शब्द का अर्थ
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तड़क :
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स्त्री० [हिं० तड़कना] १. तड़कने की क्रिया या भाव। २. किसी चीज के तड़कने के कारण उस पर पड़ा हुआ चिन्ह जो प्रायः सीधी धारी के रूप में होता है। ३. चमकने की क्रिया या भाव। पद–तड़क-तड़क। ४. घरों की छाजन में वह बड़ी लकड़ी जो दीवार और बँडेर पर रखी जाती है और जिसपर दासे रखकर छप्पर या छाजन डालते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तड़कना :
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अ० [सं०√त्रुट् या अनु० तड़०] १. किसी चीज का तड़ शब्द करते हुए टूटना, फटना या फूटना। चटकना। जैसे–(क) चिमनी या शीशा तड़कना। (ख) भूनते समय मक्के के दाने तडकना। २. किसी चीज के सूखने आदि के कारण उसका ऊपरी तल फटना। दरार पड़ना। ३. जोर का तड़ शब्द होना। ४. क्रोधपूर्ण व्यवहार करना। बिगड़ना। ५. दे० तड़पना (उछलना)। स० [हिं० तड़का-छौंक] दाल, तरकारी आदि को सुगंधित करने के लिए उसमें तडका देना या लगाना। छौंकना। बघारना। |
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तड़क-भड़क :
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स्त्री० [अनु०] अपना बल, योग्यता, वैभव आदि दिखाने के लिए की जानेवाली ऊपरी बाहरी सजावट। (पांप) जैसे–तड़क-भड़क से सवारी निकालना० |
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तड़का :
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पुं० [हिं० तड़कना] १. दिन निकलने का समय, जिसमें रात्रि का अन्धकार घटने लगता है और कुछ-कुछ प्रकाश होने लगता है। मुहावरा–(किसी बात का) तड़का होना= (क) पूर्ण रूप से अभाव होना। जैसे–पूँजी निकल जाने से घर में तड़का हो गया। (किसी व्यक्ति का) तड़का देना-आघात, प्रहार आदि के कारण होश-हवास गुम हो जाना० २. खाने-पीने की चीजों को तड़कने या छौंकने की क्रिया या भाव। बघार। ३. वह मसाला जिसमें दाल आदि तड़की जाती है। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। |
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तड़काना :
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स० [हिं० तड़कना का स० रूप०] १. किसी वस्तु को इस तरह से तोड़ना जिससे ‘तड़’ शब्द हो। २. सुखाकर बीच में फाड़ना। ३. जोर का शब्द उत्पन्न करना। ४. क्रोध दिलाना या खिजाना। चटकाना। |
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तड़कीला :
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वि० [हिं० तड़कना+ईला (प्रत्य)] १. तड़क-भड़क वाला। भड़कीला। २. चमकीला। ३. फुरतीला। ४. सहज में तड़क या टूट जानेवाला। |
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तड़क्का :
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पुं० [अनु० तड़] जोर से होनेवाला तड़ शब्द। क्रि० वि० चटपट। तुरंत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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