| शब्द का अर्थ | 
					
				| दीर्घ					 : | वि० [सं०+जृ (विदारण)+घञ्] १. काल-मान, दूरी आदि के विचार से अधिक विस्तार वाला। अधिक अवकाश या समय में व्याप्त। जैसे—दीर्घकाम, दीर्घ क्षेत्र। २. लंबी अवधि या भोगकालवाला। जैसे—दीर्घ आयु, दीर्घ निद्रा, दीर्घ श्वास। ३. (अक्षर या वर्ण) जो दो मात्राओं का अर्थात् गुरु हो। जिसका उच्चारण अपेक्षया अधिक खींचकर किया जाता हो। ‘ह्वस्व’ का विपर्याय। जैसे—‘इ’ का दीर्घ ‘ई’ और ‘उ’ का दीर्घ ‘ऊ’ है। पुं० १. ऊँट। २. ताड़ का पेड़। ३. लता शाल नामक वृक्ष। ४. रामशर। नरकट। ५. ज्योतिष में पाँचवी, छठी, सातवीं और आठवीं अर्थात् सिंह, कन्या, तुला और वृश्चिक राशियों की संज्ञा। | 
			
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				| दीर्घ-कंटक					 : | पुं० [ब० स०] बबूल का पेड़। | 
			
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				| दीर्घ-कंठ					 : | वि० [ब० स०] [स्त्री० दीर्घ, कंठी, दीर्घकंठ+ङीष्] जिसकी गरदन लंबी हो। पुं० १. बगला पक्षी। २. एक राक्षस का नाम। | 
			
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				| दीर्घ-कंद					 : | पुं० [ब० स०] मूली। | 
			
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				| दीर्घ-कंदिका					 : | स्त्री० [ब० स०, कप्-टाप् (इत्व)] मुसली। ताल-मूली। | 
			
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				| दीर्घ-कंधर					 : | वि० [ब० स०] [स्त्री० दीर्घकंधरी] लंबी गरदनवाला। पुं० बगला पक्षी। | 
			
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				| दीर्घ-कणा					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्] सफेद जीरा। | 
			
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				| दीर्घ-कर्ण					 : | वि० [ब० स०] बड़े-बड़े कानोंवाला। पुं० एक प्राचीन जाति का नाम। | 
			
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				| दीर्घ-कांड					 : | पुं० [ब० स०] १. गुंडतृण। गोदला। २. पाताल गारुड़ी लता। ३. तिक्तांगा। | 
			
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				| दीर्घ-कांडा					 : | स्त्री० [सं० दीर्घकांड+टाप्] दीर्घकांड। (दे०) | 
			
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				| दीर्घ-काय					 : | वि० [ब० स०] जिसकी काया अर्थात् शरीर दीर्घ या बहुत बड़ा हो। शारीरिक दृष्टि से बड़े डील-डौलवाला। | 
			
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				| दीर्घ-काल					 : | पुं० [ब० स०] दीर्घकीलक। (दे०) | 
			
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				| दीर्घ-कीलक					 : | पुं० [सं० दीर्घकील+कन्] अंकोल का पेड़। | 
			
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				| दीर्घ-कुल्या					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्] गजपिप्पली। | 
			
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				| दीर्घ-कूरक					 : | पुं० [कर्म० स०] आंध्र प्रदेश में होनेवाला एक तरह का धान। रजान्न। | 
			
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				| दीर्घ-केश					 : | वि० [ब० स०] [स्त्री० दीर्घकेशी, दीर्घकेश+ङीष्] जिसके केश दीर्घ अर्थात् बड़े या लंबे हों। पुं० १. भालू। रीछ। २. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश जो कूर्म विभाग के पश्चिमोत्तर में हो। | 
			
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				| दीर्घ-कोशिका					 : | स्त्री० [ब० स०, कप्-टाप् (इत्व)] शुक्ति नामन जल-जंतु। सुतुही। | 
			
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				| दीर्घ-गति					 : | पुं० [ब० स०] ऊँट। वि० तेज या बहुत चलनेवाला। | 
			
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				| दीर्घ-ग्रंथिका					 : | स्त्री० [ब० स०, कप्-टाप्] गजपिप्पली। | 
			
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				| दीर्घ-ग्रीव					 : | वि० [ब० स०] [स्त्री० दीर्घग्रीवी] जिसकी गरदन लंबी हो। पुं० १. सारस पक्षी। २. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश जो कूर्म विभाग के दक्षिण-पश्चिम में है। | 
			
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				| दीर्घ-घाटिक					 : | वि० [सं० दीर्घा-घाटा, कर्म० स०,+ठन्—इक] लंबी गरदनवाला। पुं० ऊँट। | 
			
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				| दीर्घच्छद					 : | वि० [ब० स०] जिसके लंबे-लंबे पत्ते हों। पुं० ईख। ऊख। गन्ना। | 
			
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				| दीर्घ-जंगल					 : | पुं० [कर्म० स०] एक तरह की मछली। बड़ा झींगा। | 
			
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				| दीर्घ-जंघ					 : | वि० [ब० स०] जिसकी टाँगे लंबी हों। पुं० १. बगला पक्षी। २. ऊँट। | 
			
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				| दीर्घ-जिह्वा					 : | वि० [ब० स०] जिसकी जीभ लंबी हो। पुं० १. साँप। २. एक राक्षस का नाम। | 
			
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				| दीर्घजिह्वा					 : | स्त्री० [ सं० दीर्घ जिह्वा+टाप्] १. विरोचन की पुत्री एक राक्षसी जिसे इंद्र ने मारा था। २. कार्तिकेय की एक अनुचरी या मातृका। | 
			
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				| दीर्घजीवी (विन्)					 : | वि० [सं० दीर्घ√जीव् (जीना)+णिनि] बहुत दिनों तक जीने वाला। दीर्घ जीवनवाला। | 
			
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				| दीर्घतपा (पस्)					 : | वि० [ब० स०] जिसने बहुत दिनों तक तपस्या की हो। पुं० उतथ्य ऋषि के एक पुत्र का नाम। | 
			
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				| दीर्घतरु					 : | पुं० [कर्म० स०] ताड़ का पेड़। | 
			
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				| दीर्घता					 : | स्त्री० [सं० दीर्घ+तल्—टाप्] दीर्घ होने की अवस्था, गुण या भाव। लंबाई और चौड़ाई। | 
			
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				| दीर्घ-तिमिषा					 : | स्त्री० [तिमिषा, √ तिम् (गीला होना)+किषन् (बा०) टाप् दीर्घ तिमिषा कर्म० स०] ककड़ी कर्कटी। | 
			
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				| दीर्घ-तुंडा					 : | वि० स्त्री० [ब० स०, टाप्] जिसका मुँह लंबा हो। स्त्री० छछूँदर। | 
			
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				| दीर्घ-तृण					 : | पुं० [कर्म० स०] एक प्रकार की घास जिसके खाने से पशु निर्बल हो जाते हैं। पल्लिवाह तृण। ताम्रपर्णी। | 
			
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				| दीर्घ-दंड					 : | पुं० [कर्म० स०] दीर्घदंडक। (दे०) | 
			
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				| दीर्घदंडक					 : | पुं० [सं० दीर्घदण्क+क (स्वार्थे)] १. अंडी का पेड़। रेंड़। २. ताड़। | 
			
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				| दीर्घ-दंडी					 : | स्त्री० [सं० दीर्घदण्ड+ङीष्] गोरख इमली। | 
			
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				| दीर्घदर्शी (र्शिन्)					 : | वि० [सं० दीर्घ√ दृश (देखना)+णिनि] [भाव० दीर्घदर्शिता] बहुत दूर तक की बातें सोचने-समझनेवाला। दूरदर्शीं। पुं० १. भालू। २. गीध। | 
			
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				| दीर्घ-द्रु					 : | पुं० [कर्म० स०] ताड़ का पेड़। | 
			
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				| दीर्घ-द्रुम					 : | पुं० [कर्म० स०] सेमल का पेड़। शाल्मली। | 
			
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				| दीर्घ-दृष्टि					 : | वि० [ब० स०] १. जिसकी दृष्टि दूर तक जाय। २. दूर-दर्शी। स्त्री० दूरदर्शिता। पुं० गिद्ध पक्षी। | 
			
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				| दीर्घ-द्धार					 : | पुं० [ब० स०] विशाल देश के अंतर्गत एक प्राचीन जनपद जो गंडकी नदी के किनारे कहा गया है। | 
			
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				| दीर्घ-नाद					 : | वि० [ब० स०] जिससे जोर का या भारी शब्द निकलता हो। पुं० शंख। | 
			
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				| दीर्घ-नाल					 : | पुं० [ब० स०] १. रोहिस घास। २. गुंड तृण। गोंदला। ३. यवनाल। ज्वार। | 
			
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				| दीर्घ-निद्रा					 : | स्त्री० [कर्म० स०] मृत्यु। मौत। मरण। | 
			
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				| दीर्घ-निःश्वास					 : | पुं० [कर्म० स०] चिंता, दुःख, भय आदि के कारण लिया जानेवाला गहरा या लंबा साँस। | 
			
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				| दीर्घ-पक्ष					 : | वि० [ब० स०] बड़े-बड़े परोंवाला। पुं० कलिंग (पक्षी)। | 
			
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				| दीर्घ-पत्र					 : | वि० [ब० स०] जिसके पत्ते बहुत लंबे होते हों। पुं० १. हरिदर्भ जो कुश का एक भेद है। २. विष्णुकंद। ३. लाल प्याज। ४. कुचला। ५. एक प्रकार की ईख या ऊख। | 
			
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				| दीर्घ-पत्रक					 : | पुं० [सं० दीर्घपत्र+कन्] १. लाल लहसुन। २. एरंड। रेंड़। ३. बेंत। ४. समुद्र-फल। हिंजल। ५. करील। टेंटी। ६. जलमहुआ। | 
			
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				| दीर्घपत्रा					 : | स्त्री० [सं० दीर्घपत्र+टाप्] १. केतकी २. चित्रपर्णी। ३. जंगली जामुन। ४. शालपर्णी। | 
			
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				| दीर्घपत्रिका					 : | स्त्री० [सं० दीर्घपत्र+कन्—टाप् (इत्व)] १. सफेद बच। २. घीकुआँर। ३. शालपर्णी। सरिवन। ४. सफेद गदहपूरना। श्वेत पुनर्नवा। | 
			
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				| दीर्घपत्री					 : | स्त्री० [सं० दीर्घपत्र+ङीष्] १. पलाशी लता। बौंरिया पलाश। वह पलाश जो लता के रूप में फैलता है। २. बड़ा चेंच या चेना। (साग) | 
			
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				| दीर्घ-पर्ण					 : | वि० [ब० स०] लंबे-लंबी पत्तोंवाला। | 
			
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				| दीर्घपर्णी					 : | स्त्री० [सं० दीर्घपर्ण+ङीष्] पिठवन। पृश्निपर्णी। | 
			
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				| दीर्घ-पल्लव					 : | वि० [ब० स०] बड़े-बड़े फूलोंवाला। पुं० सन का पौधा। | 
			
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				| दीर्घ-पाद					 : | वि० [ब० स०] लंबी टांगोंवाला। पुं० कंक पक्षी। सफेद चील। २. सारस। | 
			
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				| दीर्घ-पादप					 : | पुं० [कर्म० स०] १. ताड़ का पेड़। २. सुपारी का पेड़। | 
			
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				| दीर्घ-पृष्ठ					 : | पुं० [ब० स०] सर्प। साँप। | 
			
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				| दीर्घ-प्रज्ञ					 : | वि० [ब० स०] दूरदर्शी। पुं० पुराणानुसार द्वापर के एक राजा जो असुर के अवतार कहे गये हैं। | 
			
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				| दीर्घ-फल					 : | पुं० [ब० स०] अमलतास। | 
			
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				| दीर्घ-फलक					 : | पुं० [सं० दीर्घफल+कन्] अगस्त का पेड़। | 
			
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				| दीर्घफला					 : | स्त्री० [सं० दीर्घफल+टाप्] १. जतुका लता। पहाड़ी नाम की लता। २. लंबे दाने का अंगूर। | 
			
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				| दीर्घ-फलिका					 : | स्त्री० [ब० स०, कप्-टाप् (इत्व)] १. कपिल द्राक्षा। लंबा अंगूर। २. जतुका लता। | 
			
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				| दीर्घ-बाली					 : | स्त्री० [ब० स०, ङीष्] चमरी। सुरागाय। | 
			
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				| दीर्घ-बाहु					 : | वि० [ब० स०] जिसकी भुजा लंबी हो। पुं० १. शिव का एक अनुचर। २. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| दीर्घ-मारुत्					 : | पुं० [ब० स०] हाथी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| दीर्घ-मुख					 : | वि० [ब० स०] बड़े मुँहवाला। पुं० १. हाथी। २. शिव के एक अनुचर का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| दीर्घ-मूल					 : | पुं० [ब० स०] १. मोरट नाम की एक लता। २. लामज्जक तृण। ३. बिल्वांतर नामक वृक्ष। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ मूलक					 : | पुं० [ब० स०, कप्] मूलक। मूली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-मूला					 : | स्त्री० [सं० दीर्घमूल+टाप्] १. शालिपर्णी। सरिवन। २. श्यामा लता। कालीसर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-मूली					 : | स्त्री० [दीर्घमूल+ङीप्] धमासा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घयज्ञ					 : | वि० [ब० स०] जिसने बहुत दिनों तक यज्ञ किया हो। पुं० अयोध्या के एक राजा जो पुराणानुसार द्वापर युग में हुए थे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-रत					 : | वि० [ब० स०] अधिक समय तक मैथुन में रत रहनेवाला। पुं० कुत्ता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-रद					 : | वि० [ब० स०] जिसके दांत लंबे और बाहर निकले हुए हों। पुं० सूअर। शूकर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-रसन					 : | पुं० [ब० स०] सर्प। साँप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-रागा					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्] हरिद्रा। हल्दी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-रोमा (मन्)					 : | पुं० [ब० स०] १. भालू। २. शिव का एक अनुचर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-रोहिषक					 : | पुं० [कर्म० स०+कन्] एक तरह का सुंगधित तृण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-लोचन					 : | वि० [ब० स०] बड़ी आँखोंवाला। पुं० १. शिव का एक अनुचर। २. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-वंश					 : | पुं० [कर्म० स०] नरसल। नरकट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-वक्त्र					 : | वि० [ब० स०] स्त्री० दीर्घवक्ता, दीर्घवक्त्र-टाप्] लंबे मुँहवाला। पुं० हाथी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घवच्छिका					 : | स्त्री० [सं० दीर्घवत्√शीक् (सींचना)+क—टाप्, पृषो० सिद्धि] कुंभीर। घड़ियाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-बल्ली					 : | स्त्री० [कर्म० स०] १. बड़ा इंद्रायन। महेंद्रवारुणी। २. पाताल-गारुड़ी लता। छिरेटा। ३. पलाशी लता। बौरिया पलास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-वृंत					 : | पुं० [ब० स०] १. श्योनाक वृक्ष। सोनापाठा। २. लताशाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घवृंता					 : | स्त्री० [सं० दीर्घवृंत+टाप्] इंद्रचिर्मिटि लता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घवृंतिका					 : | स्त्री० [सं० जीर्घ-वृंत+कन्—टाप् (इत्व)] एलापर्णी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-शर					 : | पुं० [कर्म० स०] ज्वार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-शाख					 : | पुं० [ब० स०] १. सन। २. शाल (वृक्ष)। साखू। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-शिंबिक					 : | पुं० [ब० स०, कप् (हृस्वत्व)] एक तरह की राई। क्षव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-शूक					 : | पुं० [ब० स०] एक तरह का धान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घश्रवा (वस्)					 : | पुं० [ब० स०] एक ऋषिपुत्र जिन्होंने अनावृष्टि होने पर वाणिज्य वृत्ति स्वीकार की थी। (ऋग्वेद) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-सत्र					 : | वि० [ब० स०] जिसने बहुत दिनों तक यज्ञ किया हो। पुं० [कर्म० स०] १. जीवन भर किया जानेवाला अग्निहोत्र। २. एक प्रकार का यज्ञ। ३. एक प्राचीन तीर्थ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-सुरत					 : | वि० [ब० स०] बहुत देर रति करने वाला। पु० कुत्ता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-सूक्ष्म					 : | पुं० [कर्म० स०] प्राणायाम का एक भेद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-सूत्र					 : | वि० [ब० स०] दीर्घसूत्री। (दे०) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-सूत्रता					 : | स्त्री० [सं० दीर्घसूत्र+तल्—टाप्] दीर्घसूत्र या दीर्घसत्री होने की अवस्था, भाव या स्थिति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-सूत्री (त्रिन्)					 : | वि० [सं० दीर्घ-सूत्र कर्म० स०,+इनि] [भाव० दीर्घ सूत्रिता] (व्यक्ति) जो हर काम में आवश्यकता से बहुत अधिक देर लगाता हो। बहुत धीरे-धीरे और देर में काम करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-स्कंध					 : | पुं० [ब० स०] ताड़ का पेड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घ-स्वर					 : | पुं० [कर्म० स०] ऐसा स्वर जो साधारण से कुछ अधिक खींच-कर उच्चारित होता हो। दो मात्राओंवाला स्वर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घा					 : | स्त्री० [सं० दीर्घ+टाप्] १. पिठवन। पृश्निपर्णी। २. पुरानी चाल की वह नाव जो ८८ हाथ लंबी, ४४ हाथ चौड़ी और ४४ हाथ ऊँची होती थी। ३. आने-जाने के लिए कोई लंबा और ऊपर से छाया हुआ मार्ग। ४. आज-कल किसी भवन के अंदर कुछ ऊँचाई पर दर्शकों आदि के बैठने के लिए बना हुआ स्थान। (गैलरी) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घाकार					 : | वि० [दीर्घ-आकार, ब० स०] दीर्घ आकारवाला। लंबा-चौड़ा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घाध्वग					 : | पुं० [दीर्घ-अध्वग कर्म० स०] १. दूत। २. हरकारा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घायु (स्)					 : | वि० [दीर्घ-आयुस् ब० स०] दीर्घजीवी। चिरजीवी। पुं० १. मार्कडेय ऋषि। २. जीवकवृक्ष। ३. सेमल का पेड़। ४. कौआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घायुध					 : | पुं० [दीर्घ-आयुध कर्म० स०] १. कुंभास्त्र। २. [ब० स०] सूअर। शूकर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| दीर्घायुष्य					 : | वि०, पुं० [दीर्घ-आयुष्य ब० स०]=दीर्घायु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| दीर्घालर्क					 : | पुं० [दीर्घ-अलक कर्म० स०] सफेद मदार। | 
			
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				| दीर्घाष्य					 : | वि० [दीर्घ-आस्य] बड़े मुँहवाला। पुं० १. शिव का एक अनुचर। २. पुराणानुसार पश्चिमोत्तर दिशा का एक देश। ३. हाथी। | 
			
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				| दीर्घाह (न्)					 : | वि० [दीर्घ-अहन्] बड़े दिनवाला। पुं० १. बड़ा दिन। २. ग्रीष्मकाल। | 
			
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				| दीर्घिका					 : | स्त्री० [सं० दीर्घ+कन्—टाप, इत्व] १. छोटा जलाशय या तालाब। बावली। २. हिंगुपत्री। ३. एक प्रकार की पुरानी नाव जो ३२ हाथ लंबी, ४ हाथ चौड़ी और ३ १/५ हाथ ऊँची होती थी। | 
			
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				| दीर्घीकरण					 : | पुं० [सं० दीर्घ+च्वि√कृ+ल्युट्—अन] किसी वस्तु को पहले से अधिक दीर्घ करना। विस्तार बढ़ाना। (एलागेशन) | 
			
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				| दीर्घेर्वारु					 : | पुं० [दीर्घा-इर्वारु कर्म० स०] लंबी ककड़ी। डँगरी। | 
			
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