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प्राण  : पुं० [सं० प्र√अन्+घञ्] १. श्वास। साँस। २. वह वायु या हवा जो साँस के साथ अन्दर जाती है और बाहर निकलती है। ३. वह हवा जो जीव-जंतुओं, पेड-पौधों आदि में रहकर उन्हें जीवित रखती और उन्हें अपने सब व्यापार चलाने में समर्थ करती है। जीवनी-शक्ति। जान। (लाइफ़) विशेष—हमारे यहाँ शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में रहनेवाले ये पाँच प्रकार के प्राण माने गये हैं—प्राण, अपान, ,मान, उदान और व्यान। इसी आधार पर ‘प्राण’ का प्रयोग प्रायः बहुवचन में होता है। इसके सिवा शरीर की कुछ विशिष्ट क्रियाएँ करानेवाले और भी पाँच प्राण कहे गये हैं जो वायु रूप में हैं और जिन्हें नाग, कूर्म, कृकिल, देवदत्त तथा धनंजय कहते हैं। छांदोग्य ब्राह्मण में जीवनी शक्ति, वाक्, चक्षु, श्रोत्र और मन को ‘प्राण’ कहा गया है। कुछ ग्रंथों में मूलाधार में रहनेवाली वायु को ही मुख्य रूप से ‘प्राण’ कहा गया है। जैन शास्त्रों में पाँचों इंद्रियाँ, त्रिविध बलों (मनोबल, वाक्बल और काय-बल) तथा उच्छ्वास और आयु के समूह को प्राण कहा गया है। कुछ अवसरों पर और विशेषतः कुछ मुहावरों में यह शारीरिक बल या शक्ति का भी वाचक होता है। मुह०—प्राण उड़ जाना=दुःख, भय आदि के कारण होश-हवास जाता रहना। बहुत घबराहट या विकलता होना। (किसी के) प्राण खाना=बहुत तंग या परेशान करना। प्राण गले (या मुँह) तक आना=रोग, संकट आदि के कारण मृत्यु के समीप तक पहुँचना। मरणासन्न होना। प्राण घूटना=मृत्यु होना। मरना। प्राण छोड़ना, तजना या त्यागना=यह शरीर छोड़कर परलोक जाना। मरना। प्राण जाना या निकालना=मृत्यु होना। (किसी में) प्राण डालना=(क) किसी में जीवन का संचार करना। (ख) किसी मरते हुए को जीवन प्रदान करना। (अपने) प्राण देना=मर जाना। मरना। (किसी के लिए) प्राण देना=किसी के किसी काम से बहुत दुःखी या रुष्ट होकर मरना। (किसी पर) प्राण देना=किसी से इतना अधिक प्रेम करना कि उसके बिना रहा न जा सके। प्राणों के समान प्रिय समझना। (किसी काम या बात से) प्राण निकलने लगना=कोई काम या बात करते हुए इतनी आशंका या भय होना कि मानों प्राण निकल जायँगे। भय, शंका आदि के कारण अथवा और किसी प्रकार अपने आप को बचाने के लिए बिल्कुल अलग या बहुत दूर रहना। प्राण (या प्राणों) पर खेलना=ऐसा काम करना जिसमें जान जाने का भय हो। प्राणों को संकट में डालना। प्राण या (प्राणों) पर बीतन=(क) जीवन संकट में पड़ना। जान जोखिम होना। (ख) मृत्यु होना। मर जाना। (किसी के) प्राण बचाना=जीवन की रक्षा करना। जान बचाना। (अपने) प्राण बचाना=(क) किसी प्रकार अपने जीवन की रक्षा करना। (ख) कोई काम करने से बचना या भागना। जान या पीछा छुड़ाना। प्राण मुट्ठी या हथेली में लिये फिरना=जीवन को कुछ न समझना। प्राण देने पर हर समय तैयार रहना। किसी के प्राण रखना=जान बचाना। जीवन की रक्षा करना। (किसी के) प्राण लेना या हरना=जीवन का अन्त कर देना। मार डालना। प्राण हारना=(क) मरजाना। (ख) साहस या हिम्मत छोड़ देना। हतोत्साह होना। प्राणों पर आ पड़ना या आ बनना=जीवन संकट में पड़ना। जान जोखिम में होना। प्राणों में प्राण आना=घबराहट या भय कम होना। चित्त कुछ ठिकाने या शांत होना। ३. वह जो प्राणों के समान परम प्रिय हो। ४. ब्रह्म। ५. ब्रह्मा। ६. विष्णु। ७. अग्नि। आग। ८. वैवस्वत मंवतर के सप्तर्षियों में से एक। ९. धाता के एक पुत्र का नाम। १॰. एक साम का नाम। ११. यवर्ण। यकार। १२. वाराहमिहिर आर्यभट्ट के अनुसार उतना काल जितनें में दस दीर्घ मात्राओं का उच्चारण होता है। यह विनाडिका का छठा भाग है। १३. पुराणानुसार एक कल्प जो ब्रह्मा के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को होता है।
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प्राण-अधार  : पुं०=प्राणाधार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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प्राणक  : पुं० [सं० प्राण√कै (प्रकाशित होना)+क] १. जीवक वृक्ष। २. जीव। प्राणी। ३. गोंद।
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प्राण-कर  : वि० [सं० प्राण√कृ (करना)+ट] जिससे शरीर का बल बढ़ता हो। शक्ति-वर्द्धक। पौष्टिक।
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प्राण-कष्ट  : पुं० [ष० त० या मध्य० स०] वह कष्ट जो प्राण निकलने या मरने के समय होता है। मरण-काल की यातना या वेदना।
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प्राण-कृच्छ्  : पुं०=प्राण-कष्ट।
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प्राण-ग्रह  : पुं० [ष० त०] नासिका। नाक।
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प्राण-घातक  : वि० [सं० ष० त०] १. प्राण लेने या मार डालनेवाला। २. (विष या और कोई पदार्थ) जिसके व्यवहार से प्राण निकल जायँ।
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प्राणघ्न  : वि० [सं० प्राण√हन्+टक्]=प्राण-घातक।
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प्राणच्छेद  : पुं० [ष० त०] हत्या। वध।
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प्राण-जीवन  : पुं० [ष० त०] १. वह जो प्राणों का आधार हो। प्राणाधार। २. परम प्रिय व्यक्ति। ३. विष्णु।
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प्राण-त्याग  : पुं० [ष० त०] प्राण का शरीर से निकल जाना। मर जाना।
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प्राणथ  : पुं० [सं० प्र√अन् (जीना)+अथ] १. वायु। हवा। २. प्रजापति। ३. पवित्र स्थान। तीर्थ। ४. जैन शास्त्रानुसार एक देवता जो कल्पभव नामक वैभानिक देवताओं के अंतर्गत हैं। वि० बलवान। सशक्त।
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प्राण-दंड  : पुं० [ष० त०] हत्या या ऐसे ही किसी दूसरे गंभीर अपराध के लिए किसी को दी जानेवाली मौत की सजा। मृत्यु-दंड। (कैपिटल पनिशमेन्ट)
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प्राणद  : वि० [सं० प्राण√दा+क] १. प्राणों की प्रतिष्ठा या संचार करनेवाले। प्राण-दाता। २. प्राणों की रक्षा करनेवाला। प्राणरक्षक। ३. शरीर की प्राण-शक्ति बढ़ानेवाला। पुं० १. जल। २. खून। ३. जीवक वृक्ष। ४. विष्णु।
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प्राणदा  : स्त्री० [सं० प्राणद+टाप्] १. हरीतकी। हर्रे। २. ऋद्धि नामक ओषधि।
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प्राण-दाता (तृ)  : वि० [ष० त०] प्राणों की प्रतिष्ठा या संचार करने वाला। प्राणद।
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प्राण-दान  : पुं० [ष० त०] १. किसी में प्राण डालना या उसे प्राणों से युक्त करना। २. जिसे मार डालना चाहते हों, उसे दया करके यों ही छोड़ देना। किसी के प्राणों की रक्षा करना। ३. अपने प्राणों का किसी शुभ काम के निमित्त किया जानेवाला बलिदान। जीवन-दान।
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प्राणद्यूत  : पुं० [ष० त०] अपने को ऐसी स्थिति में डालना जिसमें प्राण तक जाने का भय हो। जान जोखिम में डालना। जान की बाजी लगाना।
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प्राण-द्रोह  : पुं० [ष० त०] किसी के प्राण लेने के लिए किया जानेवाला दुस्साहस जो विधिक दृष्टि में अपराध होता है।
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प्राण-धन  : पुं० [ष० त०] १. वह जो किसी को प्राणों के समान प्रिय हो। २. पति या प्रियतम।
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प्राणधार  : वि० [सं० प्राण√धृ (धारण करना)+अण्] जो प्राण धारण किये हुए हो। जीता हुआ। पुं० प्राणी। जीव।
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प्राण-धारण  : पुं० [ष० त०] १. प्राणों की रक्षा तथा उन्हें पोषित करते रहने का भाव। २. उक्त का कोई साधन। ३. शिव।
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प्राणधारी (रिन्)  : वि० [सं० प्राण√धृ+णिनि] जो साँस लेता हो। साँस लेकर जीवित रहने वाला। पुं० जीव। प्राणी।
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प्राण-ध्वनि  : स्त्री० [सं०] १. भाषा विज्ञान और व्याकरण में, शब्दों के उच्चारण के समय मुँह से निकलनेवाली ऐसी ध्वनि जिसमें किसी स्वर के उच्चारण से पहले उस पर श्वास का कुछ अधिक जोर पड़ता या झटका लगता है। जैसे—‘ए’ (संबोधन) के उच्चारण में प्राण-ध्वनि लगने पर ‘हे’ और होंठ में के ‘ओं’ के उच्चारण में लगने पर ‘हों’ (होंठ) का उच्चारण होता है। २. वर्ण-माला में का ‘ह’ वर्ण।
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प्राणन  : पुं० [सं० प्र√अन्+ल्युट्—अन] १. किसी में प्राण डालने की क्रिया या भाव। प्राण-प्रतिष्ठा करना। २. जीवन। ३. इस प्रकार हिलना-डुलना कि जीवित होने का प्रमाण मिले। ४. जल। पानी।
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प्राण-नाथ  : पुं० [ष० त०] [स्त्री० प्राणनाथा] १. वह जो प्राणों फलतः शरीर का स्वामी हो। २. स्त्री की दृष्टि से उसका पति। ३. प्रियतम। प्रेमी। ४. यम। ५. औरंगजेब के शासन-काल में एक क्षत्रिय आचार्य जो प्राण-नाथी धार्मिक संप्रदाय के प्रवर्तक थे।
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प्राण-नाथी (थिन्)  : पुं० [सं० प्राण-नाथ+इनि] १. प्राण-नाथ का चलाया हुआ एक धार्मिक संप्रदाय। २. उक्त संप्रदाय का अनुयायी।
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प्राण-नाश  : पुं० [ष० त०] १. प्राणों का नष्ट हो जाना। मृत्यु। २. जान से मार डालना। हत्या।
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प्राण-नाशक  : वि० [ष० त०] प्राण नष्ट करने या मार डालनेवाला।
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प्राण-निग्रह  : पुं० [ष० त०] प्राणायाम।
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प्राण-पति  : पुं० [ष० त०] १. प्राण-नाथ। २. आत्मा। ३. वैद्य।
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प्राण-परिक्रय  : पुं० [ष० त०] प्राणों की बाजी लगाना।
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प्राण-परिग्रह  : पुं० [ष० त०] प्राण धारण करना। जन्म लेना।
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प्राण-प्यारा  : वि०, पुं०=प्राण-प्रिय।
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प्राण-प्रतिष्ठा  : स्त्री० [ष० त०] १. किसी में प्राण डालकर उसे प्राणयुक्त अर्थात् सजीव बनाना। २. देवालय स्थापित करते समय किसी विशिष्ट मूर्ति में वास करने के लिए उसके देवता का किया जानेवाला आवाहन तथा स्थापना जो कर्म-कांड का धर्मिक कृत्य है।
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प्राणप्रद  : वि० [सं० प्राण+प्र√दा (देना)+क] १. प्राणद। (दे०) २. शरीर का स्वास्थ्य ठीक करने और बढ़ानेवाला।
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प्राण-प्रदायक  : वि० [ष० त०] प्राणद। प्राणदाता।
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प्राण-प्रिय  : वि० [स्त्री० प्राण-प्रिया] प्राणों के समान प्रिय। पुं० १. परम प्रिय व्यक्ति। २. प्रियतम।
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प्राणभृत्  : वि० [सं० प्राण√भृ (धारण करना)+क्विप] १. प्राण धारण करनेवाला। २. प्राण-पोषक। पुं० १. जीव। २. विष्णु।
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प्राणमय  : वि० [सं० प्राण+मयट्] [स्त्री० प्राणमयी] जिसमें प्राण या जीवनी-शक्ति हो। जानदार। सजीव।
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प्राणमय-कोश  : पुं० [सं० कर्म० स०] आत्मा को आवृत करनेवाले पाँच कोशों में से दूसरा जो पाँचों प्राणों (प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान) तथा पाँचों कर्मेन्द्रियों का समूह कहा गया है। (वेदान्त)
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प्राण-यात्रा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. श्वास-प्रश्वास के आने-जाने की क्रिया। साँस का आना-जाना। २. भोजन, स्नान आदि के दैनिक कृत्य जिनसे मनुष्य या प्राणियों का जीवन चलता है। ३. जीविका।
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प्राण-योनि  : पुं० [सं० ष० त०] १. परमेश्वर। २. वायु। स्त्री० प्राणों का स्रोत्र।
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प्राणरंध्र  : पुं० [सं० ष० त०] शरीर ने छिद्र या रन्ध्र। मुख्यतः नाक और मुँह जिनसे मनुष्य साँस लेता है।
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प्राणरोध (न्)  : पुं० [सं० ष० त०] १. साँस रोकना। २. प्राणायाम।
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प्राण-वध  : पुं० [सं० ष० त०] जान से मार डालना। वध। हत्या।
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प्राण-वल्लभ  : पुं० [सं० उपमति स०] [स्त्री० प्राणवल्लभा] १. वह जो बहुत प्यारा हो। अत्यंत प्रिय। २. पति। स्वामी। ३. प्रियतम।
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प्राणवान् (वत्)  : [सं० प्राण+मतुप्, वत्व] जिसमें प्राण हों। प्राणों से युक्त।
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प्राण-वायु  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. प्राण। २. जीव। ३. आज-कल वातावरण में रहनेवाला एक प्रसिद्ध गैस जिसमें कोई गन्ध, वर्ण या स्वाद नहीं होता और जो प्राणियों, वनस्पतियों आदि को जीवित रखने के लिए परम आवश्यक तत्त्व है। (ऑक्सीजन)
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प्राण-विद्या  : स्त्री० [सं० ष० त०] उपनिषदों का वह प्रकरण जिसमें प्राणों का वर्णन है।
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प्राण-वृत्ति  : स्त्री० [सं० ष० त०] प्राण, अपना, उदान आदि पंच प्राणों के कार्य।
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प्राण-व्यय  : पुं० [सं० ष० त०] प्राणनाश। मत्यु।
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प्राण-शरीर  : पुं० [सं० ष० त०] १. उपनिषदों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो मनोमय विज्ञान और क्रिया का हेतु माना गया है। २. परमेश्वर।
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प्राण-शोषण  : पुं० [सं० ष० त०] वाण। तीर।
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प्राण-संकट  : पुं० [सं० ष० त०] १. ऐसी स्थिति जिसमें प्राण जाने का भय हो। २. ऐसी बात जिसके कारण जान जोखिम में पड़ी हो।
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प्राण-संदेह  : पुं० [ष० त०] वह अवस्था जिसमें जान जाने का डर हो। प्राणान्त होने की आशंका।
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प्राण-संन्यास  : पुं० [ष० त०] मृत्यु। मौत।
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प्राण-संयम  : पुं० [सं० ब० स०] प्राणायाम।
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प्राण-शय  : पं० [ष० त०] १. जीवन के नष्ट होने की आशंका। २. मरणासन्नता। ३. प्राण-संकट।
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प्राण-हर  : वि० [सं० प्राण√हृ (हरण करना)+अच्] १. जान से मार डालनेवाला। प्राण लेनेवाला। २. बलनाशक। पुं० विष आदि ऐसे पदार्थ जिनके सेवन से प्राण निकल जाते हैं।
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प्राण-हानि  : स्त्री० [सं० ष० त०] प्राणों का नाश। मत्यु।
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प्राण-हारक  : वि० [सं० ष० त०]=प्राण-हर। पुं० वत्सनाभ। बछनाग।
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प्राणहारी (रिन्)  : वि० [सं० प्राण√हृ+णिनि] प्राण लेनेवाला। प्राण-नाशक।
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प्राणांत  : पुं० [सं० प्राण-अंत, ष० त०] प्राणों का होनेवाला अंत या नाश। मृत्यु।
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प्राणांतक  : वि० [सं० प्राण-अंतक, ष० त०] १. प्राण या जान लेनेवाला। घातक। २. मरने का-सा कष्ट देनेवाला। जैसे—प्राणांतक परिश्रम।
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प्राणांतिक  : पुं० [सं० प्राणांत+ठक्—इक] १. वध। हत्या। २. वधिक। वि०=प्राणांतक।
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प्राणाग्नि-होत्र  : पुं० [सं० प्राण-अग्नि, कर्म० स०, प्राणाग्नि-होत्र, स० त०] भोजन के समय पहले किया जानेवाला वह कृत्य जिसमें ‘प्राणाय स्वाहा’, ‘अपानाय स्वाहा’, ‘व्यानाय स्वाहा’, ‘उदानाय स्वाहा’ और ‘समानाय स्वाहा’ कहते हुए पाँच ग्रास निकालकर अलग रखते हैं।
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प्राणाघात  : पुं० [सं० प्राण-आघात, स० त०] १. वह आघात जो किसी के प्राण लेने के उद्देश्य से किया गया हो। २. मार डालना। वध। हत्या।
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प्राणाचार्य  : पुं० [सं० प्राण-आचार्य, ष० त०] वैद्य विशेषतः राजवैद्य।
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प्राणातिपात  : पुं० [सं० प्राण अतिपात, ष० त०] जान से मार डालना। हत्या।
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प्राणातिपात-विरमण  : पुं० [सं० पं० त०] जैन मतानुसार अहिंसा व्रत। यह दो प्रकार का कहा गया है—द्रव्य-प्राणातिपात-विरमण और भाव-प्राणातिपात-विरमण।
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प्राणात्मा (त्मन्)  : पुं०=जीवात्मा।
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प्राणात्यय  : पुं० [सं० प्राण-अत्यय, ष० त०] १. प्राण-नाश। २. मरने का समय। मृत्यु-काल। ३. वह बात जिसके कारण मारे जाने का भय हो।
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प्राणाद  : वि० [सं० प्राण√अद् (खाना)+अण्] प्राणनाशक।
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प्राणाधार  : वि० [सं० प्राण-आधार, ष० त०] जिसके कारण प्राण टिके या बने हुए हों। अत्यंत प्रिय। प्यारा। पुं० १. प्रेम-पात्र। २. स्त्री का पति। स्वामी।
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प्राणाधिक  : वि० [सं० प्राण-अधिक, पं० त०] [स्त्री० प्राणाधिका] प्राणों से भी अधिक प्रिय। बहुत प्यारा। पुं० स्त्री का पति। स्वामी।
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प्राणाधिप  : पुं० [सं० प्राण-अधिप, ष० त०] आत्मा।
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प्राणाबाध  : पुं० [सं० प्राण-आबाध, ष० त०] प्राण जाने की आशंका या संभावना।
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प्राणायतन  : पुं० [सं० प्राण-आयतन, ष० त०] शरीर से प्राणों के निकलने के नौ मार्ग—दो कान, नाक के दोनों छेद, दोनों आँखें, मुख, गुदा और उपस्थ।
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प्राणायाम  : पुं० [सं० प्राण-आयाम, ष० त०] १. प्राणों को अपने वश में रखने की क्रिया या भाव। २. योग के आठ अंगों में चौथा जिसमें मन को शांत और स्थिर करने के लिए श्वास और प्रश्वास की वायुओं को नियंत्रित और नियमित रूप से अंदर खींचा और बाहर निकाला जाता है। प्राण-निरोध।
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प्राणायामी (मिन्)  : वि० [सं० प्राणायाम+इनि] १. प्राणायाम संबंधी। २. प्राणायाम करनेवाला।
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प्राणावरोध  : पुं० [सं० प्राण-अवरोध, ष० त०] श्वास को अंदर खींचकर रोक रखना।
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प्राणाशय  : पुं० [सं० प्राण-आशय, ष० त०] प्राण-शक्ति। उदा०—अपनी असीमता में अवसित प्राणाशय।—निराला।
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प्राणासन  : पुं० [सं० प्राण-आसन, मध्य० स०] तांत्रिक साधना में एक प्रकार का आसन।
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प्राणाहुति  : स्त्री० [सं० प्राण-आहुति, ष० त०] पाँचों प्राणों को पाँच ग्रासों के रूप में दी जानेवाली आहुति।
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प्राणि  : पुं०=प्राणी।
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प्राणिक  : वि० [सं० प्राण+ठन्—इक] १. प्राण-संबंधी। प्राणों का। २. बिना शोर मचाये बोलनेवाला। वि० [सं० प्राणी से] प्राणियों या जीव-धारियों से सम्बन्ध रखनेवाला। प्राणियों का।
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प्राणित  : भू० कृ० [सं० प्र√अन्+णिच्+क्त] १. प्राणों या जीवनी-शक्ति से युक्त किया हुआ। उदा०— शशि मुख प्राणित नील गगन था, भीतर से आलोकित मन था।—पंत। २. जीता हुआ।
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प्राणि-द्यूत  : पं० [सं० ष० त०] वह बाजी जो भेड़े, तीतर, घोड़े आदि जीवों की लड़ाई, दौड़ आदि में लगाई जाय। (धर्म-शास्त्र)
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प्राणि-भूगोल  : पुं० [सं० ष० त०] भूगोल की वह शाखा जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि पृथ्वी पर कहाँ की जल-वायु के प्रभाव के कारण कैसे-कैसे प्राणी और वनस्पतियाँ होती हैं। (बायोजियाग्रैफी)
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प्राणि-मंडल  : पुं० [सं० ष० त०] वैज्ञानिक क्षेत्रों में जल, स्थल और आकाश का उतना अंश जिसमें कीड़े, मकोड़े, जीव-जंतु, वनस्पतियाँ आदि रहती तथा होती हैं। जीव-मंडल। (बायोस्फीयर)
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प्राणि-विज्ञ  : पुं० [सं० ष० त०] वह जो प्राणि-शास्त्र का अच्छा ज्ञाता हो। (जूलाजिस्ट)
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प्राणि-विज्ञान  : पुं० [सं० ष० त०] आधुनिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें प्राणियों की जातियों, वर्गों, विभेदों आदि का अध्ययन होता है। (जलाँजी)
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प्राणिशास्त्र  : पुं०=प्राणि-विज्ञान।
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प्राणी (णिन्)  : वि० [सं० प्राण+इनि] जिसमें पाँचों प्राणों का निवास हो। जीव-धारी। प्राण-धारी। पुं० १. प्राणों से युक्त शरीर। २. मनुष्य। ३. व्यक्ति। ४. स्त्री की दृष्टि से उसका पति। ५. पति की दृष्टि से उसकी पत्नी। पद—दोनों प्राणी=पति और पत्नी। पुरुष और स्त्री। दंपति।
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प्राणेश  : पुं० [सं० प्राण-ईश, ष० त०] [स्त्री० प्राणेशा] १. प्राणों का स्वामी। २. स्त्री० की दृष्टि से उसका पति। ३. परम प्रिय व्यक्ति।
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प्राणेश्वर  : पुं० [सं० प्राण-ईश्वर, ष० त०] [स्त्री० प्राणेश्वरी] १. पति। स्वामी। २. परम प्रिय व्यक्ति।
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प्राणोत्सर्ग  : पुं० [सं० प्राण-उत्सर्ग, ष० त०] मृत्यु।
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प्राणोपेत  : वि० [सं० प्राण-उपेता पुं० त०] प्राणों से युक्त। जीवित।
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