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पालंक  : पुं० [सं०√पाल् (रक्षण)+क्विप्=पाल् अंक, तृ० त०] १. पालक नाम का साग। २. बाज पक्षी। ३. एक प्रकार का रत्न जो काले, लाल या हरे रंग का होता है।
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पालंकी  : स्त्री० [सं० पालंक+ङीष्] १. पालकी नाम का साग। २. कुंदुरू नाम का गंध द्रव्य।
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पालंक्य  : पुं० [सं० पालंक+ष्यञ्] पालक (साग)।
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पालंक्या  : स्त्री० [सं० पालंक्य+टाप्] कुंदुरू नामक पौधा और उसका फल।
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पालंग  : पुं०=पलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पाल  : वि० [सं०√पाल्+णिच्+अच्] १. पालन करनेवाला। पालक। २. आज-कल कुछ संज्ञाओं के अंत में लगनेवाला एक शब्द जिसका अर्थ होता है—काम, प्रबंध या व्यवस्था करने अथवा सब प्रकार से रक्षित रखनेवाला। जैसे—कोटपाल, राज्यपाल, लेखपाल आदि। पुं० १. पीकदान। उगालदान। २. चीते का पेड़। चित्रक वृक्ष। ३. बंगाल का एक प्रसिद्ध राजवंश जिसने वंग और मगध पर साढ़े तीन सौ वर्षों तक राज्य किया था। पुं० [हिं० पालना] १. फलों को गरमी पहुँचाकर पकाने के लिए पत्तों आदि से ढककर या और किसी युक्ति से रखने की विधि। क्रि० प्र०— डालना।—पड़ना। २. ऐसा स्थान जहाँ फल आदि रखकर उक्त प्रकार से पकाये जाते हों। पुं० [सं० पट या पाट] १. वह लंबा-चौड़ा कपड़ा जिसे नाव के मस्तूल से लगाकर इसलिए तानते हैं कि उसमें हवा भरे और उसके जोर से नाव बिना डाँड़ चलाये और जल्दी-जल्दी चले। क्रि० प्र०—उतारना।—चढ़ाना।—तानना। २. उक्त प्रकार का वह लंबा-चौड़ा और मोटा कपड़ा जो धूप, वर्षा आदि से बचने के लिए खुले स्थान के ऊपर टाँगा या फैलाया जाता है। ३. खेमा। तंबू। शामियाना। ४. गाड़ी, पालकी आदि को ऊपर से ढकने का कपड़ा। ओहार। स्त्री० [सं० पालि] १. पानी को रोकनेवाला बाँध या किनारा। मेड़। २. नदी आदि का ऊँचा किनारा या टीला। ३. नदी आदि के गाट पर के नीचे का ऐसा खोखला स्थान, जो नींव के कंकड़-पत्थर आदि वह बह जाने के कारण बन जाता है। पुं० [सं० पालि] कबूतरों का जोड़ा खाना। कपोत-मैथुन। क्रि० प्र०—खाना। पुं० [?] वह जमीन जो सरकार की निजी संपत्ति होती है।
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पालक  : वि० [सं०√पाल्+णिच्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० पालिका] पालन करनेवाला। पुं० १. पालकर अपने पास रखा हुआ लड़का। २. प्रधान शासक या राजा। ३. घोड़े का साईस। ४. चीते का पेड़। चित्रक। पुं० [सं० पाल्यंक] एक प्रकार का प्रसिद्ध साग। पुं०=पलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) उदा०—खँड खँड सजी पालक पीढ़ी।—जायसी।
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पालकजूही  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का छोटा पौधा जो दवा के काम में आता है।
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पालकरी  : स्त्री० [हिं० पलंग] लकड़ी का वह छोटा टुकड़ा जो पलंग, चारपाई, चौकी आदि के पायों को ऊँचा करने के लिए उसके नीचे रखा जाता है।
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पालकाप्य  : पुं० [सं०] १. एक प्राचीन मुनि जो अश्व, गज आदि से संबंध रखनेवाली विद्या के प्रथम आचार्य माने गये हैं। २. वह विद्या या शास्त्र जिसमें हाथी घोड़े आदि के लक्षणों, गुणों आदि का निरूपण हो। शालिहोत्र।
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पालकी  : स्त्री० [सं० पल्यंक; प्रा० पल्लंक] एक प्रसिद्ध सवारी जिसमें सवार बैठता या लेटता है और जिसे कहार या मजदूर लोग कंधे पर उठा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। स्त्री० [सं० पालंक] पालक का शाक।
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पालकी गाड़ी  : स्त्री० [हिं० पालकी+गाड़ी] एक तरह की घोड़ागाड़ी जिसका ऊपरी ढाँचा पालकी के आकार का तथा छायादार होता है।
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पालगाड़ी  : स्त्री०=पालकी गाड़ी।
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पालघ्न  : पुं० [सं० पाल√हन् (हिंसा)+क] कुकरमुत्ता।
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पालट  : पुं० [सं० पालन] १. पाला हुआ लड़का। २. गोद लिया हुआ लड़का। दत्तकपुत्र। पुं० [सं० पर्यस्त; प्रा० पलट्ट] १. पलटने की क्रिया या भाव। पलट। २. परिवर्तन। ३. पटेबाजी में एक प्रकार का प्रहार या वार।
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पालटना  : सं०=१. पलटना। २.=पलटाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पालड़ा  : पुं०=पलड़ा।
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पालतू  : वि० [सं० पालना] (पशु-पक्षियों के संबंध में) जो पकड़कर घर में रखा तथा पाला गया हो (जंगली से भिन्न)। जैसे—पालतू तोता पालतू बंदर।
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पालथी  : स्त्री० [सं० पर्य्यस्त=फैला हुआ] दोनों टाँगों को मोड़कर बैठने की वह मुद्रा, जिसमें पैर दूसरी टाँग की रान के नीचे पड़ते हैं। पद्मासन। कमलासन। पलथी। क्रि० प्र०—मारना।—लगाना।
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पालन  : पुं० [सं०√पाल्+णिच्+ल्युट्—अन] [वि० पालनीय, पाल्य, भू० कृ० पालित] १. अपनी देख-रेख में और अपने पास रखकर किसी का भरण-पोषण करने की क्रिया या भाव। (मेन्टेनेन्स) २. आज्ञा, आदेश, कर्त्तव्य आदि कार्यों का निर्वाह। (डिसचार्ज, परफॉरमेन्स) ३. अनुकूल आचरण द्वारा किसी निश्चय वचन आदि का होनेवाला निर्वाह। (एबाइड) ४. जीव-जंतुओं के संबंध में उन्हें अपने पास-रखकर उनका वंश, सामर्थ्य या उनसे होनेवाली उपज आदि बढ़ाने का काम। जैसे—मधुमक्षिका पालन, पशु-पालन आदि। ५. तत्काल ब्याई हुई गाय का दूध। पेवस।
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पालना  : स० [सं० पालन] १. व्यक्ति के संबंध में, उसे भोजन, वस्त्र आदि देकर उसका भरण-पोषण करना। पालन करना। २. आज्ञा, आदेश, प्रतिज्ञा, वचन आदि के अनुसार आचरण या व्यवहार करना। पालन करना। ३. पशु-पक्षियों को मनोविनोद के लिए अपने पास रखकर खिलाना-पिलाना। पोसना। ४. (दुर्व्यसन या रोग) जान-बूझकर अपने साथ लगा रखना और उसे दूर करने का प्रयत्न न करना। ५. कष्ट या विपत्ति से बचाकर सुरक्षित रखना। रक्षा करना। उदा०—आनन सुखाने कहैं, क्यौंहूँ कोउ पालि है।—तुलसी। पुं० [सं० पल्यंक] एक तरह का छोटा झूला, जिसमें बच्चों को लेटाकर झुलाया या सुलाया जाता है।
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पालनीय  : वि० [सं०√पाल्+णिच्+अनीयर] जिसका पालन किया जाना चाहिए अथवा किया जाने को हो।
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पालयिता (तृ)  : पुं० [सं०√पाल्+णिच्+तृच्] वह जो दूसरों का पालन अर्थात् भरण-पोषण करता हो। पालन-पोषण करनेवाला।
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पाल-वंश  : पुं० [सं०] दे० ‘पाल’ के अंतर्गत।
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पालव  : पुं० [सं० पल्लव] १. पल्लव। पत्ता। २. कोमल, छोटा और नया पौधा।
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पाला  : पुं० [सं० प्रालेय] १. बादलों में रहनेवाले पानी या भाप के वे जमे हुए सफेद कण, जो अधिक सरदी पड़ने पर आकाश से पेड़-पौधों आदि पर पतली तह की तरह फैल जाते हैं और इस प्रकार उन्हें हानि पहुँचाते हैं। क्रि० प्र०—गिरना।—पड़ना। मुहा०—(किसी चीज पर) पाला पड़ना=(क) बुरी तरह से नष्ट होना। (ख) इतना दब जाना कि फिर जल्दी उठ न सके। जैसे—आशाओं पर पाला पड़ना। (फसल आदि को) पाला मार जाना=आकाश से पाला गिरने के कारण फसल की पैदावार खराब या नष्ट हो जाना। २. बहुत अधिक ठंढ या सरदी जो उक्त प्रकार के पात के कारण होती है। जैसे—इस साल तो यहाँ बहुत अधिक पाला है। पुं० [सं० पट्ट, हिं० पाड़ा] १. प्रधान स्थान। पीठ। २. वह धुस या भीटा अथवा बनाई हुई मेड़ जिससे किसी क्षेत्र की सीमा सूचित होती हो। ३. कबड्डी आदि के खेलों में दोनों पक्षों के लिए अलग-अलग निर्धारित क्षेत्र में जिसकी सीमा प्रायः जमीन पर गहरी लकीर खींचकर स्थिर की जाती है। पुं० [हिं०] १. पल्ला। २. लाक्षणिक रूप में, कोई ऐसा काम या बात जिसमें किसी प्रतिपक्षी को दबाना अथवा उसके साथ समानता के भाव से रहकर निर्वाह करना पड़ता है। मुहा०—(किसी से) पाला पड़ना=ऐसा अवसर या स्थिति आना जिसमें किसी विकट व्यक्ति का सामना करना पड़े, या उससे संपर्क स्थापित हो। जैसे—ईश्वर न करे, ऐसे दुष्ट से किसी का पाला पड़े। (किसी से) पाले पड़ना=ऐसी स्थिति में आना या होना कि जिससे काम पड़े, वह बहुत ही भीषण या विकट व्यक्ति सिद्ध हो। जैसे—तुम भी याद करोगे कि किसी के पाले पड़े थे। ३. वह जगह जहाँ दस-बीस आदमी मिलकर बैठा करते हों। ४. अखाड़ा। ५. कच्ची मिट्टी का वह गोलाकार ऊँचा पात्र, जिसमें अनाज भरकर रखते हैं। कोठला। पुं० [सं० पल्लव, हिं० पालो] जंगली बेर के वृक्ष की पत्तियाँ जो चारे के काम आती हैं। पुं०=पाड़ा (टोला या महल्ला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पालागन  : स्त्री० [हिं० पावँ+पर+लगना] आदर-पूर्वक किसी पूज्य व्यक्ति के पैर छूने की क्रिया या भाव। प्रणाम।
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पालागल  : पुं० [सं०] १. प्राचीन भारत में, समाचार लाने और ले जानेवाला व्यक्ति। संदेशवाहक। संवादवाहक। हरकारा। २. दूत।
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पालागली  : स्त्री० [सं० पालागल+ङीष्] प्राचीन भारत में, राजा की चौथी और सबसे काम आदर पानेवाली रानी जो शूद्र जाति की होती थी।
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पालाश  : वि० [सं० पलाश+अण्] १. पलाश-संबंधी। २. पलाश का बना हुआ। ३. हरा। पुं० १. तेज पत्ता। २. हरा रंग।
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पालाशखंड  : पुं० [ब० स०] मगध देश।
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पालाशि  : पुं० [सं० पलाश+इञ्] पलाश गोत्र के प्रवर्तक ऋषि।
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पालिंद  : पुं० [सं० पालिंद+अण्] कुंदुरू नामक गंध-द्रव्य।
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पालिंदी  : स्त्री० [सं० पालिंद+ङीष्] १. श्यामा लता। २. त्रिवृता।
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पालि  : स्त्री० [सं०√पल् (रक्षा करना)+इण्] १. कान के नीचे लटकनेवाला कोमल मांस-खंड जिसमें छेद करके बालियाँ आदि पहनी जाती हैं। कान की लौ। २. किसी चीज का किनारा या कोना। ३. कतार। पंक्ति। श्रेणी। ४. सीमा। हद। ५. पुल। सेतु। ६. बाँध। मेंड़। ७. घेरा। परिधि। ८. अंक। क्रोड। गोद। ९. अंडाकार तालाब या सरोवर। १॰. वह भोजन जो परदेशी विद्यार्थी को गुरुकुल से मिलता था। ११. ऐसी स्त्री जिसकी ठोढ़ी पर बाल तथा मूछें हों। १२. चिह्न। निशान। १३. जूँ नाम का कीड़ा। १४. एक तौल जो एक प्रस्थ के बराबर होती थी। १५. दे० ‘पाली’।
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पालिक  : पुं० [सं० पल्यंक] १. पलंग। २. पालकी।
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पालिका  : स्त्री० [सं० पालक+टाप्, इत्व] १. पालन करनेवाली। २. समस्तपदों के अंत में, वह जो पालन-पोषण तथा सुरक्षा का पूरा प्रबंध करती हो। जैसे—नगर पालिका, महानगर पालिका।
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पालित  : वि० [सं०√पाल्+णिच्+क्त] [स्त्री० पालिता] जिसे पाला गया हो। पाला हुआ। पुं० सिहोर का पेड़।
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पालित्य  : पुं० [सं० पलित+ष्यञ्] वृद्धावस्था में बालों का कुछ पीलापन लिये सफेद होना।
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पालिधी  : स्त्री० [सं०] फरहद का पेड़।
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पालिनी  : वि० स्त्री० [सं०√पाल्+णिनि+ङीप्] जो दूसरों को पालती हो। दूसरों का भरण-पोषण करनेवाली।
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पालिश  : स्त्री० [अं०] १. वह लेप या रोगन जो किसी चीज को चमकाने के लिए उस पर लगाया जाता है। क्रि० प्र०—करना।—चढ़ाना। २. उक्त प्रकार के लेप से होनेवाली चमक। ओप।
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पालिसी  : स्त्री० [अं०] १. नयी रीति। २. बीमा-संबंधी वह प्रतिज्ञापत्र जो बीमा करनेवाली संस्था की ओर से अपना बीमा करानेवाले को मिलता है।
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पाली (लिन्)  : वि० [सं०√पाल्+णिनि] [स्त्री० पालिनी] १. पालन या पोषण करनेवाला। २. रक्षा करनेवाला। रक्षक।
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पाली  : स्त्री० [?] १. देग। बटलोई। २. बरतन का ढक्कन। ३. ऊपरी तल या पार्श्व। जैसे—कपोलपाली=गाल का ऊपरी तल। ४. प्राचीन भारत की एक प्रसिद्ध भाषा जो गौतम बुद्ध के समय सारे भारत के सिवा वाह्लीक, बरमा, श्याम, सिंहल आदि देशों में बोली और समझी जाती थी। विशेष—गौतम बुद्ध ने इसी भाषा में धर्मोपदेश किया था, और बौद्ध धर्म के सभी प्रमुख तथा प्राचीन ग्रंथ इसी भाषा में हैं। विद्वानों का मत है कि यह मुख्यतः और मूलतः भारत के मूल देश की भाषा थी जिसमें मगधी का भी कुछ अंश सम्मिलित था; इस भाषा का साहित्य बहुत विशाल है। ५. पंक्ति। श्रेणी। ६. तीतर, बटेर, बुलबुल आदि का वह वर्ग जो प्रायः प्रतियोगिता के रूप में लड़ाया जाता है। ७. वह स्थान जहाँ उक्त प्रकार के पक्षी उड़ाये जाते हैं। ८. आज-कल कारखानों आदि में, श्रमिकों के उन अलग-अलग दलों के काम करने का समय जो पारी पारी से आता है। (शिफ्ट) ९. आज-कल गेंद-बल्ले, चौगान आदि खेलों में खिलाड़ियों के प्रतियोगी दलों को खेलने के लिए होनेवाली पारी। (इनिंग) वि०=पैदल। उदा०—धणपाली, पिव पाखरयो, विहूँ भला भड़ जुध्ध।—ढोलामारू। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)पुं० [?] चरवाहा। (राज०)
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पालीवत  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़।
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पालीवाल  : पुं० [?] गौड़ ब्राह्मणों के एक वर्ग की उपाधि।
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पालीशोष  : पुं० [सं०] कान का एक रोग।
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पालू  : वि० [हिं० पालना] पाला हुआ। पालतू।
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पाले  : अव्य० [हिं० पाला] अधिकार या वश में। मुहा० दे० ‘पाला’ के अंतर्गत।
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पालो  : पुं० [सं० पालि ?] ५ रुपये भर का बाट या तौल। (सुनार) पुं०=पल्लव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पाल्य  : वि० [सं०√पाल्+ण्यत्] जिसका पालन होने को हो या किया जाने को हो।
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पाल्लवा  : स्त्री० [सं० पल्लव+अण्+टाप्] प्राचीन भारत में, एक तरह का खेल जो पेड़ों की छोटी-छोटी टहनियों से खेला जाता था।
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पाल्लविक  : वि० [सं० पल्लव+ठक्—इक] फैलनेवाला। प्रसरणशील।
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पाल्वल  : वि० [सं० पल्वल+अण्] १. पल्वल (तालाब) संबंधी। २. पल्वल (तालाब) में होनेवाला। पुं० छोटा ताल या तालाब का पानी।
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पालंक  : पुं० [सं०√पाल् (रक्षण)+क्विप्=पाल् अंक, तृ० त०] १. पालक नाम का साग। २. बाज पक्षी। ३. एक प्रकार का रत्न जो काले, लाल या हरे रंग का होता है।
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पालंकी  : स्त्री० [सं० पालंक+ङीष्] १. पालकी नाम का साग। २. कुंदुरू नाम का गंध द्रव्य।
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पालंक्य  : पुं० [सं० पालंक+ष्यञ्] पालक (साग)।
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पालंक्या  : स्त्री० [सं० पालंक्य+टाप्] कुंदुरू नामक पौधा और उसका फल।
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पालंग  : पुं०=पलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पाल  : वि० [सं०√पाल्+णिच्+अच्] १. पालन करनेवाला। पालक। २. आज-कल कुछ संज्ञाओं के अंत में लगनेवाला एक शब्द जिसका अर्थ होता है—काम, प्रबंध या व्यवस्था करने अथवा सब प्रकार से रक्षित रखनेवाला। जैसे—कोटपाल, राज्यपाल, लेखपाल आदि। पुं० १. पीकदान। उगालदान। २. चीते का पेड़। चित्रक वृक्ष। ३. बंगाल का एक प्रसिद्ध राजवंश जिसने वंग और मगध पर साढ़े तीन सौ वर्षों तक राज्य किया था। पुं० [हिं० पालना] १. फलों को गरमी पहुँचाकर पकाने के लिए पत्तों आदि से ढककर या और किसी युक्ति से रखने की विधि। क्रि० प्र०— डालना।—पड़ना। २. ऐसा स्थान जहाँ फल आदि रखकर उक्त प्रकार से पकाये जाते हों। पुं० [सं० पट या पाट] १. वह लंबा-चौड़ा कपड़ा जिसे नाव के मस्तूल से लगाकर इसलिए तानते हैं कि उसमें हवा भरे और उसके जोर से नाव बिना डाँड़ चलाये और जल्दी-जल्दी चले। क्रि० प्र०—उतारना।—चढ़ाना।—तानना। २. उक्त प्रकार का वह लंबा-चौड़ा और मोटा कपड़ा जो धूप, वर्षा आदि से बचने के लिए खुले स्थान के ऊपर टाँगा या फैलाया जाता है। ३. खेमा। तंबू। शामियाना। ४. गाड़ी, पालकी आदि को ऊपर से ढकने का कपड़ा। ओहार। स्त्री० [सं० पालि] १. पानी को रोकनेवाला बाँध या किनारा। मेड़। २. नदी आदि का ऊँचा किनारा या टीला। ३. नदी आदि के गाट पर के नीचे का ऐसा खोखला स्थान, जो नींव के कंकड़-पत्थर आदि वह बह जाने के कारण बन जाता है। पुं० [सं० पालि] कबूतरों का जोड़ा खाना। कपोत-मैथुन। क्रि० प्र०—खाना। पुं० [?] वह जमीन जो सरकार की निजी संपत्ति होती है।
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पालक  : वि० [सं०√पाल्+णिच्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० पालिका] पालन करनेवाला। पुं० १. पालकर अपने पास रखा हुआ लड़का। २. प्रधान शासक या राजा। ३. घोड़े का साईस। ४. चीते का पेड़। चित्रक। पुं० [सं० पाल्यंक] एक प्रकार का प्रसिद्ध साग। पुं०=पलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) उदा०—खँड खँड सजी पालक पीढ़ी।—जायसी।
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पालकजूही  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का छोटा पौधा जो दवा के काम में आता है।
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पालकरी  : स्त्री० [हिं० पलंग] लकड़ी का वह छोटा टुकड़ा जो पलंग, चारपाई, चौकी आदि के पायों को ऊँचा करने के लिए उसके नीचे रखा जाता है।
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पालकाप्य  : पुं० [सं०] १. एक प्राचीन मुनि जो अश्व, गज आदि से संबंध रखनेवाली विद्या के प्रथम आचार्य माने गये हैं। २. वह विद्या या शास्त्र जिसमें हाथी घोड़े आदि के लक्षणों, गुणों आदि का निरूपण हो। शालिहोत्र।
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पालकी  : स्त्री० [सं० पल्यंक; प्रा० पल्लंक] एक प्रसिद्ध सवारी जिसमें सवार बैठता या लेटता है और जिसे कहार या मजदूर लोग कंधे पर उठा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। स्त्री० [सं० पालंक] पालक का शाक।
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पालकी गाड़ी  : स्त्री० [हिं० पालकी+गाड़ी] एक तरह की घोड़ागाड़ी जिसका ऊपरी ढाँचा पालकी के आकार का तथा छायादार होता है।
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पालगाड़ी  : स्त्री०=पालकी गाड़ी।
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पालघ्न  : पुं० [सं० पाल√हन् (हिंसा)+क] कुकरमुत्ता।
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पालट  : पुं० [सं० पालन] १. पाला हुआ लड़का। २. गोद लिया हुआ लड़का। दत्तकपुत्र। पुं० [सं० पर्यस्त; प्रा० पलट्ट] १. पलटने की क्रिया या भाव। पलट। २. परिवर्तन। ३. पटेबाजी में एक प्रकार का प्रहार या वार।
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पालटना  : सं०=१. पलटना। २.=पलटाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पालड़ा  : पुं०=पलड़ा।
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पालतू  : वि० [सं० पालना] (पशु-पक्षियों के संबंध में) जो पकड़कर घर में रखा तथा पाला गया हो (जंगली से भिन्न)। जैसे—पालतू तोता पालतू बंदर।
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पालथी  : स्त्री० [सं० पर्य्यस्त=फैला हुआ] दोनों टाँगों को मोड़कर बैठने की वह मुद्रा, जिसमें पैर दूसरी टाँग की रान के नीचे पड़ते हैं। पद्मासन। कमलासन। पलथी। क्रि० प्र०—मारना।—लगाना।
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पालन  : पुं० [सं०√पाल्+णिच्+ल्युट्—अन] [वि० पालनीय, पाल्य, भू० कृ० पालित] १. अपनी देख-रेख में और अपने पास रखकर किसी का भरण-पोषण करने की क्रिया या भाव। (मेन्टेनेन्स) २. आज्ञा, आदेश, कर्त्तव्य आदि कार्यों का निर्वाह। (डिसचार्ज, परफॉरमेन्स) ३. अनुकूल आचरण द्वारा किसी निश्चय वचन आदि का होनेवाला निर्वाह। (एबाइड) ४. जीव-जंतुओं के संबंध में उन्हें अपने पास-रखकर उनका वंश, सामर्थ्य या उनसे होनेवाली उपज आदि बढ़ाने का काम। जैसे—मधुमक्षिका पालन, पशु-पालन आदि। ५. तत्काल ब्याई हुई गाय का दूध। पेवस।
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पालना  : स० [सं० पालन] १. व्यक्ति के संबंध में, उसे भोजन, वस्त्र आदि देकर उसका भरण-पोषण करना। पालन करना। २. आज्ञा, आदेश, प्रतिज्ञा, वचन आदि के अनुसार आचरण या व्यवहार करना। पालन करना। ३. पशु-पक्षियों को मनोविनोद के लिए अपने पास रखकर खिलाना-पिलाना। पोसना। ४. (दुर्व्यसन या रोग) जान-बूझकर अपने साथ लगा रखना और उसे दूर करने का प्रयत्न न करना। ५. कष्ट या विपत्ति से बचाकर सुरक्षित रखना। रक्षा करना। उदा०—आनन सुखाने कहैं, क्यौंहूँ कोउ पालि है।—तुलसी। पुं० [सं० पल्यंक] एक तरह का छोटा झूला, जिसमें बच्चों को लेटाकर झुलाया या सुलाया जाता है।
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पालनीय  : वि० [सं०√पाल्+णिच्+अनीयर] जिसका पालन किया जाना चाहिए अथवा किया जाने को हो।
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पालयिता (तृ)  : पुं० [सं०√पाल्+णिच्+तृच्] वह जो दूसरों का पालन अर्थात् भरण-पोषण करता हो। पालन-पोषण करनेवाला।
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पाल-वंश  : पुं० [सं०] दे० ‘पाल’ के अंतर्गत।
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पालव  : पुं० [सं० पल्लव] १. पल्लव। पत्ता। २. कोमल, छोटा और नया पौधा।
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पाला  : पुं० [सं० प्रालेय] १. बादलों में रहनेवाले पानी या भाप के वे जमे हुए सफेद कण, जो अधिक सरदी पड़ने पर आकाश से पेड़-पौधों आदि पर पतली तह की तरह फैल जाते हैं और इस प्रकार उन्हें हानि पहुँचाते हैं। क्रि० प्र०—गिरना।—पड़ना। मुहा०—(किसी चीज पर) पाला पड़ना=(क) बुरी तरह से नष्ट होना। (ख) इतना दब जाना कि फिर जल्दी उठ न सके। जैसे—आशाओं पर पाला पड़ना। (फसल आदि को) पाला मार जाना=आकाश से पाला गिरने के कारण फसल की पैदावार खराब या नष्ट हो जाना। २. बहुत अधिक ठंढ या सरदी जो उक्त प्रकार के पात के कारण होती है। जैसे—इस साल तो यहाँ बहुत अधिक पाला है। पुं० [सं० पट्ट, हिं० पाड़ा] १. प्रधान स्थान। पीठ। २. वह धुस या भीटा अथवा बनाई हुई मेड़ जिससे किसी क्षेत्र की सीमा सूचित होती हो। ३. कबड्डी आदि के खेलों में दोनों पक्षों के लिए अलग-अलग निर्धारित क्षेत्र में जिसकी सीमा प्रायः जमीन पर गहरी लकीर खींचकर स्थिर की जाती है। पुं० [हिं०] १. पल्ला। २. लाक्षणिक रूप में, कोई ऐसा काम या बात जिसमें किसी प्रतिपक्षी को दबाना अथवा उसके साथ समानता के भाव से रहकर निर्वाह करना पड़ता है। मुहा०—(किसी से) पाला पड़ना=ऐसा अवसर या स्थिति आना जिसमें किसी विकट व्यक्ति का सामना करना पड़े, या उससे संपर्क स्थापित हो। जैसे—ईश्वर न करे, ऐसे दुष्ट से किसी का पाला पड़े। (किसी से) पाले पड़ना=ऐसी स्थिति में आना या होना कि जिससे काम पड़े, वह बहुत ही भीषण या विकट व्यक्ति सिद्ध हो। जैसे—तुम भी याद करोगे कि किसी के पाले पड़े थे। ३. वह जगह जहाँ दस-बीस आदमी मिलकर बैठा करते हों। ४. अखाड़ा। ५. कच्ची मिट्टी का वह गोलाकार ऊँचा पात्र, जिसमें अनाज भरकर रखते हैं। कोठला। पुं० [सं० पल्लव, हिं० पालो] जंगली बेर के वृक्ष की पत्तियाँ जो चारे के काम आती हैं। पुं०=पाड़ा (टोला या महल्ला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पालागन  : स्त्री० [हिं० पावँ+पर+लगना] आदर-पूर्वक किसी पूज्य व्यक्ति के पैर छूने की क्रिया या भाव। प्रणाम।
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पालागल  : पुं० [सं०] १. प्राचीन भारत में, समाचार लाने और ले जानेवाला व्यक्ति। संदेशवाहक। संवादवाहक। हरकारा। २. दूत।
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पालागली  : स्त्री० [सं० पालागल+ङीष्] प्राचीन भारत में, राजा की चौथी और सबसे काम आदर पानेवाली रानी जो शूद्र जाति की होती थी।
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पालाश  : वि० [सं० पलाश+अण्] १. पलाश-संबंधी। २. पलाश का बना हुआ। ३. हरा। पुं० १. तेज पत्ता। २. हरा रंग।
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पालाशखंड  : पुं० [ब० स०] मगध देश।
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पालाशि  : पुं० [सं० पलाश+इञ्] पलाश गोत्र के प्रवर्तक ऋषि।
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पालिंद  : पुं० [सं० पालिंद+अण्] कुंदुरू नामक गंध-द्रव्य।
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पालिंदी  : स्त्री० [सं० पालिंद+ङीष्] १. श्यामा लता। २. त्रिवृता।
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पालि  : स्त्री० [सं०√पल् (रक्षा करना)+इण्] १. कान के नीचे लटकनेवाला कोमल मांस-खंड जिसमें छेद करके बालियाँ आदि पहनी जाती हैं। कान की लौ। २. किसी चीज का किनारा या कोना। ३. कतार। पंक्ति। श्रेणी। ४. सीमा। हद। ५. पुल। सेतु। ६. बाँध। मेंड़। ७. घेरा। परिधि। ८. अंक। क्रोड। गोद। ९. अंडाकार तालाब या सरोवर। १॰. वह भोजन जो परदेशी विद्यार्थी को गुरुकुल से मिलता था। ११. ऐसी स्त्री जिसकी ठोढ़ी पर बाल तथा मूछें हों। १२. चिह्न। निशान। १३. जूँ नाम का कीड़ा। १४. एक तौल जो एक प्रस्थ के बराबर होती थी। १५. दे० ‘पाली’।
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पालिक  : पुं० [सं० पल्यंक] १. पलंग। २. पालकी।
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पालिका  : स्त्री० [सं० पालक+टाप्, इत्व] १. पालन करनेवाली। २. समस्तपदों के अंत में, वह जो पालन-पोषण तथा सुरक्षा का पूरा प्रबंध करती हो। जैसे—नगर पालिका, महानगर पालिका।
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पालित  : वि० [सं०√पाल्+णिच्+क्त] [स्त्री० पालिता] जिसे पाला गया हो। पाला हुआ। पुं० सिहोर का पेड़।
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पालित्य  : पुं० [सं० पलित+ष्यञ्] वृद्धावस्था में बालों का कुछ पीलापन लिये सफेद होना।
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पालिधी  : स्त्री० [सं०] फरहद का पेड़।
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पालिनी  : वि० स्त्री० [सं०√पाल्+णिनि+ङीप्] जो दूसरों को पालती हो। दूसरों का भरण-पोषण करनेवाली।
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पालिश  : स्त्री० [अं०] १. वह लेप या रोगन जो किसी चीज को चमकाने के लिए उस पर लगाया जाता है। क्रि० प्र०—करना।—चढ़ाना। २. उक्त प्रकार के लेप से होनेवाली चमक। ओप।
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पालिसी  : स्त्री० [अं०] १. नयी रीति। २. बीमा-संबंधी वह प्रतिज्ञापत्र जो बीमा करनेवाली संस्था की ओर से अपना बीमा करानेवाले को मिलता है।
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पाली (लिन्)  : वि० [सं०√पाल्+णिनि] [स्त्री० पालिनी] १. पालन या पोषण करनेवाला। २. रक्षा करनेवाला। रक्षक।
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पाली  : स्त्री० [?] १. देग। बटलोई। २. बरतन का ढक्कन। ३. ऊपरी तल या पार्श्व। जैसे—कपोलपाली=गाल का ऊपरी तल। ४. प्राचीन भारत की एक प्रसिद्ध भाषा जो गौतम बुद्ध के समय सारे भारत के सिवा वाह्लीक, बरमा, श्याम, सिंहल आदि देशों में बोली और समझी जाती थी। विशेष—गौतम बुद्ध ने इसी भाषा में धर्मोपदेश किया था, और बौद्ध धर्म के सभी प्रमुख तथा प्राचीन ग्रंथ इसी भाषा में हैं। विद्वानों का मत है कि यह मुख्यतः और मूलतः भारत के मूल देश की भाषा थी जिसमें मगधी का भी कुछ अंश सम्मिलित था; इस भाषा का साहित्य बहुत विशाल है। ५. पंक्ति। श्रेणी। ६. तीतर, बटेर, बुलबुल आदि का वह वर्ग जो प्रायः प्रतियोगिता के रूप में लड़ाया जाता है। ७. वह स्थान जहाँ उक्त प्रकार के पक्षी उड़ाये जाते हैं। ८. आज-कल कारखानों आदि में, श्रमिकों के उन अलग-अलग दलों के काम करने का समय जो पारी पारी से आता है। (शिफ्ट) ९. आज-कल गेंद-बल्ले, चौगान आदि खेलों में खिलाड़ियों के प्रतियोगी दलों को खेलने के लिए होनेवाली पारी। (इनिंग) वि०=पैदल। उदा०—धणपाली, पिव पाखरयो, विहूँ भला भड़ जुध्ध।—ढोलामारू। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)पुं० [?] चरवाहा। (राज०)
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पालीवत  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़।
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पालीवाल  : पुं० [?] गौड़ ब्राह्मणों के एक वर्ग की उपाधि।
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पालीशोष  : पुं० [सं०] कान का एक रोग।
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पालू  : वि० [हिं० पालना] पाला हुआ। पालतू।
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पाले  : अव्य० [हिं० पाला] अधिकार या वश में। मुहा० दे० ‘पाला’ के अंतर्गत।
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पालो  : पुं० [सं० पालि ?] ५ रुपये भर का बाट या तौल। (सुनार) पुं०=पल्लव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पाल्य  : वि० [सं०√पाल्+ण्यत्] जिसका पालन होने को हो या किया जाने को हो।
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पाल्लवा  : स्त्री० [सं० पल्लव+अण्+टाप्] प्राचीन भारत में, एक तरह का खेल जो पेड़ों की छोटी-छोटी टहनियों से खेला जाता था।
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पाल्लविक  : वि० [सं० पल्लव+ठक्—इक] फैलनेवाला। प्रसरणशील।
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पाल्वल  : वि० [सं० पल्वल+अण्] १. पल्वल (तालाब) संबंधी। २. पल्वल (तालाब) में होनेवाला। पुं० छोटा ताल या तालाब का पानी।
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