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शब्द का अर्थ

पाठ  : पुं० [सं०√पठ् (पढ़ना)+घङ्] १. पढ़ने की क्रिया या भाव। पढ़ाई। २. वह विषय जो पढ़ा जाये। ३. किसी ग्रंथ का उतना अंश जितना एक दिन या एक बार में गुरु या शिक्षक से पढ़ा जाय। सबक। (लेसन) मुहा०—(किसी को) पाठ पढ़ाना=दुष्ट उद्देश्य से किसी को कोई बात अच्छी तरह समझना। पट्टी पढ़ाना। (व्यंग्य)। पाठ फेरना=बार-बार दोहराना। उद्धरणी करना। उलटा पाठ पढ़ाना=कुछ का कुछ समझा देना। उलटी-पुलटी बातें कहकर बहका देना। ४. नियमपूर्वक अथवा श्रद्धा-भक्ति से और पुण्य-फल प्राप्त करने के उद्देश्य से कोई धर्मग्रंथ पढ़ने की क्रिया या भाव। जैसे—गीता या रामायण का पाठ। ५. किसी पुस्तक के वे अध्याय जो प्रायः एक दिन में या एक साथ पढ़ाये जाते हैं; और जिनमें एक ही विषय रहता है। ६. किसी ग्रंथ या लेख के किसी स्थल पर शब्दों या वाक्यों का विशिष्ट क्रम वा योजना। (टैक्स्ट) जैसे—अमुक पुस्तक में इस पद का पाठ कुछ और ही है। पुं०=पाठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=पठ्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठक  : वि० [सं०√पठ्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० पाठिका] १. पाठ पढ़नेवाला। २. पाठ करनेवाला। ३. पाठ पढ़ानेवाला। पुं० १. विद्यार्थी। २. अध्यापक। ३. धर्मोपदेशक। ४. ब्राह्मणों की एक जाति। ५. आज-कल समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं आदि की दृष्टि में वे लोग जो समाचार-पत्र आदि पढ़ते हों।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठच्छेद  : पुं० [ष० त०] एक पाठ की समाप्ति होने पर और अगले पाठ के आरंभ किये जाने से पहले होनेवाला विराम।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-दोष  : पुं० [ष० त०] किसी ग्रंथ के शब्दों के वर्णों तथा वाक्यों के शब्दों की अशुद्ध या भ्रामक योजना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठन  : पुं० [सं०√पठ्+णिच्+ल्युट्—अन] १. पाठ पढ़ाना। २. पढ़कर सुनाना। ३. वक्तृता देना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठना  : स० [सं० पाठन] पढ़ाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-निश्चय  : पुं० [ष० त०] किसी ग्रंथ के पाठ के अनेक रूप मिलने पर विशिष्ट आधारों पर उसके शुद्ध पाठ का किया जानेवाला निश्चय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-पद्धति  : स्त्री० [ष० त०] पढ़ने की रीति या ढंग।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-प्रणाली  : स्त्री० [ष० त०] पढ़ने की रीति या ढंग।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-भू  : स्त्री० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ वेदादि ग्रंथों का पाठ होता या किया जाता हो। २. ब्राह्मण्य।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-भेद  : पुं० [ष० त०] वह भेद या अंतर जो एक ही ग्रंथ की दो प्रतियों के पाठ में कही-कहीं मिलता हो। पाठांतर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-मंजरी  : स्त्री० [ष० त०] मैना। सारिका।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-शाला  : स्त्री० [ष० त०] वह स्थान जहाँ विद्यार्थियों को पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है।
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पाठशालिनी  : स्त्री० [सं० पाठ√शल् (गति)+णिनि+ङीप्] मैना। सारिका।
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पाठशाली (लिन्)  : वि० [सं० पाठशाला+इनि] पाठ पढ़नेवाला। पुं० विद्यार्थी।
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पाठशालीय  : वि० [सं० पाठशाला+छ—ईय] पाठशाला-संबंधी। पाठशाला का।
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पाठांतर  : पुं० [सं० पाठ-अंतर, मयू० स०] किसी एक ही पुस्तक की विचित्र हस्तलिखित प्रतियों में अथवा विभिन्न संपादकों द्वारा संपादित प्रतियों में होनेवाला शब्दों अथवा उनके वर्णों के क्रम में होनेवाला भेद।
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पाठा  : स्त्री० [सं०√पठ्+घञ्+टाप्] पाढ़ा नाम की लता। वि० [सं० पुष्ट] [स्त्री० पाठी] १. हृष्ट-पुष्ट। २. पट्ठा। जवान। पुं० जवान बकरा, बैल या भैंसा। २. गाय-बैलों की एक जाति। (बुंदेलखंड)
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पाठागार  : पुं० सं० [पाठ-आगार, ष० त०] वह स्थान जहाँ बैठकर किसी विषय का अध्ययन, या ग्रंथों का पाठ किया जाता हो। (स्टडी रूम)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठालय  : पुं० [पाठ-आलय, ष० त०] पाठशाला।
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पाठालोचन  : पुं० [सं० पाठ-आलोचन, ष० त०] आज-कल साहित्यिक क्षेत्र में, इस बात का वैज्ञानिक अनुसंधान या विवेचन कि किसी साहित्यिक कृति के संदिग्ध अंश का मूलपाठ वास्तव में कैसा और क्या रहा होगा। किसी ग्रंथ के मूल और वास्तविक पाठ का ऐसा निर्धारण जो पूरा छान-बीन करके किया जाय। (टेक्सचुअल क्रिटिसिज़म) विशेष—इस प्रकार का पाठालोचन मुख्यतः प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों की अनेक प्रतिलिपियों अथवा ऐसी साहित्यिक कृतियों के संबंध में होता है जिनका प्रकाशन तथा मुद्रण स्वयं लेखक की देख-रेख में न हुआ हो।
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पाठिक  : वि० [सं० पाठ+ठन्—इक] जो मूल पाठ के अनुसार हो।
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पाठिका  : वि० [सं० पाठक+टाप्, इत्व] पाठक का स्त्रीलिंग रूप। स्त्री० पाठा। पाढ़ा।
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पाठित  : भू० कृ० [सं०√पठ्+णिच्+क्त] (पाठ) जो पढ़ाया जा चुका हो।
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पाठी (ठिन्)  : वि० [सं० पाठ+इनि] समस्त पदों के अंत में, पाठ करनेवाला या पाठक। जैसे—वेद-पाठी, सह-पाठी। पुं० [पाठा+इनि] चीते का पेड़। चित्रक वृक्ष।
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पाठीन  : वि० [सं० पाठि√नम् (झुकना)+ड, दीर्घ] पढ़ानेवाला। पुं० १. पहिना (मछली)। २. गूगल का पेड़।
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पाठ्य  : वि० [सं०√पठ्+ण्यत् या√पठ्+णिच्+यत्] १. जो पढ़ा या पढ़ाया जाने को हो। २. पढ़ने या पढ़ाये जाने के योग्य।
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पाठ्य-क्रम  : पुं० [ष० त०] वे सब विषय तथा उनकी पुस्तकें जो किसी विशिष्ट परीक्षा में बैठनेवाले परीक्षार्थियों के लिए निर्धारित हों। (कोर्स)
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पाठ्य-ग्रंथ  : पुं० [सं०] पाठ्य-पुस्तक। (दे०)
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पाठ्य-चर्या  : स्त्री० [सं०] वह पुस्तिका जिसमें विभिन्न परीक्षाओं के लिए निर्धारित विषयों तथा तत्संबंधी पाठ्य-क्रमों का उल्लेख होता है। (करिक्यूलम)
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पाठ्य-पुस्तक  : स्त्री० [कर्म० स०] वह पुस्तक जो पाठशालाओं में विद्यार्थियों को नियमित रूप से पढ़ाई जाती हो। पढ़ाई की पुस्तक। (टेक्स्ट बुक)
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पाठ  : पुं० [सं०√पठ् (पढ़ना)+घङ्] १. पढ़ने की क्रिया या भाव। पढ़ाई। २. वह विषय जो पढ़ा जाये। ३. किसी ग्रंथ का उतना अंश जितना एक दिन या एक बार में गुरु या शिक्षक से पढ़ा जाय। सबक। (लेसन) मुहा०—(किसी को) पाठ पढ़ाना=दुष्ट उद्देश्य से किसी को कोई बात अच्छी तरह समझना। पट्टी पढ़ाना। (व्यंग्य)। पाठ फेरना=बार-बार दोहराना। उद्धरणी करना। उलटा पाठ पढ़ाना=कुछ का कुछ समझा देना। उलटी-पुलटी बातें कहकर बहका देना। ४. नियमपूर्वक अथवा श्रद्धा-भक्ति से और पुण्य-फल प्राप्त करने के उद्देश्य से कोई धर्मग्रंथ पढ़ने की क्रिया या भाव। जैसे—गीता या रामायण का पाठ। ५. किसी पुस्तक के वे अध्याय जो प्रायः एक दिन में या एक साथ पढ़ाये जाते हैं; और जिनमें एक ही विषय रहता है। ६. किसी ग्रंथ या लेख के किसी स्थल पर शब्दों या वाक्यों का विशिष्ट क्रम वा योजना। (टैक्स्ट) जैसे—अमुक पुस्तक में इस पद का पाठ कुछ और ही है। पुं०=पाठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=पठ्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पाठक  : वि० [सं०√पठ्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० पाठिका] १. पाठ पढ़नेवाला। २. पाठ करनेवाला। ३. पाठ पढ़ानेवाला। पुं० १. विद्यार्थी। २. अध्यापक। ३. धर्मोपदेशक। ४. ब्राह्मणों की एक जाति। ५. आज-कल समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं आदि की दृष्टि में वे लोग जो समाचार-पत्र आदि पढ़ते हों।
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पाठच्छेद  : पुं० [ष० त०] एक पाठ की समाप्ति होने पर और अगले पाठ के आरंभ किये जाने से पहले होनेवाला विराम।
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पाठ-दोष  : पुं० [ष० त०] किसी ग्रंथ के शब्दों के वर्णों तथा वाक्यों के शब्दों की अशुद्ध या भ्रामक योजना।
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पाठन  : पुं० [सं०√पठ्+णिच्+ल्युट्—अन] १. पाठ पढ़ाना। २. पढ़कर सुनाना। ३. वक्तृता देना।
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पाठना  : स० [सं० पाठन] पढ़ाना।
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पाठ-निश्चय  : पुं० [ष० त०] किसी ग्रंथ के पाठ के अनेक रूप मिलने पर विशिष्ट आधारों पर उसके शुद्ध पाठ का किया जानेवाला निश्चय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-पद्धति  : स्त्री० [ष० त०] पढ़ने की रीति या ढंग।
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पाठ-प्रणाली  : स्त्री० [ष० त०] पढ़ने की रीति या ढंग।
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पाठ-भू  : स्त्री० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ वेदादि ग्रंथों का पाठ होता या किया जाता हो। २. ब्राह्मण्य।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-भेद  : पुं० [ष० त०] वह भेद या अंतर जो एक ही ग्रंथ की दो प्रतियों के पाठ में कही-कहीं मिलता हो। पाठांतर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ-मंजरी  : स्त्री० [ष० त०] मैना। सारिका।
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पाठ-शाला  : स्त्री० [ष० त०] वह स्थान जहाँ विद्यार्थियों को पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है।
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पाठशालिनी  : स्त्री० [सं० पाठ√शल् (गति)+णिनि+ङीप्] मैना। सारिका।
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पाठशाली (लिन्)  : वि० [सं० पाठशाला+इनि] पाठ पढ़नेवाला। पुं० विद्यार्थी।
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पाठशालीय  : वि० [सं० पाठशाला+छ—ईय] पाठशाला-संबंधी। पाठशाला का।
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पाठांतर  : पुं० [सं० पाठ-अंतर, मयू० स०] किसी एक ही पुस्तक की विचित्र हस्तलिखित प्रतियों में अथवा विभिन्न संपादकों द्वारा संपादित प्रतियों में होनेवाला शब्दों अथवा उनके वर्णों के क्रम में होनेवाला भेद।
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पाठा  : स्त्री० [सं०√पठ्+घञ्+टाप्] पाढ़ा नाम की लता। वि० [सं० पुष्ट] [स्त्री० पाठी] १. हृष्ट-पुष्ट। २. पट्ठा। जवान। पुं० जवान बकरा, बैल या भैंसा। २. गाय-बैलों की एक जाति। (बुंदेलखंड)
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पाठागार  : पुं० सं० [पाठ-आगार, ष० त०] वह स्थान जहाँ बैठकर किसी विषय का अध्ययन, या ग्रंथों का पाठ किया जाता हो। (स्टडी रूम)
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पाठालय  : पुं० [पाठ-आलय, ष० त०] पाठशाला।
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पाठालोचन  : पुं० [सं० पाठ-आलोचन, ष० त०] आज-कल साहित्यिक क्षेत्र में, इस बात का वैज्ञानिक अनुसंधान या विवेचन कि किसी साहित्यिक कृति के संदिग्ध अंश का मूलपाठ वास्तव में कैसा और क्या रहा होगा। किसी ग्रंथ के मूल और वास्तविक पाठ का ऐसा निर्धारण जो पूरा छान-बीन करके किया जाय। (टेक्सचुअल क्रिटिसिज़म) विशेष—इस प्रकार का पाठालोचन मुख्यतः प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों की अनेक प्रतिलिपियों अथवा ऐसी साहित्यिक कृतियों के संबंध में होता है जिनका प्रकाशन तथा मुद्रण स्वयं लेखक की देख-रेख में न हुआ हो।
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पाठिक  : वि० [सं० पाठ+ठन्—इक] जो मूल पाठ के अनुसार हो।
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पाठिका  : वि० [सं० पाठक+टाप्, इत्व] पाठक का स्त्रीलिंग रूप। स्त्री० पाठा। पाढ़ा।
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पाठित  : भू० कृ० [सं०√पठ्+णिच्+क्त] (पाठ) जो पढ़ाया जा चुका हो।
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पाठी (ठिन्)  : वि० [सं० पाठ+इनि] समस्त पदों के अंत में, पाठ करनेवाला या पाठक। जैसे—वेद-पाठी, सह-पाठी। पुं० [पाठा+इनि] चीते का पेड़। चित्रक वृक्ष।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठीन  : वि० [सं० पाठि√नम् (झुकना)+ड, दीर्घ] पढ़ानेवाला। पुं० १. पहिना (मछली)। २. गूगल का पेड़।
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पाठ्य  : वि० [सं०√पठ्+ण्यत् या√पठ्+णिच्+यत्] १. जो पढ़ा या पढ़ाया जाने को हो। २. पढ़ने या पढ़ाये जाने के योग्य।
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पाठ्य-क्रम  : पुं० [ष० त०] वे सब विषय तथा उनकी पुस्तकें जो किसी विशिष्ट परीक्षा में बैठनेवाले परीक्षार्थियों के लिए निर्धारित हों। (कोर्स)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ्य-ग्रंथ  : पुं० [सं०] पाठ्य-पुस्तक। (दे०)
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पाठ्य-चर्या  : स्त्री० [सं०] वह पुस्तिका जिसमें विभिन्न परीक्षाओं के लिए निर्धारित विषयों तथा तत्संबंधी पाठ्य-क्रमों का उल्लेख होता है। (करिक्यूलम)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाठ्य-पुस्तक  : स्त्री० [कर्म० स०] वह पुस्तक जो पाठशालाओं में विद्यार्थियों को नियमित रूप से पढ़ाई जाती हो। पढ़ाई की पुस्तक। (टेक्स्ट बुक)
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