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पंख  : पुं० [सं० पक्ष, प्रा० पक्ख] १. मनुष्य के हाथ के अनुरूप पक्षियों का तथा कुछ जंतुओं का वह अंग, जिसके द्वारा वे हवा में उड़ते हैं। पर। मुहा०—पंख जमना या निकलना=(क) बंधन में से निकलकर इधर-उधर घूमने की इच्छा उत्पन्न होना। बहकने या बुरे रास्ते पर जाने का रंग-ढंग दिखाई देना। जैसे—इस लड़के को भी अब पंख जम रहे हैं। (ख) अंत या मृत्यु के लक्षण प्रकट होना या समय पास आता हुआ दिखाई देना। विशेष—बरसात के अंत में कुछ कीड़ों के पंख निकल आते हैं और वे प्रायः अग्नि या दीपक के प्रकाश के पास मँडराते हुए उसी में जल मरते हैं। इसी आधार पर यह मुहावरा बना है। मुहा०—(किसी को) पंख लगना=बहुत वेगपूर्वक दौड़ना। २. बिजली के पंखे का हाथ के आकार का वह अंग जिसके घूमने से हवा आती है।
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पंखड़ी  : स्त्री० [सं० पक्ष्म] फूल के अंग के रूप में रहनेवाले और पत्तियों के आकार-प्रकारवाले के कोमल दल (या उनमें से प्रत्येक) जिनके संयोग से उसका ऊपरी और मुख्य रूप बनता है। पुष्प-दल।
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पंखा  : पुं० [हिं० पंख] [स्त्री० अल्पा० पंखी] १. पक्षियों के पंखों या परों के आकार का ताड़ आदि का वह उपकरण जिसे हवा में उसका वेग बढ़ाने के लिए डुलाया जाता है। क्रि० प्र०—झलना। २. उक्त के आधार पर कोई ऐसा उपकरण, जिससे हवा का वेग बढ़ाया जाता हो। जैसे—बिजली का पंखा। क्रि० प्र०—खींचना।—चलना।—झलना।—डुलाना। विशेष—आरंभ में पंखे ताड़ की पत्तियों, बांस की पट्टियों आदि से बनते थे, जिन्हें हाथ से बार-बार हिलाकर लोग या तो गरमी के समय शरीर में हवा लगाने के अथवा आग सुलझाने के काम में लाते थे; और अब तक इनका प्रायः व्यवहार होता है। बड़े आदमी प्रायः काठ के चौखटों पर कपड़ा मड़वाकर उसे छत से टाँगते थे, और किसी आदमी के बार-बार खींचते और ढीलते रहने पर उस पंखे से हवा निकलती थी, जिससे उसके नीचे बैठे हुए लोगों को हवा लगती थी। आज-कल प्रायः बिजली की सहायता से चलनेवाले अनेक प्रकार के पंखे बनने लगे हैं। ३. किसी चीज में लगा हुआ कोई ऐसा चिपटा लंबा टुकड़ा, जो पानी या हवा की सहायता से अथवा किसी यांत्रिक क्रिया से बार-बार हिलता या चक्कर लगाता रहता हो। जैसे—जहाज या पनचक्की के चक्कर में का पंखा।
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पंखा-कुली  : पुं० [हिं० पंखा+तु० कुली] वह कुली या नौकर जो विशेषतः छत में लगा हुआ पंखा खींचने के लिए नियत हो।
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पंखाज  : पुं०=पखावज।
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पंखा-पोश  : पुं० [हिं० पंखा+फा० पोश] पंखे के ऊपर उगाया जानेवाला गिलाफ।
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पंखि  : पुं०=पक्षी। स्त्री०=पंखी।
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पंखियाँ  : स्त्री० [हिं० पंख] १. भूसी के महीन टुकड़े। २. पंखड़ी। पंखी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पंखी  : पुं० [हिं० पंख] १. चिड़िया। पक्षी। स्त्री० १. उड़नेवाला कोई छोटा कीड़ा या फतिंगा। २. करघे में कबूतर के पंख या पर से बँधी सूत की वह डोरी जो ढरकी के छेद में फँसाकर लगाई जाती है। २. गढ़वाल, शिमले आदि की पहाड़ी भेड़ों पर उतरनेवाला एक प्रकार का बढ़िया मुलायम और हल्का ऊन। ३. उक्त प्रकार के ऊन से बनी हुई चादर। ४. वह पगली हलकी पत्तियाँ जो साखू के फल के सिरे पर होती हैं। स्त्री० हिं० ‘पंखा’ का स्त्री० अल्पा० रूप। स्त्री०=पंखड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पंखुड़ा  : पुं० [सं० पक्ष, हिं० पंख] कंधे और बाँह का जोड़। पँखौरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पंखुड़ी  : स्त्री०=पंखड़ी।
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पंखुरा  : पुं०=पंखुड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पंखेरू  : पुं०=पखेरू (पक्षी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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