर फटना, बहुत अधिक थकावट के कारण पैर फटना, हो-हल्ले से कान फटना। ६. लाक्षणिक रूप में मन या हृदय पर ऐसा आघात लगना कि उसकी पहलेवाली साधारण अवस्था न रह जाय। जैसे—किसी के दुर्व्यवहार से चित्त (मन या हृदय) फटना, शोर से छाती फटना। ७. किसी चीज या बात का अपनी साधारण या प्रसम अवस्था में न रहकर विकृत अवस्था में आना या होना। जैसे—चिल्लाते-चिल्लाते आवाज (या गला) फटना। ८. किसी पर विपत्ति के रूप में आकर गिरना। उदाहरण—सीता असगुन कौं कटाई नाक बार, सोई अब कृपा करि राधिका पै फेर फाटी है।—रत्ना०।
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फट-फट  : स्त्री० [अनु] १. फट-फट शब्द। जैसे—(क) चप्पल या जूते की फट-फट। (ख) मोटर की फट-फट। २. व्यर्थ की बकवाद। ३. कहा-सुनी। तकरार।
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फटफटाना  : स० [अनु०] फट-फट शब्द उत्पन्न करना। अ० १. फट-फट शब्द करते हुए उधर-उधर व्यर्थ घूमना। मारा-माना फिरना। २. विवश होने पर कुछ चिन्तित या विकल होना। ३. व्यर्थ का प्रलाप या बकवाद करना।
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फटहा  : वि० [हिं० फटना] १. फटा हुआ। २. अंड-बंड और अश्लील बातें बकनेवाला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फटा  : वि० [हिं० फटना] १. जो फट गया हो। जैसे—फटा कपड़ा। मुहावरा—किसी के फटे पैर देना=दूसरे की विपत्ति अपने सिर लेना। २. जो बहुत ही बुरी या हीन अवस्था में आ गया हो। पद—फटे हाल (या हालों)-बहुत ही दुर्दशाग्रस्त रूप में। जैसे—महीने भर में ही भागा हुआ लड़का फटेहाल (या हालों) घर आ पहुँचा। ३. जो बहुत विकृत अवस्था में हो। जैसे—फटी आवाज। पुं० किसी चीज के फटने से बना हुआ गड्ढा या दरार। स्त्री० [सं० फट+टाप्] १. साँप का फन। २. अभिमान। घमंड। ३. छल। धोखा। ४. छिद्र। छेद।
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फटाका  : पुं० [अनु०] फट की तरह होनेवाला जोर का शब्द।
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फटाटोप  : पुं० [सं० ष० त०] साँप का फैला हुआ फन।
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फटान  : स्त्री० [हिं० फटना] १. फटन। २. वृक्ष का खोंडर।
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फटिक  : पुं० [सं० स्फटिक, पा० फटिक] १. स्फटिक। बिल्लौर। २. संग-मरमर।
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फटिका  : स्त्री० [सं० स्फटिक] १. एक प्रकार की शराब जो जौ आदि से खमीर उठाकर बिना चुवाये बनायी जाती है। २. गुलेल की डोरी के बीचो-बीच रस्सी से बनकर बनाया हुआ वह चौकोर हिस्सा जिसमें मिट्टी की गोली रखकर चलायी जाती है। उदाहरण—बीच परे भौर फटिका से सुधरत हैं।—सेनापति।
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फटीचर  : वि० [हिं० फटा+चीर] १. (व्यक्ति) जो फटे-पुराने कपड़े पहनता हो या पहने रहता हो। २. बहुत ही तुच्छ या हेय।
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फटेहाल  : क्रि० वि० [हिं० +अ०] बहुत ही दीन या बुरी अवस्था में। दुर्दशाग्रस्त रूप में।
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फट्टा  : पुं० [हिं० फटना] [स्त्री० अल्पा० फट्टी] १. लकड़ी आदि को चीरकर निकाला हुआ छोटा तख्ता। २. बाँस आदि को चीरकर निकाला हुआ पतला खंड या छड़। पुं० [सं० पट] टाट। मुहावरा—फट्टा उलटना=टाट उलटना। दिवाला निकालना।
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फट्टी  : स्त्री० [हिं० फट्टा] १. छोटा तख्ता। २. बाँस की चिरी हुई पतली छड़ी। ३. बच्चों के लिखने की पटिया। पट्टी। (पश्चिम)
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