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शब्द का अर्थ

ठोंक  : स्त्री०=ठोक।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ठोंकना  : स=ठोकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठोंग  : स्त्री० [सं० तुंड] १. चोंच २. चोंच की मार। ३. उँगली की नोक से किया जानेवाला आघात।
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ठोंगना  : स० [हिं० ठोंग] १. ठोंग या चोंच मारना। २. उँगली की नोक से आघात करना।
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ठोंगा  : पुं० [देश०] कागज की एक प्रकार की थैली जिसमें दूकानदार सूखी चीजें डालकर ग्राहकों को देते हैं।
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ठोंचना  : स=ठोगना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठोंठ  : पुं० [सं० ओष्ठ] होंठ। पुं०=ठोंठ।
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ठोंठा  : पुं० [देश०] ज्वार, बाजरे आदि को हानि पहुँचाने वाला एक तरह का कीड़ा।
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ठोंठी  : स्त्री० [सं० तुंड] १. चने के दाने का कोश या खोल। २. पोस्ते की ढोंढ़ी या ढेंढी।
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ठो  : अव्य० [सं० स्था] संख्यासूचक शब्दों के साथ लगने वाला एक अव्यय जो उनकी इकाइयों या मान पर जोर देता है। जैसे–एक ठो, दो ठो, दस ठो, बीस ठो आदि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठोक  : स्त्री० [हिं० ठोकना] १. ठोकने की क्रिया या भाव। आघात। प्रहार। २. वह लकड़ी जिससे ठोक लगाकर दरी की बुनावट ठस की जाती है। ३. अन्न के दानों, फलों आदि पर कीड़े-मकोड़ों के दंश या पक्षियों की चोंच से लगा हुआ आघात या उसका चिन्ह।
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ठोकचा  : पुं० [देश०] आम की गुठली या ऊपरी कड़। आवरण। खोल।
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ठोकना  : स० [अनु० ठक ठक से] १. किसी चीज को किसी दूसरी चीज के अन्दर गड़ाने, जमाने धंसाने बैठाने आदि के लिए उसके पिछले भाग पर हथौड़े आदि से जोर से आघात करना। जैसे–जमीन में खूँटा या दीवार में कील ठोकना। २. किसी छेद या दरज में उक्त प्रकार का आघात करते हुए कोई चीज धंसाना या बैठाना। जैसे–चूल में पच्चर ठोकना। ३. किसी चीज के विभिन्न संयोजक अंगों को यथा स्थान बैठाने के लिए उन पर किसी प्रकार आघात करना। जैसे–(क) खाट या चौखट ठोकना। (ख) किसी के पैरों में बेड़ियाँ या हाथों में हथकड़ियाँ ठोकना। ४. कोई विशिष्ट प्रकार का कार्य सम्पादित करने के लिए किसी चीज पर ऐसा आघात करना कि वह कुछ दबे भी और उसमें से कुछ शब्द भी निकले। जैसे–पहलवानों का ताल ठोकना। (ग) पकाने के लिए बाटी या रोटी ठोकना। मुहावरा–(किसी की) पीठ ठोकना=(क) कोई अच्छा काम करने पर उसकी प्रशंसा करते हुए उत्साहित करना, उसकाना या बढ़ावा देना। जैसे–तुम्हारे ही पीठ ठोकने से तो वह मुकदमेंबाजी पर उतारू हुआ है। ५. किसी चीज की दृढ़ता, प्रामाणिकता आदि की परीक्षा करने के लिए कोई आवश्यक या उपयुक्त क्रिया करना। मुहावरा–ठोकना-ठठाना या ठोकना=बजाना-हर तरह से जाँचकर देखना कि यह ठीक है या नहीं। जैसे–ठोक-बजा कर सौदा करना। ६. अधिकार या बलपूर्वक अभियोग आदि उपस्थित करना। जैसे–किसी पर दावा या नालिश ठोकना। ७. अच्छी तरह पीटना या मारना। जैसे–जब तक यह लड़का ठोका नहीं जायगा, तब तक सीधा नहीं होगा।
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ठोकर  : स्त्री० [हिं० ठुकना या हिं० ठोकना] १. किसी चीज के ठुकने, अर्थात् टकराने आदि से लगनेवाला ऐसा आघात जिससे कुछ टूटने-फूटने या हानि पहुँचाने की आशंका या संभावना हो। जैसे–यह तसवीर (या शीशा) सँभालकर ले जाना, रास्ते में कहीं ठोकर लगने पावे। क्रि० प्र०–लगना। २. वह आघात जो चलते समय रास्ते में पड़ी हुई किसी उभरी हुई कड़ी चीज से मुख्यतः पैर में लगता हो। जैसे–चलते समय ईंट, कंकड़ या पत्थर से लगनेवाली ठोकर। क्रि० प्र०–खाना।–लगना। ३. मार्ग में पड़ी हुई कोई ऐसी (उक्त प्रकार की) चीज जिससे पैरों को आघात लगता या लग सकता हो। जैसे–अँधेरे में उधर मत जाया करो, रास्ते में कई जगह ठोकरें हैं। ४. नंगे पैर के अगले भाग अथवा पहने हुए जूते की नोक या पंजे से किसी वस्तु या व्यक्ति पर किया जानेवाला आघात। जैसे–नौकर या भिखमंगे को ठोकर लगाना या ठोकरों से मारना। क्रि० प्र० देना।–मारना।–लगाना। मुहावरा–(किसी की) ठोकरने पर पड़े रहना=बहुत ही दीन-हीन बनकर और सब तरह का दुर्दशाएँ भोगते हुए किसी के आश्रित बने रहना। ५. कुस्ती का एक दाँव-पेंच जिसमें विपक्षी को पैर से कुछ विशिष्ट प्रकार की ठोकर लगाकर नीचे गिराया जाता है। ६. लाक्षणिक रूप में लोक-व्यवहार में किसी प्रकार का ऐसा कड़ा या भारी आघात जो बहुत कुछ अनिष्ट या हानि करने वाला सिद्ध हो। जैसे–उन्होंने अपने जीवन में कई बार ठोकरें खाई हैं, इसलिए अब उनकी बुद्धि बहुत-कुछ ठिकाने आ गई है। क्रि० प्र०।–खाना।–लगाना। मुहावरा–ठोकर या ठोकरें खाते फिरना=इधर-उधर अपमानित होते हुए और दुख भोगते हुए घूमना। दुर्दशा-ग्रस्त होकर मारे-मारे फिरना।
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ठोकरी  : स्त्री० [देश०] ऐसी गाय जिसे ब्याये कुछ या कई मास हो चुके हों और इसी लिए जिसका दूध गाढ़ा तथा मीठा हो गया हो।
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ठोकवा  : पुं० [हिं० ठोकना] गुना नाम का मीठा पकवान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठोका  : पुं० [देश०] हाथ में पहनने का एक प्रकार का पुरानी चाल का गहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठोट  : वि० [हिं० ठूँठ] १. तत्वहीन। २. मूर्ख।
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ठोठ  : पुं०=ठूँठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि=० ठूँठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठोठरा  : वि० [हिं० ठूँठ ?] [स्त्री० ठोठरी] भीतर से खाली खोखला। पोला।
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ठोड़ी  : स्त्री=ठोढ़ी।
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ठोढ़ी  : स्त्री० [सं० तुंड] चेहरे का निचला सामनेवाला भाग जो आगे की ओर झुका हुआ होता है। ठुड्डी। चिबुक। (चिन्)। मुहावरा–(किसी की) ठोढ़ी पकड़ना=प्रेमपूर्वक या अनुनय-विनय करते हुए किसी को ठोढ़ी छूना या दबाना।
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ठोढ़ी-तारा  : पुं० [हिं०] स्त्री की ठुड्डी पर का गोदना या तिल।
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ठोप  : पुं० [अनु० ठप-टप] जल-कण। पानी की बूँद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठोर  : पुं० [देश०] एक प्रकार का मीठा पकवान जो मैदे की मोयनदार पूरी को घी में तलने और चाशनी में पकाने से बनता है। वल्लभ-संप्रदाय के मंदिरों में प्रायः इसका रोग लगता है। पुं० [सं० तुंड] पक्षियों की चोंच।
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ठोला  : पुं० [देश०] रेशम फेरनेवालों की वह चौकोर छोटी पटरी जिसमें लकड़ी का खूँटा लगा रहता है।
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ठोली  : स्त्री० [देश०] उपपत्नी के रूप में रखी हुई स्त्री। रखेल। (पूरब)।
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ठोस  : वि० [हिं० ठस] १. (पदार्थ) जिसकी रचना में अन्दर कहीं खोखलापन न हो; और इसलिए जो बहुत कड़ा ठस और पक्का हो। जैसे–धातुएँ, पत्थर और लकड़ियाँ अपने प्राकृतिक या मूल रूप में सदा ठोस होती हैं। २. (रचना) जिसके अन्दर न तो किसी प्रकार का पोलापन हो और न पोलेपन की पूर्ति के लिए किसी प्रकार का भराव हो। जैसे–चाँदी या सोने का ठोस कड़ा या ठोस मूर्ति। ३. (तत्त्व या विषय) जिसमें भर-पूर तथ्य, पुष्टता, या सारभूत बातें हों और इसी लिए जिसमें यथेष्ट उपयोगिता, दृढता, प्रामाणिकता, मान्यता आदि गुण वर्तमान हों। जैसे–उनकी सारी पुस्तक ठोस विचारों से भरी पड़ी है। ४. जिसका कोई ठीक दृश्य, या मूर्त्त रूप सामने हो। जिसमें अव्यावहारिक, असंगत या सारहीन बातों की अधिकता या प्रधानता न हो। जैसे–जब तक कोई ठोस प्रस्ताव या सुझाव सामने न आवे, तब तक इस विषय पर विचार नहीं हो सकता। ५. (व्यक्ति) जिसके पास या जिसमें प्रामाणिक या विश्वसनीय माना जा सकता हो। जैसे–ठोस आसामी ठोस महाजन।
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ठोसना  : स० [हिं० ठाँसना या ठूसना ?] १. धक्का देते हुए आघात या प्रहार करना। २. किसी को जलाने या कुढ़ाने के लिए बहुत कठोर या लगती हुई बात कहना। ठोसा देना।
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ठोसा  : पुं० [हिं० ठोसना] १. वह आघात या प्रहार जो किसी को धक्के देते हुए किया जाय। २. वह व्यंग्यपूर्ण बात जो किसी को कुढ़ाने या जलाने के लिए कही जाय। उदाहरण–इक हरि के दरसन बिनु मरियत, अरु कुब्जा के ठोसनि।–सूर। ३. कुढ़ाने या चिढ़ाने के लिए दिखाया जानेवाला हाथ का अँगूठा। ठेंगा।
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ठोहर  : पुं० [हिं० निठोहर] १. अकाल। २. महँगी।
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