| शब्द का अर्थ | 
					
				| दुनिया					 : | स्त्री० [अ० दुन्या] १. जगत। संसार। मुहा०—दुनिया की हवा लगना=(क) सांसारिक बातों का अनुभव होना। (ख) संसार में होनेवाले अनुचित कार्यों की ओर प्रवृत्त होना। दुनिया से उठ जाना या चल बसना=मर जाना। पद—दुनिया के परदे पर=सारे संसार में। दुनिया भर का=बहुत अधिक परंतु व्यर्थ का अथवा इधर-उधर का। २. संसार के लोग। लोक। जनता। जैसे—जरा यह तो सोचो कि दुनिया क्या कहेगी। ३. संसार और घर-गृहस्थी के झगड़े-बखेड़े। | 
			
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				| दुनियाई					 : | वि० [अ० दुन्या+हिं० ई० (प्रत्य०)] सांसारिक। लौकिक स्त्री०=दुनिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| दुनियादार					 : | पुं० [फा०] [भाव० दुनियादारी] १. सांसारिक प्रपंच में फँसा हुआ मनुष्य। संसारी। गृहस्थ। २. जो सांसारिक आचरण, व्यवहार आदि में कुशल या दक्ष हो। | 
			
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				| दुनियादारी					 : | स्त्री० [फा०] १. सांसारिक कार्यों और घर-गृहस्थी का निर्वाह। २. सांसारिक कार्यों और घर-गृहस्थी के झगड़े-बखेड़े या प्रपंच। ३. संसार में रहकर उचित ढंग से आचरण या व्यवहार करने का कौशल या योग्यता। ४. लोकाचार। ५. ऐसा आचरण या व्यवहार जो केवल लौकिक दृष्टि से या लोगों को दिखलाने भर के लिए किया जाय। | 
			
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				| दुनियावी					 : | वि० [अ० दुन्यवी] दुनिया का। संसार-संबंधी। सांसारिक। | 
			
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				| दुनियासाज					 : | पुं० [अ० दुन्या+फा० साज] [भाव० दुनियासाजी] लोगों के रंग-ढंग देखकर उन्हीं के अनुसार आचरण या व्यवहार करते हुए अपना काम चलाने या निकालने वाला व्यक्ति। | 
			
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				| दुनियासाजी					 : | स्त्री० [हिं० दुनियासाज] १. दुनियासाज होने की अवस्था या भाव। २. लोगों के रंग-ढंग देखकर उन्हीं के अनुसार आचारण या व्यवहार करके अपना काम निकालने का कौशल। | 
			
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