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पंचायत  : स्त्री० [सं० पंचायतन] १. पंचों की सभा। २. प्राचीन भारतीय समाज में चुने हुए थोड़े-से (प्रायः पाँच) आदमियों का वह दल जो आपस के सामाजिक अर्थात् जाति-बिरादरी के झगड़ों या विवादों का निर्णय करता था और जिसका निर्णय बिरादरी या समाज को मान्य होता था। ३. बिरादरी या समाज के लोगों की वह सभा जिसमें पंच लोग बैठकर उक्त प्रकार के झगड़ों का विचार और निर्णय करते थे। जैसे—अग्रवालों या खत्रियों की पंचायत। विशेष—‘पंचायत’ और ‘मध्यस्थता’ के अंतर के लिए दे० ‘मध्यस्थता’ का विशेष। पद—पंचायत-घर। (देखें) क्रि० प्र०—बैठना।—बैठाना। मुहा०—पंचायत बटोरना=अपने किसी विवाद का निर्णय कराने के लिए पंचों और बिरादरी या समाज के सब लोगों को बुलाकर इकट्ठा करना। ४. उक्त प्रकार के समाज या समुदाय में होनेवाले पारस्परिक वाद-विवाद। ५. आज-कल, दो दलों में होनेवाले आर्थिक विवाद के संबंध में दोनों दलों या पक्षों के चने हुए लोगों का वह वर्ग या समूह जो दोनों पक्षों की बातें सुनकर उनका निर्णय करता है। ६. कुछ लोगों का वह समाज जिसमें वे बैठकर तरह-तरह के और प्रायः व्यर्थ के झगड़े-बखेड़ों की बातें करते हैं। ७. झगड़ा। विवाद।
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पंचायत-घर  : पुं० [हिं०] वह स्थान जहाँ गाँव, बिरादरी या समाज के लोग बैठकर पंचायत या वाद-विवाद करते और पंचों से उनका निर्णय कराते हैं।
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पंचायतन  : पुं० [पंचन्-आयतन, द्विगु स०] किसी देवता और उसके साथ रहनेवाले चार व्यक्तियों का वर्ग या समूह। जैसे—शिव-पंचायतन, राम-पंचायतन आदि।
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पंचायतन-बोर्ड  : पुं० [हिं०+अं०] वर्तमान भारत में ग्रामीण लोगों की वह विचार-सभा जिसमें गाँव के प्रतिनिधि विवादों आदि का निर्णय करते हैं। ग्राम-पंचायत।
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पंचायती  : वि० [हिं० पंचायत] १. पंचायती-संबंधी। पंचायत का २. पंचायत द्वारा किया या दिया हुआ। जैसे—पंचायती निर्णय, पंचायती हुकुम। ३. (वस्तु) जिस पर पंचायत या सारे समाज का अधिकार या नियंत्रण हो। जैसे—पंचायती धर्मशाला, पंचायती मंदिर। ४. जिसे सब लोग समान रूप से प्रामाणिक मानते हों। जैसे—पंचायती तौल। ५. दोगला। वर्णसंकर। (बाजारू)
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पंचायती राज्य  : पुं०=गणतंत्र।
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