शब्द का अर्थ
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पर्वत :
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पुं० [सं०√पर्व+अतच्] १. पत्थरों आदि का बना हुआ, मालाओं या श्रेणियों के रूप में फैला हुआ तथा ऊँची चोटियोंवाला वह भूखंड जो आस-पास की भूमि से सैकड़ों-हजारों फुट ऊँचा होता है तथा जो भूगर्भ की प्राकृतिक शक्तियों से निकलनेवाले मल से बनता है। पहाड़। विशेष—पर्वत प्रायः ढालुएँ होते हैं और उनके ऊपरी भाग निचले भागों की अपेक्षा बहुत कम विस्तृत होते हैं और उनके ऊपरी भाग चौड़े तथा चिपटे होते हैं। २. बहुत-सी चीजों का बना हुआ ऊँचा ढेर। ३. लाक्षणिक अर्थ में, अत्यधिक मात्रा में होने की अवस्था या भाव। जैसे—बातों का पहाड़। ४. पुराणानुसार एक देवर्षि जो नारद मुनि के बहुत बड़े मित्र थे। ५. एक प्रकार की मछली। ६. पेड़। वृक्ष। ७. एक प्रकार का साग। ८. दशनामी संप्रदाय के संन्यासियों का एक भेद या वर्ग; और उनके नाम के साथ लगनेवाली एक उपाधि। ९. मरीचि का एक पुत्र। १॰. एक गंधर्व का नाम। ११. रहस्य-संप्रदाय में (क) पाप, (ख) प्रेम, (ग) मन या ध्यान की ऊँची अवस्था, (घ) परमात्मा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पर्वतक :
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पुं० [सं० पर्वत+कन्] छोटा पहाड़। |
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पर्वत-काक :
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पुं० [मध्य० स०] डोम कौआ। |
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पर्वत-कीला :
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स्त्री० [ब० स०, टाप्] पृथ्वी। |
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पर्वतखंड :
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पुं० [सं०] १. पर्वत का टुकड़ा। २. पर्वतीय प्रदेश। ३. तटवर्ती प्रदेश में ऊँची तथा अति तीव्र ढालवाली चट्टान की दीवार। |
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पर्वतज :
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वि० [सं० पर्वत्√जन् (उत्पन्न होना)+ड] जो पर्वत से उत्पन्न हुआ हो। पहाड़ से पैदा होने या निकलनेवाला। |
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पर्वतजा :
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स्त्री० [सं० पर्वतज+टाप्] १. नदी। २. पार्वती। |
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पर्वत-जाल :
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पुं० [ष० त०] पर्वत-माला। |
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पर्वत-तृण :
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पुं० [सं० मध्य० स०] एक तरह की घास जिसे पशु खाते हैं। |
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पर्वत-दुर्ग :
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पुं० [मध्य० स०] पहाड़ पर बना हुआ किला। |
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पर्वत-नंदिनी :
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स्त्री० [ष० त०] पार्वती। |
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पर्वत-पति :
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पुं० [ष० त०] पर्वतों का राजा, हिमालय। |
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पर्वत-प्रदेश :
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पुं० [सं०] ऐसा प्रदेश जिसमें प्रायः पर्वत ही पर्वत हों। |
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पर्वत-माला :
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स्त्री० [ष० त०] भूगोल शास्त्र में, पहाड़ों की श्रृंखला जो दूर तक समानांतर चली गई हो। (चेन) |
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पर्वत-मोचा :
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स्त्री० [मध्य० स०] एक तरह के पहाड़ी केले का पौधा और उसका फल। |
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पर्वत-राज :
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पुं० [ष० त०] १. बहुत बड़ा पहाड़। २. हिमालय पर्वत। |
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पर्वतवासिनी :
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स्त्री० [सं० पर्वत√वस् (वासना)+णिनि+ ङीष्] १. काली देवी। २. गायत्री। ३. छोटी जटामासी। |
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पर्वतवासी (सिन्) :
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पुं० [सं० पर्वत√वस्+णिनि] [स्त्री० पर्वतवासिनी] पहाड़ पर वास करनेवाला प्राणी। |
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पर्वतस्थ :
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वि० [सं० पर्वत√स्था (ठहरना)+क] पर्वत पर स्थित। |
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पर्वतात्मज :
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पुं० [सं० पर्वत-आत्मज, ष० त०] मैनाक (पर्वत)। |
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पर्वतात्मजा :
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स्त्री० [पर्वत-आत्मजा, ष० त०] पार्वती। |
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पर्वताधारा :
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स्त्री० [पर्वत-आधार, ब० स०, टाप्] पृथ्वी। |
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पर्वतारि :
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पुं० [पर्वत्-अरि, ष० त०] इंद्र। |
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पर्वताशय :
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पुं० [सं० पर्वत-आ√शी (सोना)+अच] मेघ। बादल। |
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पर्वताश्रय :
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पुं० [सं० पर्वत-आश्रय, ब० स०] १. शरभ। २. पर्वतवासी। |
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पर्वताश्रयी (यिन्) :
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पुं० [सं० पर्वत-आ√श्रि (सेवा)+ णिनि] पर्वतवासी। |
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पर्वतासन :
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पुं० [सं० पर्वत-आसन, मध्य० स०] हठ योग में एक प्रकार का आसन। |
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पर्वतास्त्र :
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पुं० [सं० पर्वत-अस्त्र, मध्य० स०] प्राचीन काल का एक प्रकार का कल्पित अस्त्र जिसके संबंध में कहा जाता है कि इनके फेंकते ही शत्रु की सेना पर बड़े बड़े पत्थर बरसने लगते थे अथवा अपनी सेना के चारों ओर पहाड़ खड़े हो जाते थे, जिससे शत्रु के प्रभंजनास्त्र विफल हो जाते थे। |
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पर्वतिया :
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पुं० [सं० पर्वत+इया (प्रत्य०)] १. नैपालियों की एक जाति। २. एक प्रकार का कद्दू। ३. एक प्रकार का तिल। वि०=पर्वतीय (पहाड़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पर्वती :
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वि०=पर्वतीय। |
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पर्वतीय :
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वि० [सं० पर्वत√छ—ईय] १. पर्वत-संबंधी। पहाड़ का’ पहाड़ी। २. पहाड़ पर रहने या होनेवाला। पहाड़ी जैसे—पर्वतीय पावस। |
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पर्वतेश्वर :
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पुं० [पर्वत-ईश्वर, ष० त०] हिमालय। |
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पर्वतोद्भव :
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पुं० [पर्वत-उद्भव, ब० स०] १. पारा। २. शिंगरफ। |
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पर्वतोद्भूत :
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पुं० [सं० पर्वन्-उद्भूत, पं० त०] अबरक। |
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पर्वतोर्मि :
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पुं० [पर्वत-उर्मि, ब० स०] एक तरह की मछली। |
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पर्वत :
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पुं० [सं०√पर्व+अतच्] १. पत्थरों आदि का बना हुआ, मालाओं या श्रेणियों के रूप में फैला हुआ तथा ऊँची चोटियोंवाला वह भूखंड जो आस-पास की भूमि से सैकड़ों-हजारों फुट ऊँचा होता है तथा जो भूगर्भ की प्राकृतिक शक्तियों से निकलनेवाले मल से बनता है। पहाड़। विशेष—पर्वत प्रायः ढालुएँ होते हैं और उनके ऊपरी भाग निचले भागों की अपेक्षा बहुत कम विस्तृत होते हैं और उनके ऊपरी भाग चौड़े तथा चिपटे होते हैं। २. बहुत-सी चीजों का बना हुआ ऊँचा ढेर। ३. लाक्षणिक अर्थ में, अत्यधिक मात्रा में होने की अवस्था या भाव। जैसे—बातों का पहाड़। ४. पुराणानुसार एक देवर्षि जो नारद मुनि के बहुत बड़े मित्र थे। ५. एक प्रकार की मछली। ६. पेड़। वृक्ष। ७. एक प्रकार का साग। ८. दशनामी संप्रदाय के संन्यासियों का एक भेद या वर्ग; और उनके नाम के साथ लगनेवाली एक उपाधि। ९. मरीचि का एक पुत्र। १॰. एक गंधर्व का नाम। ११. रहस्य-संप्रदाय में (क) पाप, (ख) प्रेम, (ग) मन या ध्यान की ऊँची अवस्था, (घ) परमात्मा। |
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पर्वतक :
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पुं० [सं० पर्वत+कन्] छोटा पहाड़। |
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पर्वत-काक :
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पुं० [मध्य० स०] डोम कौआ। |
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पर्वत-कीला :
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स्त्री० [ब० स०, टाप्] पृथ्वी। |
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पर्वतखंड :
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पुं० [सं०] १. पर्वत का टुकड़ा। २. पर्वतीय प्रदेश। ३. तटवर्ती प्रदेश में ऊँची तथा अति तीव्र ढालवाली चट्टान की दीवार। |
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पर्वतज :
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वि० [सं० पर्वत्√जन् (उत्पन्न होना)+ड] जो पर्वत से उत्पन्न हुआ हो। पहाड़ से पैदा होने या निकलनेवाला। |
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पर्वतजा :
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स्त्री० [सं० पर्वतज+टाप्] १. नदी। २. पार्वती। |
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पर्वत-जाल :
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पुं० [ष० त०] पर्वत-माला। |
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पर्वत-तृण :
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पुं० [सं० मध्य० स०] एक तरह की घास जिसे पशु खाते हैं। |
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पर्वत-दुर्ग :
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पुं० [मध्य० स०] पहाड़ पर बना हुआ किला। |
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पर्वत-नंदिनी :
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स्त्री० [ष० त०] पार्वती। |
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पर्वत-पति :
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पुं० [ष० त०] पर्वतों का राजा, हिमालय। |
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पर्वत-प्रदेश :
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पुं० [सं०] ऐसा प्रदेश जिसमें प्रायः पर्वत ही पर्वत हों। |
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उपलब्ध नहीं |
पर्वत-माला :
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स्त्री० [ष० त०] भूगोल शास्त्र में, पहाड़ों की श्रृंखला जो दूर तक समानांतर चली गई हो। (चेन) |
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पर्वत-मोचा :
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स्त्री० [मध्य० स०] एक तरह के पहाड़ी केले का पौधा और उसका फल। |
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पर्वत-राज :
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पुं० [ष० त०] १. बहुत बड़ा पहाड़। २. हिमालय पर्वत। |
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पर्वतवासिनी :
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स्त्री० [सं० पर्वत√वस् (वासना)+णिनि+ ङीष्] १. काली देवी। २. गायत्री। ३. छोटी जटामासी। |
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उपलब्ध नहीं |
पर्वतवासी (सिन्) :
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पुं० [सं० पर्वत√वस्+णिनि] [स्त्री० पर्वतवासिनी] पहाड़ पर वास करनेवाला प्राणी। |
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पर्वतस्थ :
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वि० [सं० पर्वत√स्था (ठहरना)+क] पर्वत पर स्थित। |
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पर्वतात्मज :
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पुं० [सं० पर्वत-आत्मज, ष० त०] मैनाक (पर्वत)। |
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पर्वतात्मजा :
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स्त्री० [पर्वत-आत्मजा, ष० त०] पार्वती। |
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पर्वताधारा :
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स्त्री० [पर्वत-आधार, ब० स०, टाप्] पृथ्वी। |
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पर्वतारि :
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पुं० [पर्वत्-अरि, ष० त०] इंद्र। |
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पर्वताशय :
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पुं० [सं० पर्वत-आ√शी (सोना)+अच] मेघ। बादल। |
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पर्वताश्रय :
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पुं० [सं० पर्वत-आश्रय, ब० स०] १. शरभ। २. पर्वतवासी। |
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पर्वताश्रयी (यिन्) :
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पुं० [सं० पर्वत-आ√श्रि (सेवा)+ णिनि] पर्वतवासी। |
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पर्वतासन :
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पुं० [सं० पर्वत-आसन, मध्य० स०] हठ योग में एक प्रकार का आसन। |
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पर्वतास्त्र :
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पुं० [सं० पर्वत-अस्त्र, मध्य० स०] प्राचीन काल का एक प्रकार का कल्पित अस्त्र जिसके संबंध में कहा जाता है कि इनके फेंकते ही शत्रु की सेना पर बड़े बड़े पत्थर बरसने लगते थे अथवा अपनी सेना के चारों ओर पहाड़ खड़े हो जाते थे, जिससे शत्रु के प्रभंजनास्त्र विफल हो जाते थे। |
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उपलब्ध नहीं |
पर्वतिया :
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पुं० [सं० पर्वत+इया (प्रत्य०)] १. नैपालियों की एक जाति। २. एक प्रकार का कद्दू। ३. एक प्रकार का तिल। वि०=पर्वतीय (पहाड़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पर्वती :
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वि०=पर्वतीय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पर्वतीय :
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वि० [सं० पर्वत√छ—ईय] १. पर्वत-संबंधी। पहाड़ का’ पहाड़ी। २. पहाड़ पर रहने या होनेवाला। पहाड़ी जैसे—पर्वतीय पावस। |
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उपलब्ध नहीं |
पर्वतेश्वर :
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पुं० [पर्वत-ईश्वर, ष० त०] हिमालय। |
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समानार्थी शब्द-
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पर्वतोद्भव :
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पुं० [पर्वत-उद्भव, ब० स०] १. पारा। २. शिंगरफ। |
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पर्वतोद्भूत :
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पुं० [सं० पर्वन्-उद्भूत, पं० त०] अबरक। |
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पर्वतोर्मि :
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पुं० [पर्वत-उर्मि, ब० स०] एक तरह की मछली। |
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