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टूटना  : अ० [सं०√ त्रुट्, हिं० तोड़ना का अ०] १. किसी चीज के अंग अंश या अवयव का कटकर अपने मूल से अलग हो जाना। जैसे–पेड़ की डाल या उसमें लगा हुआ फल टूटना। २. किसी चीज का इस प्रकार खंडित या भग्न होना कि उसके दो या बहुत टुकड़े हो जायँ। जैसे–घन की चोट से पत्थर टूटना। ३. किसी चीज के इस प्रकार खंड या टुकड़े होना कि वह काम में आने योग्य अथवा अपने पूर्व रूप में न रह जाय। जैसे–(क) छत, दीवार या मकान टूटना। (ख) गिलास, थाली या लोटा टूटना। (ग) तालाब या नदी का बाँध टूटना। पद–टूटा-फूटा= (क) जो खंडित या भग्न होने के कारण अपने पूर्व रूप में न रह गया हो अथवा ठीक तरह से काम न दे सके। जैसे–टूटी-फूटी घड़ी, टूटा-फूटा मकान। (ख) जो नियत, विधान आदि की दृष्टि से अधूरा या असंगत हो अथवा ठीक या समीचीन न जान पड़े। जैसे–बात करना या बोली बोलना। (ग) इतर भाषा भाषियों का टूटी-फूटी हिंन्दी लिखना। ४. आघात, आदि के कारण किसी चीज का कहीं बीच में से इस प्रकार खंडित होना कि उसमें कुछ अवकाश, दरज या लकीर पड़ जाय। जैसे–(क) पैर या हाथ की हड्डी टूटना। (ख) टक्कर लगने से आरसी या घड़ी का शीशा टूटना। ५. अपने दल, पक्ष, वर्ग समाज आदि से किसी प्रकार अलग या दूर हो जाना अथवा निकल जाना। अलगाव या पार्थक्य हो जाना। जैसे–(क) कबूतर का अपने झुंड से टूटना। (ख) मुकदमें का गवाह टूटना। (ग) जाति या बिरादरी से टूटना। (अर्थात् अलग होना या निकाला जाना)। ६. किसी प्रकार के निश्चित या परम्परागत संपर्क या संबंध का अंत या विच्छेद होना। पहले का सा लगाव या व्यवहार न रह जाना। जैसे–(क) नाता या रिश्ता टूटना। (ख) आपस की संधि, संविदा या समझौता टूटना। ७. किसी चलते हुए कार्य या व्यवहार का इस प्रकार अंत या समाप्त हो जाना कि उसकी सब क्रियाएँ बिलकुल बन्द हो जायँ। जैसे–(क) कोठी, पाठशाला महकमा या संस्था टूटना। (ख) दल, मंडली या संघटन टूटना। (ग) पदाधिकार की जगह या पद टूटना (समाप्त हो जाना) ८. किसी प्रकार के क्रम, निश्चय या परम्परा का अन्त होना अथवा उसमें किसी प्रकार की बाधा या व्यतिक्रम होना। जैसे–(क) खाँसते-खाँसते (या हिचकियाँ लेते लेते) उसका दम टूट गया। (ख) पंद्रह दिन बाद अब बुखार टूटा है। (ग) बकवाद बंद करो, हमारा ध्यान टूटता है। (घ) उनका मौन (या व्रत) टूट गया। ९. किसी पदार्थ के किसी अंश या भाग का कहीं इस प्रकार दब या रुक जाना कि वह काम में न आ सके या मिल न सके। घटकर या और किसी प्रकार नहीं के बराबर हो जाना। जैसे–(क) गरमी में कूओं का पानी टूटना। (ख) लेन-देन या व्यवहार में सौ पचास रुपये टूटना। (कम मिलना)। १॰. किसी प्रकार के तत्व या शक्ति में इस प्रकार कमी या ह्रास होना कि पहले की सी सबल और स्वस्थ स्थिति न रह जाय अथवा बहुत कुछ नष्ट हो जाय। जैसे–(क) रोग से शरीर टूटना अर्थात् बहुत कृश या दुर्बल होना। (ख) बाजार गिरने से महाजन या व्यापारी का टूटना अर्थात् बहुत कुछ निर्धन हो जाना। (ग) युद्ध के कारण देशों या राष्ट्रों का बल टूटना। ११. किसी प्रकार की अनिष्ट, अप्रिय, बाधक या विपरीत घटना अथवा परिस्थिति के कारण किसी मनोदशा या स्थिति का अपने पहले के सबल और स्वस्थ रूप में न रह जाना। जैसे–उत्साह, दिल या हिम्मत टूटना। संयो० क्रि०–जाना। (उक्त सभी अर्थों में)। १२. दुर्बलता रोग शिथिलता श्रम आदि के कारण शरीर के अंगों का इस प्रकार पीड़ा से युक्त होना कि वे अपनी जगह से अलग होते या हटते हुए से जान पड़ें। जैसे–ज्वर आने या बहुत अधिक परिश्रम करने पर शरीर या उसके अंग-अंग टूटना। १३. किसी विशिष्ट उद्देश्य या विचार से बहुत से लोगों का एक साथ दल बाँधकर अथवा प्रायः एक ही समय में कहीं जाना या पहुंचना। जैसे–(क) डाकुओं का यात्रियों पर (अथवा सैनिकों का शत्रु के नगर पर) टूटना। (ख) मेला देखने के लिए (या राशन की दूकान पर) लोगों का टूटना। संयो० क्रि०–पड़ना। १४. पूरे वेग या शक्ति से किसी ओर अथवा किसी काम में प्रवृत्त होना या लगना। जुटना। जैसे–भुक्खड़ों का भोजन पर टूटना। संयो० क्रि०–पड़ना। १५. किसी चीज का प्रायः अनायास और बहुत अधिक मात्रा या मान में आने लगना या प्राप्त होना। जैसे–दौलत तो उनके घर मानों टूटी पड़ती है। संयो० क्रि०–पड़ना। पद–टूटकर या टूट टूटकर=बहुत अधिक मात्रा या मान में। जैसे–टूटकर पानी बरसना (अर्थात् मूसलधार वर्षा होना। १६. युद्ध के प्रसंग में, किले या गढ़ के सबंध में, शत्रु के आक्रमण से ध्वस्त या नष्ट होकर आक्रमणकारियों या विरोधियों के हाथ में चला जाना। जैसे–मुगलों के शासन-काल में एक-एक करके राजपूताने के बहुत से गढ टूट गये। संयो०–क्रि०–जाना। १७. प्रतियोगिता, होड़ आदि के प्रसंग में, पहले के किसी कीर्तिमान या सीमा का किसी नये कृत्य या कौशल से उल्लंघित होना या पीछे छूट जाना। जैसे–इस बार के सर्वराष्ट्रीय खेलों की प्रतियोगिता में कई क्षेत्रों के पुराने कीर्ति-मान टूट गये और उनके स्थान पर नये कीर्ति-मान स्थापित हुए हैं। संयो० क्रि०–जाना। १८. आर्थिक, व्यापारिक आदि प्रसंगों में, किसी चल-पत्र, देयादेश या सिक्के का नगद धन या छोटे सिक्कों के रूप में परिवर्तित होना। भुनना। जैसे–नोट, रुपया या हुंडी टूटना। संयो० क्रि०–जाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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