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पूँगरण  : पुं० [सं० पुंग=राशि या समूह] वस्त्र। कपड़ा। (डिं०)
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पूँगरा  : वि० दे० ‘पोंगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँगा  : पुं० [देश०] सीप के अन्दर रहनेवाला कीड़ा। स्त्री० [अनु०] [स्त्री० अल्पा० पूँगी] १. सँपेरों की बीन। महुअर। २. एक तरह की बाँसुरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० दे० ‘पोंगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछ  : स्त्री० [सं० पुच्छ] १. चौपायों तथा जंतुओं का वह गावनुमा तथा लचीला पिछला भाग जो गुदा-मार्ग के ऊपर रीढ़ की हड्डी की संधि में या उससे निकलकर नीचे की ओर कुछ दूर तक लम्बा चला जाता या नीचे लटकता रहता है। पुच्छ। लांगूल। दुम। जैसे—कुत्तें, लंगूर या घोड़े की पूँछ, चिडि़या चूहे या घड़ियाल की पूँछ। मुहा०—किसी की पूँछ पकड़कर चलना=(क) बिना सोचे-समझे किसी का अनुयायी बनकर चलना। (ख) किसी का सहारा पकड़कर चलना। (किसी के आगे) पूँछ हिलाना=किसी के आगे उसी तरह से दीन बनकर आचरण करना जिस प्रकार कुत्ते अपने स्वामी या भोजन देनेवाले के सामने पूँछ हिलाकर दीनता प्रकट करते हैं। २. किसी काम, चीज या बात के पीछे का वह लंबा अंश जो प्रायः अनावश्यक या निरर्थक हो। ३. पतंग, पुच्छल तारे, उल्का आदि के पीछे का चमकनेवाला रेखाकार अंग। जैसे—पतंग की पूँछ। ४. वह जो हरदम दीन भाव से किसी के पीछे या साथ लगा रहता हो।
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पूँछ-गाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछट  : स्त्री०=पूँछ (दुम)। (उपेक्षा सूचक)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछड़ी  : स्त्री० [हिं० पूँछ+ड़ी (प्रत्य०)] छोटी पूँछ।
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पूँछ-ताछ  : स्त्री०=पूँछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछना  : स०=पूछना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछ-पाँछ  : स्त्री०=पूँछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछल-तारा  : पुं०=पुच्छल तारा (केतु)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँजना  : स० [देश०] नया बंदर पकड़ना। (कलंदर)।
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पूँजी  : स्त्री० [सं० पुँज] १. जोड़ा या जमा किया हुआ धन। २. विशेषतः ऐसा धन जो और अधिक धन कमाने के उद्देश्य से व्यापाक आदि में लगाया गया हो अथवा ऋण आदि पर उधार दिया गया हो। मूलधन। (कैपिटल) ३. सम्पत्ति, विशेषतः ऐसी सम्पत्ति जिससे आय होती हो। जैसे—विधवा की पूँजी यही एक मकान था। ४. उन सब वस्तुओं का समूह जो पास में हो। ५. किसी विषय में किसी की सारी योग्यता या ज्ञान।
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पूँजीदार  : पुं० [हिं० पूँजी+फा० दार] [भाव० पूँजीदारी] १. वह जिसके पास अधिक या अत्यधिक पूँजी या धन-संपत्ति हो। २. वह जो आर्थिक लाभ के लिए किसी उद्योग या व्यवसाय में पूँजी या धन लगाता हो। पूँजीपति।
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पूँजीदारी  : स्त्री० [हिं० पूँजीदार] १. पूँजीदार होने की अवस्था या भाव। २. दे० ‘पूँजीवाद’।
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पूँजीपति  : पुं० [हिं० पूँजी+सं० पति] १. जिसके पास अधिक पूँजी हो। २. ऐसा व्यक्ति जो लाभ की दृष्टि से विभिन्न उद्योग-धन्धों में पूँजी लगाता हो। पूँजीदार।
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पूँजीवाद  : पुं० [हिं० पूँजी+सं० वाद] १. आधुनिक अर्थशास्त्र में, वह आर्थिक प्रणाली या व्यवस्था जिसमें देश के प्रमुख उत्पत्ति तथा वितरण के साधनों पर धनिकों या पूँजीपतियों का व्यक्तिगत रूप से पूरा अधिकार होता है। इसमें धनवान् लोग अपनी पूँजी से वस्तुओं का उत्पादन करते-कराते और उसका सारा लाभ अपने सुख-भोग तथा पूँजी बढ़ाने में लगाते हैं। (कैपिटलिज़्म)।
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पूँजीवादी  : पुं० [हिं०+सं०] वह जो पूँजीवाद से सिद्धान्त मानता हो या उसका अनुयायी हो। वि० पूँजीवाद-संबंधी। जैसे—पूँजीवादी आर्थिक व्यवस्था।
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पूँठ  : स्त्री०=पीठ।
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पू  : वि० [सं० पूर्वपद के रहने पर] समस्त पदों के अन्त में, पवित्र या शुद्ध करनेवाला। जैसे—खलपू=खलों को पवित्र करनेवाला
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पूआ  : पुं० [सं०पूप, अपूप] पूरी की तरह का एक मीठा पकवान जो आटे को गुड़ या चीनी के रस में घोलकर घी में तलने से बनता है।
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पूखन  : पुं०=पूषण (सूर्य)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पोषण।
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पूग  : पुं० [सं०√पू+गन्] १. सुपारी का पेड़ और उसका फल। २. ढेरा। ३. शहतूत का पेड़। ४. कटहल। ५. एक प्रकार की कटेरी। ६. भाव। ७. छंद। ८. समूह। ढेर।
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पूग-कृत  : भू० कृ० [स० त०] १. स्तूप के आकार में बनाया हुआ। जो टीले के आकार का हो। २. एकत्र किया हुआ संगृहीत। संचित।
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पूगना  : अ० [हिं० पूजना] १. पूरा होना। जैसे—हुंडी की मिती पूगना २. चौसर आदि के खेलों में गोटी, पासे आदि का नियत मार्ग से होते हुए अन्त में कोठे या घर में पहुँचना जो जीत का सूचक माना जाता है। ३. दे० ‘पूजना’।
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पूगपात्र  : पुं० [ष० त०] पीकदा। उगालदान।
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पूग-पीठ  : पुं० [ष० त०] पीकदान।
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पूग-पुष्पिका  : स्त्री० [ब० स०, कप्,+टाप्, इत्व] विवाह-संबंध स्थिर हो जाने पर दिया जाने वाला पुष्प सहित पान। पानफूल।
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पूग-फल  : पुं० [ष० त०] सुपारी।
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पूगरीठ  : पुं० [सं० पूग√रुट् (दीप्ति)+अच्] एक प्रकार का ताड़।
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पूगी (गिन्)  : पुं० [सं० पूग+इनि] सुपारी का पेड़। स्त्री० सुपारी।
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पूगीफल  : पुं० [सं० पूगफल] सुपारी।
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पूग्य  : वि० [सं० पूग+यत्] पूग-संबंधी। पूग का।
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पूछ  : स्त्री० [हिं० पूछना] १. पूछने की क्रिया या भाव। जिज्ञासा। २. चाह। तलब। जरूरत। ३. आदर। खातिर। स्त्री०=पूँछ (दुम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछ-गाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछ-ताछ  : स्त्री० [हिं० पूछना+ताछना अनु०] १. कुछ जानने के लिए किसी से प्रश्न करने की क्रिया या भाव। किसी बात का पता लगाने के लिए बार-बार या कई लोगों से कुछ पूछना या प्रश्न करना. २. किसी विषय में खोज, अनुसंधान या जाँच पडताल करने के लिए बार-बार जिज्ञासा या प्रश्न करना। जैसे—बहुत पूछ-ताछ करने पर इस मामले का कुछ पता चला।
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पूछना  : स० [सं० पृच्छण] १. किसी से कोई बात जानने या समझने के लिए शब्दों का प्रयोग करना। जिज्ञासा करना। जैसे—किसी से कहीं का रास्ता (या किसी का नाम) पूछना। २. जाँच, परीक्षा आदि के प्रसंग में इसलिए किसी के सामने कुछ प्रश्न रखना कि वह उसका उत्तर दे। प्रश्न करना। जैसे—परीक्षा के समय विद्यार्थियों से तरह-तरह की बातें पूछी जाती हैं। ३. किसी के प्रति सहानुभूति रखते हुए उससे यह जानने का प्रयत्न करना कि आज-कल तुम कैसे हो या किस प्रकार जीवन यापन करते हो। किसी का हाल-चाल या खोज-खबर लेना। जैसे—(क) वह महीनों बीमार पड़ा रहा पर कोई उसके पास पूछने तक न गया। (ख) अजी, गरीबों को कौन पूछता है। ४. किसी के प्रति आदर-सत्कार का भाव प्रकट करते हुए उसकी ओर उचित ध्यान देना। जैसे—इतनी भीड़ भाड़ में कौन किसे पूछता है। मुहा०—(किसी से) बात तक न पूछना या बात न पूछना=(क) कुछ भी ध्यान न देना। (ख) बहुत ही उपेक्षापूर्ण व्यवहार करना। ५. उचित महत्व या मूल्य समझते हुए आदर या कदर करना। जैसे—आज-कल गुण या योग्यता को कौन पूछता है। ६. किसी प्रकार का ध्यान देते हुए कोई जिज्ञासा करना या कुछ कहना। जैसे—उनके घर पहुँचकर सीधे ऊपर चले जाना; कोई कुछ नहीं पूछेगा।
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पूछ-पाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछरी  : स्त्री०=पूँछ (दुम)।
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पूछा-ताछी, पूछा-पाछी  : स्त्री० [हिं० पूछना]=पूछ-ताछ।
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पूज  : स्त्री० [सं० पूजन] कुछ विशिष्ट जातियों में विवाह, यज्ञोपवीत, आदि शुभ कार्यों से एकाध दिन पहले होनेवाला एक कृत्य जिसमें गणेश पूजन किया जाता है और बिरादरी के आमंत्रित व्यक्तियों को बताशे, लड्डू आदि दिये जाते हैं। स्त्री० [हिं० पूजना] पूजने की क्रिया या भाव। पुं० [सं० पूज्य] देवता। (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=पूज्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूजक  : वि० [सं०√पूज् (पूजना)+णिच्+ण्वुल्—अक] पूजा करनेवाला। जैसे—अग्निपूजक।
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पूजन  : पुं० [सं०√पूज्+णिच्+ल्युट—अन] [वि०पूजक, पूजनीय, पूजितव्य, पूज्य] १. देवी-देवता या किसी अन्य पूज्य वस्तु की की जानेवाली आराधना या वंदना। २. आदर। सम्मान। जैसे—अतिथि पूजन।
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पूजना  : स० [सं० पूजन] १. देवी-देवता को प्रसन्न या संतुष्ट करने के लिए यथाविधि श्रद्धाभाव से जल, फूल, नैवेद्य आदि चढ़ाना। पूजन करना। २. किसी को परम श्रद्धा या भक्ति की दृष्टि से देखना और आदरपूर्वक उसकी सेवा तथा सत्कार करना। ३. किसी को प्रसन्न या संतुष्ट करने के लिए उसे किसी रूप में कुछ धन देना। जैसे—कचहरी के अमलों को पूजना। ४. व्यंग्य और परिहास में, खूब मारना-पीटना। जैसे—वे आज इसकी खूब पूजा करेगें। अ० [सं० पूर्यते, प्रा० पूज्जति] १. पूरा होना। भरना। २. कमी, त्रुटि, देन आदि की पूर्ति होना। जैसे—किसी की रकम पूजना=दिया या लगाया हुआ धन पूरा पूरा वसूल होना। ३. अवधि या नियत समय पूरा होना। जैसे—हुंडी की मिती पूजना=रूपया चुकाने की तिथि नियत आना। ४. गहराई का भरना या बराबर होना। जैसे—गड्ढा पूजना, घाव पूजना। ५. ऋण या देन चुकता होना। ६. किसी की बराबरी तक पहुँचना। उदा०—ये सब पतति न पूजत मो सम।—सूर। ७. दे० ‘पूगना’। स० १. पूरा करना। २. नया बंदर पकड़ना। (कलंदर)
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पूजनी  : स्त्री० [सं० पूजन+ङीप्] मादा गौरैया।
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पूजनीय  : वि० [सं०√पूज्+णिच्+अनीयर] १. जिसका पूजा करना कर्तव्य या उचित हो। पूजन करने के योग्य। अर्चनीय। २. आदरणीय।
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पूजमान  : वि०=पूज्यमान।
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पूजयितव्य  : वि० [सं०√पूज्+णिच्+तव्यम] जिसकी पूजा की जा सकती हो अथवा जिसकी पूजा करना उचित हो। पूज्य।
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पूजयिता (तृ)  : वि०, पुं० [सं०√पूज्+णिच्+तृच्] पूजा करनेवाला। पूजक।
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पूजा  : स्त्री० [सं०√पूज्+णिच्+अ+टाप्] १. देवी-देवता के प्रति विनय, श्रद्धा और समर्पण का भाव प्रकट करनेवाले कार्य। अर्चना। पूजन। २. किसी देवी-देवता पर जल, फूल, फल, अक्षत आदि चढ़ाने का धार्मिक कृत्य। पूजन। ३. बहुत अधिक या यथेष्ट आदर-सत्कार। आव-भगत। खातिरदारी। ४. किसी को प्रसन्न या संतुष्ट करने के लिए किया जानेवाला कोई कार्य। ५. उक्त के आधार पर, लाक्षणिक रूप में, घूस या रिश्वत। जैसे—अब तो पहले दफ्तरवालों की पूजा करो, तब कहीं जाकर नौकरी मिलती है। ६. व्यंग्य के रूप में, किसी को मारने-पीटने अथवा तिरस्कृत या दंडित करने की क्रिया या भाव। जैसे—चलो देखो, आज घर पर तुम्हारी कैसी पूजा होती है।
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पूजाधार  : पुं० [सं० पूजा-आधार, ष० त०] देवपूजा में विधेय, वस्तुएँ और बातें। जैसे—जल, विष्णुचक्र, मंत्र, प्रतिमा, शालग्राम आदि।
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पूजार्ह  : वि० [सं० पूजा√अर्ह् (पूजना)+अच्] पूजनीय।
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पूजित  : भू० कृ० [सं०√पूज्+क्त] [स्त्री० पूजिता] जिसका पूजा की गई हो।
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पूजितव्य  : वि० [सं०√पूज्+तव्यत्] पूजनीय। पूज्य।
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पूजिल  : पुं० [सं०√पूज्+इलच्] देवता। वि० पूजनीय।
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पूजी  : स्त्री० [फा० पूजबंद] घोड़े का एक प्रकार का साज जो उसके मुँह पर रहता है। उदा०—पूजी कलगी करनफूल कल हैकल सेली।—रत्ना०।
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पूजोपकरण  : पुं० [सं० पूजा-उपकरण, ष० त०] देवता की पूजा के लिए आवश्यक उपकरण या सामग्री।
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पूजोपचार  : पुं० [सं० पूजा-उपचार, ष० त०] पूजन के लिए किया जानेवाला उपचार और उसकी सामग्री।
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पूजोपहार  : पुं० [सं० पूजा-उपहार, ष० त०] पूजा के समय देवी-देवता को चढ़ाई जानेवाली वस्तु। चढ़ावा।
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पूज्य  : वि० [सं०√पूज्+यत्] [स्त्री० पूज्या] १. पूजा किये जाने के योग्य। २. आदर, श्रद्धा आदि के योग्य। माननीय। पुं० श्वसुर। ससुर।
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पूज्यता  : स्त्री० [सं० पूज्य+तल्+टाप्] पूज्य होने की अवस्था या भाव। पूजे जाने के योग्य होना। पूजनीयता।
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पूज्य-पाद  : वि० [ब० स०] इतना महान् कि उसके पैरों की पूजा करना उचित हो। परम पूज्य और मान्य।
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पूज्यमान  : वि० [सं०√पूज्+यक्+शानच्] जिसकी पूजा की जा रही हो। पूजा जाता हुआ। सेव्यमान। पुं० सफेद जीरा।
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पूज्यवर  : वि० [स० त०] परम आदरणीय, पूज्य और बड़ा। जैसे—पूज्यवर मालवीय जी।
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पूटरी  : स्त्री० [देश] ईख के रस की वह अवस्था जो उसके खाँड़ बनने से पहले होती है। स्त्री०=पोटली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूटीन  : स्त्री०=पुटीन।
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पूठ  : पुं०=पुट्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=पीठ।
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पूठा  : वि० [सं० पुष्ठ] [स्त्री० पूठी] १. पुष्ट। मजबूत। २. पक्का। प्रौढ़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पुट्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूठि  : स्त्री० १.=पीठ। २.=पुष्टि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूड़ा  : पुं०=पूआ (पकवान)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूड़ी  : स्त्री० [हिं० पूरी] १. तबले या मृदंग पर मढ़ा हुआ गोल चमड़ा। २. दे० ‘पूरी’।
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पूणू  : पुं०=पत्थर (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=पूनो (पूर्णिमा)।
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पूत  : वि० [सं०√पू (पवित्र करना)+क्त] १. पवित्र। शुद्ध। शुचि। २. सत्य। पुं० १. शंख। २. सफेद कुश। ३. पलास। ४. तिल का पेड़। ५. भूसी निकाला हुआ अन्न। ६. जलाशय। पुं० [सं० पुत्र; प्रा० पुत्त] बेटा। लडका। पुत्र। उदा०—एक पहेली मैं कहूँ, तुम बूझो मेरे पूत। पुं० [देश०] चूल्हे के दोनों किनारों और बीच के वे नुकीले उभार जिनके सहारे पर कड़ाही, तवा, देगची आदि रखते हैं।
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पूतक्रतायी  : स्त्री० [सं० पूतक्रतु+ङीष्, ऐ-आदेश] इंद्र की पत्नी। इन्द्राणी। शची।
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पूत-क्रतु  : पुं० [ब० स०] इन्द्र।
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पूत-गंध  : पुं० [ब० स०] बर्बर नामक सुगंधित तृण।
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पूतड़ा  : पुं०=पोतड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूत-तृण  : पुं० [कर्म० स०] सफेद कुश।
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पूत-दारु  : पुं० [कर्म० स०] पलास। ढाक।
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पूत-द्रु  : पुं० [कर्म० स०] १. ढाक। पलास। २. खैर का पेड़। ३. देवदार।
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पूत-धान्य  : पुं० [कर्म० स०] तिल।
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पूतन  : पुं० [सं० पूत+णिच्+ल्यु—अन] १. वैद्यक के अनुसार गुदा में होनेवाला एक प्रकार का रोग २. बेताल। ३. कब्र में रखा हुआ शव।
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पूतना  : स्त्री० [सं० पूतन+टाप्] १. एक राक्षसी जो कंस के कहने पर बालक कृष्ण को मारने के उद्देश्य से अपने स्तनों पर विष लगाकर, उसे स्तन-पान कराने आई थी। बालक कृष्ण ने इसका दुष्ट उद्देश्य जान लिया और इसे मार डाला। २. राक्षसी। दानवी। ३. सुश्रुत के अनुसार, एक बाल-ग्रह या बाल रोग जिसमें बच्चे को जल्दी अच्छी नींद नहीं आती। उसे पतले, मैले दस्त आते हैं, बहुत प्यास लगती है और बार-बार कै होती है। ४. कार्तिकेय की अनुचरी एक मातृका। ५. पीली हर्रे। ६. सुगंधित जटामासी। गन्ध-मासी।
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पूतनारि  : पुं० [सं० ष० त०] पूतना के शत्रु; श्रीकृष्ण।
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पूतना-दूषण  : पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण।
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पूतना-सूदन  : पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण।
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पूतनाहर्रे  : स्त्री० [सं० पूतना+हिं० हर्रे] छोटी हर्रे।
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पूतनिका  : स्त्री० [सं० पूतन+कन्+टाप्, इत्व] १. पूतना (राक्षसी)। २. पूतना नामक बाल रोग।
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पूत-पत्री  : स्त्री० [ब० स०, ङीष्] तुलसी।
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पूत-फल  : पुं० [ब० स०] कटहल का पेड़ और उसका फल।
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पूतभृत्  : पुं० [सं० पूत√भृ (धारण करना)+क्विप्] वह पवित्र बरतन जिसमें सोम रस रखा जाता था।
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पूत-मति  : वि० [ब० स०] पवित्र बुद्धिवाला। पवित्र अंतःकरणवाला। पुं० शिव का एक नाम।
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पूतर  : पुं० [सं० पूत√रा (देना)+क] १. एक प्रकार का जल-जंतु। २. तुच्छ व्यक्ति।
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पूतरा  : पुं० [स्त्री० पूतरी]=पुतला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पूत (बेटा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूतरी  : स्त्री०=पुतली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूता  : स्त्री० [सं० पूत+टाप्] दुर्गा। वि० स्त्री०=शुद्ध। पवित्र। पुं० [सं० पुत्र, हिं० पुत्र, हिं० पूत] पुत्र। बेटा। प्रायः सम्बोधन कारक में प्रयुक्त)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूतात्मा (त्मन्)  : वि० [पूत-आत्मन्, ब० स०] पवित्रात्मा। शुद्ध अंतःकरण का। पुं० विष्णु।
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पूति  : स्त्री० [सं०√पू+क्तिन्, कितच्] १. पवित्रता। शुचिता। २. दुर्गंध। ३. गंध-मार्जार। ४. रोहित तृण। ५. घावों, फोड़ों आदि में विषाक्त कीटाणुओं आदि के उत्पन्न होने के कारण उनका सड़ने-लगना जो प्रायः रोगी के लिए घातक सिद्ध होता है। सड़ायँध (सेप्टिक)
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पूतिक  : पुं० [सं० पूति√कै (भासित होना)+क] १. दुर्गंध। करंज। काँटा करंज। पूति करंज। २. पाखाना। विष्ठा। वि० १. जिसमें से दुर्गंध निकल रही हो। बदबूदार। २. (घाव) जिसमें विषाक्त कीटाणुओं के कारण सड़ायँध उत्पन्न कर सकता हो। (सेप्टिक, अन्तिम दोनों अर्थों के लिए)
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पूति-कन्या  : स्त्री० [मध्य० स०] पुदीना।
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पूति-करंज  : पुं० [मध्य० स०] फसल के रक्षार्थ प्रायः मेड़ों पर लगाया जानेवाला एक क्षुप जिसमें बहुत अधिक काँटे होते हैं। काँटा-करंज।
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पूति-कर्ण, पूति-कर्णक  : पुं० [ब० स०] [ब० स०+कप्] कान का एक रोग जिसमें अन्दर घाव या फुंसी होने के कारण बदबूदार पीब निकलता है।
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पूतिका  : स्त्री० [सं० पूतिक+टाप्] १. पोई का साग। २. एक प्रकार की मधुमक्खी। ३. बिल्ली।
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पूतिका-मुख  : पुं० [ब० स०] घोंगा। शंबूक।
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पूति-काष्ठ  : पुं० [कर्म० स०] देवदारु।
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पूतिकाष्ठक  : पुं० [पूतिकाष्ठ+कन्] धूपसरल।
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पूतिकाह्र  : पुं० [सं० पूतिक-आह्रा, ब० स०] पूति करंज। (दे०)
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पूति-कीट  : पुं० [मध्य० स०] एक तरह की मधुमक्खी। पूतिका।
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पूति-कुंड  : पुं० [ष० त०] आज-कल एक प्रकार का गड्ढा या कुंड जो गृहस्थों के घर के पास मल-मूत्र इकट्ठा करने के लिए बनाया जाता है। (सेप्टिक टैंक) विशेष—ऐसे कुंडों की आवश्यकता उन्हीं नगरों या स्थानों में होती है जहाँ मल-मूत्र वहन करनेवाले नल नहीं होते।
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पूति-केशर  : पुं० [ब० स०] १. नागकेशर। २. गंध-मार्जार। मुश्क-बिलाव।
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पूति-गंध  : पुं० [ब० स०] १. राँगा। २. हिगोट। इंगुदी ३. गंधक। ४. दुर्गंध। वि० दुर्गंधवाला। बदबूदार।
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पूतिगंधा  : स्त्री० [सं० पूतिगंध+टाप्] एक प्रसिद्ध क्षुप जिसके गुच्छों में काले-काले फूल लगते हैं तथा जिसके बीज उग्रगंध वाले होते हैं और दवा के काम आते हैं। बकुची।
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पूति-गंधि (क)  : वि० [ब० स०,+कप्] दुर्गंधवाला। बदबूदार।
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पूतिगंधिका  : स्त्री० [सं० ब० स०, कप्,+टाप्, इत्व] १. दे० ‘पूतगंधा’। २. पोय का शाक। पूतिका।
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पूतिघास  : पुं० [सं० पूति√घस् (खाना)+अण्] सुश्रुत में वर्णित एक तरह का जंतु।
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पूति-दला  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] तेजपत्ता।
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पूति-नस्य  : पुं० [कर्म० स०] पीनस रोग।
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पूति-नासिका  : वि० [ब० स०] पीनस रोग से पीड़ित।
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पूति-पत्र  : पुं० [ब० स०] १. सोनापाठा। २. पीला लोध।
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पूति-पत्रिका  : स्त्री० [ब० स०, कप्,+टाप्, इत्व] प्रसारिणी लता। परसन।
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पूति-पर्ण (क)  : पुं० [ब० स०] [ब० स०, कप्] पूति-करंज। (दे०)
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पूति-पलल्वा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] बड़ा करेला।
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पूति-पुष्प  : पुं० [ब० स०] इँगुदी वृक्ष। गोंदी। हिंगोट।
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पूति-फल  : पुं० [ब० स०] बकुची। सोमराजी।
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पूतिफला, पूतिफली  : स्त्री० [सं० पूतिफल+टाप्] [सं० पूतिफल+ङीष्] बावची।
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पूति-बर्बर  : स्त्री० [कर्म० स०] बनतुलसी। जंगली तुलसी। काली बर्बरी।
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पूति-भाव  : पुं० [ष० त०] सड़ने की क्रिया या भाव। सड़ायँध।
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पूति-मज्जा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] गोंदी। इंगुदी वृक्ष।
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पूति-मयूरिका  : स्त्री० [पूति-मयूरी, उपमि० स०+ क+ टाप्, ह्रस्व] अजवायन की तरह का एक पौधा। वि० दे० ‘अजमोदा’।
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पूतिभाव  : पुं० [सं०] एक गोत्र प्रवर्त्तक ऋषि।
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पूतिमुद्गल  : स्त्री० [सं०] रोहिष तृण।
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पूति-मूषिका  : स्त्री० [कर्म० स०] छछूँदर।
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पूति-मृत्तिक  : स्त्री० [ब० स०] पुराणानुसार इक्कीस नरकों में से एक नरक का नाम।
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पूति-मेद  : पुं० [ब० स०] दुर्गंध खैर। अरिमेद।
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पूति-योनि  : पुं० [ब० स०] एक तरह का योनि-रोग।
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पूति-रक्त  : पुं० [ब० स०] एक रोग जिसमें नाक में से दुर्गंध युक्त रक्त निकलता है।
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पूति-रज्जु  : स्त्री० [ब० स०] एक प्रकार की लता।
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पूति-वक्त  : वि० [ब० स०] जिसके मुँह से दुर्गन्ध निकलती हो।
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पूति-वात  : पुं० [ब० स०] १. बेल का पेड़। २. गंदी वायु। ३. पाद।
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पूति-वृक्ष  : पुं० [कर्म० स०] सोनापाठा।
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पूति-व्रण  : पुं० [कर्म० स०] ऐसा फोड़ा जिसमें निकलनेवाला मवाद अत्यधिक दुर्गंधयुक्त होता है।
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पूति-शाक  : पुं० [कर्म० स०] अगस्त। वक वृक्ष।
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पूति-शारिजा  : स्त्री० [कर्म० स०] बनबिलाव।
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पूती  : स्त्री० [सं० पोत=गट्ठा] १. गाँठ के रूप में होनेवाली पौधों की जड़। २. लहसुन आदि की गाँठ।
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पूतीक  : पुं० [सं०=पूतिक, पृषो० सिद्धि] १. पूतिकरंज (दे०) २. गंध मार्जार।
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पूतीकरंज  : पुं० [सं०=पूतिकञ्ज्, पृषो० सिद्धि] पूतिकरंज। (दे०)
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पूतीकरण  : पुं० [सं०=पूत+च्वि√कृ+ल्युट—अन] पूत अर्थात् पवित्र या शुद्ध करने की क्रिया, प्रणाली या भाव। (प्योरिफिकेशन)
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पूतीका  : स्त्री० [सं०=पूतिक, पृषो० सिद्धि] पोई। पूतिका। शाक।
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पूत्कारी  : स्त्री० [सं०] १. सरस्वती। २. नाग-लोक की राजधानी।
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पूत्यंड  : पुं० [सं० पूति-अंड, ब० स०] १. कस्तूरी मृग। २. एक बदबूदार कीड़ा। गंध-कीट।
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पूथ  : पुं०=पूथा।
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पूथा  : पुं० [देश०] बालू का ऊँचा टीला या ढूह।
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पूथिका  : स्त्री० [सं०=पूतिका, पृषो० सिद्धि] पोई नामक पौधा और उसकी पत्ती।
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पूदना  : पुं० [देश०] भूरे रंग का एक प्रकार का पक्षी जो प्रायः जमीन पर चला करता है; और घास-फूस का घोसला बनाकर रहता है। पुं०=पुदीना।
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पून  : पुं० [देश०] जंगली बादाम का पेड़ जो पाकिस्तान के पश्चिमी किनारों पर होता है। इसके फूल और पत्तियाँ दोनों दवा के काम आती हैं। इसमें से एक प्रकार का गोंद भी निकलता है। पुं०=पूर्ण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [सं०] नष्ट।
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पूनना  : पुं० [देश०] १. कलपून या पून नाम का सदा बहार पेड़। २. एक तरह की ईख। स०=पुनना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूनव  : स्त्री०=पूर्णिमा।
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पून-सलाई  : स्त्री० [हिं० पूनी+सलाई] लोहे की सींक अथवा बेंत, नरसल आदि की वह छोटी पतली नली या पोर जिस पर रूई लपेटकर पूनी बनाई जाती है।
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पूनाक  : पुं० [देश०] तिलों में से तेल निकाल लिए जाने पर बच रहनेवाली सीठी। खली।
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पूनिउँ  : स्त्री०=पूनो (पूर्णिमा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूनी  : स्त्री० [सं० पिंजिका] १. चरखे पर सूत कातने के उद्देश्य से बनाई हुई सलाई आदि पर लपेटकर रूई की बत्ती। २. वह बहुत लम्बी रूई की बत्ती जिससे मशीनों पर सूत काता जाता है।
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पूनो  : स्त्री० [सं० पूर्णिमा] किसी महीने के शुक्ल पक्ष का अन्तिम दिन। पूर्णिमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पून्यो  : स्त्री०=पूनो (पूर्णिमा)।
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पूप  : पुं० [सं०√पू (पवित्र करना)+पक्] एक तरह की मीठी पूरी। वि० दे० ‘पूआ’।
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पूपला  : स्त्री० [सं०पूप√ला (लेना)+क+टाप्] पूआ नामक पकवान।
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पूपली  : स्त्री० [सं० पूपल+ङीष्] छोटा पूआ।
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पूपशाला  : स्त्री० [ष० त०] वह स्थान जहाँ पूप आदि पकवान बनते या बनने पर रखे जाते हैं।
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पूपाली  : स्त्री० [सं० पूप√अल् (पर्याप्त होना)+अच्+ ङीष्] पूआ।
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पूपाष्टका  : स्त्री० [सं० पूप-अष्टका, मध्य० स०] पूस के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, इस दिन मालपूओं से श्राद्ध करने का विधान है।
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पूपिक  : पुं० [सं० पूप+ठन्—इक] पूआ।
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पूय  : पुं० [सं०√पूय (दुर्गन्ध करना)+अच्] फोड़े में से निकलनेवाला सफेद गाढ़ा तरल पदार्थ। पीप।
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पूय-कुंड  : पुं० [ष० त०] १. पुराणानुसार एक नरक का नाम। २. दे० ‘पुतिकुंड’।
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पूय-दंत  : पुं० [ब० स०] दाँतों का एक विशिष्ट रोग जिस में मसूढ़ों में से मवाद निकलता है। (पायरिया)।
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पूयन  : पुं० [सं०√पूय+ल्युट्—अन] १. पूय। मवाद। २. प्राणी या वनस्पति के अंग का इस प्रकार गलना या सड़ना कि उसमें से दुर्गन्ध आने लगे। सड़न। (प्यूट्रिफिकेशन)।
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पूय-प्रमेह  : पुं० [सं० ब० स०] वैद्यक में एक प्रकार का प्रमेह जिसमें मूत्र पीप की तरह गाढा और दुर्गन्धमय होता है।
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पूयभुक् (ज्)  : वि० [सं० पूय√भुज् (खाना)+क्विप्] सड़ा मुर्दा खानेवाला।
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पूय-मेह  : पुं० [ब० स०] पूय-प्रमेह।
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पूय-रक्त  : पुं० [ब० स०] १. रक्तपित्त की अधिकता अथवा सिर पर चोट लगने के कारण नाक में से पीप मिला हुआ लहू निकलने का एक रोग। २. नाक में से निकलनेवाला पीब मिला हुआ रक्त।
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पूयवह  : पुं० [सं० पूय√वह् (बहना)+अण्] एक नरक।
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पूय-शोणित  : पुं०=पूय-रक्त। (दे०)
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पूय-स्राव  : पुं० [ब० स०] सुश्रुत के अनुसार आँखों का एक रोग जिसमें उसका संधिस्थान पक जाता है और उसमें से पीब बहने लगता है।
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पूयारि  : पुं० [पूय-अरि, ष० त०] नीम।
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पूयालस  : पुं० [पूय-अलस, ब० स०] आँखों का एक लोग जिसमें उसकी पुतली के संधिस्थल में से पीब निकलने लगता है।
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पूयोद  : पुं० [पूय-उदक, ब० स०, उदादेश] एक नरक का नाम।
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पूर  : पुं० [हिं० पूरना=भरना] १. कोई काम पूरा करने की क्रिया या भाव। मुहा०—पूर देना=किसी बात का अन्त या समाप्ति करना। उदा०—दुइ सुत मारेउ दहेउ अजहुँ पूर पिय देहु।—तुलसी। २. वे मसाले या दूसरे पदार्थ जो किसी पकवान के अन्दर भरे जाते हैं। जैसे—समोसे का पूर। ३. नदियों आदि में आनेवाली बाढ़। वि०=पूर्ण। पुं० [सं०√पूर (दुर्गन्ध करना)+क] १. दाह अगर। दाहागुरु। २. बाढ़। ३. घाव का पूरा होना या भरना। ४. प्राणायाम में पूरक क्रिया। वि० दे० ‘पूरक’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरक  : वि० [सं०√पूर्+णिच्+ण्वुल्—अक] १. पूर्ति करनेवाला। कमी, त्रुटि आदि पर दूर करनेवाला। २. (अंश या मात्रा) जिसके योग से किसी दूसरे तत्त्व या बात में पूर्णता आती हो या किसी प्रकार की पूर्ति होती हो। संपूरक। (कॉम्लिमेन्टरी) ३. किसी के सामने आकर उसकी बराबरी या सामना कर सकनेवाला। उदाहरण-पूरक है तेरा यहाँ एक युधिष्ठिर ही।—मैथिलीशरण। दे० ‘संपूरक’। पुं० १. प्राणायाम विधि के तीन भागों में से पहला भाग जिसमें श्वास को नाक से खींचते हुए अन्दर की ओर ले जाते हैं। २. वे दस पिंड जो हिदुओं में किसी के मरने पर उसके मरने की तिथि से दसवें दिन तक नित्य दिये जाते हैं। कहते हैं कि जब शरीर जल जाता है तब इन्हीं पिंडों से मृत व्यक्ति का पारलौकिक शरीर फिर से बनता है। ३. गणित में वह अंक जिसके द्वारा गुणा किया जाता है। गुणक अंक। ४. बिजौरा नींबू। ५. दे० ‘समायोजक’।
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पूरण  : पुं० [सं०√पूर+णिच्+ल्युट्—अन] [वि० पूरणीय] १. पूरा करने की क्रिया। २. अवकाश, रिक्त स्थान आदि में किसी को बैठना या रखना। पूर्ति करना। ३. कान आदि में तेल डालने की क्रिया। ४. अंकों का गुणा करना। ५. मृतक के दसवें दिन दिया जानेवाला पिंड जो मृतक के पर-लोक-गत शरीर को पूरा करनेवाला माना जाता है। ६. वर्षा। वृष्टि। ७. केवटी। मोथा। ८. पुल। सेतु। ९. समुद्र। १॰. गदह-पूरना। पूनर्नवा। ११. वैद्यक में वात के प्रकोप से होनेवाला एक प्रकार का फोड़ा या व्रण। वि० [सं०√पूर+णिच्+ल्यु—अन] पूरा करनेवाला। पूरक।
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पूरणी  : स्त्री० [सं० पूरण+ङीप्] सेमर। शाल्मकी वृक्ष।
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पूरणीय  : वि० [सं०√पूर+अनीयर्] १. जो पूर्ण किये जाने के योग्य हो। २. भरे जाने के योग्य।
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पूरन  : वि० [सं० पूर्ण] पूर्ण। पूरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० कचौरी, समोसे आदि पकवानों के बीच में भरा जानेवाला मसाला या और कोई वस्तु। पूर। पुं० [हिं० पूर] १. जलाशय, नदी आदि की बाढ़। २. नदी की धारा या प्रवाह।
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पूरन-काम  : वि०=पूर्ण-काम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [सं० पूर्णकाम] जिसकी इच्छाएँ पूर्ण हो चुकी हों।
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पूरन-परब  : पुं० [सं० पूर्णपर्व] पूर्णमासी।
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पूरन-पूरी  : स्त्री० [सं० पूर्ण+हिं० पूरी] एक प्रकार की मीठी कचौरी या पूरी जिसके अन्दर पूर भरा रहता है।
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पूरनमासी  : स्त्री०=पूर्णिमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरना  : स० [सं० पूरण] १. कमी या त्रुटि दूर करना या पूरी करना। पूर्ति करना। २. किसी के अन्दर कोई चीज अच्छी तरह से भरना। उदा०—सतगुरु साँचा सूरमा नखसिख मारे पूर।—कबीर। ३. आच्छादित करना। ढाँकना। ४. (अभिलाषा या मनोरथ) पूर्ण और सफल करना। ५. आवश्यक और उपयुक्त स्थान पर रखना या लगाना। उदा०—हरि रहीम ऐसी करी ज्यों कमान सर पूर।—रहीम। ६. सूत आदि की कोई चीज बटकर तैयार करना। जैसे—पूनी पूरना, सेवई पूरना। ७. कपड़ा बुनने से पहले ताने के सूत फैलाना। ८. मंगल अवसरों पर आटे, अबीर आदि से देवताओं के पूजन आदि के लिए तिकोने, चौखूँटे आदि क्षेत्र बनाना। चौंक बनाना। जैसे—चौक पूरना। ९. शंख बनाने के लिए मुँह से फूँककर उसमें हवा भरना और फलतः उसे बजाना। जैसे—शंख पूरना। अ० १. पूरा होना। २. किसी चीज से भरा जाना या व्याप्त होना। ३. पूरा या समाप्त होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरनिमा  : स्त्री०=पूर्णिमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरब  : पुं० [सं० पूर्व] १. वह दिशा जिसमें सूर्य का उदय होता है। पूर्व। प्राची। २. उक्त दिशा में स्थित कोई क्षेत्र या प्रदेश। जैसे—पूरब में रहनेवाला व्यक्ति। वि०=पूर्व। क्रि० वि०=पूर्व।
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पूरबल  : पुं० [सं० पूर्व+वेला] १. पुराना जमाना। २. इस जन्म से पहलेवाला जन्म। पूर्व जन्म।
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पूरबला  : वि० [सं० पूर्व, हिं०+ला (प्रत्य०)] [स्त्री० पूरबली] १. पुराने जमाने से संबंधित। २. पूर्व जन्म-संबंधी।
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पूरबली  : स्त्री० [हिं० पूरबला] पूर्व जन्म का कर्म।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरबिय  : पुं० [हिं० पूरब] पूरब अर्थात् पूर्वी भू-भाग या पूर्वी प्रान्त में रहनेवाला व्यक्ति। वि०=पूरबी।
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पूरबी  : वि० [हिं० पूरब+ई (प्रत्य०)] १. पूरब का। पूरब संबंधी। २. पूर्व दिशा से आनेवाला। जैसे—पूरबी हवा। ३. जिसमें पूर्व देश के लक्षण, विशेषताएँ आदि हों। जैसे—पूरबी दादरा, पूरबी हिंदी, पूरबी पहनावा। पुं० १. एक प्रकार का दादरा जो बिहारी भाषा में होता और बिहार प्रान्त में गाया जाता है। २. एक प्रकार का तमाकू। स्त्री०=पूर्वी (रागिनी)।
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पूरयितव्य  : वि० [सं०√पूर+णिच्+तव्यत्] जिसे पूरा या पूर्ण करना आवश्यक या उचित हो। पूरणीय।
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पूरयिता (तृ)  : पुं० [सं०√पूर्+णिच्+तृच्] १. पूर्णकर्ता। पूरक। पूर्ण करनेवाला। २. विष्णु का एक नाम।
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पूरा  : वि० [सं० पूर्ण] [स्त्री० पूरी] १. जिसके अन्दरवाले अवकाश में कुछ भी स्थान खाली न बचा हो। जिसका भीतरी भाग अच्छी तरह भर चुका हो। परिपूर्ण। जैसे—पूरा भरा हुआ कमरा या घड़ा। २. जितना आवश्यक, उचित या संभव हो, उतना। भरपूर। यथेच्छ। यथेष्ट। जैसे—यहाँ सब चीजें पूरी हैं, किसी चीज की कमी नहीं होगी। मुहा०—पूरा पड़ना=जितनी आवश्यकता हो, उतना होना। यथेष्ट होना। जैसे—तुम्हारा तो सौ रूपये में भी पूरा नहीं पड़ेगा। ३. समग्र। समूचा। सारा। कुल। जैसे—(क) उन्होंने पूरा जंगल ठेके पर ले लिया है। (ख) यह पूरा मकान किराये पर दिया जायेगा। ४. जो आकार, घनता, विस्तार आदि के विचार से अच्छी तरह विस्तृत या व्याप्त हो चुका हो। जैसे—पूरा जवान, पूरा जोर, पूरी तेजी। ५. जिसमें कोई कमी या कोर-कसर न हो या न रह गई हो। पक्का। जैसे—(क) अब वह अपने काम में पूरा होशियार हो गया है। (ख) अब तो वह हमारा पूरा दुश्मन हो गया है। पद—किसी काम या बात का पूरा=अच्छी तरह से निर्वाह या पालन कर सकने के योग्य या कर सकनेवाला। जैसे—(क) बात या वचन का पूरा। (ख) गुण या विद्या का पूरा। ६. (काम) जो क्रिया रूप में लाकर अन्त या समाप्ति तक पहुँचा दिया गया हो। पूर्ण रूप से कृत संपन्न या संपादित। जैसे—(क) साल भर में यब पुस्तक पूरी हुई है। (ख) जब तक काम पूरा न हो जायगा, तब तक वह दम (या साँस) न लेगा। मुहा०—(कोई काम) पूरा उतरना=ठीक तरह से संपन्न या संपादित होना। जैसे—रहने दो, तुमसे यह काम पूरा नहीं उतरेगा। ७. (बात) जो कार्यरत या व्यावहारिक रूप से ठीक सिद्ध हो। जैसे— तुम्हारा कहना पूरा होकर ही रहेगा। मुहा०— (कथन) पूरा करना=ठीक या सत्य सिद्ध होना। जैसे—तुम्हारी भविष्यवाणी पूरी उतरी। पूरा पाना=अपने उद्देश्य या प्रयत्न की सिद्धि में सफल होना। उदा०—नाच्यौ नाचलच्छ चौरासी कबहुँन पूरौ पायौ।—सूर। ८. (समय) व्यतीत करना। बिताना। जैसे—(क) हम भी यहाँ अपने दिन पूरे कर रहे हैं; अर्थात् किसी प्रकार समय बिता रहे हैं। (ख) पांडवों ने अज्ञातवास की अवधि भी पूरी कर ली। मुहा०—(किसी के) दिन पूरे होना=अवधि, आयु आदि का अन्त या समाप्ति तक पहुँचना। (गर्भवती के) दिन पूरे होना=गर्भ-धारण का समय समाप्ति पर होना और प्रसव का समय समीप आना। ८. (कामना या इच्छा) संतोषजनक रूप में सफल या सिद्ध होना। जैसे—अब हमारी सभी वासनाएँ पूरी हो चुकी हैं; हमें कुछ नहीं चाहिए। ९. अवस्था या वय में यथेष्ट मान तक पहुँचा हुआ। वयस्क। जैसे—कच्चा तो कचौरी माँगे, पूरी माँगे पूरा।—(कहा०) क्रि० वि० पूर्ण रूप से। पूरी तरह से। जैसे—यह घड़ा पूरा भर दो।
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पूराम्ल  : पुं० [सं०पूर-अम्ल, ब० स०] १. इमली। २. अम्लबेंत।
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पूरिका  : स्त्री० [सं० पूरक+टाप्, इत्व] आटे आदि की बनी हुई पूरी।
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पूरित  : भू० कृ० [सं०√पूर+णिच्+क्त] १. पूर्ण किया या भरा हुआ। परिपूर्ण। लबालब। २. तृप्त। ३. गुणित। गुणा किया हुआ।
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पूरिया  : पुं० [देश०] संध्या के समय गाया जानेवाला षाड़व जाति का एक राग। इसमें पंचम स्वर वर्जित है।
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पूरिया-कल्याण  : पुं० [हिं० पूरिया+कल्याण (राग)] रात के पहले पहर में गाया जानेवाला संपूर्ण जाति का एक संकर राग।
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पूरी  : स्त्री० [सं० पूलिका] १. एक प्रकार का प्रसिद्ध पकवान जिसे साधारण रोटी आदि की तरह बेलकर खौलते घी या तेल में छानकर पकाते हैं। २. ढोल, तबले, मृदंग आदि में वह गोलाकार चमड़ा जो उनके मुँह पर मढ़ा रहता है और जिस पर आघात होने से वे बजते हैं। क्रि० प्र०—चढ़ाना।—मढ़ना। वि० हिं० ‘पूरा’ का स्त्री०। (मुहा० के लिए दे० ‘पूरा’) वि० [सं० पूरिन्] पूरा करनेवाला। पूरक। स्त्री० घास आदि का छोटा पूला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरु  : पुं० [सं०√पृ (पूर्ति)+कु] १. मनुष्य। २. राजा ययाति के पुत्र का नाम। ३. वैराज मनु के एक पुत्र। ४. जदु के एक पुत्र। ५. एक राक्षस।
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पूरुजित  : पुं० [सं० पूरु√जि (जीतना)+क्विप्] विष्णु।
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पूरुब  : पुं०=पूरब।
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पूरुष  : पुं० [सं०√पूर+उषन्] १. पुरुष। २. आत्मा।
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पूर्ण  : वि० [सं०√पूर+क्त, त—न] १. (आधान या पात्र) जो पूरी तरह से भरा हुआ हो। जिसमें काम का कोई अवकाश या स्थान खाली न रह गया हो। जैसे—जल से पूर्ण घट। २. लाक्षणिक रूप में, किसी तत्त्व या बात से भरा हुआ पूरी तरह से युक्त। जैसे—शोक-पूर्ण समाचार, हर्ष-पूर्ण सामारोह। ३. सब प्रकार की यथेष्टता के कारण जिसमें कुछ भी अपेक्षा, अभाव या आवश्यकता न रह गई हो। जितना आवश्यक या उचित हो, उतना सब। जैसे—धन-धान्य से पूर्ण गृहस्थी या परिवार। ४. (आवश्यक या इच्छा) जिसके पूरे होने में कोई कसर या सन्देह न रह गया हो। हर प्रकार से तृप्त और संतुष्ट। जैसे—आपने मेरी सभी कामनाएँ पूर्ण कर दी। ५. सब का सब। पूरा। समूचा। सारा। समस्त। संपूर्ण। जैसे—पूर्ण योजना सफल हो गई। ६. जिसमें किसी आवश्यक अंग या संयोजक तत्त्व का ठीक अभाव न हो। हर तरह से ठीक और पूरा। जैसे—पूर्ण उपमा अलंकार। ८. (उद्देश्य या प्रयत्न) सफल। सिद्ध। जैसे—आज आपका संकल्प पूर्ण हुआ। ९. जो अपनी अवधि या सीमा के सिरे पर पहुँच गया हो। जैसे—आयु पूर्ण होना, दंड की अवधि पूर्ण होना। पुं० १. प्रचुरता। बाहुल्य। २. जल। पानी। ३. विष्णु का एक नाम। ४. बौद्ध कथाओं के अनुसार मैत्रायणी का एक पुत्र।
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पूर्ण-अतीत  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. संगीत में ताल का वह स्थान जो ‘सम अतीत’ के एक मात्रा के बाद आता है। यह स्थान भी कभी-कभी सम का काम देता है।
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पूर्णक  : पुं० [सं० पूर्ण+कन्] १. मुर्गा। कुक्कुट। २. देवताओं की एक योनि। ३. दे० ‘पूर्ण’।
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पूर्ण-कलानिधि  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्ण-काम  : वि० [ब० स०] १. जिसकी कामनाएँ पूर्ण या पूरी हो चुकी हो। २. कामना-रहित। निष्काम। पुं० परमेश्वर।
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पूर्ण-काश्यप  : पुं० [कर्म० स०] उन छः तीर्थिकों में से एक जिन्हें भगवान् बुद्ध ने शास्त्रार्थ में पराजित किया था। कहते हैं कि इसी दुःख में ये अपने गले में बालू भरा घड़ा बाँधकर डूब मरे थे।
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पूर्णकुंभ  : पुं० [कर्म० स०] १. जल से भरा हुआ घड़ा जो मांगलिक और शुभ माना जाता है। पूर्ण घट। २. घड़े के आकार का दीवार में बनाया जानेवाला छेद। ३. एक तरह का युद्ध।
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पूर्णकोशा  : स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] एक प्रकार की लता जो ओषधि के काम आती है।
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पूर्णकोषा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] १. कचौरी। २. प्राचीन काल में जौ के आटे से बननेवाला एक प्रकार का पकवान। ३. दे० ‘पूर्णकोशा’।
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पूर्णकोष्ठा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] नागरमोथा।
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पूर्णगर्भा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] १. वह स्त्री जिसे शीघ्र प्रसव होने की संभावना हो। वह स्त्री जिसके गर्भ के दिन पूरे हो चले हों। २. कचौरी, जिसमें पीठी आदि भरी रहती हैं। ३. पूरन-पूरी नाम का पकवान।
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पूर्णघट  : पुं०=पूर्ण-कुंभ।
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पूर्णचंद्र  : पुं० [कर्म० स०] पूर्णिमा का चन्द्रमा जो अपनी सब कलाओं से पूर्ण या युक्त रहता है।
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पूर्ण-चंद्रिका  : पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्णतः  : अव्य० [सं० पूर्ण+तस्] पूरी तरह से। पूर्णतया।
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पूर्णतया  : अव्य० [सं० पूर्णता की तृ० विभक्ति का रूप] पूरी तरह से। पूण रूप से।
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पूर्णता  : स्त्री० [सं० पूर्ण+तल्+टाप्] १. पूर्ण होने की अवस्था या भाव। २. ऐसी स्थिति जिसमें किसी प्रकार का अभाव, कमी या त्रुटि न हो। (परफेक्शन)।
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पूर्ण-परिवर्तक  : पुं० [कर्म० स०] वह जीव जो अपने जीवन में अनेक बार रूप आदि बदलता हो। जैसे—कीड़े-मकोड़े, तितली, मेढक आदि।
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पूर्णपर्वेंदु  : पुं० [पूर्ण-पर्व-इंदु, ब० स०] पूर्णिमा। पूर्णमासी।
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पूर्णपात्र  : पुं० [कर्म० स०] १. वह घड़ा जो प्राचीन काल में चावलो से भरकर होम या यज्ञ के अन्त में दक्षिणा के रूप में पुरोहित को दिया जाता था। इसमें साधारणतः २५६ मुट्ठी चावल हुआ करता था। २. उक्त के आधार पर २५६ मुट्ठियों की एक नाप। ३. पुत्र-जन्म आदि शुभ अवसरों पर शुभ संवाद सुनानेवाले लोगों को बाँटे जानेवाले कपड़े और गहने।
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पूर्णप्रज्ञ  : वि० [ब० स०] १. जिसकी बुद्धि में कोई कमी या त्रुटि न हो। २. बहुत बड़ा बुद्धिमान। ३. पूर्ण ज्ञानी। पुं० पूर्ण प्रज्ञदर्शन के कर्ता मध्वाचार्य जो वैष्णव मत के संस्थापक आचार्यों में माने जाते हैं। हनुमान और भीम के बाद ये वायु के तीसरे अवतार कहे गये हैं। इनका एक नाम आनन्दतीर्थ भी है।
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पूर्णप्रज्ञदर्शन  : पुं० [ष० त०] सर्वदर्शन संग्रह के अनुसार एक दर्शन जिसके प्रवर्तक पूर्णप्रज्ञ या मध्वाचार्य हैं। इसके अधिकतर सिद्धान्त रामानुज दर्शन के सिद्धान्तों से मिलते हैं।
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पूर्णबीज  : पुं० [ब० स०] बिजौरा नींबू।
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पूर्णभद्र  : पुं० [कर्म० स०] १. स्कंद पुराण के अनुसार हरिकेश नामक यक्ष के पिता। २. एक नाग का नाम।
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पूर्णभेदी (दिन्)  : पुं० [सं०पूर्ण√भिद् (विदारण)+णिनि ] एक प्रकार का पौधा।
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पूर्णमा  : स्त्री० [सं०पूर्ण√मा (मापना)+क+टाप्] पूर्णिमा। पूर्णमासी।
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पूर्णमानस  : वि० [ब० स०] जो मन से भली भांति संतुष्ट हो।
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पूर्णमास  : स्त्री० [ब० स०] १. चन्द्रमा। २. [पूर्णमासी+अच्] प्राचीन काल में पूर्णिमा को किया जानेवाला एक तरह का यज्ञ।
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पूर्णमासी  : स्त्री० [सं० पूर्णमास+ङीष्] शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि जिसमें चन्द्रमा अपनी सोलहों कलाओं से युक्त होता है। पूर्णिमा। पूनो।
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पूर्ण-मैत्रायनी पुत्र  : पुं० [सं० मैत्रायनी-पुत्र, ष० त०, पूर्ण-मैत्रायनी पुत्र, कर्म० स०] बुद्ध भगवान् के अनुचरों में से एक जो पश्चिम भारत के सुरपाक नामक स्थान में रहते थे।
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पूर्णयोग  : पुं० [ब० स०] प्राचीन भारत में एक प्रकार का बाहुयुद्ध। भीम और जरासंघ में यही बाहु-युद्ध हुआ था।
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पूर्णरथ  : पुं० [ब० स०] बहुत कुशल और पक्का योद्धा।
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पूर्णलक्ष्मीक  : वि० [ब० स०] लक्ष्मी या धन से भली भाँति सम्पन्न।
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पूर्णवर्मा (र्मन्)  : पुं० [सं०] महाराज अशोक के वंश के अंतिम मगध सम्राट। गौड़राज शशांक द्वारा बोधिवृक्ष के नष्ट किये जाने पर इन्होंने उसे फिर से जीवित कराया था।
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पूर्णवर्ष  : वि० [ब० स०] बीस वर्ष की अवस्था वाला नौजवान।
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पूर्णविराम  : पुं० [कर्म० स०] लिखाई, छपाई आदि में एक प्रकार का चिह्र जो वाक्य के अन्त में उसकी पूर्णता या समाप्ति जतलाने के लिए खड़ी पाई के रूप में लगाया जाता है। (फुल-स्टॉफ)
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पूर्णविषम  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में ताल का एक स्थान जो कभी कभी सम का काम देता है।
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पूर्णवैशानिक  : पुं० [कर्म० स०] वह बौद्ध जिसकी आस्था सर्वशून्य तत्त्ववाद में हो।
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पूर्णशैल  : पुं० [कर्म० स०] योगिनी तंत्र के अनुसार उल्लिखित एक पर्वत का नाम।
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पूर्ण-श्री  : वि० [ब० स०] प्रतिष्ठित, सम्पन्न तथा सुखी (व्यक्ति)।
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पूर्णहोम  : पुं० [कर्म० स०] पूर्णाहुति। (दे०)
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पूर्णांक  : पुं० [पूर्ण-अंक, कर्म० स०] १. पूरी संख्या। २. गणित में अविभक्त संख्या। ३. किसी प्रश्न-पत्र के लिए निर्धारित अंक। (फुल मार्क्स)।
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पूर्णांजलि  : वि० [पूर्ण-अंजलि, ब० स०] जितना अँजुली में आ सके, उतना। अंजुलि भर।
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पूर्णा  : स्त्री० [सं० पूर्ण+टाप्] १. चंद्रमा की पंद्रहवी कला। २. पंचमी, दसमी, अमावस और पूर्णमासी की तिथियाँ। ३. दक्षिण भारत की एक नदी।
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पूर्णाघात  : पुं० [पूर्ण-आघात, कर्म० स०] संगीत में ताल का वह स्थान जो अनाघात के उपरांत एक मात्रा के बाद आता है। कभी-कभी वह स्थान भी सम का काम देता है।
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पूर्णानंद  : पुं० [पूर्ण-आनन्द, ब० स०] परमेश्वर।
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पूर्णाभिलाष  : वि० [पूर्ण-अभिलाष, ब० स०] १. जिसकी अभिलाषा पूरी हो चुकी हो। २. तृप्त। संतुष्ट।
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पूर्णाभिषिक्त  : भू० कृ० [पूर्ण-अभिषिक्त, कर्म० स०] जिसका पूर्णाभिषेक संस्कार हो चुका हो। पुं० तांत्रिकों और शाक्तों का एक भेद या वर्ग।
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पूर्णाभिषेक  : पुं० [पूर्ण-अभिषेक, कर्म० स०] वाममार्गियों का एक तांत्रिक संस्कार जो किसी नये साधन के गुरु द्वारा दीक्षित होने के समय किया जाता है। अभिषेक। महाभिषेक।
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पूर्णामुता  : स्त्री० [पूर्ण-अमृता, कर्म० स०] चन्द्रमा की सोलहवीं कला।
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पूर्णायु (स्)  : वि० [पूर्ण-आयुस्, ब० स०] जिसने पूरी अर्थात् सौ वर्षो की आयु पाई हो। स्त्री० [पूर्ण-अवतार, कर्म० स०] १. पूरी आयु। सारा जीवन। २. सौ वर्षों की आयु।
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पूर्णावतार  : पुं० [पूर्ण-अवतार, कर्म० स०] अंशावतार से भिन्न ऐसा अवतार जो किसी देवता की संपूर्ण कलाओं से युक्त हो। सोलहों कलाओं से युक्त अवतार।
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पूर्णाशा  : स्त्री० [पूर्ण-आशा, ब० स०+टाप्] महाभारत में उल्लिखित एक नदी।
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पूर्णाहुति  : स्त्री० [पूर्ण-आहुति, कर्म० स०] १. यज्ञ की समाप्ति पर दी जानेवाली आहुति। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी कार्य की समाप्ति के समय होनेवाला अन्तिम कृत्य।
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पूर्णि  : स्त्री० [सं०√पू+णिङ्] पूर्णिमा।
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पूर्णिका  : स्त्री० [सं० पूर्णि+कन्+टाप्] एक प्रकार की चिड़िया जिसकी चोंच का दोहरा होना माना जाता है। नासाच्छिनी पक्षी।
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पूर्णिमांत  : पुं० [सं०] गौण चांद्रमास का दूसरा नाम।
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पूर्णिमा  : स्त्री० [सं० पूर्णि√मा (मापना)+क+टाप्] चांद्रमास के शुक्ल पक्ष की अन्तिम तिथि जिसमें चन्द्रमा अपने पूरे मंडल से उदय होता है। पूर्णमासी।
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पूर्णमासी  : स्त्री०=पूर्णिमा।
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पूर्णेंदु  : पुं० [पूर्ण-इन्दु, कर्म० स०] पूर्णिमा का चन्द्रमा जो अपनी सोलहों कलाओं से युक्त होता है। पूर्णचन्द्र।
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पूर्णोत्कट  : पुं० [पूर्ण-उत्कट, कर्म० स०] मार्कडेय पुराण में उल्लिखित एक पूर्व देशीय पर्वत।
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पूर्णोदरा  : स्त्री० [पूर्ण-उदर, ब० स०, टाप्] एक देवी।
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पूर्णोपमा  : पुं० [पूर्ण-उपमा, कर्म० स०] उपमा अलंकार के दो मुख्य भेदों में से पहला जिसमें उपमेय, उपमान, वाचक और धर्म चारों अंग प्रकट रूप से वर्तमान रहते हैं। यथा—सुभग सुधाधर तुल्य मुख, मधुर, सुधा से बैन—पद्याकर। विशेष—इसके आर्थी और श्रौती दो भेद होते हैं।
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पूर्त  : वि० [सं०=पृ (पालन करना)+क्त] १. पूरी तरह से भरा हुआ। २. छाया या ढका हुआ। आवृत्त। ३. पालित। ४. रक्षित। पुं० १. पूर्णता। २. देवगृह, वापी आदि का बनवाना जो धार्मिक दृष्टि से उत्तम कर्म माना गया है।
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पूर्त-विभाग  : पुं० [ष० त०] आज-कल की राजकीय विभाग जो सड़कें, पुल, नहरें आदि लोकोपयोगी वास्तु-रचनाओं का निर्माण कराता है।
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पूर्त-संस्था  : स्त्री० [ष० त०] धर्मार्थ कार्यों के लिए स्थापित की हुई संस्था (चैरिटेबिल इंस्टीट्यूशन)
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पूर्ति  : स्त्री० [सं० पृ+क्ति] १. पूरे या पूर्ण होने की क्रिया या भाव। पूर्णता। २. जो वस्तु अपेक्षित, आवश्यक या कम हो, उसे लाकर प्रस्तुत करने की क्रिया। कमी पूरी करने का काम। जैसे—अभाव की पूर्ति, समस्या की पूर्ति। ३. अर्थशास्त्र में, वे वस्तुएँ जो किसी विशिष्ट मूल्य पर बिकने के लिए बाजार में आई हों। (सप्लाई)। ४. वापी, कूप या तड़ाग आदि का उत्सर्ग। ५. किसी बही, आकार-पत्र आदि के कोष्टकों में आवश्यकतानुसार कुछ लिखने या खाने भरने का काम। ६. गुणा करने की क्रिया या भाव। गुणन।
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पूर्ती (र्तिन्)  : वि० [सं० पूर्त्त+इनि] १. तृप्ति देनेवाला। २. इच्छा पूर्ण करनेवाला। ३. भरा हुआ। पूरित। पुं० श्राद्ध।
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पूर्ब  : पुं० दे० ‘पूर्व’। वि० दे० ‘पूर्व’।
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पूर्य  : वि० [सं०√पृ+क्यप् वा√पूर्+ण्यत्] १. जिसे पूरा करना आवश्यक या उचित हो। पूरणीय। २. जो पूरा किया जाने को हो। ३. (आज्ञा) जिसका पालन करना आवश्यक और उचित हो। पुं० एक प्रकार का तृण-धान्य।
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पूर्व  : वि० [सं०√पूर्व+अच्] १. जो सबसे आगे, सामने या पहले हो। २. जो किसी से पहले अस्तित्व में आया या बना हो। ३. अत्यधिक पुराना। प्राचीन। ४. किसी कृति के पहलेवाले अंश से संबद्ध। ‘उत्तर’ का विपर्याय। क्रि० वि० पहले। आगे। पुं० [सं०√पूर्व (निवास)+अच्] १. वह दिशा जिसमें से प्रातःकाल सूर्य निकलता हुआ दिखाई देता है। पश्चिम के सामने की दिशा पूरब। २. जैनों के अनुसार सात नील, पाँच खरब, साठ अरब वर्ष का एक काल-विभाग।
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पूर्वक  : अव्य० [सं०] समस्त पदों के अन्त में (क) सहित या साथ। (ख) (कोई काम) अच्छी तरह से करते हुए। जैसे—ध्यानपूर्वक, विचारपूर्वक।
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पूर्व-कर्म (न्)  : पुं० [कर्म० स०] सुश्रुत के अनुसार रोगी के सम्बन्ध में किये जानेवाले तीन कर्मों में से पहला कर्म। रोगोत्पत्ति के पहले किये जानेवाले काम।
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पूर्वकल्प  : पुं० [कर्म० स०] प्राचीन काल।
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पूर्वकल्याण  : पुं० [सं०] संगीत में एक प्रकार का राग।
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पूर्व-कल्याणी  : स्त्री० [कर्म० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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पूर्वकाय  : पुं० [एकदेशित०] शरीर का पूर्व या ऊपरी भाग। नाभि से ऊपर का भाग।
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पूर्वकाल  : पुं० [कर्म० स०] १. बीता हुआ समय। २. पुराना जमाना।
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पूर्वकालिक  : वि० [सं० पूर्व-काल, कर्म० स०,+ठन्—इक] १. जिसकी उत्पत्ति या जन्म पूर्वकाल में हुआ हो। पूर्वकाल जात। २. पूर्व समय या पुराने जमाने से संबद्ध। ३. जिसका अवस्थान या स्थिति पूर्वकाल में रही हो। पुराने जमाने का।
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पूर्वकालिक क्रिया  : स्त्री० [सं०] व्याकरण में धातु से बना हुआ वह कृदंत जो क्रिया विशेषण की तरह युक्त होता है तथा जिससे सूचित होता है कि अमुक कार्य होने के बाद ही मुख्य क्रिया द्वारा निर्देशित कार्य हुआ या होगा। यह रूप धातु में ‘कर’ लगने से बनता है। विशेष—यह घटना क्रम के विचार से होनेवाले क्रिया के दो भेदों में एक है। दूसरा भेद समापक या समापिका क्रिया कहलाता है।
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पूर्वकालीन  : वि० [सं० पूर्वकाल+ख—ईन] पुराने जमाने का। प्राचीन पुराना।
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पूर्वकृत्  : पुं० [सं० पूर्व√कृ (करना)+क्विप्] पूर्व दिशा के कर्ता सूर्य। भू० कृ० पहले किया हुआ।
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पूर्व गंगा  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] नर्मदा नदी।
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पूर्वग  : वि० [सं० पुर्व√गम् (जाना)+ड] आगे या पहले चलनेवाला। पूर्वगामी।
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पूर्वगत  : वि० [सुप्सुसा स०] १. जो पहले चला गया हो या जा चुका हो। २. बीता हुआ।
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पूर्वगामी (मिन्)  : वि० [सं० पूर्व√गम् (जाना)+णिनि ] आगे या पहले चल या निकल जानेवाला। जो पहले चला गया हो।
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पूर्वग्रस्त  : भू० कृ० [सं०] १. (बात या विषय जिसके संबंध में मन में कोई पूर्व-ग्रह हो। २. (व्यक्ति) जिसके मन में किसी बात या विषय के संबंध में कोई पूर्व-ग्रह हो। (प्रेजुडिस्ट)
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पूर्वग्रह  : पुं० [कर्म० स०] १. चिकित्सा शास्त्र में, वह सिहरन या इसी प्रकार की और कोई अनुभूति जो मिरगी आदि विकट रोगों का दौरा शुरू होने से पहले होती है। २. किसी अनिश्चित अप्रमाणित या विवादास्पद बात या विषय के संबंध में वह आग्रपूर्वक धारणा जो पहले से बिना जाने या समझे-बूझे अपने मन में स्थिर कर ली गई हो। (प्रेजुडिस)
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पूर्वचित्ति  : स्त्री० [सं०] एक अप्पसरा का नाम।
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पूर्वचेतन  : पुं० [सं०] आधुनिक मनोविज्ञान में वे अचेतन इच्छाएँ या वासनाएँ या प्रतिक्रियाएँ जो पहले से मन में सोई रहती है और सहज में चेतन अवस्था में आ सकती या आ जाती है। यह अहं का बौद्धिक अंश माना गया है। (प्रीकॉशेन्स) विशेष—अचेतन और पूर्व-चेतन में यह अन्तर किया गया है कि अचेतन तो दमित और गतिशील होता है, पर पूर्व चेतन का दमित होना आवश्यक नहीं है। यह अचेतन और चेतन के बीच की स्थिति है।
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पूर्वज  : वि० [सं० पूर्व√जन् (उत्पन्न होना)+ड] जिसकी उत्पत्ति या जन्म पूर्वजन्म में अथवा किसी के पूर्व या पहले हुआ हो। पुं० १. बड़ा भाई। अग्रज। २. बाप, दादा, परदादा आदि पूर्व पुरुष। पुरखा ३. एक प्रकार के दिव्य पितृगण जिनका निवास चन्द्रलोक में माना गया है।
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पूर्व-जन  : पुं० [कर्म० स०] पुराने समय के लोग। पुराकालीन पुरुष।
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पूर्व-जन्म (न्)  : पुं० [कर्म० स०] १. प्रस्तुत या वर्तमान से भिन्न पहले वाला कोई जन्म। २. इस जन्म से पहलेवाला जन्म। पिछला जन्म।
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पूर्वजन्मा (न्मन्)  : पुं० [ब० स०] बड़ा भाई। अग्रज।
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पूर्वजा  : स्त्री० [सं० पूर्वज+टाप्] बड़ी बहन।
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पूर्वजाति  : स्त्री० [कर्म० स०] पूर्व जन्म। पिछला जन्म।
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पूर्वजिन  : पुं० [कर्म० स०] १. अतीत जिन या बुद्ध। २. मंजुश्री का एक नाम।
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पूर्वज्ञान  : पुं० [ष० त०] १. पूर्व जन्म की बात का ज्ञान। पूर्व जन्म में अर्जित ज्ञान जो इस जन्म में भी विद्यमान हो। २. पूर्वाजित या पहले का ज्ञान। ३. आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी घटनाओं या बातों का पहले से ही परिज्ञान हो जाना जो अभी घटित न हुई हों, बल्कि भविष्य में कभी घटित होने को हों। (फोर-नॉलेज)।
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पूर्वतः (तस्)  : अव्य० [सं० पूर्व+तस्] १. पहले। २. प्रथमत। ३. सामने।
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पूर्वतन  : वि० [सं० पूर्व+ट्यु—अन, तुट्] १. पहला। २. पुराना।
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पूर्वतर  : वि० [सं० पूर्व+तरप्] [भाव० पूर्वतरता] १. पहला। २. पूर्व का।
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पूर्व-तिथि  : स्त्री० [कर्म० स०] पत्रों, लेखों आदि पर लिखी जानेवाली वह तिथि जो अभी कुछ दिन बाद आने को हो। आज की तिथि या दिनांक के बाद की कोई तिथि या दिनांक।
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पूर्वतिथित  : भू० कृ० [सं० पूर्वतिथि+णिच्+क्त] (वह) जिस पर पहले से कोई पहले की तारीख या तिथि दे या लिख दी गई हो।
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पूर्वत्र  : अव्य० [सं० पूर्व+त्रल्] १. पहले। २. पहलेवाले भाग या स्थान में।
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पूर्व-दक्षिणा  : स्त्री० [ब० स०] पूर्व और दक्षिण के बीच का कोना।
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पूर्वदत्त  : भू० कृ० [कर्म० स०] जो पहले दिया जा चुका हो। पहले का दिया हुआ (प्री-पेड)।
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पूर्वदर्शन  : पुं० [कर्म० स०] आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी घटनाएँ या बातें पहले से दिखाई देती हुई जान पड़ना जो अभी घटित न हुई हों बल्कि भविष्य में कभी घटित होने को हों। (प्रीकाग्निशन)
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पूर्वदान  : पुं० [सं०] पहले या पेशगी देना। पहले ही चुका देना है।
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पूर्वदिक्-पति  : पुं० [ष० त०] इंद्र।
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पूर्वदिक्-वदन  : पुं० [ब० स०]=पूर्व-दिगीश।
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पूर्वदिगीश  : पुं० [पूर्वदिश्-ईश, ष० त०] १. इन्द्र। २. सिंह, मेष और धनु तीनों राशियाँ।
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पूर्वदिन  : पुं० [एकदेशित०] मध्याह्र से पहले का समय।
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पूर्वदिश्य  : वि० [सं० पूर्वदिश्+यत्] पूर्व दिशा का या उससे सम्बन्ध रखनेवाला।
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पूर्वदिष्ट  : पुं० [कर्म० स०,+अच्] वे सुख-दुःख आदि जो पूर्व जन्म में किये गये कर्मों के परिणामस्वरूप भोगने पड़ें।
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पूर्वदुष्कृत  : पुं० [ष० त०] पूर्व जन्म का पाप।
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पूर्वदृष्टि  : स्त्री० [कर्म० स०] वह दृष्टि या विचार-शक्ति जिसकी सहायता से किसी होनेवाली बात के सब अंग पहले से ही देख या सोच-समझ लिये जाते हैं। (फोर साइट)।
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पूर्व-देव  : पुं० [कर्म० स०] १. नर और नारायण। २. असुर जो पहले देव या सुर थे, पर अपने दुष्कर्मों के कारण बाद में सुरों के वर्ग से अलग हो गये थे।
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पूर्वदेवता  : पुं० [कर्म० स०] पितर।
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पूर्वदेह  : स्त्री० [कर्म० स०] १. पूर्व जन्मवाला शरीर। २. शरीर का अगला भाग।
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पूर्वदेहिक, पूर्वदैहिक  : वि० [सं० पूर्व-देह, कर्म० स०,+ ठन्—इक ?] [सं० पूर्वदेह+ठक्—इक ?] पूर्व जन्म में किया हुआ।
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पूर्व-निरूपण  : पुं० [कर्म० स०] १. किसी बात का पहले से किया जानेवाला निरूपण। २. किस्मत। तकदीर। भाग।
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पूर्वन्याय  : पुं० [कर्म० स०] किसी अभियोग में प्रतिवादी का यह कहना कि ऐसे अभियोग में मैं वादी को पराजित कर चुका हूँ। यह उत्तर का एक प्रकार है।
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पूर्वपक्ष  : पुं० [कर्म० स०] १. किसी शास्त्रीय विषय के संबंध में उठाया हुआ ऐसा प्रश्न, बात या शंका जिसका दूसरे पक्ष को उत्तर देना या समाधान करना पड़े। २. व्यवहार या अभियोग में वादी द्वारा उपस्थित किया हुआ अभियोग या बात। मुद्दई का दावा। ३. चांद्रमास का कृष्णपक्ष।
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पूर्वपक्षी (क्षिन्)  : पुं० [सं० पूर्वपक्ष+इनि] १. वह जो पूर्वपक्ष उपस्थित करे। २. वह जो न्यायालय में कोई अभियोग या वाद उपस्थित करे। मुद्दई।
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पूर्वपक्षीय  : वि० [सं० पूर्वपक्ष+छ—ईय] पूर्वपक्ष संबंधी। पूर्वपक्ष का।
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पूर्वपद  : पुं० [कर्म० स०] १. यौगिक या समस्त पद में का पहले का पद। ‘उत्तर-पद’ का विपर्याय। जैसे—लोकगीत में का ‘लोक’ पूर्व-पद है। २. किसी सोपाधिक बात का पहला अंश जिस पर दूसरा अंश अवलंबित हो। ३. कोई ऐसी बात जिस पर तार्किक दृष्टि से कोई दूसरी बात अवलंबित हो। ४. काल-क्रम के विचार से पहले घटित होनेवाली ऐसी घटना जिसके फलस्वरूप बाद में कोई घटना घटित होती है।
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पूर्व-पर्वत  : पुं० [कर्म० स०] उदयाचल।
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पूर्वपाली (लिन्)  : पुं० [सं० पूर्व√पाल् (रक्षा करना)+ णिच्+णिनि] इन्द्र।
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पूर्वपितामह  : पुं० [ष० त०] १. पुरखा। पूर्वज। २. प्रपितामह। परदादा।
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पूर्वपीठिका  : स्त्री० [कर्म० स०] वह अवस्था, रूप या स्थिति जिसके आगे या सामने कोई नई स्थिति या रूप खड़ा हो। भूमिका। (बेकग्राउन्ड)
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पूर्वपुरुष  : पुं० [कर्म० स०] दादा-परदादा। पूर्वज। (फोर-फादर्स)
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पूर्व-प्रत्यय  : पुं० [कर्म० स०] वह प्रत्यय जो शब्द के पहले लगाया जाता है।
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पूर्व-प्लावनिक  : वि० [सं०] १. वैवस्वत मनु अथवा हजरत नूर के समय के प्लावन से पहले का। २. बहुत पुराना फलतः बिलकुल निकम्मा। (एन्टी-डिलूविअल)
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पूर्व-फाल्गुनी  : स्त्री० [कर्म० स०] सत्ताईस नक्षत्रों में से ग्यारहवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे हैं।
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पूर्वबंधु  : पुं० [कर्म० स०] पहले या सबसे अच्छा मित्र।
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पूर्वबाध  : पुं० [ष० त०] पहले के निश्चय को स्थगित या रद्द करना।
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पूर्वबाहु  : स्त्री० [एकोशित] कोहनी से आगे का वह भाग जिसमें कलाई और पंजा होता है। (फोर आर्म)
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पूर्वभक्षिका  : स्त्री० [कर्म० स०] प्रातःकाल किया जानेवाला भोजन। जलपान। नाश्ता।
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पूर्वभाद्रपद  : पुं० [कर्म० स०] सत्ताईस नक्षत्रों में २५वाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे हैं।
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पूर्वभाव  : पुं० [कर्म० स०] १. पूर्व सत्ता। २. प्राथमिकता। ३. विचार की अभिव्यक्ति। ४. ‘पूर्वराग’। (साहित्य)
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पूर्वभावी (विन्)  : पुं० [सं० पूर्व√भू+णिनि] कारण। वि० पूर्ववर्ती।
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पूर्वभाषी (षिन्)  : वि० [सं० पूर्व-भाष् (बोलना)+णिनि] १. पहले बोलने का इच्छुक। २. नम्र। विनयी।
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पूर्व-मीमांसा  : पुं० [कर्म० स०] जैमिनी मुनि द्वारा कृत एक प्रसिद्ध भारतीय दर्शन जिसमें कर्मकांड सम्बन्धी बातों का विवेचन है।
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पूर्वयज्ञ  : पुं० [कर्म० स०] जैनों के अनुसार एक जिनदेव जो मणिभद्र और जलेंद्र भी कहलाते हैं।
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पूर्व-रंग  : पुं० [कर्म० स०] १. अभिनय में वह संगीत या स्तुति आदि दो नाटक आरंभ होने से पहले विघ्नों की शांति और दर्शकों को अनुरक्त करने के लिए होता है। यद्यपि इसके प्रत्याहार आदि अनेक अंग है; फिर भी इसमें नान्दी का होना परम आवश्यक है। २. रंग-शाला।
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पूर्व-राग  : पुं० [कर्म० स०] साहित्य में किसी के प्रति मन में उत्पन्न होनेवाला वह प्रेम जो बिना प्रिय को देखे केवल उसका गुण या नाम सुनने, चित्र आदि देखने से होता है। इसकी ये दस दशाएँ कही गई हैं
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पूर्व-रूप  : पुं० [कर्म० स०] १. किसी काम, चीज या बात का पहलेवाला आकार, रूप या रंग-ढंग। जैसे—इस पुस्तक का पूर्वरूप ऐसा ही था। २. किसी वस्तु का वह रूप जो उस वस्तु के पूर्ण रूप से प्रस्तुत होने से पहले बनता और तैयार होता है। ३. साहित्य में एक अर्थालंकार, जिसमें किसी के विनष्ट, गुण; रूप, वैभव आदि के फिर से वापस या लौट आने का उल्लेख होता है।
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पूर्वलेख  : पुं० दे० ‘संलेख’।
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पूर्ववत्  : अव्य० [सं० पूर्व+वति] १. जिस प्रकार पहले हुआ या किया गया हो, उसी प्रकार या उसी के अनुसार। २. पहले की ही तरह। ज्यों का त्यों (अर्थात् बिना किसी प्रकार के परिवर्तन के)। पुं० किसी कार्य का वह अनुमान जो उसके कारणों को देखकर उसके होने से पहले ही किया जाता है।
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पूर्ववर्ती (र्तिन्)  : वि० [सं० पूर्व√वृत्त (बरतना)+णिनि] जो पहले से वर्तमान हो या रह चुका हो। पूर्व में या पहले रहने या होनेवाला। जैसे—यहाँ के पूर्ववर्ती अध्यापक बहुत वृद्ध हो गये थे।
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पूर्ववाद  : पुं० [सं० कर्म० स०] व्यवहार शास्त्र के अनुसार वह पहला अभियोग जो कोई व्यक्ति न्यायालय आदि में उपस्थित करे। पहला दावा। नालिश।
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पूर्ववादी (दिन्)  : पुं० [सं० पूर्व√वद् (बोलना)+णिनि] वादी। मुद्दई।
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पूर्वविचार  : पुं० [कर्म० स०] किसी होनेवाली बात के संबंध में पहले से किया जानेवाला विचार। (फोर थॉट)
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पूर्वविद्  : वि० [सं० पूर्व√विद् (जानना)+क्विप्] पुराने समय की बातें जाननेवाला। इतिहास आदि का ज्ञाता।
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पूर्व-विवेचन  : पुं० [सं०] किसी विषय से संबंध रखनेवाली सब बातें पहले से अच्छी तरह सोच-समझ लेने की क्रिया या भाव। (प्राविडेन्स)
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पूर्व-विहित  : वि० [कर्म० स०] १. जिसका पहले से विधान किया जा चुका हो या हो चुका हो। २. पहले का जमा किया हुआ या गाड़ा हुआ (धन)।
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पूर्ववृत्त  : पुं० [कर्म० स०] पुराने समय की घटनाओं का विवरण। पूर्वकाल की बातें। इतिहास।
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पूर्वव्यापित  : वि० [सं०] (आदेश, नियम या निश्चय) जिसका प्रभाव बीते हुए काल के कार्यों, व्यवस्थाओं पर भी पड़ता हो। (रिट्रास्पेक्टिव)
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पूर्व-शैल  : पुं० [सं० कर्म० स०] उदयाचल।
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पूर्व-संचित  : भू० कृ० [कर्म० स०] पहले से इकट्ठा या संचित किया हुआ।
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पूर्व-संध्या  : स्त्री० [कर्म० स०] दिन की पहली सन्ध्या, अर्थात् प्रातःकाल।
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पूर्व-सक्थ  : पुं० [एकदेशि त०] जाँघ का ऊपरी भाग।
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पूर्व-सभिक  : पुं० [कर्म० स०] जूए खाने का प्रधान या मालिक।
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पूर्वसर  : वि० [सं० पूर्व√सृ (गति)+ट] आगे चलनेवाला। अग्रगामी।
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पूर्व-सागर  : पुं० [कर्म० स०] पूर्वी समुद्र।
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पूर्वसाहस  : पुं० [कर्म० स०] पहला या सबसे बड़ा दंड।
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पूर्वसाचित्य  : पुं० [कर्म० स०] किसी काम में पहले से सोच-समझकर अपनी रक्षा के विचार से किया जानेवाला साचित्य (प्रिकाशन)।
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पूर्वसिंधु  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्वसूचन  : पुं० [कर्म० स०] १. सूचना या चेतावनी पहले से देना। २. किसी भावी कार्य या बात के संबंध में बचत, रक्षा आदि के विचार से पहले से दी जानेवाली सूचना या चेतावनी।
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पूर्वा  : स्त्री० [सं० पूर्व+टाप्] १. पूर्व दिशा। पूरब। २. दे० ‘पूर्वा-फाल्गुनी’। ३. राजाओं आदि के बडे़ बड़े कार्यों का उल्लेख या वर्णन। प्रशास्ति।
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पूर्वागम  : पुं० [पूर्व-आगम, कर्म० स०] भाषा-विज्ञान में, शब्द के आदि में रहनेवाले व्यंजन के साथ उच्चारण के सुभीते के लिए स्वाभाविक रूप से इ या उ स्वर का लगना। प्रोथेसिस। जैसे—‘स्त्री’ का उच्चारण ‘इस्त्री’ के रूप में करना।
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पूर्वाग्नि  : स्त्री० [पूर्व-अग्नि, कर्म० स०] आवसस्थ अग्नि।
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पूर्वाचल, पूर्वाद्रि  : पुं० [पूर्व-अचल, पूर्व-अद्रि कर्म० स०] उदयाचल।
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पूर्वादेश  : पुं० [पूर्व-आदेश, कर्म० स०] किसी बात के सम्बन्ध में पहले से दिया हुआ आदेश या बतलाई हुई कार्य-प्रणाली। (प्रीवियस इन्स्ट्रक्शन)
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पूर्वाधिकारी (रिन्)  : पुं० [पूर्व-अधिकारी, कर्म० स०] वह जो किसी पद पर पहले अधिकारी के रूप में रह चुका हो। (प्रोडिसेसर)
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पूर्वानिल  : पुं० [पूर्व-अनिल, कर्म० स०] पूरबी वायु। पुरवा। हवा।
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पूँगरण  : पुं० [सं० पुंग=राशि या समूह] वस्त्र। कपड़ा। (डिं०)
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पूँगरा  : वि० दे० ‘पोंगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँगा  : पुं० [देश०] सीप के अन्दर रहनेवाला कीड़ा। स्त्री० [अनु०] [स्त्री० अल्पा० पूँगी] १. सँपेरों की बीन। महुअर। २. एक तरह की बाँसुरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० दे० ‘पोंगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछ  : स्त्री० [सं० पुच्छ] १. चौपायों तथा जंतुओं का वह गावनुमा तथा लचीला पिछला भाग जो गुदा-मार्ग के ऊपर रीढ़ की हड्डी की संधि में या उससे निकलकर नीचे की ओर कुछ दूर तक लम्बा चला जाता या नीचे लटकता रहता है। पुच्छ। लांगूल। दुम। जैसे—कुत्तें, लंगूर या घोड़े की पूँछ, चिडि़या चूहे या घड़ियाल की पूँछ। मुहा०—किसी की पूँछ पकड़कर चलना=(क) बिना सोचे-समझे किसी का अनुयायी बनकर चलना। (ख) किसी का सहारा पकड़कर चलना। (किसी के आगे) पूँछ हिलाना=किसी के आगे उसी तरह से दीन बनकर आचरण करना जिस प्रकार कुत्ते अपने स्वामी या भोजन देनेवाले के सामने पूँछ हिलाकर दीनता प्रकट करते हैं। २. किसी काम, चीज या बात के पीछे का वह लंबा अंश जो प्रायः अनावश्यक या निरर्थक हो। ३. पतंग, पुच्छल तारे, उल्का आदि के पीछे का चमकनेवाला रेखाकार अंग। जैसे—पतंग की पूँछ। ४. वह जो हरदम दीन भाव से किसी के पीछे या साथ लगा रहता हो।
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पूँछ-गाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछट  : स्त्री०=पूँछ (दुम)। (उपेक्षा सूचक)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछड़ी  : स्त्री० [हिं० पूँछ+ड़ी (प्रत्य०)] छोटी पूँछ।
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पूँछ-ताछ  : स्त्री०=पूँछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछना  : स०=पूछना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछ-पाँछ  : स्त्री०=पूँछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँछल-तारा  : पुं०=पुच्छल तारा (केतु)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूँजना  : स० [देश०] नया बंदर पकड़ना। (कलंदर)।
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पूँजी  : स्त्री० [सं० पुँज] १. जोड़ा या जमा किया हुआ धन। २. विशेषतः ऐसा धन जो और अधिक धन कमाने के उद्देश्य से व्यापाक आदि में लगाया गया हो अथवा ऋण आदि पर उधार दिया गया हो। मूलधन। (कैपिटल) ३. सम्पत्ति, विशेषतः ऐसी सम्पत्ति जिससे आय होती हो। जैसे—विधवा की पूँजी यही एक मकान था। ४. उन सब वस्तुओं का समूह जो पास में हो। ५. किसी विषय में किसी की सारी योग्यता या ज्ञान।
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पूँजीदार  : पुं० [हिं० पूँजी+फा० दार] [भाव० पूँजीदारी] १. वह जिसके पास अधिक या अत्यधिक पूँजी या धन-संपत्ति हो। २. वह जो आर्थिक लाभ के लिए किसी उद्योग या व्यवसाय में पूँजी या धन लगाता हो। पूँजीपति।
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पूँजीदारी  : स्त्री० [हिं० पूँजीदार] १. पूँजीदार होने की अवस्था या भाव। २. दे० ‘पूँजीवाद’।
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पूँजीपति  : पुं० [हिं० पूँजी+सं० पति] १. जिसके पास अधिक पूँजी हो। २. ऐसा व्यक्ति जो लाभ की दृष्टि से विभिन्न उद्योग-धन्धों में पूँजी लगाता हो। पूँजीदार।
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पूँजीवाद  : पुं० [हिं० पूँजी+सं० वाद] १. आधुनिक अर्थशास्त्र में, वह आर्थिक प्रणाली या व्यवस्था जिसमें देश के प्रमुख उत्पत्ति तथा वितरण के साधनों पर धनिकों या पूँजीपतियों का व्यक्तिगत रूप से पूरा अधिकार होता है। इसमें धनवान् लोग अपनी पूँजी से वस्तुओं का उत्पादन करते-कराते और उसका सारा लाभ अपने सुख-भोग तथा पूँजी बढ़ाने में लगाते हैं। (कैपिटलिज़्म)।
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पूँजीवादी  : पुं० [हिं०+सं०] वह जो पूँजीवाद से सिद्धान्त मानता हो या उसका अनुयायी हो। वि० पूँजीवाद-संबंधी। जैसे—पूँजीवादी आर्थिक व्यवस्था।
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पूँठ  : स्त्री०=पीठ।
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पू  : वि० [सं० पूर्वपद के रहने पर] समस्त पदों के अन्त में, पवित्र या शुद्ध करनेवाला। जैसे—खलपू=खलों को पवित्र करनेवाला
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पूआ  : पुं० [सं०पूप, अपूप] पूरी की तरह का एक मीठा पकवान जो आटे को गुड़ या चीनी के रस में घोलकर घी में तलने से बनता है।
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पूखन  : पुं०=पूषण (सूर्य)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पोषण।
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पूग  : पुं० [सं०√पू+गन्] १. सुपारी का पेड़ और उसका फल। २. ढेरा। ३. शहतूत का पेड़। ४. कटहल। ५. एक प्रकार की कटेरी। ६. भाव। ७. छंद। ८. समूह। ढेर।
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पूग-कृत  : भू० कृ० [स० त०] १. स्तूप के आकार में बनाया हुआ। जो टीले के आकार का हो। २. एकत्र किया हुआ संगृहीत। संचित।
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पूगना  : अ० [हिं० पूजना] १. पूरा होना। जैसे—हुंडी की मिती पूगना २. चौसर आदि के खेलों में गोटी, पासे आदि का नियत मार्ग से होते हुए अन्त में कोठे या घर में पहुँचना जो जीत का सूचक माना जाता है। ३. दे० ‘पूजना’।
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पूगपात्र  : पुं० [ष० त०] पीकदा। उगालदान।
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पूग-पीठ  : पुं० [ष० त०] पीकदान।
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पूग-पुष्पिका  : स्त्री० [ब० स०, कप्,+टाप्, इत्व] विवाह-संबंध स्थिर हो जाने पर दिया जाने वाला पुष्प सहित पान। पानफूल।
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पूग-फल  : पुं० [ष० त०] सुपारी।
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पूगरीठ  : पुं० [सं० पूग√रुट् (दीप्ति)+अच्] एक प्रकार का ताड़।
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पूगी (गिन्)  : पुं० [सं० पूग+इनि] सुपारी का पेड़। स्त्री० सुपारी।
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पूगीफल  : पुं० [सं० पूगफल] सुपारी।
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पूग्य  : वि० [सं० पूग+यत्] पूग-संबंधी। पूग का।
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पूछ  : स्त्री० [हिं० पूछना] १. पूछने की क्रिया या भाव। जिज्ञासा। २. चाह। तलब। जरूरत। ३. आदर। खातिर। स्त्री०=पूँछ (दुम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछ-गाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछ-ताछ  : स्त्री० [हिं० पूछना+ताछना अनु०] १. कुछ जानने के लिए किसी से प्रश्न करने की क्रिया या भाव। किसी बात का पता लगाने के लिए बार-बार या कई लोगों से कुछ पूछना या प्रश्न करना. २. किसी विषय में खोज, अनुसंधान या जाँच पडताल करने के लिए बार-बार जिज्ञासा या प्रश्न करना। जैसे—बहुत पूछ-ताछ करने पर इस मामले का कुछ पता चला।
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पूछना  : स० [सं० पृच्छण] १. किसी से कोई बात जानने या समझने के लिए शब्दों का प्रयोग करना। जिज्ञासा करना। जैसे—किसी से कहीं का रास्ता (या किसी का नाम) पूछना। २. जाँच, परीक्षा आदि के प्रसंग में इसलिए किसी के सामने कुछ प्रश्न रखना कि वह उसका उत्तर दे। प्रश्न करना। जैसे—परीक्षा के समय विद्यार्थियों से तरह-तरह की बातें पूछी जाती हैं। ३. किसी के प्रति सहानुभूति रखते हुए उससे यह जानने का प्रयत्न करना कि आज-कल तुम कैसे हो या किस प्रकार जीवन यापन करते हो। किसी का हाल-चाल या खोज-खबर लेना। जैसे—(क) वह महीनों बीमार पड़ा रहा पर कोई उसके पास पूछने तक न गया। (ख) अजी, गरीबों को कौन पूछता है। ४. किसी के प्रति आदर-सत्कार का भाव प्रकट करते हुए उसकी ओर उचित ध्यान देना। जैसे—इतनी भीड़ भाड़ में कौन किसे पूछता है। मुहा०—(किसी से) बात तक न पूछना या बात न पूछना=(क) कुछ भी ध्यान न देना। (ख) बहुत ही उपेक्षापूर्ण व्यवहार करना। ५. उचित महत्व या मूल्य समझते हुए आदर या कदर करना। जैसे—आज-कल गुण या योग्यता को कौन पूछता है। ६. किसी प्रकार का ध्यान देते हुए कोई जिज्ञासा करना या कुछ कहना। जैसे—उनके घर पहुँचकर सीधे ऊपर चले जाना; कोई कुछ नहीं पूछेगा।
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पूछ-पाछ  : स्त्री०=पूछ-ताछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूछरी  : स्त्री०=पूँछ (दुम)।
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पूछा-ताछी, पूछा-पाछी  : स्त्री० [हिं० पूछना]=पूछ-ताछ।
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पूज  : स्त्री० [सं० पूजन] कुछ विशिष्ट जातियों में विवाह, यज्ञोपवीत, आदि शुभ कार्यों से एकाध दिन पहले होनेवाला एक कृत्य जिसमें गणेश पूजन किया जाता है और बिरादरी के आमंत्रित व्यक्तियों को बताशे, लड्डू आदि दिये जाते हैं। स्त्री० [हिं० पूजना] पूजने की क्रिया या भाव। पुं० [सं० पूज्य] देवता। (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=पूज्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूजक  : वि० [सं०√पूज् (पूजना)+णिच्+ण्वुल्—अक] पूजा करनेवाला। जैसे—अग्निपूजक।
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पूजन  : पुं० [सं०√पूज्+णिच्+ल्युट—अन] [वि०पूजक, पूजनीय, पूजितव्य, पूज्य] १. देवी-देवता या किसी अन्य पूज्य वस्तु की की जानेवाली आराधना या वंदना। २. आदर। सम्मान। जैसे—अतिथि पूजन।
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पूजना  : स० [सं० पूजन] १. देवी-देवता को प्रसन्न या संतुष्ट करने के लिए यथाविधि श्रद्धाभाव से जल, फूल, नैवेद्य आदि चढ़ाना। पूजन करना। २. किसी को परम श्रद्धा या भक्ति की दृष्टि से देखना और आदरपूर्वक उसकी सेवा तथा सत्कार करना। ३. किसी को प्रसन्न या संतुष्ट करने के लिए उसे किसी रूप में कुछ धन देना। जैसे—कचहरी के अमलों को पूजना। ४. व्यंग्य और परिहास में, खूब मारना-पीटना। जैसे—वे आज इसकी खूब पूजा करेगें। अ० [सं० पूर्यते, प्रा० पूज्जति] १. पूरा होना। भरना। २. कमी, त्रुटि, देन आदि की पूर्ति होना। जैसे—किसी की रकम पूजना=दिया या लगाया हुआ धन पूरा पूरा वसूल होना। ३. अवधि या नियत समय पूरा होना। जैसे—हुंडी की मिती पूजना=रूपया चुकाने की तिथि नियत आना। ४. गहराई का भरना या बराबर होना। जैसे—गड्ढा पूजना, घाव पूजना। ५. ऋण या देन चुकता होना। ६. किसी की बराबरी तक पहुँचना। उदा०—ये सब पतति न पूजत मो सम।—सूर। ७. दे० ‘पूगना’। स० १. पूरा करना। २. नया बंदर पकड़ना। (कलंदर)
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पूजनी  : स्त्री० [सं० पूजन+ङीप्] मादा गौरैया।
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पूजनीय  : वि० [सं०√पूज्+णिच्+अनीयर] १. जिसका पूजा करना कर्तव्य या उचित हो। पूजन करने के योग्य। अर्चनीय। २. आदरणीय।
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पूजमान  : वि०=पूज्यमान।
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पूजयितव्य  : वि० [सं०√पूज्+णिच्+तव्यम] जिसकी पूजा की जा सकती हो अथवा जिसकी पूजा करना उचित हो। पूज्य।
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पूजयिता (तृ)  : वि०, पुं० [सं०√पूज्+णिच्+तृच्] पूजा करनेवाला। पूजक।
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पूजा  : स्त्री० [सं०√पूज्+णिच्+अ+टाप्] १. देवी-देवता के प्रति विनय, श्रद्धा और समर्पण का भाव प्रकट करनेवाले कार्य। अर्चना। पूजन। २. किसी देवी-देवता पर जल, फूल, फल, अक्षत आदि चढ़ाने का धार्मिक कृत्य। पूजन। ३. बहुत अधिक या यथेष्ट आदर-सत्कार। आव-भगत। खातिरदारी। ४. किसी को प्रसन्न या संतुष्ट करने के लिए किया जानेवाला कोई कार्य। ५. उक्त के आधार पर, लाक्षणिक रूप में, घूस या रिश्वत। जैसे—अब तो पहले दफ्तरवालों की पूजा करो, तब कहीं जाकर नौकरी मिलती है। ६. व्यंग्य के रूप में, किसी को मारने-पीटने अथवा तिरस्कृत या दंडित करने की क्रिया या भाव। जैसे—चलो देखो, आज घर पर तुम्हारी कैसी पूजा होती है।
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पूजाधार  : पुं० [सं० पूजा-आधार, ष० त०] देवपूजा में विधेय, वस्तुएँ और बातें। जैसे—जल, विष्णुचक्र, मंत्र, प्रतिमा, शालग्राम आदि।
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पूजार्ह  : वि० [सं० पूजा√अर्ह् (पूजना)+अच्] पूजनीय।
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पूजित  : भू० कृ० [सं०√पूज्+क्त] [स्त्री० पूजिता] जिसका पूजा की गई हो।
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पूजितव्य  : वि० [सं०√पूज्+तव्यत्] पूजनीय। पूज्य।
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पूजिल  : पुं० [सं०√पूज्+इलच्] देवता। वि० पूजनीय।
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पूजी  : स्त्री० [फा० पूजबंद] घोड़े का एक प्रकार का साज जो उसके मुँह पर रहता है। उदा०—पूजी कलगी करनफूल कल हैकल सेली।—रत्ना०।
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पूजोपकरण  : पुं० [सं० पूजा-उपकरण, ष० त०] देवता की पूजा के लिए आवश्यक उपकरण या सामग्री।
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पूजोपचार  : पुं० [सं० पूजा-उपचार, ष० त०] पूजन के लिए किया जानेवाला उपचार और उसकी सामग्री।
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पूजोपहार  : पुं० [सं० पूजा-उपहार, ष० त०] पूजा के समय देवी-देवता को चढ़ाई जानेवाली वस्तु। चढ़ावा।
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पूज्य  : वि० [सं०√पूज्+यत्] [स्त्री० पूज्या] १. पूजा किये जाने के योग्य। २. आदर, श्रद्धा आदि के योग्य। माननीय। पुं० श्वसुर। ससुर।
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पूज्यता  : स्त्री० [सं० पूज्य+तल्+टाप्] पूज्य होने की अवस्था या भाव। पूजे जाने के योग्य होना। पूजनीयता।
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पूज्य-पाद  : वि० [ब० स०] इतना महान् कि उसके पैरों की पूजा करना उचित हो। परम पूज्य और मान्य।
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पूज्यमान  : वि० [सं०√पूज्+यक्+शानच्] जिसकी पूजा की जा रही हो। पूजा जाता हुआ। सेव्यमान। पुं० सफेद जीरा।
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पूज्यवर  : वि० [स० त०] परम आदरणीय, पूज्य और बड़ा। जैसे—पूज्यवर मालवीय जी।
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पूटरी  : स्त्री० [देश] ईख के रस की वह अवस्था जो उसके खाँड़ बनने से पहले होती है। स्त्री०=पोटली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूटीन  : स्त्री०=पुटीन।
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पूठ  : पुं०=पुट्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=पीठ।
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पूठा  : वि० [सं० पुष्ठ] [स्त्री० पूठी] १. पुष्ट। मजबूत। २. पक्का। प्रौढ़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पुट्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूठि  : स्त्री० १.=पीठ। २.=पुष्टि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूड़ा  : पुं०=पूआ (पकवान)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूड़ी  : स्त्री० [हिं० पूरी] १. तबले या मृदंग पर मढ़ा हुआ गोल चमड़ा। २. दे० ‘पूरी’।
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पूणू  : पुं०=पत्थर (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=पूनो (पूर्णिमा)।
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पूत  : वि० [सं०√पू (पवित्र करना)+क्त] १. पवित्र। शुद्ध। शुचि। २. सत्य। पुं० १. शंख। २. सफेद कुश। ३. पलास। ४. तिल का पेड़। ५. भूसी निकाला हुआ अन्न। ६. जलाशय। पुं० [सं० पुत्र; प्रा० पुत्त] बेटा। लडका। पुत्र। उदा०—एक पहेली मैं कहूँ, तुम बूझो मेरे पूत। पुं० [देश०] चूल्हे के दोनों किनारों और बीच के वे नुकीले उभार जिनके सहारे पर कड़ाही, तवा, देगची आदि रखते हैं।
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पूतक्रतायी  : स्त्री० [सं० पूतक्रतु+ङीष्, ऐ-आदेश] इंद्र की पत्नी। इन्द्राणी। शची।
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पूत-क्रतु  : पुं० [ब० स०] इन्द्र।
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पूत-गंध  : पुं० [ब० स०] बर्बर नामक सुगंधित तृण।
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पूतड़ा  : पुं०=पोतड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूत-तृण  : पुं० [कर्म० स०] सफेद कुश।
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पूत-दारु  : पुं० [कर्म० स०] पलास। ढाक।
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पूत-द्रु  : पुं० [कर्म० स०] १. ढाक। पलास। २. खैर का पेड़। ३. देवदार।
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पूत-धान्य  : पुं० [कर्म० स०] तिल।
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पूतन  : पुं० [सं० पूत+णिच्+ल्यु—अन] १. वैद्यक के अनुसार गुदा में होनेवाला एक प्रकार का रोग २. बेताल। ३. कब्र में रखा हुआ शव।
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पूतना  : स्त्री० [सं० पूतन+टाप्] १. एक राक्षसी जो कंस के कहने पर बालक कृष्ण को मारने के उद्देश्य से अपने स्तनों पर विष लगाकर, उसे स्तन-पान कराने आई थी। बालक कृष्ण ने इसका दुष्ट उद्देश्य जान लिया और इसे मार डाला। २. राक्षसी। दानवी। ३. सुश्रुत के अनुसार, एक बाल-ग्रह या बाल रोग जिसमें बच्चे को जल्दी अच्छी नींद नहीं आती। उसे पतले, मैले दस्त आते हैं, बहुत प्यास लगती है और बार-बार कै होती है। ४. कार्तिकेय की अनुचरी एक मातृका। ५. पीली हर्रे। ६. सुगंधित जटामासी। गन्ध-मासी।
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पूतनारि  : पुं० [सं० ष० त०] पूतना के शत्रु; श्रीकृष्ण।
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पूतना-दूषण  : पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण।
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पूतना-सूदन  : पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण।
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पूतनाहर्रे  : स्त्री० [सं० पूतना+हिं० हर्रे] छोटी हर्रे।
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पूतनिका  : स्त्री० [सं० पूतन+कन्+टाप्, इत्व] १. पूतना (राक्षसी)। २. पूतना नामक बाल रोग।
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पूत-पत्री  : स्त्री० [ब० स०, ङीष्] तुलसी।
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पूत-फल  : पुं० [ब० स०] कटहल का पेड़ और उसका फल।
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पूतभृत्  : पुं० [सं० पूत√भृ (धारण करना)+क्विप्] वह पवित्र बरतन जिसमें सोम रस रखा जाता था।
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पूत-मति  : वि० [ब० स०] पवित्र बुद्धिवाला। पवित्र अंतःकरणवाला। पुं० शिव का एक नाम।
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पूतर  : पुं० [सं० पूत√रा (देना)+क] १. एक प्रकार का जल-जंतु। २. तुच्छ व्यक्ति।
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पूतरा  : पुं० [स्त्री० पूतरी]=पुतला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पूत (बेटा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूतरी  : स्त्री०=पुतली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूता  : स्त्री० [सं० पूत+टाप्] दुर्गा। वि० स्त्री०=शुद्ध। पवित्र। पुं० [सं० पुत्र, हिं० पुत्र, हिं० पूत] पुत्र। बेटा। प्रायः सम्बोधन कारक में प्रयुक्त)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूतात्मा (त्मन्)  : वि० [पूत-आत्मन्, ब० स०] पवित्रात्मा। शुद्ध अंतःकरण का। पुं० विष्णु।
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पूति  : स्त्री० [सं०√पू+क्तिन्, कितच्] १. पवित्रता। शुचिता। २. दुर्गंध। ३. गंध-मार्जार। ४. रोहित तृण। ५. घावों, फोड़ों आदि में विषाक्त कीटाणुओं आदि के उत्पन्न होने के कारण उनका सड़ने-लगना जो प्रायः रोगी के लिए घातक सिद्ध होता है। सड़ायँध (सेप्टिक)
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पूतिक  : पुं० [सं० पूति√कै (भासित होना)+क] १. दुर्गंध। करंज। काँटा करंज। पूति करंज। २. पाखाना। विष्ठा। वि० १. जिसमें से दुर्गंध निकल रही हो। बदबूदार। २. (घाव) जिसमें विषाक्त कीटाणुओं के कारण सड़ायँध उत्पन्न कर सकता हो। (सेप्टिक, अन्तिम दोनों अर्थों के लिए)
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पूति-कन्या  : स्त्री० [मध्य० स०] पुदीना।
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पूति-करंज  : पुं० [मध्य० स०] फसल के रक्षार्थ प्रायः मेड़ों पर लगाया जानेवाला एक क्षुप जिसमें बहुत अधिक काँटे होते हैं। काँटा-करंज।
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पूति-कर्ण, पूति-कर्णक  : पुं० [ब० स०] [ब० स०+कप्] कान का एक रोग जिसमें अन्दर घाव या फुंसी होने के कारण बदबूदार पीब निकलता है।
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पूतिका  : स्त्री० [सं० पूतिक+टाप्] १. पोई का साग। २. एक प्रकार की मधुमक्खी। ३. बिल्ली।
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पूतिका-मुख  : पुं० [ब० स०] घोंगा। शंबूक।
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पूति-काष्ठ  : पुं० [कर्म० स०] देवदारु।
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पूतिकाष्ठक  : पुं० [पूतिकाष्ठ+कन्] धूपसरल।
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पूतिकाह्र  : पुं० [सं० पूतिक-आह्रा, ब० स०] पूति करंज। (दे०)
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पूति-कीट  : पुं० [मध्य० स०] एक तरह की मधुमक्खी। पूतिका।
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पूति-कुंड  : पुं० [ष० त०] आज-कल एक प्रकार का गड्ढा या कुंड जो गृहस्थों के घर के पास मल-मूत्र इकट्ठा करने के लिए बनाया जाता है। (सेप्टिक टैंक) विशेष—ऐसे कुंडों की आवश्यकता उन्हीं नगरों या स्थानों में होती है जहाँ मल-मूत्र वहन करनेवाले नल नहीं होते।
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पूति-केशर  : पुं० [ब० स०] १. नागकेशर। २. गंध-मार्जार। मुश्क-बिलाव।
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पूति-गंध  : पुं० [ब० स०] १. राँगा। २. हिगोट। इंगुदी ३. गंधक। ४. दुर्गंध। वि० दुर्गंधवाला। बदबूदार।
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पूतिगंधा  : स्त्री० [सं० पूतिगंध+टाप्] एक प्रसिद्ध क्षुप जिसके गुच्छों में काले-काले फूल लगते हैं तथा जिसके बीज उग्रगंध वाले होते हैं और दवा के काम आते हैं। बकुची।
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पूति-गंधि (क)  : वि० [ब० स०,+कप्] दुर्गंधवाला। बदबूदार।
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पूतिगंधिका  : स्त्री० [सं० ब० स०, कप्,+टाप्, इत्व] १. दे० ‘पूतगंधा’। २. पोय का शाक। पूतिका।
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पूतिघास  : पुं० [सं० पूति√घस् (खाना)+अण्] सुश्रुत में वर्णित एक तरह का जंतु।
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पूति-दला  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] तेजपत्ता।
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पूति-नस्य  : पुं० [कर्म० स०] पीनस रोग।
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पूति-नासिका  : वि० [ब० स०] पीनस रोग से पीड़ित।
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पूति-पत्र  : पुं० [ब० स०] १. सोनापाठा। २. पीला लोध।
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पूति-पत्रिका  : स्त्री० [ब० स०, कप्,+टाप्, इत्व] प्रसारिणी लता। परसन।
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पूति-पर्ण (क)  : पुं० [ब० स०] [ब० स०, कप्] पूति-करंज। (दे०)
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पूति-पलल्वा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] बड़ा करेला।
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पूति-पुष्प  : पुं० [ब० स०] इँगुदी वृक्ष। गोंदी। हिंगोट।
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पूति-फल  : पुं० [ब० स०] बकुची। सोमराजी।
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पूतिफला, पूतिफली  : स्त्री० [सं० पूतिफल+टाप्] [सं० पूतिफल+ङीष्] बावची।
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पूति-बर्बर  : स्त्री० [कर्म० स०] बनतुलसी। जंगली तुलसी। काली बर्बरी।
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पूति-भाव  : पुं० [ष० त०] सड़ने की क्रिया या भाव। सड़ायँध।
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पूति-मज्जा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] गोंदी। इंगुदी वृक्ष।
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पूति-मयूरिका  : स्त्री० [पूति-मयूरी, उपमि० स०+ क+ टाप्, ह्रस्व] अजवायन की तरह का एक पौधा। वि० दे० ‘अजमोदा’।
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पूतिभाव  : पुं० [सं०] एक गोत्र प्रवर्त्तक ऋषि।
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पूतिमुद्गल  : स्त्री० [सं०] रोहिष तृण।
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पूति-मूषिका  : स्त्री० [कर्म० स०] छछूँदर।
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पूति-मृत्तिक  : स्त्री० [ब० स०] पुराणानुसार इक्कीस नरकों में से एक नरक का नाम।
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पूति-मेद  : पुं० [ब० स०] दुर्गंध खैर। अरिमेद।
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पूति-योनि  : पुं० [ब० स०] एक तरह का योनि-रोग।
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पूति-रक्त  : पुं० [ब० स०] एक रोग जिसमें नाक में से दुर्गंध युक्त रक्त निकलता है।
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पूति-रज्जु  : स्त्री० [ब० स०] एक प्रकार की लता।
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पूति-वक्त  : वि० [ब० स०] जिसके मुँह से दुर्गन्ध निकलती हो।
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पूति-वात  : पुं० [ब० स०] १. बेल का पेड़। २. गंदी वायु। ३. पाद।
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पूति-वृक्ष  : पुं० [कर्म० स०] सोनापाठा।
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पूति-व्रण  : पुं० [कर्म० स०] ऐसा फोड़ा जिसमें निकलनेवाला मवाद अत्यधिक दुर्गंधयुक्त होता है।
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पूति-शाक  : पुं० [कर्म० स०] अगस्त। वक वृक्ष।
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पूति-शारिजा  : स्त्री० [कर्म० स०] बनबिलाव।
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पूती  : स्त्री० [सं० पोत=गट्ठा] १. गाँठ के रूप में होनेवाली पौधों की जड़। २. लहसुन आदि की गाँठ।
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पूतीक  : पुं० [सं०=पूतिक, पृषो० सिद्धि] १. पूतिकरंज (दे०) २. गंध मार्जार।
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पूतीकरंज  : पुं० [सं०=पूतिकञ्ज्, पृषो० सिद्धि] पूतिकरंज। (दे०)
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पूतीकरण  : पुं० [सं०=पूत+च्वि√कृ+ल्युट—अन] पूत अर्थात् पवित्र या शुद्ध करने की क्रिया, प्रणाली या भाव। (प्योरिफिकेशन)
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पूतीका  : स्त्री० [सं०=पूतिक, पृषो० सिद्धि] पोई। पूतिका। शाक।
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पूत्कारी  : स्त्री० [सं०] १. सरस्वती। २. नाग-लोक की राजधानी।
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पूत्यंड  : पुं० [सं० पूति-अंड, ब० स०] १. कस्तूरी मृग। २. एक बदबूदार कीड़ा। गंध-कीट।
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पूथ  : पुं०=पूथा।
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पूथा  : पुं० [देश०] बालू का ऊँचा टीला या ढूह।
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पूथिका  : स्त्री० [सं०=पूतिका, पृषो० सिद्धि] पोई नामक पौधा और उसकी पत्ती।
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पूदना  : पुं० [देश०] भूरे रंग का एक प्रकार का पक्षी जो प्रायः जमीन पर चला करता है; और घास-फूस का घोसला बनाकर रहता है। पुं०=पुदीना।
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पून  : पुं० [देश०] जंगली बादाम का पेड़ जो पाकिस्तान के पश्चिमी किनारों पर होता है। इसके फूल और पत्तियाँ दोनों दवा के काम आती हैं। इसमें से एक प्रकार का गोंद भी निकलता है। पुं०=पूर्ण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [सं०] नष्ट।
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पूनना  : पुं० [देश०] १. कलपून या पून नाम का सदा बहार पेड़। २. एक तरह की ईख। स०=पुनना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूनव  : स्त्री०=पूर्णिमा।
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पून-सलाई  : स्त्री० [हिं० पूनी+सलाई] लोहे की सींक अथवा बेंत, नरसल आदि की वह छोटी पतली नली या पोर जिस पर रूई लपेटकर पूनी बनाई जाती है।
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पूनाक  : पुं० [देश०] तिलों में से तेल निकाल लिए जाने पर बच रहनेवाली सीठी। खली।
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पूनिउँ  : स्त्री०=पूनो (पूर्णिमा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूनी  : स्त्री० [सं० पिंजिका] १. चरखे पर सूत कातने के उद्देश्य से बनाई हुई सलाई आदि पर लपेटकर रूई की बत्ती। २. वह बहुत लम्बी रूई की बत्ती जिससे मशीनों पर सूत काता जाता है।
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पूनो  : स्त्री० [सं० पूर्णिमा] किसी महीने के शुक्ल पक्ष का अन्तिम दिन। पूर्णिमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पून्यो  : स्त्री०=पूनो (पूर्णिमा)।
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पूप  : पुं० [सं०√पू (पवित्र करना)+पक्] एक तरह की मीठी पूरी। वि० दे० ‘पूआ’।
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पूपला  : स्त्री० [सं०पूप√ला (लेना)+क+टाप्] पूआ नामक पकवान।
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पूपली  : स्त्री० [सं० पूपल+ङीष्] छोटा पूआ।
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पूपशाला  : स्त्री० [ष० त०] वह स्थान जहाँ पूप आदि पकवान बनते या बनने पर रखे जाते हैं।
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पूपाली  : स्त्री० [सं० पूप√अल् (पर्याप्त होना)+अच्+ ङीष्] पूआ।
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पूपाष्टका  : स्त्री० [सं० पूप-अष्टका, मध्य० स०] पूस के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, इस दिन मालपूओं से श्राद्ध करने का विधान है।
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पूपिक  : पुं० [सं० पूप+ठन्—इक] पूआ।
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पूय  : पुं० [सं०√पूय (दुर्गन्ध करना)+अच्] फोड़े में से निकलनेवाला सफेद गाढ़ा तरल पदार्थ। पीप।
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पूय-कुंड  : पुं० [ष० त०] १. पुराणानुसार एक नरक का नाम। २. दे० ‘पुतिकुंड’।
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पूय-दंत  : पुं० [ब० स०] दाँतों का एक विशिष्ट रोग जिस में मसूढ़ों में से मवाद निकलता है। (पायरिया)।
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पूयन  : पुं० [सं०√पूय+ल्युट्—अन] १. पूय। मवाद। २. प्राणी या वनस्पति के अंग का इस प्रकार गलना या सड़ना कि उसमें से दुर्गन्ध आने लगे। सड़न। (प्यूट्रिफिकेशन)।
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पूय-प्रमेह  : पुं० [सं० ब० स०] वैद्यक में एक प्रकार का प्रमेह जिसमें मूत्र पीप की तरह गाढा और दुर्गन्धमय होता है।
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पूयभुक् (ज्)  : वि० [सं० पूय√भुज् (खाना)+क्विप्] सड़ा मुर्दा खानेवाला।
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पूय-मेह  : पुं० [ब० स०] पूय-प्रमेह।
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पूय-रक्त  : पुं० [ब० स०] १. रक्तपित्त की अधिकता अथवा सिर पर चोट लगने के कारण नाक में से पीप मिला हुआ लहू निकलने का एक रोग। २. नाक में से निकलनेवाला पीब मिला हुआ रक्त।
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पूयवह  : पुं० [सं० पूय√वह् (बहना)+अण्] एक नरक।
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पूय-शोणित  : पुं०=पूय-रक्त। (दे०)
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पूय-स्राव  : पुं० [ब० स०] सुश्रुत के अनुसार आँखों का एक रोग जिसमें उसका संधिस्थान पक जाता है और उसमें से पीब बहने लगता है।
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पूयारि  : पुं० [पूय-अरि, ष० त०] नीम।
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पूयालस  : पुं० [पूय-अलस, ब० स०] आँखों का एक लोग जिसमें उसकी पुतली के संधिस्थल में से पीब निकलने लगता है।
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पूयोद  : पुं० [पूय-उदक, ब० स०, उदादेश] एक नरक का नाम।
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पूर  : पुं० [हिं० पूरना=भरना] १. कोई काम पूरा करने की क्रिया या भाव। मुहा०—पूर देना=किसी बात का अन्त या समाप्ति करना। उदा०—दुइ सुत मारेउ दहेउ अजहुँ पूर पिय देहु।—तुलसी। २. वे मसाले या दूसरे पदार्थ जो किसी पकवान के अन्दर भरे जाते हैं। जैसे—समोसे का पूर। ३. नदियों आदि में आनेवाली बाढ़। वि०=पूर्ण। पुं० [सं०√पूर (दुर्गन्ध करना)+क] १. दाह अगर। दाहागुरु। २. बाढ़। ३. घाव का पूरा होना या भरना। ४. प्राणायाम में पूरक क्रिया। वि० दे० ‘पूरक’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरक  : वि० [सं०√पूर्+णिच्+ण्वुल्—अक] १. पूर्ति करनेवाला। कमी, त्रुटि आदि पर दूर करनेवाला। २. (अंश या मात्रा) जिसके योग से किसी दूसरे तत्त्व या बात में पूर्णता आती हो या किसी प्रकार की पूर्ति होती हो। संपूरक। (कॉम्लिमेन्टरी) ३. किसी के सामने आकर उसकी बराबरी या सामना कर सकनेवाला। उदाहरण-पूरक है तेरा यहाँ एक युधिष्ठिर ही।—मैथिलीशरण। दे० ‘संपूरक’। पुं० १. प्राणायाम विधि के तीन भागों में से पहला भाग जिसमें श्वास को नाक से खींचते हुए अन्दर की ओर ले जाते हैं। २. वे दस पिंड जो हिदुओं में किसी के मरने पर उसके मरने की तिथि से दसवें दिन तक नित्य दिये जाते हैं। कहते हैं कि जब शरीर जल जाता है तब इन्हीं पिंडों से मृत व्यक्ति का पारलौकिक शरीर फिर से बनता है। ३. गणित में वह अंक जिसके द्वारा गुणा किया जाता है। गुणक अंक। ४. बिजौरा नींबू। ५. दे० ‘समायोजक’।
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पूरण  : पुं० [सं०√पूर+णिच्+ल्युट्—अन] [वि० पूरणीय] १. पूरा करने की क्रिया। २. अवकाश, रिक्त स्थान आदि में किसी को बैठना या रखना। पूर्ति करना। ३. कान आदि में तेल डालने की क्रिया। ४. अंकों का गुणा करना। ५. मृतक के दसवें दिन दिया जानेवाला पिंड जो मृतक के पर-लोक-गत शरीर को पूरा करनेवाला माना जाता है। ६. वर्षा। वृष्टि। ७. केवटी। मोथा। ८. पुल। सेतु। ९. समुद्र। १॰. गदह-पूरना। पूनर्नवा। ११. वैद्यक में वात के प्रकोप से होनेवाला एक प्रकार का फोड़ा या व्रण। वि० [सं०√पूर+णिच्+ल्यु—अन] पूरा करनेवाला। पूरक।
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पूरणी  : स्त्री० [सं० पूरण+ङीप्] सेमर। शाल्मकी वृक्ष।
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पूरणीय  : वि० [सं०√पूर+अनीयर्] १. जो पूर्ण किये जाने के योग्य हो। २. भरे जाने के योग्य।
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पूरन  : वि० [सं० पूर्ण] पूर्ण। पूरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० कचौरी, समोसे आदि पकवानों के बीच में भरा जानेवाला मसाला या और कोई वस्तु। पूर। पुं० [हिं० पूर] १. जलाशय, नदी आदि की बाढ़। २. नदी की धारा या प्रवाह।
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पूरन-काम  : वि०=पूर्ण-काम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [सं० पूर्णकाम] जिसकी इच्छाएँ पूर्ण हो चुकी हों।
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पूरन-परब  : पुं० [सं० पूर्णपर्व] पूर्णमासी।
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पूरन-पूरी  : स्त्री० [सं० पूर्ण+हिं० पूरी] एक प्रकार की मीठी कचौरी या पूरी जिसके अन्दर पूर भरा रहता है।
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पूरनमासी  : स्त्री०=पूर्णिमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरना  : स० [सं० पूरण] १. कमी या त्रुटि दूर करना या पूरी करना। पूर्ति करना। २. किसी के अन्दर कोई चीज अच्छी तरह से भरना। उदा०—सतगुरु साँचा सूरमा नखसिख मारे पूर।—कबीर। ३. आच्छादित करना। ढाँकना। ४. (अभिलाषा या मनोरथ) पूर्ण और सफल करना। ५. आवश्यक और उपयुक्त स्थान पर रखना या लगाना। उदा०—हरि रहीम ऐसी करी ज्यों कमान सर पूर।—रहीम। ६. सूत आदि की कोई चीज बटकर तैयार करना। जैसे—पूनी पूरना, सेवई पूरना। ७. कपड़ा बुनने से पहले ताने के सूत फैलाना। ८. मंगल अवसरों पर आटे, अबीर आदि से देवताओं के पूजन आदि के लिए तिकोने, चौखूँटे आदि क्षेत्र बनाना। चौंक बनाना। जैसे—चौक पूरना। ९. शंख बनाने के लिए मुँह से फूँककर उसमें हवा भरना और फलतः उसे बजाना। जैसे—शंख पूरना। अ० १. पूरा होना। २. किसी चीज से भरा जाना या व्याप्त होना। ३. पूरा या समाप्त होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरनिमा  : स्त्री०=पूर्णिमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरब  : पुं० [सं० पूर्व] १. वह दिशा जिसमें सूर्य का उदय होता है। पूर्व। प्राची। २. उक्त दिशा में स्थित कोई क्षेत्र या प्रदेश। जैसे—पूरब में रहनेवाला व्यक्ति। वि०=पूर्व। क्रि० वि०=पूर्व।
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पूरबल  : पुं० [सं० पूर्व+वेला] १. पुराना जमाना। २. इस जन्म से पहलेवाला जन्म। पूर्व जन्म।
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पूरबला  : वि० [सं० पूर्व, हिं०+ला (प्रत्य०)] [स्त्री० पूरबली] १. पुराने जमाने से संबंधित। २. पूर्व जन्म-संबंधी।
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पूरबली  : स्त्री० [हिं० पूरबला] पूर्व जन्म का कर्म।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरबिय  : पुं० [हिं० पूरब] पूरब अर्थात् पूर्वी भू-भाग या पूर्वी प्रान्त में रहनेवाला व्यक्ति। वि०=पूरबी।
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पूरबी  : वि० [हिं० पूरब+ई (प्रत्य०)] १. पूरब का। पूरब संबंधी। २. पूर्व दिशा से आनेवाला। जैसे—पूरबी हवा। ३. जिसमें पूर्व देश के लक्षण, विशेषताएँ आदि हों। जैसे—पूरबी दादरा, पूरबी हिंदी, पूरबी पहनावा। पुं० १. एक प्रकार का दादरा जो बिहारी भाषा में होता और बिहार प्रान्त में गाया जाता है। २. एक प्रकार का तमाकू। स्त्री०=पूर्वी (रागिनी)।
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पूरयितव्य  : वि० [सं०√पूर+णिच्+तव्यत्] जिसे पूरा या पूर्ण करना आवश्यक या उचित हो। पूरणीय।
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पूरयिता (तृ)  : पुं० [सं०√पूर्+णिच्+तृच्] १. पूर्णकर्ता। पूरक। पूर्ण करनेवाला। २. विष्णु का एक नाम।
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पूरा  : वि० [सं० पूर्ण] [स्त्री० पूरी] १. जिसके अन्दरवाले अवकाश में कुछ भी स्थान खाली न बचा हो। जिसका भीतरी भाग अच्छी तरह भर चुका हो। परिपूर्ण। जैसे—पूरा भरा हुआ कमरा या घड़ा। २. जितना आवश्यक, उचित या संभव हो, उतना। भरपूर। यथेच्छ। यथेष्ट। जैसे—यहाँ सब चीजें पूरी हैं, किसी चीज की कमी नहीं होगी। मुहा०—पूरा पड़ना=जितनी आवश्यकता हो, उतना होना। यथेष्ट होना। जैसे—तुम्हारा तो सौ रूपये में भी पूरा नहीं पड़ेगा। ३. समग्र। समूचा। सारा। कुल। जैसे—(क) उन्होंने पूरा जंगल ठेके पर ले लिया है। (ख) यह पूरा मकान किराये पर दिया जायेगा। ४. जो आकार, घनता, विस्तार आदि के विचार से अच्छी तरह विस्तृत या व्याप्त हो चुका हो। जैसे—पूरा जवान, पूरा जोर, पूरी तेजी। ५. जिसमें कोई कमी या कोर-कसर न हो या न रह गई हो। पक्का। जैसे—(क) अब वह अपने काम में पूरा होशियार हो गया है। (ख) अब तो वह हमारा पूरा दुश्मन हो गया है। पद—किसी काम या बात का पूरा=अच्छी तरह से निर्वाह या पालन कर सकने के योग्य या कर सकनेवाला। जैसे—(क) बात या वचन का पूरा। (ख) गुण या विद्या का पूरा। ६. (काम) जो क्रिया रूप में लाकर अन्त या समाप्ति तक पहुँचा दिया गया हो। पूर्ण रूप से कृत संपन्न या संपादित। जैसे—(क) साल भर में यब पुस्तक पूरी हुई है। (ख) जब तक काम पूरा न हो जायगा, तब तक वह दम (या साँस) न लेगा। मुहा०—(कोई काम) पूरा उतरना=ठीक तरह से संपन्न या संपादित होना। जैसे—रहने दो, तुमसे यह काम पूरा नहीं उतरेगा। ७. (बात) जो कार्यरत या व्यावहारिक रूप से ठीक सिद्ध हो। जैसे— तुम्हारा कहना पूरा होकर ही रहेगा। मुहा०— (कथन) पूरा करना=ठीक या सत्य सिद्ध होना। जैसे—तुम्हारी भविष्यवाणी पूरी उतरी। पूरा पाना=अपने उद्देश्य या प्रयत्न की सिद्धि में सफल होना। उदा०—नाच्यौ नाचलच्छ चौरासी कबहुँन पूरौ पायौ।—सूर। ८. (समय) व्यतीत करना। बिताना। जैसे—(क) हम भी यहाँ अपने दिन पूरे कर रहे हैं; अर्थात् किसी प्रकार समय बिता रहे हैं। (ख) पांडवों ने अज्ञातवास की अवधि भी पूरी कर ली। मुहा०—(किसी के) दिन पूरे होना=अवधि, आयु आदि का अन्त या समाप्ति तक पहुँचना। (गर्भवती के) दिन पूरे होना=गर्भ-धारण का समय समाप्ति पर होना और प्रसव का समय समीप आना। ८. (कामना या इच्छा) संतोषजनक रूप में सफल या सिद्ध होना। जैसे—अब हमारी सभी वासनाएँ पूरी हो चुकी हैं; हमें कुछ नहीं चाहिए। ९. अवस्था या वय में यथेष्ट मान तक पहुँचा हुआ। वयस्क। जैसे—कच्चा तो कचौरी माँगे, पूरी माँगे पूरा।—(कहा०) क्रि० वि० पूर्ण रूप से। पूरी तरह से। जैसे—यह घड़ा पूरा भर दो।
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पूराम्ल  : पुं० [सं०पूर-अम्ल, ब० स०] १. इमली। २. अम्लबेंत।
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पूरिका  : स्त्री० [सं० पूरक+टाप्, इत्व] आटे आदि की बनी हुई पूरी।
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पूरित  : भू० कृ० [सं०√पूर+णिच्+क्त] १. पूर्ण किया या भरा हुआ। परिपूर्ण। लबालब। २. तृप्त। ३. गुणित। गुणा किया हुआ।
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पूरिया  : पुं० [देश०] संध्या के समय गाया जानेवाला षाड़व जाति का एक राग। इसमें पंचम स्वर वर्जित है।
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पूरिया-कल्याण  : पुं० [हिं० पूरिया+कल्याण (राग)] रात के पहले पहर में गाया जानेवाला संपूर्ण जाति का एक संकर राग।
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पूरी  : स्त्री० [सं० पूलिका] १. एक प्रकार का प्रसिद्ध पकवान जिसे साधारण रोटी आदि की तरह बेलकर खौलते घी या तेल में छानकर पकाते हैं। २. ढोल, तबले, मृदंग आदि में वह गोलाकार चमड़ा जो उनके मुँह पर मढ़ा रहता है और जिस पर आघात होने से वे बजते हैं। क्रि० प्र०—चढ़ाना।—मढ़ना। वि० हिं० ‘पूरा’ का स्त्री०। (मुहा० के लिए दे० ‘पूरा’) वि० [सं० पूरिन्] पूरा करनेवाला। पूरक। स्त्री० घास आदि का छोटा पूला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूरु  : पुं० [सं०√पृ (पूर्ति)+कु] १. मनुष्य। २. राजा ययाति के पुत्र का नाम। ३. वैराज मनु के एक पुत्र। ४. जदु के एक पुत्र। ५. एक राक्षस।
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पूरुजित  : पुं० [सं० पूरु√जि (जीतना)+क्विप्] विष्णु।
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पूरुब  : पुं०=पूरब।
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पूरुष  : पुं० [सं०√पूर+उषन्] १. पुरुष। २. आत्मा।
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पूर्ण  : वि० [सं०√पूर+क्त, त—न] १. (आधान या पात्र) जो पूरी तरह से भरा हुआ हो। जिसमें काम का कोई अवकाश या स्थान खाली न रह गया हो। जैसे—जल से पूर्ण घट। २. लाक्षणिक रूप में, किसी तत्त्व या बात से भरा हुआ पूरी तरह से युक्त। जैसे—शोक-पूर्ण समाचार, हर्ष-पूर्ण सामारोह। ३. सब प्रकार की यथेष्टता के कारण जिसमें कुछ भी अपेक्षा, अभाव या आवश्यकता न रह गई हो। जितना आवश्यक या उचित हो, उतना सब। जैसे—धन-धान्य से पूर्ण गृहस्थी या परिवार। ४. (आवश्यक या इच्छा) जिसके पूरे होने में कोई कसर या सन्देह न रह गया हो। हर प्रकार से तृप्त और संतुष्ट। जैसे—आपने मेरी सभी कामनाएँ पूर्ण कर दी। ५. सब का सब। पूरा। समूचा। सारा। समस्त। संपूर्ण। जैसे—पूर्ण योजना सफल हो गई। ६. जिसमें किसी आवश्यक अंग या संयोजक तत्त्व का ठीक अभाव न हो। हर तरह से ठीक और पूरा। जैसे—पूर्ण उपमा अलंकार। ८. (उद्देश्य या प्रयत्न) सफल। सिद्ध। जैसे—आज आपका संकल्प पूर्ण हुआ। ९. जो अपनी अवधि या सीमा के सिरे पर पहुँच गया हो। जैसे—आयु पूर्ण होना, दंड की अवधि पूर्ण होना। पुं० १. प्रचुरता। बाहुल्य। २. जल। पानी। ३. विष्णु का एक नाम। ४. बौद्ध कथाओं के अनुसार मैत्रायणी का एक पुत्र।
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पूर्ण-अतीत  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. संगीत में ताल का वह स्थान जो ‘सम अतीत’ के एक मात्रा के बाद आता है। यह स्थान भी कभी-कभी सम का काम देता है।
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पूर्णक  : पुं० [सं० पूर्ण+कन्] १. मुर्गा। कुक्कुट। २. देवताओं की एक योनि। ३. दे० ‘पूर्ण’।
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पूर्ण-कलानिधि  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्ण-काम  : वि० [ब० स०] १. जिसकी कामनाएँ पूर्ण या पूरी हो चुकी हो। २. कामना-रहित। निष्काम। पुं० परमेश्वर।
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पूर्ण-काश्यप  : पुं० [कर्म० स०] उन छः तीर्थिकों में से एक जिन्हें भगवान् बुद्ध ने शास्त्रार्थ में पराजित किया था। कहते हैं कि इसी दुःख में ये अपने गले में बालू भरा घड़ा बाँधकर डूब मरे थे।
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पूर्णकुंभ  : पुं० [कर्म० स०] १. जल से भरा हुआ घड़ा जो मांगलिक और शुभ माना जाता है। पूर्ण घट। २. घड़े के आकार का दीवार में बनाया जानेवाला छेद। ३. एक तरह का युद्ध।
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पूर्णकोशा  : स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] एक प्रकार की लता जो ओषधि के काम आती है।
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पूर्णकोषा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] १. कचौरी। २. प्राचीन काल में जौ के आटे से बननेवाला एक प्रकार का पकवान। ३. दे० ‘पूर्णकोशा’।
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पूर्णकोष्ठा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] नागरमोथा।
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पूर्णगर्भा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] १. वह स्त्री जिसे शीघ्र प्रसव होने की संभावना हो। वह स्त्री जिसके गर्भ के दिन पूरे हो चले हों। २. कचौरी, जिसमें पीठी आदि भरी रहती हैं। ३. पूरन-पूरी नाम का पकवान।
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पूर्णघट  : पुं०=पूर्ण-कुंभ।
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पूर्णचंद्र  : पुं० [कर्म० स०] पूर्णिमा का चन्द्रमा जो अपनी सब कलाओं से पूर्ण या युक्त रहता है।
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पूर्ण-चंद्रिका  : पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्णतः  : अव्य० [सं० पूर्ण+तस्] पूरी तरह से। पूर्णतया।
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पूर्णतया  : अव्य० [सं० पूर्णता की तृ० विभक्ति का रूप] पूरी तरह से। पूण रूप से।
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पूर्णता  : स्त्री० [सं० पूर्ण+तल्+टाप्] १. पूर्ण होने की अवस्था या भाव। २. ऐसी स्थिति जिसमें किसी प्रकार का अभाव, कमी या त्रुटि न हो। (परफेक्शन)।
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पूर्ण-परिवर्तक  : पुं० [कर्म० स०] वह जीव जो अपने जीवन में अनेक बार रूप आदि बदलता हो। जैसे—कीड़े-मकोड़े, तितली, मेढक आदि।
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पूर्णपर्वेंदु  : पुं० [पूर्ण-पर्व-इंदु, ब० स०] पूर्णिमा। पूर्णमासी।
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पूर्णपात्र  : पुं० [कर्म० स०] १. वह घड़ा जो प्राचीन काल में चावलो से भरकर होम या यज्ञ के अन्त में दक्षिणा के रूप में पुरोहित को दिया जाता था। इसमें साधारणतः २५६ मुट्ठी चावल हुआ करता था। २. उक्त के आधार पर २५६ मुट्ठियों की एक नाप। ३. पुत्र-जन्म आदि शुभ अवसरों पर शुभ संवाद सुनानेवाले लोगों को बाँटे जानेवाले कपड़े और गहने।
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पूर्णप्रज्ञ  : वि० [ब० स०] १. जिसकी बुद्धि में कोई कमी या त्रुटि न हो। २. बहुत बड़ा बुद्धिमान। ३. पूर्ण ज्ञानी। पुं० पूर्ण प्रज्ञदर्शन के कर्ता मध्वाचार्य जो वैष्णव मत के संस्थापक आचार्यों में माने जाते हैं। हनुमान और भीम के बाद ये वायु के तीसरे अवतार कहे गये हैं। इनका एक नाम आनन्दतीर्थ भी है।
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पूर्णप्रज्ञदर्शन  : पुं० [ष० त०] सर्वदर्शन संग्रह के अनुसार एक दर्शन जिसके प्रवर्तक पूर्णप्रज्ञ या मध्वाचार्य हैं। इसके अधिकतर सिद्धान्त रामानुज दर्शन के सिद्धान्तों से मिलते हैं।
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पूर्णबीज  : पुं० [ब० स०] बिजौरा नींबू।
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पूर्णभद्र  : पुं० [कर्म० स०] १. स्कंद पुराण के अनुसार हरिकेश नामक यक्ष के पिता। २. एक नाग का नाम।
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पूर्णभेदी (दिन्)  : पुं० [सं०पूर्ण√भिद् (विदारण)+णिनि ] एक प्रकार का पौधा।
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पूर्णमा  : स्त्री० [सं०पूर्ण√मा (मापना)+क+टाप्] पूर्णिमा। पूर्णमासी।
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पूर्णमानस  : वि० [ब० स०] जो मन से भली भांति संतुष्ट हो।
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पूर्णमास  : स्त्री० [ब० स०] १. चन्द्रमा। २. [पूर्णमासी+अच्] प्राचीन काल में पूर्णिमा को किया जानेवाला एक तरह का यज्ञ।
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पूर्णमासी  : स्त्री० [सं० पूर्णमास+ङीष्] शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि जिसमें चन्द्रमा अपनी सोलहों कलाओं से युक्त होता है। पूर्णिमा। पूनो।
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पूर्ण-मैत्रायनी पुत्र  : पुं० [सं० मैत्रायनी-पुत्र, ष० त०, पूर्ण-मैत्रायनी पुत्र, कर्म० स०] बुद्ध भगवान् के अनुचरों में से एक जो पश्चिम भारत के सुरपाक नामक स्थान में रहते थे।
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पूर्णयोग  : पुं० [ब० स०] प्राचीन भारत में एक प्रकार का बाहुयुद्ध। भीम और जरासंघ में यही बाहु-युद्ध हुआ था।
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पूर्णरथ  : पुं० [ब० स०] बहुत कुशल और पक्का योद्धा।
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पूर्णलक्ष्मीक  : वि० [ब० स०] लक्ष्मी या धन से भली भाँति सम्पन्न।
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पूर्णवर्मा (र्मन्)  : पुं० [सं०] महाराज अशोक के वंश के अंतिम मगध सम्राट। गौड़राज शशांक द्वारा बोधिवृक्ष के नष्ट किये जाने पर इन्होंने उसे फिर से जीवित कराया था।
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पूर्णवर्ष  : वि० [ब० स०] बीस वर्ष की अवस्था वाला नौजवान।
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पूर्णविराम  : पुं० [कर्म० स०] लिखाई, छपाई आदि में एक प्रकार का चिह्र जो वाक्य के अन्त में उसकी पूर्णता या समाप्ति जतलाने के लिए खड़ी पाई के रूप में लगाया जाता है। (फुल-स्टॉफ)
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पूर्णविषम  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में ताल का एक स्थान जो कभी कभी सम का काम देता है।
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पूर्णवैशानिक  : पुं० [कर्म० स०] वह बौद्ध जिसकी आस्था सर्वशून्य तत्त्ववाद में हो।
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पूर्णशैल  : पुं० [कर्म० स०] योगिनी तंत्र के अनुसार उल्लिखित एक पर्वत का नाम।
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पूर्ण-श्री  : वि० [ब० स०] प्रतिष्ठित, सम्पन्न तथा सुखी (व्यक्ति)।
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पूर्णहोम  : पुं० [कर्म० स०] पूर्णाहुति। (दे०)
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पूर्णांक  : पुं० [पूर्ण-अंक, कर्म० स०] १. पूरी संख्या। २. गणित में अविभक्त संख्या। ३. किसी प्रश्न-पत्र के लिए निर्धारित अंक। (फुल मार्क्स)।
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पूर्णांजलि  : वि० [पूर्ण-अंजलि, ब० स०] जितना अँजुली में आ सके, उतना। अंजुलि भर।
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पूर्णा  : स्त्री० [सं० पूर्ण+टाप्] १. चंद्रमा की पंद्रहवी कला। २. पंचमी, दसमी, अमावस और पूर्णमासी की तिथियाँ। ३. दक्षिण भारत की एक नदी।
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पूर्णाघात  : पुं० [पूर्ण-आघात, कर्म० स०] संगीत में ताल का वह स्थान जो अनाघात के उपरांत एक मात्रा के बाद आता है। कभी-कभी वह स्थान भी सम का काम देता है।
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पूर्णानंद  : पुं० [पूर्ण-आनन्द, ब० स०] परमेश्वर।
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पूर्णाभिलाष  : वि० [पूर्ण-अभिलाष, ब० स०] १. जिसकी अभिलाषा पूरी हो चुकी हो। २. तृप्त। संतुष्ट।
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पूर्णाभिषिक्त  : भू० कृ० [पूर्ण-अभिषिक्त, कर्म० स०] जिसका पूर्णाभिषेक संस्कार हो चुका हो। पुं० तांत्रिकों और शाक्तों का एक भेद या वर्ग।
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पूर्णाभिषेक  : पुं० [पूर्ण-अभिषेक, कर्म० स०] वाममार्गियों का एक तांत्रिक संस्कार जो किसी नये साधन के गुरु द्वारा दीक्षित होने के समय किया जाता है। अभिषेक। महाभिषेक।
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पूर्णामुता  : स्त्री० [पूर्ण-अमृता, कर्म० स०] चन्द्रमा की सोलहवीं कला।
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पूर्णायु (स्)  : वि० [पूर्ण-आयुस्, ब० स०] जिसने पूरी अर्थात् सौ वर्षो की आयु पाई हो। स्त्री० [पूर्ण-अवतार, कर्म० स०] १. पूरी आयु। सारा जीवन। २. सौ वर्षों की आयु।
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पूर्णावतार  : पुं० [पूर्ण-अवतार, कर्म० स०] अंशावतार से भिन्न ऐसा अवतार जो किसी देवता की संपूर्ण कलाओं से युक्त हो। सोलहों कलाओं से युक्त अवतार।
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पूर्णाशा  : स्त्री० [पूर्ण-आशा, ब० स०+टाप्] महाभारत में उल्लिखित एक नदी।
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पूर्णाहुति  : स्त्री० [पूर्ण-आहुति, कर्म० स०] १. यज्ञ की समाप्ति पर दी जानेवाली आहुति। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी कार्य की समाप्ति के समय होनेवाला अन्तिम कृत्य।
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पूर्णि  : स्त्री० [सं०√पू+णिङ्] पूर्णिमा।
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पूर्णिका  : स्त्री० [सं० पूर्णि+कन्+टाप्] एक प्रकार की चिड़िया जिसकी चोंच का दोहरा होना माना जाता है। नासाच्छिनी पक्षी।
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पूर्णिमांत  : पुं० [सं०] गौण चांद्रमास का दूसरा नाम।
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पूर्णिमा  : स्त्री० [सं० पूर्णि√मा (मापना)+क+टाप्] चांद्रमास के शुक्ल पक्ष की अन्तिम तिथि जिसमें चन्द्रमा अपने पूरे मंडल से उदय होता है। पूर्णमासी।
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पूर्णमासी  : स्त्री०=पूर्णिमा।
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पूर्णेंदु  : पुं० [पूर्ण-इन्दु, कर्म० स०] पूर्णिमा का चन्द्रमा जो अपनी सोलहों कलाओं से युक्त होता है। पूर्णचन्द्र।
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पूर्णोत्कट  : पुं० [पूर्ण-उत्कट, कर्म० स०] मार्कडेय पुराण में उल्लिखित एक पूर्व देशीय पर्वत।
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पूर्णोदरा  : स्त्री० [पूर्ण-उदर, ब० स०, टाप्] एक देवी।
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पूर्णोपमा  : पुं० [पूर्ण-उपमा, कर्म० स०] उपमा अलंकार के दो मुख्य भेदों में से पहला जिसमें उपमेय, उपमान, वाचक और धर्म चारों अंग प्रकट रूप से वर्तमान रहते हैं। यथा—सुभग सुधाधर तुल्य मुख, मधुर, सुधा से बैन—पद्याकर। विशेष—इसके आर्थी और श्रौती दो भेद होते हैं।
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पूर्त  : वि० [सं०=पृ (पालन करना)+क्त] १. पूरी तरह से भरा हुआ। २. छाया या ढका हुआ। आवृत्त। ३. पालित। ४. रक्षित। पुं० १. पूर्णता। २. देवगृह, वापी आदि का बनवाना जो धार्मिक दृष्टि से उत्तम कर्म माना गया है।
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पूर्त-विभाग  : पुं० [ष० त०] आज-कल की राजकीय विभाग जो सड़कें, पुल, नहरें आदि लोकोपयोगी वास्तु-रचनाओं का निर्माण कराता है।
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पूर्त-संस्था  : स्त्री० [ष० त०] धर्मार्थ कार्यों के लिए स्थापित की हुई संस्था (चैरिटेबिल इंस्टीट्यूशन)
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पूर्ति  : स्त्री० [सं० पृ+क्ति] १. पूरे या पूर्ण होने की क्रिया या भाव। पूर्णता। २. जो वस्तु अपेक्षित, आवश्यक या कम हो, उसे लाकर प्रस्तुत करने की क्रिया। कमी पूरी करने का काम। जैसे—अभाव की पूर्ति, समस्या की पूर्ति। ३. अर्थशास्त्र में, वे वस्तुएँ जो किसी विशिष्ट मूल्य पर बिकने के लिए बाजार में आई हों। (सप्लाई)। ४. वापी, कूप या तड़ाग आदि का उत्सर्ग। ५. किसी बही, आकार-पत्र आदि के कोष्टकों में आवश्यकतानुसार कुछ लिखने या खाने भरने का काम। ६. गुणा करने की क्रिया या भाव। गुणन।
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पूर्ती (र्तिन्)  : वि० [सं० पूर्त्त+इनि] १. तृप्ति देनेवाला। २. इच्छा पूर्ण करनेवाला। ३. भरा हुआ। पूरित। पुं० श्राद्ध।
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पूर्ब  : पुं० दे० ‘पूर्व’। वि० दे० ‘पूर्व’।
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पूर्य  : वि० [सं०√पृ+क्यप् वा√पूर्+ण्यत्] १. जिसे पूरा करना आवश्यक या उचित हो। पूरणीय। २. जो पूरा किया जाने को हो। ३. (आज्ञा) जिसका पालन करना आवश्यक और उचित हो। पुं० एक प्रकार का तृण-धान्य।
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पूर्व  : वि० [सं०√पूर्व+अच्] १. जो सबसे आगे, सामने या पहले हो। २. जो किसी से पहले अस्तित्व में आया या बना हो। ३. अत्यधिक पुराना। प्राचीन। ४. किसी कृति के पहलेवाले अंश से संबद्ध। ‘उत्तर’ का विपर्याय। क्रि० वि० पहले। आगे। पुं० [सं०√पूर्व (निवास)+अच्] १. वह दिशा जिसमें से प्रातःकाल सूर्य निकलता हुआ दिखाई देता है। पश्चिम के सामने की दिशा पूरब। २. जैनों के अनुसार सात नील, पाँच खरब, साठ अरब वर्ष का एक काल-विभाग।
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पूर्वक  : अव्य० [सं०] समस्त पदों के अन्त में (क) सहित या साथ। (ख) (कोई काम) अच्छी तरह से करते हुए। जैसे—ध्यानपूर्वक, विचारपूर्वक।
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पूर्व-कर्म (न्)  : पुं० [कर्म० स०] सुश्रुत के अनुसार रोगी के सम्बन्ध में किये जानेवाले तीन कर्मों में से पहला कर्म। रोगोत्पत्ति के पहले किये जानेवाले काम।
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पूर्वकल्प  : पुं० [कर्म० स०] प्राचीन काल।
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पूर्वकल्याण  : पुं० [सं०] संगीत में एक प्रकार का राग।
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पूर्व-कल्याणी  : स्त्री० [कर्म० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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पूर्वकाय  : पुं० [एकदेशित०] शरीर का पूर्व या ऊपरी भाग। नाभि से ऊपर का भाग।
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पूर्वकाल  : पुं० [कर्म० स०] १. बीता हुआ समय। २. पुराना जमाना।
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पूर्वकालिक  : वि० [सं० पूर्व-काल, कर्म० स०,+ठन्—इक] १. जिसकी उत्पत्ति या जन्म पूर्वकाल में हुआ हो। पूर्वकाल जात। २. पूर्व समय या पुराने जमाने से संबद्ध। ३. जिसका अवस्थान या स्थिति पूर्वकाल में रही हो। पुराने जमाने का।
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पूर्वकालिक क्रिया  : स्त्री० [सं०] व्याकरण में धातु से बना हुआ वह कृदंत जो क्रिया विशेषण की तरह युक्त होता है तथा जिससे सूचित होता है कि अमुक कार्य होने के बाद ही मुख्य क्रिया द्वारा निर्देशित कार्य हुआ या होगा। यह रूप धातु में ‘कर’ लगने से बनता है। विशेष—यह घटना क्रम के विचार से होनेवाले क्रिया के दो भेदों में एक है। दूसरा भेद समापक या समापिका क्रिया कहलाता है।
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पूर्वकालीन  : वि० [सं० पूर्वकाल+ख—ईन] पुराने जमाने का। प्राचीन पुराना।
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पूर्वकृत्  : पुं० [सं० पूर्व√कृ (करना)+क्विप्] पूर्व दिशा के कर्ता सूर्य। भू० कृ० पहले किया हुआ।
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पूर्व गंगा  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] नर्मदा नदी।
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पूर्वग  : वि० [सं० पुर्व√गम् (जाना)+ड] आगे या पहले चलनेवाला। पूर्वगामी।
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पूर्वगत  : वि० [सुप्सुसा स०] १. जो पहले चला गया हो या जा चुका हो। २. बीता हुआ।
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पूर्वगामी (मिन्)  : वि० [सं० पूर्व√गम् (जाना)+णिनि ] आगे या पहले चल या निकल जानेवाला। जो पहले चला गया हो।
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पूर्वग्रस्त  : भू० कृ० [सं०] १. (बात या विषय जिसके संबंध में मन में कोई पूर्व-ग्रह हो। २. (व्यक्ति) जिसके मन में किसी बात या विषय के संबंध में कोई पूर्व-ग्रह हो। (प्रेजुडिस्ट)
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पूर्वग्रह  : पुं० [कर्म० स०] १. चिकित्सा शास्त्र में, वह सिहरन या इसी प्रकार की और कोई अनुभूति जो मिरगी आदि विकट रोगों का दौरा शुरू होने से पहले होती है। २. किसी अनिश्चित अप्रमाणित या विवादास्पद बात या विषय के संबंध में वह आग्रपूर्वक धारणा जो पहले से बिना जाने या समझे-बूझे अपने मन में स्थिर कर ली गई हो। (प्रेजुडिस)
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पूर्वचित्ति  : स्त्री० [सं०] एक अप्पसरा का नाम।
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पूर्वचेतन  : पुं० [सं०] आधुनिक मनोविज्ञान में वे अचेतन इच्छाएँ या वासनाएँ या प्रतिक्रियाएँ जो पहले से मन में सोई रहती है और सहज में चेतन अवस्था में आ सकती या आ जाती है। यह अहं का बौद्धिक अंश माना गया है। (प्रीकॉशेन्स) विशेष—अचेतन और पूर्व-चेतन में यह अन्तर किया गया है कि अचेतन तो दमित और गतिशील होता है, पर पूर्व चेतन का दमित होना आवश्यक नहीं है। यह अचेतन और चेतन के बीच की स्थिति है।
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पूर्वज  : वि० [सं० पूर्व√जन् (उत्पन्न होना)+ड] जिसकी उत्पत्ति या जन्म पूर्वजन्म में अथवा किसी के पूर्व या पहले हुआ हो। पुं० १. बड़ा भाई। अग्रज। २. बाप, दादा, परदादा आदि पूर्व पुरुष। पुरखा ३. एक प्रकार के दिव्य पितृगण जिनका निवास चन्द्रलोक में माना गया है।
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पूर्व-जन  : पुं० [कर्म० स०] पुराने समय के लोग। पुराकालीन पुरुष।
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पूर्व-जन्म (न्)  : पुं० [कर्म० स०] १. प्रस्तुत या वर्तमान से भिन्न पहले वाला कोई जन्म। २. इस जन्म से पहलेवाला जन्म। पिछला जन्म।
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पूर्वजन्मा (न्मन्)  : पुं० [ब० स०] बड़ा भाई। अग्रज।
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पूर्वजा  : स्त्री० [सं० पूर्वज+टाप्] बड़ी बहन।
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पूर्वजाति  : स्त्री० [कर्म० स०] पूर्व जन्म। पिछला जन्म।
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पूर्वजिन  : पुं० [कर्म० स०] १. अतीत जिन या बुद्ध। २. मंजुश्री का एक नाम।
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पूर्वज्ञान  : पुं० [ष० त०] १. पूर्व जन्म की बात का ज्ञान। पूर्व जन्म में अर्जित ज्ञान जो इस जन्म में भी विद्यमान हो। २. पूर्वाजित या पहले का ज्ञान। ३. आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी घटनाओं या बातों का पहले से ही परिज्ञान हो जाना जो अभी घटित न हुई हों, बल्कि भविष्य में कभी घटित होने को हों। (फोर-नॉलेज)।
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पूर्वतः (तस्)  : अव्य० [सं० पूर्व+तस्] १. पहले। २. प्रथमत। ३. सामने।
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पूर्वतन  : वि० [सं० पूर्व+ट्यु—अन, तुट्] १. पहला। २. पुराना।
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पूर्वतर  : वि० [सं० पूर्व+तरप्] [भाव० पूर्वतरता] १. पहला। २. पूर्व का।
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पूर्व-तिथि  : स्त्री० [कर्म० स०] पत्रों, लेखों आदि पर लिखी जानेवाली वह तिथि जो अभी कुछ दिन बाद आने को हो। आज की तिथि या दिनांक के बाद की कोई तिथि या दिनांक।
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पूर्वतिथित  : भू० कृ० [सं० पूर्वतिथि+णिच्+क्त] (वह) जिस पर पहले से कोई पहले की तारीख या तिथि दे या लिख दी गई हो।
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पूर्वत्र  : अव्य० [सं० पूर्व+त्रल्] १. पहले। २. पहलेवाले भाग या स्थान में।
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पूर्व-दक्षिणा  : स्त्री० [ब० स०] पूर्व और दक्षिण के बीच का कोना।
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पूर्वदत्त  : भू० कृ० [कर्म० स०] जो पहले दिया जा चुका हो। पहले का दिया हुआ (प्री-पेड)।
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पूर्वदर्शन  : पुं० [कर्म० स०] आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी घटनाएँ या बातें पहले से दिखाई देती हुई जान पड़ना जो अभी घटित न हुई हों बल्कि भविष्य में कभी घटित होने को हों। (प्रीकाग्निशन)
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पूर्वदान  : पुं० [सं०] पहले या पेशगी देना। पहले ही चुका देना है।
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पूर्वदिक्-पति  : पुं० [ष० त०] इंद्र।
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पूर्वदिक्-वदन  : पुं० [ब० स०]=पूर्व-दिगीश।
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पूर्वदिगीश  : पुं० [पूर्वदिश्-ईश, ष० त०] १. इन्द्र। २. सिंह, मेष और धनु तीनों राशियाँ।
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पूर्वदिन  : पुं० [एकदेशित०] मध्याह्र से पहले का समय।
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पूर्वदिश्य  : वि० [सं० पूर्वदिश्+यत्] पूर्व दिशा का या उससे सम्बन्ध रखनेवाला।
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पूर्वदिष्ट  : पुं० [कर्म० स०,+अच्] वे सुख-दुःख आदि जो पूर्व जन्म में किये गये कर्मों के परिणामस्वरूप भोगने पड़ें।
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पूर्वदुष्कृत  : पुं० [ष० त०] पूर्व जन्म का पाप।
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पूर्वदृष्टि  : स्त्री० [कर्म० स०] वह दृष्टि या विचार-शक्ति जिसकी सहायता से किसी होनेवाली बात के सब अंग पहले से ही देख या सोच-समझ लिये जाते हैं। (फोर साइट)।
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पूर्व-देव  : पुं० [कर्म० स०] १. नर और नारायण। २. असुर जो पहले देव या सुर थे, पर अपने दुष्कर्मों के कारण बाद में सुरों के वर्ग से अलग हो गये थे।
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पूर्वदेवता  : पुं० [कर्म० स०] पितर।
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पूर्वदेह  : स्त्री० [कर्म० स०] १. पूर्व जन्मवाला शरीर। २. शरीर का अगला भाग।
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पूर्वदेहिक, पूर्वदैहिक  : वि० [सं० पूर्व-देह, कर्म० स०,+ ठन्—इक ?] [सं० पूर्वदेह+ठक्—इक ?] पूर्व जन्म में किया हुआ।
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पूर्व-निरूपण  : पुं० [कर्म० स०] १. किसी बात का पहले से किया जानेवाला निरूपण। २. किस्मत। तकदीर। भाग।
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पूर्वन्याय  : पुं० [कर्म० स०] किसी अभियोग में प्रतिवादी का यह कहना कि ऐसे अभियोग में मैं वादी को पराजित कर चुका हूँ। यह उत्तर का एक प्रकार है।
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पूर्वपक्ष  : पुं० [कर्म० स०] १. किसी शास्त्रीय विषय के संबंध में उठाया हुआ ऐसा प्रश्न, बात या शंका जिसका दूसरे पक्ष को उत्तर देना या समाधान करना पड़े। २. व्यवहार या अभियोग में वादी द्वारा उपस्थित किया हुआ अभियोग या बात। मुद्दई का दावा। ३. चांद्रमास का कृष्णपक्ष।
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पूर्वपक्षी (क्षिन्)  : पुं० [सं० पूर्वपक्ष+इनि] १. वह जो पूर्वपक्ष उपस्थित करे। २. वह जो न्यायालय में कोई अभियोग या वाद उपस्थित करे। मुद्दई।
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पूर्वपक्षीय  : वि० [सं० पूर्वपक्ष+छ—ईय] पूर्वपक्ष संबंधी। पूर्वपक्ष का।
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पूर्वपद  : पुं० [कर्म० स०] १. यौगिक या समस्त पद में का पहले का पद। ‘उत्तर-पद’ का विपर्याय। जैसे—लोकगीत में का ‘लोक’ पूर्व-पद है। २. किसी सोपाधिक बात का पहला अंश जिस पर दूसरा अंश अवलंबित हो। ३. कोई ऐसी बात जिस पर तार्किक दृष्टि से कोई दूसरी बात अवलंबित हो। ४. काल-क्रम के विचार से पहले घटित होनेवाली ऐसी घटना जिसके फलस्वरूप बाद में कोई घटना घटित होती है।
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पूर्व-पर्वत  : पुं० [कर्म० स०] उदयाचल।
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पूर्वपाली (लिन्)  : पुं० [सं० पूर्व√पाल् (रक्षा करना)+ णिच्+णिनि] इन्द्र।
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पूर्वपितामह  : पुं० [ष० त०] १. पुरखा। पूर्वज। २. प्रपितामह। परदादा।
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पूर्वपीठिका  : स्त्री० [कर्म० स०] वह अवस्था, रूप या स्थिति जिसके आगे या सामने कोई नई स्थिति या रूप खड़ा हो। भूमिका। (बेकग्राउन्ड)
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पूर्वपुरुष  : पुं० [कर्म० स०] दादा-परदादा। पूर्वज। (फोर-फादर्स)
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पूर्व-प्रत्यय  : पुं० [कर्म० स०] वह प्रत्यय जो शब्द के पहले लगाया जाता है।
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पूर्व-प्लावनिक  : वि० [सं०] १. वैवस्वत मनु अथवा हजरत नूर के समय के प्लावन से पहले का। २. बहुत पुराना फलतः बिलकुल निकम्मा। (एन्टी-डिलूविअल)
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पूर्व-फाल्गुनी  : स्त्री० [कर्म० स०] सत्ताईस नक्षत्रों में से ग्यारहवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे हैं।
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पूर्वबंधु  : पुं० [कर्म० स०] पहले या सबसे अच्छा मित्र।
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पूर्वबाध  : पुं० [ष० त०] पहले के निश्चय को स्थगित या रद्द करना।
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पूर्वबाहु  : स्त्री० [एकोशित] कोहनी से आगे का वह भाग जिसमें कलाई और पंजा होता है। (फोर आर्म)
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पूर्वभक्षिका  : स्त्री० [कर्म० स०] प्रातःकाल किया जानेवाला भोजन। जलपान। नाश्ता।
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पूर्वभाद्रपद  : पुं० [कर्म० स०] सत्ताईस नक्षत्रों में २५वाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे हैं।
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पूर्वभाव  : पुं० [कर्म० स०] १. पूर्व सत्ता। २. प्राथमिकता। ३. विचार की अभिव्यक्ति। ४. ‘पूर्वराग’। (साहित्य)
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पूर्वभावी (विन्)  : पुं० [सं० पूर्व√भू+णिनि] कारण। वि० पूर्ववर्ती।
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पूर्वभाषी (षिन्)  : वि० [सं० पूर्व-भाष् (बोलना)+णिनि] १. पहले बोलने का इच्छुक। २. नम्र। विनयी।
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पूर्व-मीमांसा  : पुं० [कर्म० स०] जैमिनी मुनि द्वारा कृत एक प्रसिद्ध भारतीय दर्शन जिसमें कर्मकांड सम्बन्धी बातों का विवेचन है।
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पूर्वयज्ञ  : पुं० [कर्म० स०] जैनों के अनुसार एक जिनदेव जो मणिभद्र और जलेंद्र भी कहलाते हैं।
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पूर्व-रंग  : पुं० [कर्म० स०] १. अभिनय में वह संगीत या स्तुति आदि दो नाटक आरंभ होने से पहले विघ्नों की शांति और दर्शकों को अनुरक्त करने के लिए होता है। यद्यपि इसके प्रत्याहार आदि अनेक अंग है; फिर भी इसमें नान्दी का होना परम आवश्यक है। २. रंग-शाला।
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पूर्व-राग  : पुं० [कर्म० स०] साहित्य में किसी के प्रति मन में उत्पन्न होनेवाला वह प्रेम जो बिना प्रिय को देखे केवल उसका गुण या नाम सुनने, चित्र आदि देखने से होता है। इसकी ये दस दशाएँ कही गई हैं
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पूर्व-रूप  : पुं० [कर्म० स०] १. किसी काम, चीज या बात का पहलेवाला आकार, रूप या रंग-ढंग। जैसे—इस पुस्तक का पूर्वरूप ऐसा ही था। २. किसी वस्तु का वह रूप जो उस वस्तु के पूर्ण रूप से प्रस्तुत होने से पहले बनता और तैयार होता है। ३. साहित्य में एक अर्थालंकार, जिसमें किसी के विनष्ट, गुण; रूप, वैभव आदि के फिर से वापस या लौट आने का उल्लेख होता है।
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पूर्वलेख  : पुं० दे० ‘संलेख’।
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पूर्ववत्  : अव्य० [सं० पूर्व+वति] १. जिस प्रकार पहले हुआ या किया गया हो, उसी प्रकार या उसी के अनुसार। २. पहले की ही तरह। ज्यों का त्यों (अर्थात् बिना किसी प्रकार के परिवर्तन के)। पुं० किसी कार्य का वह अनुमान जो उसके कारणों को देखकर उसके होने से पहले ही किया जाता है।
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पूर्ववर्ती (र्तिन्)  : वि० [सं० पूर्व√वृत्त (बरतना)+णिनि] जो पहले से वर्तमान हो या रह चुका हो। पूर्व में या पहले रहने या होनेवाला। जैसे—यहाँ के पूर्ववर्ती अध्यापक बहुत वृद्ध हो गये थे।
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पूर्ववाद  : पुं० [सं० कर्म० स०] व्यवहार शास्त्र के अनुसार वह पहला अभियोग जो कोई व्यक्ति न्यायालय आदि में उपस्थित करे। पहला दावा। नालिश।
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पूर्ववादी (दिन्)  : पुं० [सं० पूर्व√वद् (बोलना)+णिनि] वादी। मुद्दई।
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पूर्वविचार  : पुं० [कर्म० स०] किसी होनेवाली बात के संबंध में पहले से किया जानेवाला विचार। (फोर थॉट)
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पूर्वविद्  : वि० [सं० पूर्व√विद् (जानना)+क्विप्] पुराने समय की बातें जाननेवाला। इतिहास आदि का ज्ञाता।
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पूर्व-विवेचन  : पुं० [सं०] किसी विषय से संबंध रखनेवाली सब बातें पहले से अच्छी तरह सोच-समझ लेने की क्रिया या भाव। (प्राविडेन्स)
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पूर्व-विहित  : वि० [कर्म० स०] १. जिसका पहले से विधान किया जा चुका हो या हो चुका हो। २. पहले का जमा किया हुआ या गाड़ा हुआ (धन)।
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पूर्ववृत्त  : पुं० [कर्म० स०] पुराने समय की घटनाओं का विवरण। पूर्वकाल की बातें। इतिहास।
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पूर्वव्यापित  : वि० [सं०] (आदेश, नियम या निश्चय) जिसका प्रभाव बीते हुए काल के कार्यों, व्यवस्थाओं पर भी पड़ता हो। (रिट्रास्पेक्टिव)
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पूर्व-शैल  : पुं० [सं० कर्म० स०] उदयाचल।
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पूर्व-संचित  : भू० कृ० [कर्म० स०] पहले से इकट्ठा या संचित किया हुआ।
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पूर्व-संध्या  : स्त्री० [कर्म० स०] दिन की पहली सन्ध्या, अर्थात् प्रातःकाल।
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पूर्व-सक्थ  : पुं० [एकदेशि त०] जाँघ का ऊपरी भाग।
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पूर्व-सभिक  : पुं० [कर्म० स०] जूए खाने का प्रधान या मालिक।
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पूर्वसर  : वि० [सं० पूर्व√सृ (गति)+ट] आगे चलनेवाला। अग्रगामी।
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पूर्व-सागर  : पुं० [कर्म० स०] पूर्वी समुद्र।
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पूर्वसाहस  : पुं० [कर्म० स०] पहला या सबसे बड़ा दंड।
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पूर्वसाचित्य  : पुं० [कर्म० स०] किसी काम में पहले से सोच-समझकर अपनी रक्षा के विचार से किया जानेवाला साचित्य (प्रिकाशन)।
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पूर्वसिंधु  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्वसूचन  : पुं० [कर्म० स०] १. सूचना या चेतावनी पहले से देना। २. किसी भावी कार्य या बात के संबंध में बचत, रक्षा आदि के विचार से पहले से दी जानेवाली सूचना या चेतावनी।
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पूर्वा  : स्त्री० [सं० पूर्व+टाप्] १. पूर्व दिशा। पूरब। २. दे० ‘पूर्वा-फाल्गुनी’। ३. राजाओं आदि के बडे़ बड़े कार्यों का उल्लेख या वर्णन। प्रशास्ति।
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पूर्वागम  : पुं० [पूर्व-आगम, कर्म० स०] भाषा-विज्ञान में, शब्द के आदि में रहनेवाले व्यंजन के साथ उच्चारण के सुभीते के लिए स्वाभाविक रूप से इ या उ स्वर का लगना। प्रोथेसिस। जैसे—‘स्त्री’ का उच्चारण ‘इस्त्री’ के रूप में करना।
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पूर्वाग्नि  : स्त्री० [पूर्व-अग्नि, कर्म० स०] आवसस्थ अग्नि।
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पूर्वाचल, पूर्वाद्रि  : पुं० [पूर्व-अचल, पूर्व-अद्रि कर्म० स०] उदयाचल।
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पूर्वादेश  : पुं० [पूर्व-आदेश, कर्म० स०] किसी बात के सम्बन्ध में पहले से दिया हुआ आदेश या बतलाई हुई कार्य-प्रणाली। (प्रीवियस इन्स्ट्रक्शन)
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पूर्वाधिकारी (रिन्)  : पुं० [पूर्व-अधिकारी, कर्म० स०] वह जो किसी पद पर पहले अधिकारी के रूप में रह चुका हो। (प्रोडिसेसर)
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पूर्वानिल  : पुं० [पूर्व-अनिल, कर्म० स०] पूरबी वायु। पुरवा। हवा।
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पूर्वानुमान  : पुं० [पूर्व-अनुमान, कर्म० स०] किसी भावी काम या बात के स्वरूप आदि के सम्बन्ध में पहले से किया जानेवाला अनुमान या कल्पना। (फोर कास्ट) जैसे—सल या वर्षा का पूर्वानुमान।
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पूर्वानुराग  : पुं०=पूर्व-राग।
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पूर्वापर  : अव्य० [पूर्व-अपर, द्व० स०] आगे पीछे। वि० आगे का और पीछे का। पुं० किसी बात का आगा-पीछा, ऊंच-नीच या भला-बुरा।
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पूर्वापराधी (धिन्)  : पुं० [पूर्व-अपराधिन, कर्म० स०] १. वह जो पहले कोई अपराध कर चुका हो। २. विशेषतः ऐसा अपराधी जो दंड भोग चुका हो। (एक्स-कॉन्विक्ट)
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पूर्वापर्य  : पुं० [सं० पूर्वापर+यत्] पूर्वापर की अवस्था या भाव।
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पूर्वा-फाल्गुनी  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद] ज्योतिष में ग्यारहवाँ नक्षत्र जिसका आकार पलंग की तरह और नीचे की ओर मुँहावाला माना जाता है। इसमें दो तारे हैं; और इसके अधिष्ठाता देवता यम कहे गए हैं।
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पूर्वा-भाद्रपद  : पुं० [व्यस्त पद]=पूर्वाभाद्रपदा।
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पूर्वाभाद्रपदा  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद] ज्योतिष में, पचीसवाँ नक्षत्र जिसका आकार घंटे के समान माना गया है और जिसमें दो नक्षत्र हैं।
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पूर्वाभिनय  : पुं० [पूर्व-अभिनय, कर्म० स०] अभिनय या इसी प्रकार के और किसी बड़े आयोजन के सम्बन्ध में उसके नियत समय से कुछ पहले उसका किया जानेवाला यथा-तथ्य अभ्यास। (रिहर्सल)
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पूर्वाभिमुख  : वि० [पूर्व-अभिमुख, ब० स०] जिसका रूख पूरब की ओर हो। अव्य० पूरब की ओर मुँह करके।
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पूर्वाभिषेक  : पुं० [पूर्व-अभिषेक, कर्म० स०] एक प्रकार का मंत्र।
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पूर्वाभ्यास  : पुं० [पूर्व-अभ्यास, कर्म० स०] कोई कार्य दर्शकों के सम्मुख करने से पहले उसे पक्का करने के लिए किया जानेवाला अभ्यास। रिहर्सल। वि० दे० ‘पूर्वाभिनय’।
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पूर्वाराम  : पुं० [पूर्व-आराम, कर्म० स०] एक प्रकार का बौद्धसंघ या मठ।
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पूर्वाचिंक  : पुं० [पूर्व-अर्चिक, कर्म० स०] सामवेद का पूर्वार्द्ध।
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पूर्वार्जित  : वि० [पूर्व-अर्जित, कर्म० स०] पहले का अर्जित किया हुआ। पहले का कमाया हुआ। पुं० पैतृक संपत्ति।
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पूर्वार्द्ध  : पुं० [सं० पूर्व-अर्द्ध, कर्म० स०] किसी काम चीज या बात का पहला आधा भाग। शुरू का आधा हिस्सा।
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पूर्वावेदक  : पुं० [सं० पूर्व-आवेदक, कर्म० स०]= पूर्ववादी।
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पूर्वाश्रम  : पुं० [सं० पूर्व-आश्रय, कर्म० स०] १. ब्रह्मचर्याश्रम। २. वह आश्रम जिसमें कोई व्यक्ति नये आश्रम में प्रविष्ट होने से पहले रहा हो। जैसे—संन्यासी होने से पहले इनका पूर्वाश्रम ब्राह्मण था
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पूर्वाषाढ़  : पुं०=पूर्वाषाढ़ा।
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पूर्वाषाढ़ा  : स्त्री० [सं० पूर्वा-आषाढ़ा, कर्म० स०] ज्योतिष में, बीसवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे होते हैं और जिसका आकार सूप का सा और अधिष्ठाता देवता जल माना गया है।
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पूर्वाह  : पुं०=पूर्वाह्र।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूर्वाह्र  : पुं० [सं० पूर्व-अहन्, एकदेशित०] दिन का पहला भाग। सबेरे से दोपहर तक का समय।
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पूह्लिक  : पुं० [सं० पूर्वाह्ल+ठन्—इक] वह कृत्य जो दिन के पहले भाग में किया जाता है। जैसे—स्नान, संध्या, पूजा आदि।
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पूर्विका  : स्त्री० [सं० पूर्व+कन्+टाप्, इत्व] पहले की कोई घटना या मामला जो बाद की वैसी ही घटनाओं के लिए उदाहरण या नजीर का काम दे। किसी न्यायालय का वह अभिनिर्णय या कार्यविधि जिसे आदर्श माना जाता हो। (प्रिसीडेन्ट)
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पूर्वी  : वि० [सं० पूर्वीय] पूर्व दिशा में संबंध रखनेवाला। पूरब का। पुं० १. एक प्रकार का चावल जो पूर्व प्रदेशों में होता है। २. सन्ध्या समय गाया जानेवाला सम्पूर्ण जाति का एक राग। ३. उत्तर-प्रदेश के पूर्वी भागों तथा बिहार आदि में गाये जानेवाला कुछ विशिष्ट प्रकार के गीत। (इस अन्तिम अर्थ में कुछ लोग स्त्री० में भी इसका प्रयोग करते हैं।)
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पूर्वी घाट  : पुं० [हिं० पूर्वी+घाट] दक्षिण भारत के पूर्वी किनारे पर का पहाड़ों का सिलसिला जो बालासोर से कन्या कुमारी तक चला गया है और वहीं पश्चिमी घाट के अंतिम अंश से मिल गया है।
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पूर्वीण  : वि० [सं० पूर्व+ख—ईन] १. पुराना। २. पैतृक।
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पूर्वेद्युः  : पुं० [सं० पूर्व+एद्युस्] १. एक प्रकार का श्राद्ध जो अगहन, पूस, माघ, और फागुन के कृष्णपक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है। २. प्रातःकाल। सबेरा।
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पूर्वोक्त  : वि० [सं० पूर्व-उक्त, कर्म० स०] जिसका जिक्र पहले आ चुका हो। जो पहले कहा जा चुका हो।
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पूर्वोत्तर  : वि० [सं० पूर्व-उत्तर, ब० स०] पूर्व और उत्तर के बीच का। जैसे—पूर्वोत्तर रेलवे।
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पूर्वोत्तरा  : स्त्री० [सं० पूर्वोत्तर+टाप्] पूर्व और उत्तर के बीच की दिशा। ईशान कोण।
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पूर्वोपाय  : पुं० [सं० पूर्व+उपाय] बात, रक्षा व्यवस्था आदि का ध्यान रखते हुए पहले से किया जानेवाला उपाय। (प्रिकॉशनरी मेज़र)
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पूलक  : पुं० [सं०√पूल् (इकट्ठा करना)+ण्वल्—अक] घास आदि का पूला।
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पूला  : पुं० [सं० पूलक] [स्त्री० अल्पा० पूली] घास-तृणों आदि का बँधा हुआ गट्ठर।
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पूलाक  : पुं० [सं०=पुलाक, पृषो० सिद्धि]=पुलाक। (दे०)
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पूलिया  : पुं० [देश०] मालाबार प्रदेश में रहनेवाले मुसलमानों की एक उप-जाति।
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पूली  : स्त्री० [हिं० पूला का अल्पा०] छोटा पूला।
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पूलीची  : स्त्री० [देश०] मालाबार प्रदेश की एक असभ्य जंगली जाति।
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पूल्य  : पुं० [सं०√पूल्+ण्यत्] अनाज का कोई खोखला दाना।
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पूवा  : पुं०=पूआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पूष  : पुं० [सं०√पूष् (बढ़ना)+क] १. शहतूत का पेड़। २. पौष मास।
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पूषक  : पुं० [सं०√पूष+ण्वुल्—अक] १. शहतूत का पेड़ और उसका फल।
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पूषण  : पुं० [सं०√पूष्+कनिन्] १. सूर्य। २. बारह आदित्यों में से एक। (पुराण) ३. एक दैविक देवता।
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पूषदंतहार  : पुं० [सं० पूषन्-दन्त, ष० त०, पूषदन्त√हृ (हरण)+अच्] वीर भद्र। (जिसने दक्ष के यज्ञ के समय सूर्य का दाँत तोड़ा था)।
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पूषमित्र  : पुं० [सं०] गोभिल का एक नाम।
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पूषा  : स्त्री० [सं० पूष+टाप्] १. चन्द्रमा की तीसरी कन्या। २. हठयोग के अनुसार दाहिने कान की एक नाड़ी।
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पूषाकल्याणी  : स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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पूषात्मज  : पुं० [सं० पूषन्-आत्मज, ष० त०] १. मेघ। बादल। २. इंद्र। ३. कर्ण।
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पूस  : पुं० [सं० पौष] विक्रमी संवत् का दसवाँ महीना। पौष।
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