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पानी  : पुं० [सं० पानीय] १. वह प्रसिद्ध निर्गंध पारदर्शी और पर्ण-हीन तरल या द्रव पदार्थ जो झील, नदियों, समुद्रों आदि में भरा रहता है। तथा बादलों से वर्षा के रूप में पृथ्वी पर बरसता है और जो नहाने-धोने, पीने, खेत सींचने आदि के काम में आता है। जल। विशेष—वायु के उपरांत जल या पानी जीव-जंतुओं वनस्पतियों आदि के पालन-पोषण तथा वर्धन के लिए सबसे अधिक आवश्यक है; इसलिए संस्कृत में इसे ‘जीवन’ भी कहते हैं। भारतीय दर्शन में इसकी गणना पंच महाभूतों में होती है; परन्तु आधुनिक रासायनिक अनुसंधान के अनुसार यह दो तिहाई हाइड्रोजन तथा एक तिहाई आक्सिजन का मिश्रण है। अधिक सरदी पड़ने पर यह जमकर बरफ बन जाता है। और अधिक ताप पाकर उबलने या खौलने लगता है अथवा भाप बनकर उड़ जाता है। वर्षा के प्रसंग में इसके साथ आना, गिरना, पड़ना, बरसना आदि जलाशयों के तल के विचार से उतरना, चढ़ना आदि और कूएँ के मूल सोते के विचार से आना, टूटना, निकलना आदि क्रियाओं का प्रयोग होती है। किसी तल के छोटे-छोटे छिद्रों से आने या निकलने के प्रसंग में इसके साथ आना चूना, छूटना, टपकना, निकलना, रसना आदि क्रियाएँ लगती हैं। किसी आधान में या स्थल पर एकत्रित राशि के संबंध में प्रसंग के अनुसार ठहरना, बहना, रुकना आदि क्रियाओं का भी प्रयोग होता है। कुछ अवस्थाओं में इसकी कोमलता, तरलता, शीतलता, सरसता आदि गुणों के आधार पर भी इसके कई मुहावरे बनते हैं। पद—पानी का आसरा=नाव की बारी पर लगा हुआ कुछ झुका हुआ वह तख्ता जिस पर छाजन की ओलती का पानी गिरता है। बारी। (लश०) पानी का बतासा=(क) बुलबुला। बुदबुद। (ख) दे० नीचे ‘पानी का बुलबुला’। पानी का बुलबुला=बुलबुले की तरह क्षण भर में नष्ट हो जानेवाला। क्षण-भंगुर। नाशवान्। विनाशशील। पानी की तरह पतला=(क) अत्यन्त तुच्छ या हीन। (ख) बहुत कम महत्त्व का। पानी की पोट=ऐसा पदार्थ जिसमें अधिकतर पानी ही पानी हो। जिसमें पानी के सिवा और तत्त्व बहुत कम हो। (ख) ऐसी तरकारियाँ, साग आदि जिनमें जलीय अंश बहुत अधिक हो। पानी के मोल=प्रायः उतना ही सस्ता जितना पीने का पानी होता है। बहुत अधिक सस्ता। पानी देना=वंशज जो पितरों को पानी देता अर्थात् उनता तर्पण करता है। पानी भर खाल=मनुष्य का क्षणभंगुर और सारहीन शरीर। पानी से पतला=(क) बहुत ही तुच्छ या हीन। (ख) बहुत ही सहज या सुगम। कच्चा पानी=ऐसा पानी जो औटाया या पकाया हुआ न हो। नरम पानी=(क) ऐसा पानी जिसके बहाव में अधिक वेग न हो। (ख) ऐसा पानी जिसमें खनिज तत्त्व अपेक्षया कम हों। पक्का पानी=औटाया, गरम किया या पकाया हुआ पानी। भारी पानी=वह पानी जिसमें खिनज पदार्थ अधिक मात्रा में मिले हों। हलका पानी=ऐसा पानी जिसमें खनिज पदार्थ बहुत थोड़े हों। नरम पानी। मुहा०—पानी काटना=(क) पानी की नाली या बाँध काट देना। एक नाली में से दूसरी में पानी ले जाना। (ख) तैरते समय हाथों से आगे का पानी हटाना। पानी चीरना। पानी की तरह बहाना=बहुत ही लापरवाही से और बहुत अधिक मात्रा या या मान में व्यय करना। जैसे—(क) उन्होंने लाखों रुपए पानी की तरह बहाँ दिए। (ख) युद्ध क्षेत्र में सैनिकों ने पानी की तरह खून बहाया। पानी के रेले में बहाना=दे० ऊपर ‘पानी की तरह बहाना’। पानी चढ़ाना=सिंचाई के काम के लि खेत तक पानी पहुँचाना। (किसी चीज पर) पानी चलाना=चौपट या नष्ट करना। (दे० ‘पानी फेरना’) पानी छानना=बच्चे को पहले-पहल माता निकलने के बाद तथा उसका जोर कम होने पर किया जानेवाला एक प्रकार का मांगलिक उपचार या टोटका जिसमें माता उसे बच्चे को इस प्रकार गोद में लेकर बैठती है कि भिगोये हुए चने का पानी जब बच्चे के सिर पर डाला जाता है, तब वह गिरकर माता की गोद में पड़ता है। (कहते हैं कि यह उपचार माता की गोद सदा भरी-पूरी रखने के लिए किया जाता है)। पानी छूना=मल-त्याग के उपरांत जल से गुदा को धोना। आबदस्त लेना। (ग्राम्य) पानी टूटना=कूएँ, ताल आदि में इतना कम पानी रह जाना कि काम में लाया या निकाला न जा सके। पानी तोड़ना=नाव खेने के समय डाँड़ या बल्ली से पानी चीरना या हटाना। पानी काटना। (मल्लाह)। पानी थामना=धार या प्रवाह के विरुद्ध नाव ले जाना। धार पर चढ़ाना। (लश०) (पशुओं को) पानी दिखाना=घोड़े, बैल आदि को पानी पिलाने के लिए उनके सामने पानी भरा बरतन रखना या उन्हें जलाशय तक ले जाना। पानी देना=(क) सींचने के लिए क्यारियों, खेतों आदि में पानी डालना। (ख) पितरों का तर्पण करना। पानी न माँगना=भीषण आघात लगने पर ऐसी स्थिति में आना या होना कि पीने के लिए पानी तक माँगने की शक्ति न रह जाय। पानी पढ़ना=मंत्र पढ़कर पानी फूँकना। जल अभिमंत्रित करना। पानी पर नींब (या बुनियाद) होना=बहुत ही अनिश्चित या दुर्बल आधार होना। पानी परोरना=दे० ऊपर ‘पानी छानना’। पानी पी पीकर=बार बार शक्ति संचित करके। जैसे—पानी पी पीकर किसी को कोसना। विशेष—बहुत अधिक बोलने से गला सूखने लगता है, जिसे तर करने के लिए बोलनेवाले को रह-रहकर पानी का घूँट पीना पड़ता है। इसी आधार पर यह मुहा० बना है। (किसी चीज या बात पर) पानी फिरना या फिर जाना=पूरी तरह से चौपट, नष्ट या निरर्थक हो जाना। बिलकुल तत्वहीन या निःसार हो जाना। पानी फूँकना=खौलते हुए पानी में उबाल आना। (किसी चीज या बात पर) पानी फेरना या फेर देना। (क) पूरी तरह नष्ट या चौपट करना। (ख) सारा किया-धरा विफल या व्यर्थ कर देना। जैसे—जरा सी भूल से तुमने मेरे सारे परिश्रम पर पानी फेर दिया। पानी बराना=(क) छोटी नालियाँ बनाकर और क्यारियाँ काटकर खेत सींचना। (ख) ऐसी व्यवस्था करना जिसमें नालियों का पानी इधर-उधर बहने न पावे। (किसी का किसी के सामने) पानी भरना=किसी की तुलना में बहुत ही तुच्छ या हीन सिद्ध होना। उदा०—फूले शफक तो जर्द हों गालों के सामने। पानी भरे घटा तेरे बालों के सामने।—कोई शायर। (कहीं) पानी मरना=किसी स्थान पर पानी का एकत्र होकर सोखा जाना या किसी संधि में प्रविष्ट होकर वास्तु-रचना को हानि पहुँचाना। जैसे—इस दरज से छत (या दीवार) में पानी भरता है। (किसी के सिर) पानी मरना=किसी का ऐसी स्थिति में आना या होना कि उस पर किसी प्रकार का आक्षेप, आरोप या कलंक हो या लग सके या उसे किसी बात से लज्जित होना पड़े। पानी में आग लगाना=(क) असंभव बात संभव कर दिखलाना। (ख) जहाँ लड़ाई-झगड़े की कोई संभावना न हो, वहाँ भी लड़ाई-झगड़ा खड़ा कर देना। पानी में फेंकना या बहाना=व्यर्थ नष्ट या बरबाद करना। (कहीं) पानी लगना=किसी स्थान पर पानी इकट्ठा होना। पानी जमा होना। (दाँतों में) पानी लगना=पानी की ठंढक से दाँतों में टीस होना। पानी लेना=दे० ऊपर ‘पानी छूना’। पानी सिर से (या पैर से) गुजरना=दे० ‘सिर’ के अंतर्ग०। पानी से पहले पाड़, पुल या बाँध बाँधना=किसी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न होने पर भी केवल आशंकावश बचाव का प्रयत्न या प्रयास करना। गले गले पानी में=लाख कठिनाइयाँ होने पर भी। जैसे—तुम्हारा रुपया तो हम गले गले पानी में भी चुका देंगे। विशेष—बाढ़ आने पर आदमी का धड़ डूबता है और गले तक पानी आता है तब मृत्यु या विनाश समीप दिखाई देता है। इसी आधार पर यह मुहा० बना है। २. उक्त तत्त्व का कोई ऐसा रूप जो किसी दूसरे पदार्थ में से आपसे आप या उबालने आदि पर निकला हो या उस पदार्थ के अंश से युक्त हो। जैसे—दही या नारियल का पानी, चूने या नमक का पानी, दाल या नीम का पानी। क्रि० प्र०—आना।—निकलना।—रसना। मुहा०—(किसी वस्तु का) पानी छोड़ना=किसी चीज में से थोड़ा-थोड़ा पानी या और कोई तरल पदार्थ रस-रसकर निकलना। जैसे—पकाने पर किसी तरकारी का पानी छोड़ना। ३. किसी विशिष्ट प्रकार के गुण या तत्त्व से युक्त किया हुआ कोई ऐसा तरल पदार्थ जिसके योग से किसी दूसरी चीज में कोई गुण या तत्त्व सम्मिलित किया जाता है अथवा किसी प्रकार का प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। जैसे—जहर का पानी, मुलम्मे का पानी। पद—खारा पानी=सोडा मिला हुआ वह पानी जो बंद बोतलों में पीने के लिए बिकता है। मीठा पानी=उक्त प्रकार का वह पानी जिसमें नींबू आदि का सत्त मिला रहता है। विलायती पानी=यंत्र की सहायता से और वाष्प के जोर से बोतलों में भरा हुआ पानी जो सम्मिश्रण, स्वाद आदि के विचार से अनेक प्रकार का होता है। मुहा०—(किसी चीज पर) पानी चढ़ाना, देना या फेरना=किसी तरल पदार्थ या घोल के योग से किसी वस्तु में चमक लाना। ओप लाना। जिला करना। जैसे—चाँदी की अँगूठी पर सोने का पानी चढ़ाना। (किसी चीज से) पानी बुझाना=ईंट, धातु-खंड या ऐसी ही और कोई चीज आग में अच्छी तरह तपाकर और लाल करके इसलिए तुरंत पानी में डालना कि उसका कुछ गुण या प्रभाव पानी में आ जाय। (चिकित्सा आदि के प्रसंग में ऐसे पानी का उपयोग होता है।) (कोई चीज किसी) पानी में बुझाना=किसी विशिष्ट क्रिया से तैयार किये हुए पानी में कोई चीज गरम करके इसलिए डालना कि उस चीज में उस पानी का कोई विशिष्ट गुण या प्रभाव आ जाय। जैसे—जहर के पानी से तलवार बुझाना। ४. उक्त के आधार पर काट करनेवाली चमकदार और बढ़िया तलवार या ऐसा ही और कोई बड़ा अस्त्र। ५. किसी प्रकार की प्रक्रिया में हरबार होनेवाला पानी का उपयोग या प्रयोग। जैसे—(क) तीन पानी का गेहूँ अर्थात् ऐसा गेहूँ जिसकी फसल तीन बार सींची गई हो। (ख) कपड़ों की दो पानी की धुलाई; अर्थात् दो बार धोया जाना। ६. आकाश से जल की होनेवाली वृष्टि। वर्षा। मेह। क्रि० प्र०—आना।—गिरना।—पड़ना।—बरसना। मुहा०—पानी उठना =आकाश में घटाओं या बादलों का आकर छाना जो वर्षा का सूचक होता है। पानी टूटना=लगातार होनेवाली वर्षा बन्द होना या रुकना। पानी बाँधना=जादू या टोना-टोटका करके बरसते या बहते हुए पानी की धार रोकना। ७. प्रतिवर्ष होनेवाली वर्षा के विचार से, पूरे एक वर्ष का समय। जैसे—अभी तो यह पेड़ तीन ही पानी का है; अर्थात् इसने तीन ही बरसातें देखी हैं, या यह तीन ही वर्ष का पुराना है। ८. उक्त के आधार पर कोई काम एक बार या हर बार होने की क्रिया या भाव। दफा। जैसे—(क) वहाँ मुसलमानों और राजपूतों में कई पानी भिडंत हुई थी। (ख) दोनों में एक पानी कुश्ती हो तो अभी फैसला हो जाय। ९. शरीर के किसी अंग के क्षत में से विकार आदि के रूप में निकलने रसनेवाला तरल अंश या पदार्थ। जैसे—आँख या नाक से पानी जाना। मुहा०—पानी उतरना=आँतों या पेट का पानी उतर कर नीचे अंडकोश में आना और एकत्र होना जो एक प्रकार का रोग है। १॰. किसी स्थान का जल-वायु अथवा प्राकृतिक या सामाजिक परिस्थिति जिसका प्रभाव प्राणियों के शारीरिक स्वास्थ्य अथवा आचार-विचार, रहन-सहन आदि पर पड़ता है। जैसे—अच्छे पानी का घोड़ा। पद—कड़ा पानी=ऐसा जलवायु जिसमें उत्पन्न या पले हुए प्राणी ढीले और निर्बल होते हैं। मुहा०—(किसी व्यक्ति को कहीं का) पानी लगना=(क) किसी स्थान के जलवायु का शरीर पर दूषित या हानिकारक परिणाम या प्रभाव होना। जैसे—(क) जब से उन्हें पहाड़ का पानी लगा है, तब से वे बराबर बीमार ही रहते हैं। (ख) कहीं के दूषित वातावरण या परिस्थितियों का प्रभाव पड़ना। जैसे—देहात से आते ही तुम्हें शहर का पानी लगा। ११. वह जो पानी की तरह कोमल, गीला, ठंडा, नरम या सरस हो। जैसे—तुमने आटा क्या गूँधा है, बिलकुल पानी कर दिया है। मुहा०—(काम को) पानी करना=बहुत ही सरल, सहज, साध्य या सुगम कर डालना। जैसे—मैंने इस काम को पानी कर दिया। (किसी व्यक्ति को) पानी करना या कर देना=कठोरता, क्रोध आदि दूर करके शांत या सरस कर देना। (किसी व्यक्ति को) पानी पानी करना=अत्यन्त लज्जित करना। (किसी का) पानीपानी होना=(क) मन की कठोर वृत्ति का सहसा बदलकर बहुत ही कोमल हो जाना। (ख) किसी घटना या बात के प्रभाव या फल से बहुत ही लज्जित होना। (किसी का) पानी होना या हो जाना=उग्रता, क्रोध आदि का पूरी तरह से शमन होना; और उसके स्थान पर दया, नम्रता आदि का आविर्भाव होना। १२. पानी की तरह फीका या स्वादहीन पदार्थ। जैसे—दूध क्या है, निरा पानी है। १३. मद्य। शराब। (बोल-चाल) पद—गरम पानी=शराब। १४. पुरुष का वीर्य या शुक्र। मुहा०—पानी गिराना=स्त्री के साथ उदासीनता या उपेक्षापूर्वक अथवा विशिष्ट सुख का बिना अनुभव किये यों ही मैथुन या संभोग करना। (बाजारू) १५. पुरुषत्व, मान-प्रतिष्ठा आदि के विचार से मनुष्य में होनेवाला अभिमान, वीरता या ऐसा ही और कोई तत्त्व या भावना। जैसे—ऐसा आदमी किस काम का जिसमें कुछ भी पानी न हो। १६. मान। प्रतिष्ठा। इज्जत। आबरू। क्रि० प्र०—जाना।—बचाना।—रखना।—रहना। पद—पत-पानी=प्रतिष्ठा और सम्मान। इज्जत-आबरू। मुहा०—(किसी का) पानी उतारना या उतार लेना=अपमानित करना। इज्जत उतारना। (किसी को) बे-पानी करना=अपमानित या अप्रतिष्ठित करना। १७. किसी पदार्थ का वह गुण या तत्त्व जिसके फल-स्वरूप उसमें किसी तरह की आभा, चमक या पारदर्शकता आती हो। जैसे—मोती या हीरे का पानी। वि० [?] बहुत सरल और सुगम। उदा०—गुलिस्ताँ के बाद फारसी की और किताबें पानी हो गई थीं।—मिरजा रुसवा (उमराव जान में)
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पानी आँवला  : पुं० [सं० पानीयामलक] आँवले की तरह का एक क्षुप जो जलाशयों के किनारे होता है।
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पानी आलू  : पुं० [सं० पानीयालु] जलाशय के किनारे होनेवाला एक प्रकार का कंद। जलालु।
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पानी-कल  : पुं०=जल-कल।
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पानी-तराश  : पुं० [हिं० पानी+तराशना] जहाज या नाव के पेदें में वह बड़ी लकड़ी जिससे वह पानी को चीरता हुआ आगे बढ़ता है।
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पानीदार  : वि० [हिं० पानी+फा० दार (प्रत्य०)] १. जिसमें पानी अर्थात् आभा या चमक हो। जैसे—पानीदार हीरा। २. (धातु का कोई उपकरण) जिस पर किसी रासायनिक प्रक्रिया से चमक लाने के लिए किसी तरह का पानी चढ़ाया गया हो। जैसे—पानीदार तलवार। ३. (व्यक्ति) जिसे अपने गौरव, प्रतिष्ठा, मान आदि का पूरा-पूरा ध्यान हो। अपने गौरव, प्रतिष्ठा, मान आदि पर आँच न आने देनेवाला। स्वाभिमानी।
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पानी-देवा  : वि० [हिं० पानी+देवा=देनेवाला] पितरों को पानी देने अर्थात् उनका तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि करनेवाला, फलतः वंशज या संतान। पुं० १. पुत्र। बेटा। २. अपने कुल या वंश का व्यक्ति।
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पानीपत  : पुं० [हिं०] १. दिल्ली से ५५ मील उत्तर की ओर स्थित एक प्रसिद्ध नगर। २. उक्त नगर के समीप स्थित एक प्रसिद्ध क्षेत्र या बहुत बड़ा मैदान जहाँ अनेक बड़े-बड़े युद्ध हो चुके हैं।
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पानीफल  : पुं० [हिं० पानी+फल] सिंघाड़ा (फल)।
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पानीवेल  : स्त्री० [हिं०] एक प्रकार की लता जो प्रायः साल के जंगलों में पाई जाती और गरमी में फूलती तथा बरसात में फलती है। इसके फल खाये जाते हैं और जड़ दवा के काम आती है।
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पानीय  : विं० [सं०√पा (पीना, रक्षा करना)+अनीयर्] १. जो पीया जा सके अथवा जो पिये जाने के योग्य हो। २. जिसकी रक्षा की जा सके या जिसकी रक्षा करना आवश्यक अथवा उचित हो। पुं० कोई ऐसा तरल स्वादिष्ट पदार्थ जो पीने के काम में आता हो। (ड्रिंक, बीवरेज)
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पानीय-चूर्णिका  : स्त्री० [ष० त०] बालू। रेत।
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पानीय-नकुल  : पुं० [स० त०] पानी में रहनेवाला नेवला अर्थात् ऊदबिलाव।
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पानीय-पृष्ठज  : पुं० [सं० पानीय-पृष्ठ, ष० त०,√जन्+ड] जलकुम्भी नामक पौधा।
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पानीय-फल  : पुं० [ष० त०] मखाना।
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पानीय-मूलक  : पुं० [ब० स०, कप्] बकुची।
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पानीय-शाला  : स्त्री० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ सार्वजनिक रूप से राह-चलनेवालों को पानी पिलाने की व्यवस्था हो। पौसरा। प्याऊ।
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पानीय शालिका  : स्त्री० [ष० त०] पानीय-शाला।
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पानीयामलक  : पुं० [सं० पानीय-आमलक, मध्य० स०] पानी आँवला।
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पानीयालु  : पुं० [सं० पानीय-आलु, मध्य० स०] पानी आलू नामक कंद। जलालु।
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पानीयाश्ना  : स्त्री० [सं० पानीय√अश् (खाना)+न+टाप्] एक प्रकार की घास। बल्वजा।
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पानी  : पुं० [सं० पानीय] १. वह प्रसिद्ध निर्गंध पारदर्शी और पर्ण-हीन तरल या द्रव पदार्थ जो झील, नदियों, समुद्रों आदि में भरा रहता है। तथा बादलों से वर्षा के रूप में पृथ्वी पर बरसता है और जो नहाने-धोने, पीने, खेत सींचने आदि के काम में आता है। जल। विशेष—वायु के उपरांत जल या पानी जीव-जंतुओं वनस्पतियों आदि के पालन-पोषण तथा वर्धन के लिए सबसे अधिक आवश्यक है; इसलिए संस्कृत में इसे ‘जीवन’ भी कहते हैं। भारतीय दर्शन में इसकी गणना पंच महाभूतों में होती है; परन्तु आधुनिक रासायनिक अनुसंधान के अनुसार यह दो तिहाई हाइड्रोजन तथा एक तिहाई आक्सिजन का मिश्रण है। अधिक सरदी पड़ने पर यह जमकर बरफ बन जाता है। और अधिक ताप पाकर उबलने या खौलने लगता है अथवा भाप बनकर उड़ जाता है। वर्षा के प्रसंग में इसके साथ आना, गिरना, पड़ना, बरसना आदि जलाशयों के तल के विचार से उतरना, चढ़ना आदि और कूएँ के मूल सोते के विचार से आना, टूटना, निकलना आदि क्रियाओं का प्रयोग होती है। किसी तल के छोटे-छोटे छिद्रों से आने या निकलने के प्रसंग में इसके साथ आना चूना, छूटना, टपकना, निकलना, रसना आदि क्रियाएँ लगती हैं। किसी आधान में या स्थल पर एकत्रित राशि के संबंध में प्रसंग के अनुसार ठहरना, बहना, रुकना आदि क्रियाओं का भी प्रयोग होता है। कुछ अवस्थाओं में इसकी कोमलता, तरलता, शीतलता, सरसता आदि गुणों के आधार पर भी इसके कई मुहावरे बनते हैं। पद—पानी का आसरा=नाव की बारी पर लगा हुआ कुछ झुका हुआ वह तख्ता जिस पर छाजन की ओलती का पानी गिरता है। बारी। (लश०) पानी का बतासा=(क) बुलबुला। बुदबुद। (ख) दे० नीचे ‘पानी का बुलबुला’। पानी का बुलबुला=बुलबुले की तरह क्षण भर में नष्ट हो जानेवाला। क्षण-भंगुर। नाशवान्। विनाशशील। पानी की तरह पतला=(क) अत्यन्त तुच्छ या हीन। (ख) बहुत कम महत्त्व का। पानी की पोट=ऐसा पदार्थ जिसमें अधिकतर पानी ही पानी हो। जिसमें पानी के सिवा और तत्त्व बहुत कम हो। (ख) ऐसी तरकारियाँ, साग आदि जिनमें जलीय अंश बहुत अधिक हो। पानी के मोल=प्रायः उतना ही सस्ता जितना पीने का पानी होता है। बहुत अधिक सस्ता। पानी देना=वंशज जो पितरों को पानी देता अर्थात् उनता तर्पण करता है। पानी भर खाल=मनुष्य का क्षणभंगुर और सारहीन शरीर। पानी से पतला=(क) बहुत ही तुच्छ या हीन। (ख) बहुत ही सहज या सुगम। कच्चा पानी=ऐसा पानी जो औटाया या पकाया हुआ न हो। नरम पानी=(क) ऐसा पानी जिसके बहाव में अधिक वेग न हो। (ख) ऐसा पानी जिसमें खनिज तत्त्व अपेक्षया कम हों। पक्का पानी=औटाया, गरम किया या पकाया हुआ पानी। भारी पानी=वह पानी जिसमें खिनज पदार्थ अधिक मात्रा में मिले हों। हलका पानी=ऐसा पानी जिसमें खनिज पदार्थ बहुत थोड़े हों। नरम पानी। मुहा०—पानी काटना=(क) पानी की नाली या बाँध काट देना। एक नाली में से दूसरी में पानी ले जाना। (ख) तैरते समय हाथों से आगे का पानी हटाना। पानी चीरना। पानी की तरह बहाना=बहुत ही लापरवाही से और बहुत अधिक मात्रा या या मान में व्यय करना। जैसे—(क) उन्होंने लाखों रुपए पानी की तरह बहाँ दिए। (ख) युद्ध क्षेत्र में सैनिकों ने पानी की तरह खून बहाया। पानी के रेले में बहाना=दे० ऊपर ‘पानी की तरह बहाना’। पानी चढ़ाना=सिंचाई के काम के लि खेत तक पानी पहुँचाना। (किसी चीज पर) पानी चलाना=चौपट या नष्ट करना। (दे० ‘पानी फेरना’) पानी छानना=बच्चे को पहले-पहल माता निकलने के बाद तथा उसका जोर कम होने पर किया जानेवाला एक प्रकार का मांगलिक उपचार या टोटका जिसमें माता उसे बच्चे को इस प्रकार गोद में लेकर बैठती है कि भिगोये हुए चने का पानी जब बच्चे के सिर पर डाला जाता है, तब वह गिरकर माता की गोद में पड़ता है। (कहते हैं कि यह उपचार माता की गोद सदा भरी-पूरी रखने के लिए किया जाता है)। पानी छूना=मल-त्याग के उपरांत जल से गुदा को धोना। आबदस्त लेना। (ग्राम्य) पानी टूटना=कूएँ, ताल आदि में इतना कम पानी रह जाना कि काम में लाया या निकाला न जा सके। पानी तोड़ना=नाव खेने के समय डाँड़ या बल्ली से पानी चीरना या हटाना। पानी काटना। (मल्लाह)। पानी थामना=धार या प्रवाह के विरुद्ध नाव ले जाना। धार पर चढ़ाना। (लश०) (पशुओं को) पानी दिखाना=घोड़े, बैल आदि को पानी पिलाने के लिए उनके सामने पानी भरा बरतन रखना या उन्हें जलाशय तक ले जाना। पानी देना=(क) सींचने के लिए क्यारियों, खेतों आदि में पानी डालना। (ख) पितरों का तर्पण करना। पानी न माँगना=भीषण आघात लगने पर ऐसी स्थिति में आना या होना कि पीने के लिए पानी तक माँगने की शक्ति न रह जाय। पानी पढ़ना=मंत्र पढ़कर पानी फूँकना। जल अभिमंत्रित करना। पानी पर नींब (या बुनियाद) होना=बहुत ही अनिश्चित या दुर्बल आधार होना। पानी परोरना=दे० ऊपर ‘पानी छानना’। पानी पी पीकर=बार बार शक्ति संचित करके। जैसे—पानी पी पीकर किसी को कोसना। विशेष—बहुत अधिक बोलने से गला सूखने लगता है, जिसे तर करने के लिए बोलनेवाले को रह-रहकर पानी का घूँट पीना पड़ता है। इसी आधार पर यह मुहा० बना है। (किसी चीज या बात पर) पानी फिरना या फिर जाना=पूरी तरह से चौपट, नष्ट या निरर्थक हो जाना। बिलकुल तत्वहीन या निःसार हो जाना। पानी फूँकना=खौलते हुए पानी में उबाल आना। (किसी चीज या बात पर) पानी फेरना या फेर देना। (क) पूरी तरह नष्ट या चौपट करना। (ख) सारा किया-धरा विफल या व्यर्थ कर देना। जैसे—जरा सी भूल से तुमने मेरे सारे परिश्रम पर पानी फेर दिया। पानी बराना=(क) छोटी नालियाँ बनाकर और क्यारियाँ काटकर खेत सींचना। (ख) ऐसी व्यवस्था करना जिसमें नालियों का पानी इधर-उधर बहने न पावे। (किसी का किसी के सामने) पानी भरना=किसी की तुलना में बहुत ही तुच्छ या हीन सिद्ध होना। उदा०—फूले शफक तो जर्द हों गालों के सामने। पानी भरे घटा तेरे बालों के सामने।—कोई शायर। (कहीं) पानी मरना=किसी स्थान पर पानी का एकत्र होकर सोखा जाना या किसी संधि में प्रविष्ट होकर वास्तु-रचना को हानि पहुँचाना। जैसे—इस दरज से छत (या दीवार) में पानी भरता है। (किसी के सिर) पानी मरना=किसी का ऐसी स्थिति में आना या होना कि उस पर किसी प्रकार का आक्षेप, आरोप या कलंक हो या लग सके या उसे किसी बात से लज्जित होना पड़े। पानी में आग लगाना=(क) असंभव बात संभव कर दिखलाना। (ख) जहाँ लड़ाई-झगड़े की कोई संभावना न हो, वहाँ भी लड़ाई-झगड़ा खड़ा कर देना। पानी में फेंकना या बहाना=व्यर्थ नष्ट या बरबाद करना। (कहीं) पानी लगना=किसी स्थान पर पानी इकट्ठा होना। पानी जमा होना। (दाँतों में) पानी लगना=पानी की ठंढक से दाँतों में टीस होना। पानी लेना=दे० ऊपर ‘पानी छूना’। पानी सिर से (या पैर से) गुजरना=दे० ‘सिर’ के अंतर्ग०। पानी से पहले पाड़, पुल या बाँध बाँधना=किसी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न होने पर भी केवल आशंकावश बचाव का प्रयत्न या प्रयास करना। गले गले पानी में=लाख कठिनाइयाँ होने पर भी। जैसे—तुम्हारा रुपया तो हम गले गले पानी में भी चुका देंगे। विशेष—बाढ़ आने पर आदमी का धड़ डूबता है और गले तक पानी आता है तब मृत्यु या विनाश समीप दिखाई देता है। इसी आधार पर यह मुहा० बना है। २. उक्त तत्त्व का कोई ऐसा रूप जो किसी दूसरे पदार्थ में से आपसे आप या उबालने आदि पर निकला हो या उस पदार्थ के अंश से युक्त हो। जैसे—दही या नारियल का पानी, चूने या नमक का पानी, दाल या नीम का पानी। क्रि० प्र०—आना।—निकलना।—रसना। मुहा०—(किसी वस्तु का) पानी छोड़ना=किसी चीज में से थोड़ा-थोड़ा पानी या और कोई तरल पदार्थ रस-रसकर निकलना। जैसे—पकाने पर किसी तरकारी का पानी छोड़ना। ३. किसी विशिष्ट प्रकार के गुण या तत्त्व से युक्त किया हुआ कोई ऐसा तरल पदार्थ जिसके योग से किसी दूसरी चीज में कोई गुण या तत्त्व सम्मिलित किया जाता है अथवा किसी प्रकार का प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। जैसे—जहर का पानी, मुलम्मे का पानी। पद—खारा पानी=सोडा मिला हुआ वह पानी जो बंद बोतलों में पीने के लिए बिकता है। मीठा पानी=उक्त प्रकार का वह पानी जिसमें नींबू आदि का सत्त मिला रहता है। विलायती पानी=यंत्र की सहायता से और वाष्प के जोर से बोतलों में भरा हुआ पानी जो सम्मिश्रण, स्वाद आदि के विचार से अनेक प्रकार का होता है। मुहा०—(किसी चीज पर) पानी चढ़ाना, देना या फेरना=किसी तरल पदार्थ या घोल के योग से किसी वस्तु में चमक लाना। ओप लाना। जिला करना। जैसे—चाँदी की अँगूठी पर सोने का पानी चढ़ाना। (किसी चीज से) पानी बुझाना=ईंट, धातु-खंड या ऐसी ही और कोई चीज आग में अच्छी तरह तपाकर और लाल करके इसलिए तुरंत पानी में डालना कि उसका कुछ गुण या प्रभाव पानी में आ जाय। (चिकित्सा आदि के प्रसंग में ऐसे पानी का उपयोग होता है।) (कोई चीज किसी) पानी में बुझाना=किसी विशिष्ट क्रिया से तैयार किये हुए पानी में कोई चीज गरम करके इसलिए डालना कि उस चीज में उस पानी का कोई विशिष्ट गुण या प्रभाव आ जाय। जैसे—जहर के पानी से तलवार बुझाना। ४. उक्त के आधार पर काट करनेवाली चमकदार और बढ़िया तलवार या ऐसा ही और कोई बड़ा अस्त्र। ५. किसी प्रकार की प्रक्रिया में हरबार होनेवाला पानी का उपयोग या प्रयोग। जैसे—(क) तीन पानी का गेहूँ अर्थात् ऐसा गेहूँ जिसकी फसल तीन बार सींची गई हो। (ख) कपड़ों की दो पानी की धुलाई; अर्थात् दो बार धोया जाना। ६. आकाश से जल की होनेवाली वृष्टि। वर्षा। मेह। क्रि० प्र०—आना।—गिरना।—पड़ना।—बरसना। मुहा०—पानी उठना =आकाश में घटाओं या बादलों का आकर छाना जो वर्षा का सूचक होता है। पानी टूटना=लगातार होनेवाली वर्षा बन्द होना या रुकना। पानी बाँधना=जादू या टोना-टोटका करके बरसते या बहते हुए पानी की धार रोकना। ७. प्रतिवर्ष होनेवाली वर्षा के विचार से, पूरे एक वर्ष का समय। जैसे—अभी तो यह पेड़ तीन ही पानी का है; अर्थात् इसने तीन ही बरसातें देखी हैं, या यह तीन ही वर्ष का पुराना है। ८. उक्त के आधार पर कोई काम एक बार या हर बार होने की क्रिया या भाव। दफा। जैसे—(क) वहाँ मुसलमानों और राजपूतों में कई पानी भिडंत हुई थी। (ख) दोनों में एक पानी कुश्ती हो तो अभी फैसला हो जाय। ९. शरीर के किसी अंग के क्षत में से विकार आदि के रूप में निकलने रसनेवाला तरल अंश या पदार्थ। जैसे—आँख या नाक से पानी जाना। मुहा०—पानी उतरना=आँतों या पेट का पानी उतर कर नीचे अंडकोश में आना और एकत्र होना जो एक प्रकार का रोग है। १॰. किसी स्थान का जल-वायु अथवा प्राकृतिक या सामाजिक परिस्थिति जिसका प्रभाव प्राणियों के शारीरिक स्वास्थ्य अथवा आचार-विचार, रहन-सहन आदि पर पड़ता है। जैसे—अच्छे पानी का घोड़ा। पद—कड़ा पानी=ऐसा जलवायु जिसमें उत्पन्न या पले हुए प्राणी ढीले और निर्बल होते हैं। मुहा०—(किसी व्यक्ति को कहीं का) पानी लगना=(क) किसी स्थान के जलवायु का शरीर पर दूषित या हानिकारक परिणाम या प्रभाव होना। जैसे—(क) जब से उन्हें पहाड़ का पानी लगा है, तब से वे बराबर बीमार ही रहते हैं। (ख) कहीं के दूषित वातावरण या परिस्थितियों का प्रभाव पड़ना। जैसे—देहात से आते ही तुम्हें शहर का पानी लगा। ११. वह जो पानी की तरह कोमल, गीला, ठंडा, नरम या सरस हो। जैसे—तुमने आटा क्या गूँधा है, बिलकुल पानी कर दिया है। मुहा०—(काम को) पानी करना=बहुत ही सरल, सहज, साध्य या सुगम कर डालना। जैसे—मैंने इस काम को पानी कर दिया। (किसी व्यक्ति को) पानी करना या कर देना=कठोरता, क्रोध आदि दूर करके शांत या सरस कर देना। (किसी व्यक्ति को) पानी पानी करना=अत्यन्त लज्जित करना। (किसी का) पानीपानी होना=(क) मन की कठोर वृत्ति का सहसा बदलकर बहुत ही कोमल हो जाना। (ख) किसी घटना या बात के प्रभाव या फल से बहुत ही लज्जित होना। (किसी का) पानी होना या हो जाना=उग्रता, क्रोध आदि का पूरी तरह से शमन होना; और उसके स्थान पर दया, नम्रता आदि का आविर्भाव होना। १२. पानी की तरह फीका या स्वादहीन पदार्थ। जैसे—दूध क्या है, निरा पानी है। १३. मद्य। शराब। (बोल-चाल) पद—गरम पानी=शराब। १४. पुरुष का वीर्य या शुक्र। मुहा०—पानी गिराना=स्त्री के साथ उदासीनता या उपेक्षापूर्वक अथवा विशिष्ट सुख का बिना अनुभव किये यों ही मैथुन या संभोग करना। (बाजारू) १५. पुरुषत्व, मान-प्रतिष्ठा आदि के विचार से मनुष्य में होनेवाला अभिमान, वीरता या ऐसा ही और कोई तत्त्व या भावना। जैसे—ऐसा आदमी किस काम का जिसमें कुछ भी पानी न हो। १६. मान। प्रतिष्ठा। इज्जत। आबरू। क्रि० प्र०—जाना।—बचाना।—रखना।—रहना। पद—पत-पानी=प्रतिष्ठा और सम्मान। इज्जत-आबरू। मुहा०—(किसी का) पानी उतारना या उतार लेना=अपमानित करना। इज्जत उतारना। (किसी को) बे-पानी करना=अपमानित या अप्रतिष्ठित करना। १७. किसी पदार्थ का वह गुण या तत्त्व जिसके फल-स्वरूप उसमें किसी तरह की आभा, चमक या पारदर्शकता आती हो। जैसे—मोती या हीरे का पानी। वि० [?] बहुत सरल और सुगम। उदा०—गुलिस्ताँ के बाद फारसी की और किताबें पानी हो गई थीं।—मिरजा रुसवा (उमराव जान में)
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पानी आँवला  : पुं० [सं० पानीयामलक] आँवले की तरह का एक क्षुप जो जलाशयों के किनारे होता है।
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पानी आलू  : पुं० [सं० पानीयालु] जलाशय के किनारे होनेवाला एक प्रकार का कंद। जलालु।
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पानी-कल  : पुं०=जल-कल।
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पानी-तराश  : पुं० [हिं० पानी+तराशना] जहाज या नाव के पेदें में वह बड़ी लकड़ी जिससे वह पानी को चीरता हुआ आगे बढ़ता है।
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पानीदार  : वि० [हिं० पानी+फा० दार (प्रत्य०)] १. जिसमें पानी अर्थात् आभा या चमक हो। जैसे—पानीदार हीरा। २. (धातु का कोई उपकरण) जिस पर किसी रासायनिक प्रक्रिया से चमक लाने के लिए किसी तरह का पानी चढ़ाया गया हो। जैसे—पानीदार तलवार। ३. (व्यक्ति) जिसे अपने गौरव, प्रतिष्ठा, मान आदि का पूरा-पूरा ध्यान हो। अपने गौरव, प्रतिष्ठा, मान आदि पर आँच न आने देनेवाला। स्वाभिमानी।
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पानी-देवा  : वि० [हिं० पानी+देवा=देनेवाला] पितरों को पानी देने अर्थात् उनका तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि करनेवाला, फलतः वंशज या संतान। पुं० १. पुत्र। बेटा। २. अपने कुल या वंश का व्यक्ति।
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पानीपत  : पुं० [हिं०] १. दिल्ली से ५५ मील उत्तर की ओर स्थित एक प्रसिद्ध नगर। २. उक्त नगर के समीप स्थित एक प्रसिद्ध क्षेत्र या बहुत बड़ा मैदान जहाँ अनेक बड़े-बड़े युद्ध हो चुके हैं।
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पानीफल  : पुं० [हिं० पानी+फल] सिंघाड़ा (फल)।
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पानीवेल  : स्त्री० [हिं०] एक प्रकार की लता जो प्रायः साल के जंगलों में पाई जाती और गरमी में फूलती तथा बरसात में फलती है। इसके फल खाये जाते हैं और जड़ दवा के काम आती है।
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पानीय  : विं० [सं०√पा (पीना, रक्षा करना)+अनीयर्] १. जो पीया जा सके अथवा जो पिये जाने के योग्य हो। २. जिसकी रक्षा की जा सके या जिसकी रक्षा करना आवश्यक अथवा उचित हो। पुं० कोई ऐसा तरल स्वादिष्ट पदार्थ जो पीने के काम में आता हो। (ड्रिंक, बीवरेज)
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पानीय-चूर्णिका  : स्त्री० [ष० त०] बालू। रेत।
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पानीय-नकुल  : पुं० [स० त०] पानी में रहनेवाला नेवला अर्थात् ऊदबिलाव।
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पानीय-पृष्ठज  : पुं० [सं० पानीय-पृष्ठ, ष० त०,√जन्+ड] जलकुम्भी नामक पौधा।
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पानीय-फल  : पुं० [ष० त०] मखाना।
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पानीय-मूलक  : पुं० [ब० स०, कप्] बकुची।
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पानीय-शाला  : स्त्री० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ सार्वजनिक रूप से राह-चलनेवालों को पानी पिलाने की व्यवस्था हो। पौसरा। प्याऊ।
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पानीय शालिका  : स्त्री० [ष० त०] पानीय-शाला।
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पानीयामलक  : पुं० [सं० पानीय-आमलक, मध्य० स०] पानी आँवला।
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पानीयालु  : पुं० [सं० पानीय-आलु, मध्य० स०] पानी आलू नामक कंद। जलालु।
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पानीयाश्ना  : स्त्री० [सं० पानीय√अश् (खाना)+न+टाप्] एक प्रकार की घास। बल्वजा।
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