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ठंढी  : वि० हिं० ठंढा का स्त्री० रूप। स्त्री० १. चेचक या शीतला नामक रोग (प्रायः बहुवचन रूप में प्रयुक्त) जैसे–बच्चे को ठंढियाँ निकली हैं। क्रि० प्र०–निकलना मुहावरा–ठंढी ढलना=शीतल नामक रोग के वेग का उतार या कमी होना। २. दे० ‘टंढ’। २. दे० ‘ठंढक’।
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ठंढी आग  : स्त्री० [हिं०] १. बरफ। हिम। २. तुषार। पाला। ३. ऐसी धूर्ततापूर्ण चाल जिससे किसी को अन्दर ही अन्दर बहुत अधिक कष्ट या संताप हो। या उसकी कोई बहुत बड़ी हानि हो। जैसे–उस दुष्ट (या नीच) को तो ठंढी आग से जलाना (या मारना) चाहिए।
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ठंढी गरमी  : स्त्री० [हिं०] ऐसी उत्साह, प्रेम या सदभाव जो वास्तविक या हार्दिक न हो, केवल ऊपर से दिखाने या नाम करने के लिए हो। जैसे–उनकी वह ठंढी गरमी देखकर मुझे तो अन्दर ही अन्दर हँसी आ रही थी।
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ठंढी मार  : स्त्री० [हिं०] ऐसा प्रभार या मार जिसमें ऊपर से देखने पर चोट के निशान तो न दिखाई दें, पर भीतरी अंगों पर अधिक या गहरी चोट आवे। जैसे–जेलों और थानों में लोगों पर अक्सर ठंढी मार पड़ती है।
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ठंढी मिट्टी  : स्त्री० [हिं०] ऐसा शारीरिक संघटन जिसमें जवानी के लक्षण अधिक दिनों तक बने रहे और बुढ़ापे की झलक अपेक्षया देर में आवे।
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