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परिचर  : पुं० [सं० परि√चर् (गति)+अच्] [स्त्री० परिचरी] १. सेवा-शुश्रूषा करनेवाला सेवक। टहलुआ। २. रोगी की सेवा शुश्रूषा करनेवाला व्यक्ति। ३. वह सैनिक जो रथ और रथी की रक्षा करने के लिए रथ पर रहता था। ४. सेनापति। ५. दंडनायक।
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परिचरजा  : स्त्री०=परिचर्या।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परिचरण  : पुं० [सं० परि√चर्+ल्युट्—अन] [वि० परिचरणीय, परिचारितव्य] परिचर्या करना।
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परिचरत  : स्त्री० [?] प्रलय। कयामत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परिचरिता (तृ)  : पुं० [सं० परि√चर्+तृच्] सेवा-शुश्रूषा करनेवाला व्यक्ति।
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परिचरी  : स्त्री० [सं० परिचर+ङीष्] दासी। लौंडी।
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परिचर्चा  : स्त्री० [सं०] किसी तथ्य, विषय, पुस्तक आदि की विशेष तथा विस्तृत रूप से की जानेवाली चर्चा।
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परिचर्जा  : स्त्री०=परिचर्या।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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परिचर्मण्य  : पुं० [सं० परिचर्मन्+यत्] चमड़े का फीता।
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परिचर्या  : स्त्री० [सं० परि√चर्+श, यक्, नि०] १. किसी की की जानेवाली अनेक प्रकार की सेवाएँ। खिदमत। २. रोगी की सेवा-शुश्रूषा। ३. किसी संघटित गोष्ठी या सभा-समिति में होनेवाली ऐसी बात-चीत जिसमें किसी विशिष्ट विषय का विचार या विवेचन होता है। (सिम्पोज़ियम)
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