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शब्द का अर्थ

प्रतिषेध  : पुं० [सं० प्रति√सिद्ध+घञ्] १. निषेध। मनाही। २. खंडन। ३. साहित्य में एक अर्थालंकार जिसमें चमत्कार-पूर्ण ढंग से प्रसिद्ध अर्थ का निषेध किया जाता है। उदा०—मोहन कर मुरली नहीं है कछु बड़ी बलाय। यहाँ मुरली का निषेध किया गया है।
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प्रतिषेधक  : वि० [सं० प्रति √सिध्+णिच्+ण्वुल्—अक] (आज्ञा, कथन आदि) जिसमें या जिसके द्वारा किसी प्रकार का प्रतिषेध हो। (प्राहिबिटरी) पुं० वह जो प्रतिषेध करे। (प्राहिबिटर)
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प्रतिषेधन  : पुं० [सं० प्रति√सिध्+णिच्+ल्युट्—अन] प्रतिषेध करने की किया या भाव।
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प्रतिषेध-लेख  : पुं० [ष० त०] आज-कल विधिक क्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की वह लिखित आज्ञा जो किसी को अन्तरिम काल में या अन्तिम निर्णय होने तक कोई काम करने से रोकने के लिए दी जाती हैं। (रिट आफ प्रोहिबिशन)
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प्रतिषेधाधिकार  : पुं० [प्रतिषेध-अधिकार, ष० त०] किसी शासक, संसद आदि को प्राप्त वह संवैधानिक अधिकार जिससे वह शासन के किसी अन्य अंग की आज्ञा, निर्णय, प्रस्ताव आदि अमान्य या रद्द कर सकता है। निषेधाधिकार। (वीटो)
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प्रतिषेधोपमा  : स्त्री० [सं० प्रतिषेध-उपमा, ष० त०] उपमालंकार का एक भेद जिसमें कुछ प्रतिषेधक तत्त्व होता है।
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