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पुरु  : वि० [सं०√पृ (पालन पोषण)+कु, उत्व] बहुत अधिक। विपुल। पुं० १. देवलोक। स्वर्ग। २. एक दैत्य जिसे इन्द्र ने मारा था। ३. एक प्राचीन पर्वत। ४. फूलों का पराग। ५. देह। शरीर। ६. पुराणानुसार एक देश का नाम। ७. छठवें चन्द्रवंशी राजा, जो नहुष के पोते तथा ययाति के पुत्र थे। अपने पाँचों भाइयों में से इन्होंने अपने पिता ययाति के माँगने पर उन्हें अपना यौवन और रूप दे दिया, जिन्हें हजार वर्षों तक भोगने के बाद ययाति ने फिर इन्हें लौटा दिया था और अपने राज-सिंहासन का अधिकारी बनाया था। इन्ही के वंश में दुष्यन्त और भरत हुए थे। जिनके वंशज आगे चलकर कौरव लोग हुए। ८. पंजाब का एक प्रसिद्ध राजा जो ई० पू० ३२७ में सिकन्दर से लड़ा था।
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पुरुकुत्स  : पुं० [सं०] एक राजा जो मांधाता का पुत्र और मुचुकुंद का भाई था और जो नर्मदा नदी के आसपास के प्रदेश पर राज्य करता था। इसने नाग कन्या नर्मदा के साथ विवाह किया था।
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पुरुख  : पुं०=पुरुष।
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पुरुजित्  : पुं० [सं० पुरु√जि (जीतना)+क्विप्] १. कुंतिभोज का पुत्र जो अर्जुन का मामा था। २. विष्णु।
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पुरुदंशक  : पुं० [सं० ब० स०, कप्] हंस।
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पुरुदंशा (शस्)  : पुं० [सं० पुरु√दंश (काटना)+असुन्] इंद्र।
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पुरुदस्म  : पुं० [सं० पुरु√दस् (काटना)+मन्] विष्णु।
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पुरुब  : पुं०=पूर्व (दिशा या देश)।
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पुरुभोजा (जस्)  : पुं० [सं० पुरु√भुज् (खाना)+असुन] बादल।
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पुरुमित्र  : पुं० [सं०] १. एक प्राचीन राजा जिसका नाम ऋग्वेद में आया है। २. धृतराष्ट्र का एक पुत्र।
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पुरुमीढ़  : पुं० [सं०] अजमीढ़ का छोटा भाई।
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पुरुष  : पुं० [सं०√पुर् (आगे जाना)+कुषण्] १. मानव जाति का नर प्राणी। आदमी। मर्द। (स्त्री से भिन्न) २. उक्त प्रकार का वह व्यक्ति जिसमें विशिष्ट शक्ति या सामर्थ्य हो और जो वीरता तथा साहस के काम कर सकता हो; जैसे—तुम्हें पुरुषों की तरह मैदान में आना चाहिए। ३. राज्य की ओर से सार्वजनिक कार्यों के लिए नियुक्त किया हुआ कोई अधिकारी। राज-पुरुष। ४. ऊँचाई की एक नाप जो सामान्य वयस्क मनुष्य की ऊँचाई के बराबर होती है। पुरसा। ५. शरीर में रहनेवाली आत्मा या जीव। ६. वह प्रधान सत्ता, जो सारे विश्व में आत्मा के रूप में वर्तमान है। विश्वात्मा। विशेष—सांख्यकार ने इसे आकृति से भिन्न एक ऐसा चेतन मूल तत्त्व या पदार्थ माना है, जिसमें कभी कोई परिणाम या विकार नहीं होता, और जो स्वयं कुछ भी न करने और सबसे अलग रहने पर भी प्रकृति के सान्निध्य से ही सृष्टि की उत्पत्ति करता है। ७. किसी व्यक्ति की ऊपरवाली पीढ़ी या पीढ़ियाँ। पूर्व पुरुष। पूर्वज। उदाहरण—सों सठ कोटिक पुरुष समेता। बसहिं कलप सत नरक-निकेता।—तुलसी। ८. स्त्री का पति या स्वामी। ९. व्याकरण में, वक्ता की दृष्टि से किया जानेवाला सर्वनामों का वर्गीकरण। विशेष—इसके उत्तम पुरुष, प्रथम पुरुष और मध्यम पुरुष ये तीन विभाग हैं। वक्ता अपने संबंध में जिस सर्वनाम का उपयोग करता है, वह उत्तम पुरुष कहलाता है। जैसे—मैं या हम। वह जिससे कोई बात-चीत करता है, उसके संबंध में प्रयुक्त होनेवाले विशेषण मध्यम पुरुष कहलाते हैं। जैसे—तू, तुम और आप। किसी तीसरे अनुपस्थित या दूरस्थ व्यक्ति या पदार्थ के लिए प्रयुक्त होनेवाले सर्वनामों की गणना प्रथम पुरुष में होती है। जैसे—वह या वे। कुछ वैयाकरण अँगरेजी व्याकरण के अनुकरण पर इन्हें क्रमात्, प्रथम पुरुष, द्वितीय पुरुष और तृतीय पुरुष भी कहते हैं। हमारी भाषा में इन पुरुषों का परिणाम या प्रभाव क्रिया-पदों पर भी होता है। जैसे—मैं जाता हूँ; तुम जाते हो; वह जाता है आदि। १॰. विष्णु। ११. सूर्य। १२. शिव। १३. पारा। १४. गुग्गुल। १५. पुन्नाग। १६. घोड़े का अपने पिछले दोनों पैरों पर खडा होना। पुरुषक (देखें)। वि० [सं०] १. तीखा। तेज। जैसे—पुरुष पवन। २. नर। ‘स्त्री’ का विपर्याय। जैसे—पुरुष मकर। ३. जोरदार। बलवान।
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पुरुषक  : पुं० [सं० पुरुष√कै (भासित होना)+क] घोड़े की वह स्थिति जिसमें वह अपने दोनों पैर ऊपर उठाकर दोनों पिछले पैरों पर खड़ा हो जाता है। अलफ। सीख-पाँव। विशेष—लोक में इसे ‘घोडे का जमना’ कहते हैं।
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पुरुष-कार  : पुं० [ष० त०] १. पुरुषार्थ। पौरुष। २. उद्योग।
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पुरुष-केशरी  : पुं० [उपमि० स०] १. सिंह के समान वीर पुरुष। बहुत बड़ा वीर। २. नृसिंह अवतार।
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पुरुष-गति  : स्त्री० [सं० ष० त०] एक प्रकार का साम।
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पुरुषध्नी  : स्त्री० [सं० पुरुष√हन् (हिंसा)+टक्+ङीप्] पति की हत्या करनेवाली स्त्री।
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पुरुषत्व  : पुं० [सं० पुरुष+त्व] पुरुष होने की अवस्था, गुण या भाव।
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पुरुष-दंतिका  : स्त्री० [सं० ब० स०, कप्+टाप्, इत्व] मेदा नामक जड़ी।
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पुरुषदध्न  : पुं० [सं० पुरुष+दघ्नच्]=पुरुषद्वयस्।
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पुरुषद्वयस्  : पुं० [सं० पुरुष+द्वयसच्] ऊँचाई में पुरुष के बराबर।
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पुरुष-द्विष  : पुं० [सं० पुरुष√द्विष् (शत्रुता करना)+क्विप्] विष्णु का शत्रु।
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पुरुषद्वेषिणी  : स्त्री० [सं० पुरुष-द्विष्+णिनि+ङीप्] अपने पति से द्वेष करनेवाली स्त्री।
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पुरुष-नक्षत्र  : पुं० [ष० त०] हस्त, मूल, श्रवण, पुनर्वस्, मृगशिरा और पुष्य ये नक्षत्र। (ज्यो०)
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पुरुषनाय  : पुं० [सं० पुरुष√नी (ले जाना)+अण्] १. सेनापति। २. राजा।
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पुरुष-पशु  : पुं० [उपमि० स०] पशुओं जैसा आचरण करनेवाला व्यक्ति।
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पुरुष-पुंगव  : पुं० [उपमि० स०] श्रेष्ठ पुरुष।
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पुरुष-पुंडरीक  : पुं० [उपमि० स०] १. श्रेष्ठ पुरुष। २. जैनियों के मतानुसार नौ वासुदेवों में सातवें वासुदेव।
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पुरुष-पुर  : पुं० [ष० त०] आधुनिक पेशावर का पुराना नाम। किसी समय यह गांधार की राजधानी थी।
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पुरुष-प्रेक्षा  : स्त्री० [ष० त०] वह खेल या तमासा जो केवल पुरुषों के देखने योग्य हो, और जिसे देखना स्त्रियों के लिए वर्जित हो।
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पुरुषमात्र  : वि० [सं० पुरुष+मात्रच्] मनुष्य की ऊँचाई के बराबर का।
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पुरुषमानी (निन्)  : वि० [सं० पुरुष√मन् (समझना) +णिनि] अपने को वीर समझनेवाला।
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पुरुष-मुख  : वि० [ब० स०] [स्त्री० पुरुषमुखी] पुरुष के समान मुख वाला।
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पुरुष-मेध  : पुं० [मध्य० स०] एक वैदिक यज्ञ, जिसमें पुरुष अर्थात् मनुष्य की बलि दी जाती थी। यह यज्ञ करने का अधिकार केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय को था।
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पुरुष-राशि  : स्त्री० [ष० त०] मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धन और कुंभ नामक विषम राशियों में से हर एक। (ज्यो०)
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पुरुष-वर  : पुं० [स० त०] १. श्रेष्ठ पुरुष। २. विष्णु।
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पुरुषवाद  : पुं० [सं०] प्राचीन भारत में एक नास्तिक दार्शनिक मत, जो ईश्वर को नहीं, बल्कि पुरुष और उसके पौरुष को ही सर्वप्रधान मानता था।
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पुरुषवादी  : वि० [सं०] पुरुषवाद-संबंधी। पुं० पुरुषवाद का अनुयायी व्यक्ति।
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पुरुष-वार  : पुं० [ष० त०] रवि, मंगल, बृहस्पति और शनि इन चार वारों में हर एक। (ज्यो०)
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पुरुषवाह  : पुं० [सं० पुरुष√वह् (ढोना)+अण्] गरूड़। पुं० [ब० स०] कुबेर।
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पुरुष-व्याध्र  : पुं० [उपमि० स०] सिंह के समान बलवाला व्यक्ति। शेर के समान पराक्रमवाला। पुरुष-सिंह।
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पुरुष-शार्दूल  : पुं० [उपमि० स०] पुरुष-व्याध्र (दे०)
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पुरुष-शीर्ष (क)  : पुं० [ष० त०] काठ का बना हुआ मनुष्य का सिर, जिसे चोर सेंध में यह देखते को डालते थे कि वह प्रवेश योग्य है या नहीं।
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पुरुष-सिंह  : पुं० [उपमि० स०] ऐसा व्यक्ति जो पराक्रम या वीरता के विचार से पुरुषों में सिंह के समान हो। परम वीर पुरुष।
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पुरुष-सूक्त  : पुं० [मध्य० स०] ऋग्वेद का एक अति पवित्र तथा प्रसिद्ध माना जानेवाला सूक्त जो ‘सहस्रशीर्षा’ से आरंभ होता है।
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पुरुषांग  : पुं० [पुरुष-अंग, ष० त०] पुरुष की लिगेंद्रिय। शिश्न।
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पुरुषांतर  : पुं० [पुरुष-अंतर, मयू० स०] अन्य व्यक्ति।
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पुरुषाद  : पुं० [सं० पुरुष√अद् (खाना)+अण्] १. मनुष्यों को खानेवाला अर्थात् राक्षस। २. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश जो आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य के अधिकार में माना गया है।
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पुरुषादक  : पुं० [सं० पुरुषाद+कन्] १. मनुष्यों को खानेवाला अर्थात् राक्षस। २. कल्माषपाद का एक नाम।
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पुरुषाद्य  : पुं० [पुरुष-आद्य, ष० त०] १. जिनों के प्रथम आदिनाथ। (जैन) २. विष्णु। ३. राक्षस।
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पुरुषाधम  : पुं० [पुरुष-अधम, स० त०] अधम पुरुष। हेय व्यक्ति।
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पुरुषानुक्रम  : पुं० [पुरुष-अनुक्रम, ष० त०] [वि० पुरुषानुक्रमिक] १. पुरखों की अनेक पीढ़ियों से चली आई हुई परंपरा। २. एक के बाद एक पीढ़ी का क्रम।
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पुरुषानुक्रमिक  : वि० [पुरुष-आनुक्रमिक, ष० त०] जो पुरुषानुक्रम से चला आया हो, या चला आ रहा हो। जो पूर्वजों के समय से हर पीढी़ में होता आया हो। वंशानुक्रमिक। (हेरिडेटरी)
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पुरुषायित  : क्रि० वि० [सं० पुरुष+क्यड०+क्त] पुरुषों या मर्दों की तरह। वीरतापूर्वक। बहादुरी से। पुं० १. वीर अथवा सुयोग्य पुरुषों का सा आचरण। २. दे० ‘पुरुषायित बंध’।
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पुरुषायित-बंध  : पुं० [कर्म० स०] कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार की संभोग-मुद्रा जिसमें स्त्री ऊपर और पुरुष नीचे रहता है। साहित्य में इसे विपरीत रति कहते हैं।
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पुरुषायण  : पुं० [पुरुष-अयन, ब० स०] प्राणादि षोडश कला (प्रश्नोपनिषद्)।
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पुरुषायुष  : पुं० [पुरुष-आयुस्, ष० त०, अच्] पुरुष की आयु जो सामान्यतः १॰॰ वर्षों की मानी जाती है।
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पुरुषारथ  : पुं०=पुरुषार्थ।
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पुरुषार्थ  : पुं० [पुरुष-अर्थ, ष० त०] १. वह मुख्य अर्थ उद्देश्य या प्रयोजन, जिसकी प्राप्ति या सिद्धि के लिए प्रयत्न करना पुरुष या मनुष्य के लिए आवश्यक और कर्त्तव्य हो। पुरुष के उद्देश्य और लक्ष्य का विषय़। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति की दृष्टि से ये चार प्रकार के होते हैं। विशेष—सांख्य-दर्शन में सब प्रकार के दुःखों से छुटकारा पाने के लिए प्रयत्न करना ही परम पुरुषार्थ है। परवर्ती पौराणिकों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति या सिद्धि के लिए प्रयत्न करना ही पुरुषार्थ माना है, और इसी लिए उक्त चारों बातों की गिनती उन मुख्य पदार्थों में की जाती है, जिनकी ओर सदा मनुष्य का ध्यान या लक्ष्य रहना चाहिए। २. वे सब विशिष्ट उद्योग तथा प्रयत्न जो अच्छा और सशक्त मनुष्य करता है अथवा करना अपना कर्तव्य समझता है। पुरुषकार। ३. पुरुष में होनेवाली शक्ति या सामर्थ्य। मनुष्योचित बल। पौरुष।
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पुरुषार्थी (र्थिन्)  : वि० [सं० पुरुषार्थ+इनि] १. पुरुषार्थ करनेवाला। २. उद्योगी। ३. परिश्रमी। ४. बली। पुं० पश्चिमी पाकिस्तान से आये हुए हिंदू और सिक्ख शरणार्थियों के लिए सम्मान-सूचक शब्द।
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पुरुषावतार  : पुं० [पुरुष-अवतार, ष० त०] व्यापक ब्रह्म का पुरुष या मनुष्य के रूप में होनेवाला वह अवतार जिसमें वह शुद्ध सत्व को आधार बनाकर परमधाम से इस लोक में आविर्भूत होता है।
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पुरुषाशी (शिन्)  : पुं० [सं० पुरुष√अश् (खाना)+ णिनि] [स्त्री० पुरुषाशिनी] मनुष्य (खानेवाला) राक्षस।
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पुरुषी  : स्त्री० [सं० पुरुष+ङीष्] स्त्री।
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पुरुषोत्तम  : [सं० पुरुष-उत्तम, स० त०] जो पुरुषों में सब से उत्तम या सर्वश्रेष्ठ हो। पुं० १. वह जो पुरुषों में सब से उत्तम या सर्व-श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ पुरुष। २. धर्मशास्त्र के अनुसार ऐसा निष्पाप व्यक्ति जो शत्रु और मित्र सब से उदासीन रहे। ३. विष्णु। ४. जगन्नाथ की मूर्ति। ५. जगन्नाथ का मन्दिर। ६. जैनियों के एक वासुदेव का नाम। ७. श्रीकृष्ण। ८. ईश्वर। ९. चांद्र गणना के अनुसार होनेवाला अधिक मास। मलमास।
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पुरुषोत्तम-क्षेत्र  : पुं० [ष० त०] जगन्नाथपुरी।
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पुरुषोत्तम-मास  : पुं० [ष० त०] चांद्र गणना के अनुसार होनेवाला अधिक मास। मलमास।
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पुरुहूत  : वि० [सं० ब० स०] १. जिसका आह्वान बहुतों ने किया हो। २. जिसकी बहुत से लोगों ने स्तुति की हो। पुं० इन्द्र।
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पुरु-हूति  : स्त्री० [सं० ब० स०] दाक्षायणी। पुं० विष्णु।
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पुरुख  : पुं०=पूरुष (पुरुष)।
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पुरु  : वि० [सं०√पृ (पालन पोषण)+कु, उत्व] बहुत अधिक। विपुल। पुं० १. देवलोक। स्वर्ग। २. एक दैत्य जिसे इन्द्र ने मारा था। ३. एक प्राचीन पर्वत। ४. फूलों का पराग। ५. देह। शरीर। ६. पुराणानुसार एक देश का नाम। ७. छठवें चन्द्रवंशी राजा, जो नहुष के पोते तथा ययाति के पुत्र थे। अपने पाँचों भाइयों में से इन्होंने अपने पिता ययाति के माँगने पर उन्हें अपना यौवन और रूप दे दिया, जिन्हें हजार वर्षों तक भोगने के बाद ययाति ने फिर इन्हें लौटा दिया था और अपने राज-सिंहासन का अधिकारी बनाया था। इन्ही के वंश में दुष्यन्त और भरत हुए थे। जिनके वंशज आगे चलकर कौरव लोग हुए। ८. पंजाब का एक प्रसिद्ध राजा जो ई० पू० ३२७ में सिकन्दर से लड़ा था।
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पुरुकुत्स  : पुं० [सं०] एक राजा जो मांधाता का पुत्र और मुचुकुंद का भाई था और जो नर्मदा नदी के आसपास के प्रदेश पर राज्य करता था। इसने नाग कन्या नर्मदा के साथ विवाह किया था।
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पुरुख  : पुं०=पुरुष।
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पुरुजित्  : पुं० [सं० पुरु√जि (जीतना)+क्विप्] १. कुंतिभोज का पुत्र जो अर्जुन का मामा था। २. विष्णु।
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पुरुदंशक  : पुं० [सं० ब० स०, कप्] हंस।
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पुरुदंशा (शस्)  : पुं० [सं० पुरु√दंश (काटना)+असुन्] इंद्र।
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पुरुदस्म  : पुं० [सं० पुरु√दस् (काटना)+मन्] विष्णु।
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पुरुब  : पुं०=पूर्व (दिशा या देश)।
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पुरुभोजा (जस्)  : पुं० [सं० पुरु√भुज् (खाना)+असुन] बादल।
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पुरुमित्र  : पुं० [सं०] १. एक प्राचीन राजा जिसका नाम ऋग्वेद में आया है। २. धृतराष्ट्र का एक पुत्र।
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पुरुमीढ़  : पुं० [सं०] अजमीढ़ का छोटा भाई।
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पुरुष  : पुं० [सं०√पुर् (आगे जाना)+कुषण्] १. मानव जाति का नर प्राणी। आदमी। मर्द। (स्त्री से भिन्न) २. उक्त प्रकार का वह व्यक्ति जिसमें विशिष्ट शक्ति या सामर्थ्य हो और जो वीरता तथा साहस के काम कर सकता हो; जैसे—तुम्हें पुरुषों की तरह मैदान में आना चाहिए। ३. राज्य की ओर से सार्वजनिक कार्यों के लिए नियुक्त किया हुआ कोई अधिकारी। राज-पुरुष। ४. ऊँचाई की एक नाप जो सामान्य वयस्क मनुष्य की ऊँचाई के बराबर होती है। पुरसा। ५. शरीर में रहनेवाली आत्मा या जीव। ६. वह प्रधान सत्ता, जो सारे विश्व में आत्मा के रूप में वर्तमान है। विश्वात्मा। विशेष—सांख्यकार ने इसे आकृति से भिन्न एक ऐसा चेतन मूल तत्त्व या पदार्थ माना है, जिसमें कभी कोई परिणाम या विकार नहीं होता, और जो स्वयं कुछ भी न करने और सबसे अलग रहने पर भी प्रकृति के सान्निध्य से ही सृष्टि की उत्पत्ति करता है। ७. किसी व्यक्ति की ऊपरवाली पीढ़ी या पीढ़ियाँ। पूर्व पुरुष। पूर्वज। उदाहरण—सों सठ कोटिक पुरुष समेता। बसहिं कलप सत नरक-निकेता।—तुलसी। ८. स्त्री का पति या स्वामी। ९. व्याकरण में, वक्ता की दृष्टि से किया जानेवाला सर्वनामों का वर्गीकरण। विशेष—इसके उत्तम पुरुष, प्रथम पुरुष और मध्यम पुरुष ये तीन विभाग हैं। वक्ता अपने संबंध में जिस सर्वनाम का उपयोग करता है, वह उत्तम पुरुष कहलाता है। जैसे—मैं या हम। वह जिससे कोई बात-चीत करता है, उसके संबंध में प्रयुक्त होनेवाले विशेषण मध्यम पुरुष कहलाते हैं। जैसे—तू, तुम और आप। किसी तीसरे अनुपस्थित या दूरस्थ व्यक्ति या पदार्थ के लिए प्रयुक्त होनेवाले सर्वनामों की गणना प्रथम पुरुष में होती है। जैसे—वह या वे। कुछ वैयाकरण अँगरेजी व्याकरण के अनुकरण पर इन्हें क्रमात्, प्रथम पुरुष, द्वितीय पुरुष और तृतीय पुरुष भी कहते हैं। हमारी भाषा में इन पुरुषों का परिणाम या प्रभाव क्रिया-पदों पर भी होता है। जैसे—मैं जाता हूँ; तुम जाते हो; वह जाता है आदि। १॰. विष्णु। ११. सूर्य। १२. शिव। १३. पारा। १४. गुग्गुल। १५. पुन्नाग। १६. घोड़े का अपने पिछले दोनों पैरों पर खडा होना। पुरुषक (देखें)। वि० [सं०] १. तीखा। तेज। जैसे—पुरुष पवन। २. नर। ‘स्त्री’ का विपर्याय। जैसे—पुरुष मकर। ३. जोरदार। बलवान।
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पुरुषक  : पुं० [सं० पुरुष√कै (भासित होना)+क] घोड़े की वह स्थिति जिसमें वह अपने दोनों पैर ऊपर उठाकर दोनों पिछले पैरों पर खड़ा हो जाता है। अलफ। सीख-पाँव। विशेष—लोक में इसे ‘घोडे का जमना’ कहते हैं।
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पुरुष-कार  : पुं० [ष० त०] १. पुरुषार्थ। पौरुष। २. उद्योग।
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पुरुष-केशरी  : पुं० [उपमि० स०] १. सिंह के समान वीर पुरुष। बहुत बड़ा वीर। २. नृसिंह अवतार।
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पुरुष-गति  : स्त्री० [सं० ष० त०] एक प्रकार का साम।
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पुरुषध्नी  : स्त्री० [सं० पुरुष√हन् (हिंसा)+टक्+ङीप्] पति की हत्या करनेवाली स्त्री।
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पुरुषत्व  : पुं० [सं० पुरुष+त्व] पुरुष होने की अवस्था, गुण या भाव।
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पुरुष-दंतिका  : स्त्री० [सं० ब० स०, कप्+टाप्, इत्व] मेदा नामक जड़ी।
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पुरुषदध्न  : पुं० [सं० पुरुष+दघ्नच्]=पुरुषद्वयस्।
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पुरुषद्वयस्  : पुं० [सं० पुरुष+द्वयसच्] ऊँचाई में पुरुष के बराबर।
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पुरुष-द्विष  : पुं० [सं० पुरुष√द्विष् (शत्रुता करना)+क्विप्] विष्णु का शत्रु।
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पुरुषद्वेषिणी  : स्त्री० [सं० पुरुष-द्विष्+णिनि+ङीप्] अपने पति से द्वेष करनेवाली स्त्री।
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पुरुष-नक्षत्र  : पुं० [ष० त०] हस्त, मूल, श्रवण, पुनर्वस्, मृगशिरा और पुष्य ये नक्षत्र। (ज्यो०)
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पुरुषनाय  : पुं० [सं० पुरुष√नी (ले जाना)+अण्] १. सेनापति। २. राजा।
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पुरुष-पशु  : पुं० [उपमि० स०] पशुओं जैसा आचरण करनेवाला व्यक्ति।
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पुरुष-पुंगव  : पुं० [उपमि० स०] श्रेष्ठ पुरुष।
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पुरुष-पुंडरीक  : पुं० [उपमि० स०] १. श्रेष्ठ पुरुष। २. जैनियों के मतानुसार नौ वासुदेवों में सातवें वासुदेव।
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पुरुष-पुर  : पुं० [ष० त०] आधुनिक पेशावर का पुराना नाम। किसी समय यह गांधार की राजधानी थी।
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पुरुष-प्रेक्षा  : स्त्री० [ष० त०] वह खेल या तमासा जो केवल पुरुषों के देखने योग्य हो, और जिसे देखना स्त्रियों के लिए वर्जित हो।
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पुरुषमात्र  : वि० [सं० पुरुष+मात्रच्] मनुष्य की ऊँचाई के बराबर का।
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पुरुषमानी (निन्)  : वि० [सं० पुरुष√मन् (समझना) +णिनि] अपने को वीर समझनेवाला।
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पुरुष-मुख  : वि० [ब० स०] [स्त्री० पुरुषमुखी] पुरुष के समान मुख वाला।
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पुरुष-मेध  : पुं० [मध्य० स०] एक वैदिक यज्ञ, जिसमें पुरुष अर्थात् मनुष्य की बलि दी जाती थी। यह यज्ञ करने का अधिकार केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय को था।
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पुरुष-राशि  : स्त्री० [ष० त०] मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धन और कुंभ नामक विषम राशियों में से हर एक। (ज्यो०)
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पुरुष-वर  : पुं० [स० त०] १. श्रेष्ठ पुरुष। २. विष्णु।
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पुरुषवाद  : पुं० [सं०] प्राचीन भारत में एक नास्तिक दार्शनिक मत, जो ईश्वर को नहीं, बल्कि पुरुष और उसके पौरुष को ही सर्वप्रधान मानता था।
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पुरुषवादी  : वि० [सं०] पुरुषवाद-संबंधी। पुं० पुरुषवाद का अनुयायी व्यक्ति।
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पुरुष-वार  : पुं० [ष० त०] रवि, मंगल, बृहस्पति और शनि इन चार वारों में हर एक। (ज्यो०)
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पुरुषवाह  : पुं० [सं० पुरुष√वह् (ढोना)+अण्] गरूड़। पुं० [ब० स०] कुबेर।
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पुरुष-व्याध्र  : पुं० [उपमि० स०] सिंह के समान बलवाला व्यक्ति। शेर के समान पराक्रमवाला। पुरुष-सिंह।
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पुरुष-शार्दूल  : पुं० [उपमि० स०] पुरुष-व्याध्र (दे०)
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पुरुष-शीर्ष (क)  : पुं० [ष० त०] काठ का बना हुआ मनुष्य का सिर, जिसे चोर सेंध में यह देखते को डालते थे कि वह प्रवेश योग्य है या नहीं।
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पुरुष-सिंह  : पुं० [उपमि० स०] ऐसा व्यक्ति जो पराक्रम या वीरता के विचार से पुरुषों में सिंह के समान हो। परम वीर पुरुष।
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पुरुष-सूक्त  : पुं० [मध्य० स०] ऋग्वेद का एक अति पवित्र तथा प्रसिद्ध माना जानेवाला सूक्त जो ‘सहस्रशीर्षा’ से आरंभ होता है।
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पुरुषांग  : पुं० [पुरुष-अंग, ष० त०] पुरुष की लिगेंद्रिय। शिश्न।
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पुरुषांतर  : पुं० [पुरुष-अंतर, मयू० स०] अन्य व्यक्ति।
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पुरुषाद  : पुं० [सं० पुरुष√अद् (खाना)+अण्] १. मनुष्यों को खानेवाला अर्थात् राक्षस। २. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश जो आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य के अधिकार में माना गया है।
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पुरुषादक  : पुं० [सं० पुरुषाद+कन्] १. मनुष्यों को खानेवाला अर्थात् राक्षस। २. कल्माषपाद का एक नाम।
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पुरुषाद्य  : पुं० [पुरुष-आद्य, ष० त०] १. जिनों के प्रथम आदिनाथ। (जैन) २. विष्णु। ३. राक्षस।
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पुरुषाधम  : पुं० [पुरुष-अधम, स० त०] अधम पुरुष। हेय व्यक्ति।
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पुरुषानुक्रम  : पुं० [पुरुष-अनुक्रम, ष० त०] [वि० पुरुषानुक्रमिक] १. पुरखों की अनेक पीढ़ियों से चली आई हुई परंपरा। २. एक के बाद एक पीढ़ी का क्रम।
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पुरुषानुक्रमिक  : वि० [पुरुष-आनुक्रमिक, ष० त०] जो पुरुषानुक्रम से चला आया हो, या चला आ रहा हो। जो पूर्वजों के समय से हर पीढी़ में होता आया हो। वंशानुक्रमिक। (हेरिडेटरी)
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पुरुषायित  : क्रि० वि० [सं० पुरुष+क्यड०+क्त] पुरुषों या मर्दों की तरह। वीरतापूर्वक। बहादुरी से। पुं० १. वीर अथवा सुयोग्य पुरुषों का सा आचरण। २. दे० ‘पुरुषायित बंध’।
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पुरुषायित-बंध  : पुं० [कर्म० स०] कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार की संभोग-मुद्रा जिसमें स्त्री ऊपर और पुरुष नीचे रहता है। साहित्य में इसे विपरीत रति कहते हैं।
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पुरुषायण  : पुं० [पुरुष-अयन, ब० स०] प्राणादि षोडश कला (प्रश्नोपनिषद्)।
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पुरुषायुष  : पुं० [पुरुष-आयुस्, ष० त०, अच्] पुरुष की आयु जो सामान्यतः १॰॰ वर्षों की मानी जाती है।
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पुरुषारथ  : पुं०=पुरुषार्थ।
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पुरुषार्थ  : पुं० [पुरुष-अर्थ, ष० त०] १. वह मुख्य अर्थ उद्देश्य या प्रयोजन, जिसकी प्राप्ति या सिद्धि के लिए प्रयत्न करना पुरुष या मनुष्य के लिए आवश्यक और कर्त्तव्य हो। पुरुष के उद्देश्य और लक्ष्य का विषय़। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति की दृष्टि से ये चार प्रकार के होते हैं। विशेष—सांख्य-दर्शन में सब प्रकार के दुःखों से छुटकारा पाने के लिए प्रयत्न करना ही परम पुरुषार्थ है। परवर्ती पौराणिकों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति या सिद्धि के लिए प्रयत्न करना ही पुरुषार्थ माना है, और इसी लिए उक्त चारों बातों की गिनती उन मुख्य पदार्थों में की जाती है, जिनकी ओर सदा मनुष्य का ध्यान या लक्ष्य रहना चाहिए। २. वे सब विशिष्ट उद्योग तथा प्रयत्न जो अच्छा और सशक्त मनुष्य करता है अथवा करना अपना कर्तव्य समझता है। पुरुषकार। ३. पुरुष में होनेवाली शक्ति या सामर्थ्य। मनुष्योचित बल। पौरुष।
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पुरुषार्थी (र्थिन्)  : वि० [सं० पुरुषार्थ+इनि] १. पुरुषार्थ करनेवाला। २. उद्योगी। ३. परिश्रमी। ४. बली। पुं० पश्चिमी पाकिस्तान से आये हुए हिंदू और सिक्ख शरणार्थियों के लिए सम्मान-सूचक शब्द।
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पुरुषावतार  : पुं० [पुरुष-अवतार, ष० त०] व्यापक ब्रह्म का पुरुष या मनुष्य के रूप में होनेवाला वह अवतार जिसमें वह शुद्ध सत्व को आधार बनाकर परमधाम से इस लोक में आविर्भूत होता है।
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पुरुषाशी (शिन्)  : पुं० [सं० पुरुष√अश् (खाना)+ णिनि] [स्त्री० पुरुषाशिनी] मनुष्य (खानेवाला) राक्षस।
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पुरुषी  : स्त्री० [सं० पुरुष+ङीष्] स्त्री।
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पुरुषोत्तम  : [सं० पुरुष-उत्तम, स० त०] जो पुरुषों में सब से उत्तम या सर्वश्रेष्ठ हो। पुं० १. वह जो पुरुषों में सब से उत्तम या सर्व-श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ पुरुष। २. धर्मशास्त्र के अनुसार ऐसा निष्पाप व्यक्ति जो शत्रु और मित्र सब से उदासीन रहे। ३. विष्णु। ४. जगन्नाथ की मूर्ति। ५. जगन्नाथ का मन्दिर। ६. जैनियों के एक वासुदेव का नाम। ७. श्रीकृष्ण। ८. ईश्वर। ९. चांद्र गणना के अनुसार होनेवाला अधिक मास। मलमास।
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पुरुषोत्तम-क्षेत्र  : पुं० [ष० त०] जगन्नाथपुरी।
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पुरुषोत्तम-मास  : पुं० [ष० त०] चांद्र गणना के अनुसार होनेवाला अधिक मास। मलमास।
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पुरुहूत  : वि० [सं० ब० स०] १. जिसका आह्वान बहुतों ने किया हो। २. जिसकी बहुत से लोगों ने स्तुति की हो। पुं० इन्द्र।
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पुरु-हूति  : स्त्री० [सं० ब० स०] दाक्षायणी। पुं० विष्णु।
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पुरुख  : पुं०=पूरुष (पुरुष)।
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