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पथ्य  : वि० [सं० पथिन्+यत् ] १. पथ-संबंधी। पथ का। २. (आहार, व्यवहार) जो स्वास्थ्य विशेषतः रोगी की स्वास्थ्य-रक्षा के विचार से आवश्यक या उचित हो। ३. गुणकारी। लाभदायक। हितकर। उदा०—पूत पथ्य गुरु आयसु अहई।—तुलसी। ४. अनुकूल। मुआफिक। पुं०१.वह हलका भोजन जो रोगी अथवा अस्वस्थ व्यक्ति को दिया जाय। २. स्वास्थ्य के लिए हितकर खान-पान और रहन-सहन। मुहा०—पथ्य से रहना=संयम से रहना। परहेज से रहना। ३. सेंधा नमक। ४. छोटी हर्रे। ५. कल्याण। मंगल।
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पथ्यका  : स्त्री० [सं० पथ्य+कन्+टाप्] मेथी।
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पथ्य-शाक  : पुं० [सं० कर्म० स०] चौलाई का साग।
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पथ्या  : स्त्री० [सं० पथ्य+टाप्] १. हरीतकी। हड़। २. बनककोड़ा। ३. सैंधनी। ४. चिरमिटा। ५. गंगा। ६. आर्या छन्द का एक भेद जिसके कई उपभेद हैं।
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पथ्यादिक्वाथ  : पुं० [सं० पथ्या-आदि ब०, स० पथ्यादिक्वाथ कर्म० स०] त्रिफला, गुडुच, हलदी, चिरायते, नीम आदि का काढ़ा जो पाचक माना जाता है।
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पथ्यापंक्ति  : पुं० [सं० ब० स०] पाँच चरणोंवाला वैदिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में आठ-आठ वर्ण होते हैं।
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पथ्यापथ्य  : पुं० [सं० पथ्य-अपथ्य, द्व० स०] पथ्य और अपथ्य। रोग की अवस्था में हितकर और अहितकर चीज। जैसे—तुम्हें पथ्यापथ्य का सदा ध्यान रखना चाहिए।
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पथ्याशन  : पुं० [सं० पथ्य-अशन, कर्म० स०] पाथेय। संबल।
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पथ्याशी (शिन्)  : वि० [सं० पथ्य√अश् (खाना)+णिनि] जो पथ्य (रोग के अनुकूल भोजन) खाकर रहता हो। पद—पुं० [सं०√पद् (गति)+अच्] १. कदम। पाँव पैर। मुहा०—पद टेकना=किसी जगह पैर जमाकर रखना। (किसी के आगे पद टेकना=दीनतापूर्वक घुटने टेककर बैठना। उदा०—भरद्वाज राखे पद टेकी।—तुलसी। २. चलते समय दो पैरों के बीच में होनेवाली दूरी। डग। पग। ३. चलने के समय पैरों से बननेवाला चिन्ह। ४. चिन्ह। निशान। ५. जगह। स्थान। ६. प्रदेश। जैसे—जन-पद। ७. त्राण। रक्षा। ८. निर्वाण। मोक्ष। ९. चीज। वस्तु। १॰. आवाज। शब्द। ११. किसी चीज का चौथाई अंश या भाग। पाद। १२. छंद, श्लोक आदि का चतुर्थांश। चरण। १३. एक प्रकार की पुरानी नाप। १४. शतरंज आदि की बिसात में बना हुआ चौकोर खाना। १५. व्याकरण में, किसी वाक्य में आया हुआ वह शब्द या शब्द-वर्ग जिसका कुछ अर्थ हो। वाक्य का अंश या खण्ड। १६. वह स्थान जिस पर रहकर कोई विशिष्ट कार्य करता हो। ओहदा। जगह। जैसे—उन्हें भी कार्यालय में एक पद मिल गया। १७. सम्मानजनक उपाधि या स्थान। १८. ऐसा गीत या भजन जिसमें ईश्वर की महिमा आदि वर्णित हों। जैसे—तुलसी या सूर के पद। १९. पुराणानुसार दान के लिए जूते, छाते, कपडे, अँगूठी, आसन, बरतन और भोजन का समूह। जैसे—विवाह के समय ब्राह्मणों को तीन पद दिये जाते हैं।
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