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दिवाला  : पुं० [हिं० दिया+बालना=जलाना] १. महाजन या व्यापारी की वह स्थिति जिसमें वह विधिवत् यह घोषित करता है कि मेरे पास अब यथेष्ट धन नहीं बचा है, और इसलिए मैं लोगों का ऋण चुकाने में असमर्थ हूँ। क्रि० प्र०—बोलना। विशेष—ऐसी स्थिति में लेनदार न्याय की दृष्टि से या तो उससे कुछ भी वसूल नहीं कर सकते या उसके पास जो थोड़ा-बहुत धन बचा होता है, वही सब लेनदार अपने-अपने हिस्से के मुताबित बाँट लेते हैं। मुहावरा—दिवाला निकालना या मारना=दिवालिया बन जाना। ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाना। २. किसी पदार्थ का कुछ भी बचा न रह जाना। पूर्ण अभाव। जैसे—उनकी अक्ल का तो दिवाला निकल गया है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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