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तक  : अव्य० [सं० अंत+क] संज्ञाओं अथवा संज्ञाओं के समान प्रयुक्त होनेवाले शब्दों के साथ लगकर अवधि, सीमा आदि का अन्तिम या अधिकतम छोर सूचित करनेवाला एक संबंध सूचक अव्यय। जैसे–(क) खिर आप कहाँ तक (सीमा) जायँगें। (ख) आप कब तक (अवधि) आयँगें। स्त्री० [पं० तकड़ी] १. तराजू। २. तराजू का पल्ला। हिं० स्त्री० [हिं० ताकना] १. ताकने की क्रिया या भाव। २. टकटकी। टक।
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तकड़ा  : वि०=तगड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तकड़ी  : स्त्री० [देश०] एक तरह की बारहमासी घास जो रेतीली जमीन में होती है। इसे घोड़े चाव से खाते हैं। चरमरा। हैन। स्त्री=तराजू (पंजाब)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तकदमा  : पुं० [अ० तकद्दुम] अटकल। अनुमान। कूत।
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तकदीर  : स्त्री० [अ०] [वि० तकदीरी] वह प्राकृतिक या लोकोत्तर शक्ति जो घटित होनेवाली बातों को पहले ही निश्चित कर देती है। किस्मत। भाग्य। उदाहरण–-तकदीर में लिखा था पिंडरे का आवोदाना।–इकबाल। पद–तकदीरवर।
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तकदीरवर  : वि० [अं० तकदीर+फा० वर] जिसकी तकदीर या भाग्य बहुत अच्छा हो। भाग्यवान्।
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तकदीरी  : वि० [अ०] तकदीरी या भाग्य संबंधी। जैसे–यह सब तकदीरी खेल या मामला है। स्त्री० [हिं० ताकना] तकने ताकने या तकन की क्रिया या भाव।
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तकना  : स० [हिं० ताकना] १. ताकना। देखना। २. आश्रय, सहायता आदि पाने के लिए किसी की ओर देखना। जैसे–अकाल में प्रजा राजा की ओर ताकती है। ३. किसी की ओर बुरी दृष्टि या भाव से देखना। जैसे–किसी की बहू-बेटी को तकना अच्छा नहीं है। ५. आसरा। देखना। प्रतीक्षा करना। शरण लेना। पुं० वह व्यक्ति जो बुरी दृष्टि से दूसरों विशेषतः पराई स्त्रियों की ओर ताकता रहता हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तकबीर  : स्त्री० [अ०] ईश्वर और उसके कार्यों तथा देनों की हार्दिक प्रशंसा या स्तुति।
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तकब्बुर  : पुं० [अ०] [वि० तकब्बरी] अभिमान। घमंड।
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तकमा  : पुं० १. दे० तुकमा। २. दे० ‘तमगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तकमील  : स्त्री० [अ०] किसी काम के पूरे होने की अवस्था या भाव। पूर्णता।
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तकर-मल्ही  : स्त्री० [देश०] भेड़ों के शरीर से ऊन काटने की एक तरह की हँसिया। (गढ़वाल)।
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तकरार  : स्त्री० [अ०] १. ऐसी कहा-सुनी जो अपना अपना पक्ष ठीक सिद्ध करने के लिए उग्रता या कटुतापूर्वक हो। विवाद। हुज्जत। २. साधारण झगड़ा या लड़ाई। पुं० १. धान का वह खेत जो फसल काटने के बाद फिर खाद देकर जोता गया हो। २. वह खेत जिसमें गेहूँ, चना, जौ आदि एक साथ बोये गये हों।
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तकरारी  : वि० [अ०] १. तकरार संबंधी। २. तकरार करने वाला। झगड़ालू।
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तकरीब  : स्त्री० [अ०] १. पास होने की अवस्था या भाव। समीपता। २. किसी कार्य या विषय का उपलक्ष्य। ३. विवाह आदि शुभ अवसरों पर होनेवाला उत्सव।
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तकरीबन्  : अव्य० [अ०] करीब-करीब। प्रायः। लगभग। जैसे–कचहरी यहाँ से तकरीबन् दो मील है।
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तकरीर  : स्त्री० [अ०] [वि० तकरीरी] १. बातें करना या कहना। बात-चीत। २. भाषण। वक्तृता।
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तकरीरी  : वि० [अ० तकरीर] १. तकरीर के रूप में होनेवाला। तकरीर संबंधी। २. जिसमें कुछ कहने-सुनने की जगह हो। विवाद-ग्रस्त। ३. जवानी। मौखिक।
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तकररी  : स्त्री० [अ०] किसी पद या स्थान पर नियुक्त या मुकर्रर होने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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तकला  : पुं० [सं० तर्कु] [स्त्री० अल्पा० तकली] १. लोहे की वह सलाई जो सूत कातने के चरखे में लगी होती है और जिस पर कता हुआ सूत लिपटता चलता है। टेकुआ। २. टेकुरी की वह सलाई जिस पर बटा हुआ कलाबत्तू लपेटा जाता है। ३. वह सलाई जिसकी की सहायता से सुनार सिकड़ी के गोल दाने बनातें हैं। ४. रस्सी बटने की टेकुरी। मुहावरा–(किसी के) तकले का बल निकालना=किसी की अकड़ पाजीपन या शेखी दूर करना।
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तकली  : स्त्री० [हिं० तकला] सूत कातने का एक प्रकार का छोटा यंत्र जिसमें काठ के एक लट्टू में छोटा सा सूजा लगा रहता है।
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तकलीफ  : स्त्री० [अ०] १. कष्ट। दुःख। पीड़ा। जैसे–(क) उनकी ऐसी बातों से हमें तकलीफ होती है। (ख) इस तरह उठाने से बच्चे को तकलीफ होती होगी। २. विपत्ति। संकट। जैसे–सब पर कभी न कभी तकलीफ आती ही है। ३. बीमारी। रोग। जैसे–खाँसी या बुखार की तकलीफ। विशेष–औपचारिक रूप से इस शब्द का प्रयोग ऐसे अवसरों पर भी होता है जहाँ किसी को किसी दूसरे के अनुरोध-स्वरूप कोई कार्य या पश्रिम करना पड़ता है। जैसे–आप ही तकलीफ करके यहाँ आ जायँ।
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तकल्लुफ  : पुं० [अ०] ऐसा शिष्टाचार जो केवल सौजन्य का परिचय देने के लिए किया जाय। पद–तल्लुफ का-बहुत अच्छा या बढिया।
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तकवाना  : स० [हिं० ताकना का प्रे०] [भाव० तकवाही] किसी को ताकने में प्रवृत्त करना।
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तकसना  : अ=ताकना (देखना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तकसी  : स्त्री० [?] १. नाश। २. दुर्दशा।
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तकसीम  : स्त्री० [अ०] १. बाँटने की क्रिया या भाव। बँटाई। जैसे–बच्चों मे पुस्तकें या मिठाइयाँ तकसीम करना। २. संगीत में किसी संख्या को भाग देने की क्रिया। भाग। क्रि० प्र०–करना।
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तकसीर  : स्त्री० [अ०] १. अपराध। कसूर। २. चूक। भूल।
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तकाई  : स्त्री० [हिं० ताकना+ई० (प्रत्यय)] १. तकने या ताकने की क्रिया ढंग या भाव। २. दूसरों को कुछ दिखलाने की क्रिया या भाव।
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तकाजा  : पुं० [अ० तकाजः=इच्छास, कामना] १. किसी आवश्यकता प्रवृत्ति, स्थिति आदि के फलस्वरूप प्राकृतिक या स्वाभाविक रूप से होनेवाला कोई कार्य या परिणाम अथवा आन्तरिक प्रेरणा। जैसे–लड़कों का बहुत अधिक उछल-कूद या पाजीपन करना उनकी उमर का तकाजा हैं। २. वह बात जो किसी से कोई काम करने, कराने या अपना प्राप्य प्राप्त करने के उद्देश्य से उसे स्मरण कराने और जल्दी करने के लिए कही या कहलाई जाती है। तगादा। जैसे–उनकी किताब दे आओं, कई बार उनका तकाजा आ चुका है।
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तकान  : स्त्री० १.=तकाई। २.=थकान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तकाना  : स० [हिं० ताकना का प्रे०] किसी को कुछ तकने या ताकने में प्रवृत्त करना। दिखाना।
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तकाव  : पुं० [हिं० तकना+आव (प्रत्य०)] तकने या ताकने की क्रिया ढंग या भाव।
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तकावी  : स्त्री० [अ०] वह धन जो जमीदार, राजा या सरकार की ओर से गरीब खेतिहरों को खेती के औजार बनवाने, बीज खरीदने या कुएँ आदि बनवाने के लिए अथवा किसी विशिष्ट संकट से पार पाने के लिए ऋण के रूप में दिया जाता है।
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तकिया  : पुं० [फा०] १. एक प्रकार की बड़ी मुँह बंद थैली जिसमें रूई आदि भरी हुई होती है और जिसे सोते समय सिर के नीचे लगाया जाता है। बालिश। २. पत्थर की वह पटिया जो छज्जे में रोक या सहारे के लिए लगाई जाती है। मुतक्का। ३. आश्रय या विश्राम स्थान। ४. कब्रिस्तान के पास का वह स्थान जहाँ कोई फकीर रहता हो। ५. आश्रय। सहारा। ६. चारजामा। (क्व०)।
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तकिया कलाम  : पुं० दे० ‘सखुम तकिया’।
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तकियादार  : पुं० [फा०] मुसलमानी कब्रिस्तान अथवा किसी पीर या फकीर की समाधि पर रहनेवाला प्रधान अधिकारी।
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तकिल  : पुं० [सं०√तक् (हँसना)+इलच्] १. धूर्त। २. ओषध। दवा।
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तकिला  : स्त्री० [सं० तकिल+टाप्] औषध। दवा।
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तकुआ  : पुं०१.=तकला। २=तकना (ताकनेवाला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तकैया  : वि० [हिं० ताकना+ऐया(प्रत्यय)] ताकनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तकोली  : स्त्री० [देश०] शीशम की जाति का एक तरह का बड़ा वृक्ष। वि० दे० ‘पस्सी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तक्कर  : वि० दे० ‘तगड़ा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तक्की  : स्त्री० [हिं० ताकना] किसी ओर ताकने रहने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–लगाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तक्मा(क्मन्)  : स्त्री० [सं०√तक्+मनिन्] बसंत या शीतला नामक रोग। पुं० १. दे० तुकमा। २. दे० ‘तमगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तक्र  : पुं० [सं०√तंच् (संकुचित करना)+रक्] १. छाछ। मट्ठा। २. शहतूत के पेड़ का एक रोग।
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तक-कूर्चिका  : स्त्री० [सं०मध्य०स०] १.फटा हुआ दूध। २.फटे हुए दूध में से निकलनेवाला पदार्थ। छेना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तक्र-पिंड  : पुं० [सं० मध्य० स०] छेना।
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तक्रभिद्  : पुं० [सं० तक्र√भिद् (फाड़ना)+क्विप्] एक तरह का कँटीला पेड़। कैथ।
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तक्र-प्रमेह  : पुं० [मध्य० स०] एक रोग जिसमें मूत्र छाछ की तरह गाढ़ा और सफेद होता है।
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तक्र-मांस  : पुं० [मध्य० स०] मांस का रसा। यखनी।
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तक्रवामन  : पुं० [सं० तक्र√वम् (वमन करना)+णिच्+ल्युट्-अन] नागरंग।
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तक्र-संधान  : पुं० [सं० मध्य० स०] सौ टके भर छाछ में एक एक टके भर सांबर नमक, राई और हल्दी का चूर्ण डालकर बनाई जानेवाली काँजी (वैद्यक)।
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तक्र-सार  : पुं० [सं० ष० त०] मट्ठे में से निकलनेवाला सार तत्व। नवनीत। मक्खन।
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तक्राट  : पुं० [सं० तक्र√अट् (चलना)+अच्] मथानी।
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तक्रार  : स्त्री०=तकरार।
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तक्रारिष्ट  : पुं० [सं० तक्र-अरिष्ट, मध्य० स०] एक प्रकार का अरिष्ट जो मट्ठे में हड़ और आँवले आदि का चूर्ण मिलाकर बनाया जाता है। (वैद्यक)।
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तक्राह्वा  : स्त्री० [सं० तक्र-आह्व, ब० स०] एक प्रकार का क्षुप।
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तक्वा(क्वन्)  : पुं० [सं०√तक् (गति)+वनिप्] १. चोर। २. शिकारी। चिड़िया।
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तक्ष  : पुं० [सं०√तक्ष् (काटना, छीलना)+घञ्] १. पतला करने की क्रिया या भाव। २. रामचन्द्र के भाई भरत का बड़ा पुत्र जिसने तक्षशिला नामकी नगरी बसाई थी।
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तक्षक  : पुं० [सं०√तक्ष+ण्वुल्-अक] १. पुराणानुसार पाताल के आठ नागों में से एक जो कश्यप का पुत्र था और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। राजा परीक्षित की मृत्यु इसी के काटने से हुई थी। २. सर्प। साँप। ३. विश्वकर्मा। ४. बढ़ई। ५. सूत्रधार। ६. नाग नामक वायु जो दस वायुओं में से एक है। ७. एक प्रकार का पेड़। ८. प्राचीन काल की एक संकर जाति जिसकी उत्पत्ति सूत्रिक पिता और ब्रह्मणी माता से कही गई है। वि० १. तक्षण करनेवाला। २. काटने या छेदनेवाला।
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तक्षण  : पुं० [सं०√तक्ष्+ल्युट–अन] १. लकड़ी काट, छील या रँदकर ठीक और सुडौल करने का काम। २. उक्त काम करनेवाला कारीगर। बढई। ३. पत्थर, लकड़ी आदि में बेल-बूटे या उनसे मूर्तियाँ बनाने का काम।
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तक्षणी  : स्त्री० [सं० तक्षण+ङीप्] बढ़इयो का रंदा नाम का औजार।
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तक्ष-शिला  : स्त्री० [ब० स०] भरत के पुत्र तक्ष की बसाई हुई नगरी और बाद में पूर्वी गान्धार की राजधानी जिसके खँडहर रावलपिंडी के पास खोदकर निकाले गये हैं।
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तक्षा(क्षन्)  : पुं० [सं०√तक्ष्+कनिन्] बढ़ई।
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तकफीफ  : स्त्री० [अ०] खफीफ अर्थात् कम या हल्का करने की क्रिया या भाव। कमी। न्यूनता।
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