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तानना  : स० [सं०√तन् (विस्तृत करना या फैलना)] १. किसी वस्तु के एक या अनेक सिरों को इस प्रकार उपयुक्त दिशा या दिशाओं में खींचना कि उसमें किसी प्रकार का झोल, बल या सिकुंड़न न रह जाय। जैसे–(क) ताना तानना, रस्सी तानना। (ख) छाया आदि के लिए चँदोआ तानना। २. कोई चीज ठीक तरह से खड़ी करने के लिए अथवा खड़ी की हुई वस्तु को गिरने से रोकने के लिए उसे कई ओर से रस्सियों आदि से खींचकर बाँधना। जैसे–(क) खेमा या तंबू तानना। (ख) रामलीला में मेघनाद, रावण आदि के कागजी पुतले तानना। ३. किसी प्रकार का खिंचाव उत्पन्न करनेवाली कोई क्रिया करना। जैसे–भौंहें तानना। ४. आघात, प्रहार आदि करने के लिए कोई चीज ऊपर उठाना। जैसे–डंडा, मुक्का या लाठी तानना। ५. कोई चीज किसी दूसरी चीज के ऊपर फैलाना। जैसे–सोते समय शरीर पर चादर तानना। मुहावरा–तान कर सोना-किसी बात से बिलकुल निश्चित हो जाना। किसी प्रकार की आशंका, चिंता या भय से रहित होकर रहना। ६. किसी को हानि पहुँचाने या दंड देने के अभिप्राय से कोई बात उपस्थित या खड़ी करना। ७. बलपूर्वक किसी ओर पहुँचाना, प्रवृत्त करना या भेजना। जैसे–अदालत में उन्हें साल भर के लिए तान दिया, अर्थात् जेल भेज दिया। ८. किसी व्यक्ति को ऐसा परामर्श देना कि वह दूसरे की ओर प्रवृत्त न हो या उससे मेल-जोल की बात न करे। जैसे–आप ने ही उन्हें तान दिया,नहीं तो अब तक समझौता हो जाता।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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