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टट  : पुं० [सं०] तट। उदाहरण–आएउँ भागि समुद्र टट...।–जायसी।
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टटका  : वि० [सं० तत्काल] [भाव० टटकाई, स्त्री० टटकी] १. (फलों आदि के संबंध में) जो अभी-अभी (खेत, पौधे आदि से तोड़कर) लाया गया हो, फलतः जो बासी न हो। ताजा। जैसे–टटका आम, टटका तरकारी। २. (समाचार) जिसकी सूचना अब या अभी मिली हो। ताजा। जैसे–टटकी खबर। ३. नया।
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टटकाई  : स्त्री० [हिं० टटका] टटके या ताजे होने की अवस्था या भाव। ताजापन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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टटड़ी  : स्त्री०=टटरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटरी  : स्त्री० १.=टट्टी। २.=ठठरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटरूँ  : पुं० [अनु०] पेंडुकी (चिडि़याँ)।
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टटल-बटल  : वि० [अनु०] ऊटपटाँग। पुं० अंगड-खंगड़। काठ-कबाड़।
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टटाना  : अ० [हिं० ठाँठ] शुष्क होना। सूखना। २. खुश्की, थकावट आदि के कारण शरीर या उसके अंगों में हलकी पीड़ा होना। ३. भूख आदि से विकल होना स० १. सुखाना। २. भूखे रखकर विकल करना।
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टटावक  : पुं० [?] काला टीका। उदाहरण–मोर चन्द सिर अस कछु लौनी। मानहु अली टटालक टौनौ।–नन्ददास।
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टटावली  : स्त्री० [सं० टिटिट्भ] कुररी या टिटिहरी नाम की चिड़िया।
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टटिया  : स्त्री=टट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटियाना  : अ० स०=टटाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटोबा  : पुं० [अनु०] १. चारों ओर घूमनेवाला चक्कर या चरखी। २. घिरनी। ३. चारों ओर घूमने या चक्कर खाने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–खाना। ४. दे० ‘टिटिबां’।
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टटीरी  : स्त्री० टिटिहरी। (चिड़िया)।
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टटुआ  : पुं० [स्त्री० टटुई] =टटू। पुं० दे० ‘टेटुआ’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटोना  : स=टटोलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटोरना  : स०=टटोलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटोल  : स्त्री० [हिं० टटोलना] टटोलने की क्रिया, ढंग या भाव।
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टटोलना  : स० [सं० तुला से अनु०] १. अन्धकार में अथवा स्पष्ट दिखाई न देने पर किसी चीज के आकार-प्रकार रूप-रंग आदि का पता लगाने के लिए उसके अंगों आदि पर उँगलियाँ या हाथ फेरना। २. किसी आवरण में रखी हुई वस्तु का अनुमान करने के लिए उसे बाहर से छूना, दबाना या हिलाना। जैसे–किसी का जेब टटोलना। ३. ठीक पता न चलने पर अन्दाज से इधर-उधर ढूँढना या तलाश करना। ४. किसी का आशय या विचार जानने अथवा उसके मन की थाह लेने के लिए उससे जिज्ञासात्मक बात-चीत करना। ५. जाँचने, परखने आदि के लिए किसी प्रकार की ऊपरी या बाहरी क्रिया करना।
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टटोहना  : स०=टटोलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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टट्टड़  : पुं०=टटृर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टट्टनी  : स्त्री० [सं० टट्ट√ नी(ढोना)+ड–ङीष्] छिपकली।
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टट्टर  : पुं० [सं० तट=ऊँचा किनारा या सं० स्थाता=जो खड़ा हो] गाँवों, देहातों आदि के कच्चे मकानों में दरवाजे के स्थान पर मार्ग अवरुद्ध करने के लिए लगाया जानेवाला बाँस की पट्टियों का चौकोर जालीदार ढाँचा। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। पुं० [सं० टटृ√रा (देना)+क] भेरी का शब्द।
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टट्टरी  : स्त्री० [सं० टट्टर+ङीष्] १. ढोल, नगाड़े आदि के बजने का शब्द। २. लंबा या विस्तृत कथन या विवरण। ३. हँसी-माजक। ठट्ठा।
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टट्टा  : पुं० [सं० तट-ऊँचा किनारा या सं० स्थाता=जो खड़ा हो] [स्त्री० टट्टी] १. टट्टर। बड़ी टट्टी। २. लकड़ी का तख्ता या पल्ला। ३. अंडकोश। (पंजाब)।
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टट्टी  : स्त्री० [सं० तटी=ऊँचा किनारा या सं० स्थायी] १. तिनकों, तीलियों आदि को आपस में फँसा या बाँधकर तैयार किया हुआ परदा। जैसे–खस की टट्टी। २. टट्टर। ३. आड़ या ओट के लिए सामने खड़ा किया हुआ वह आवरण या परदा जो प्रायः वृक्षों की डालियों, बाँसो आदि से बनाया जाता है। पद–धोखे की टट्टी=(क) ऐसा आवरण या परदा जो लोगों को धोखे में रखकर अपना काम निकालने के लिए खड़ा किया जाय। (ख) ऐसी चीज या बात जो ऊपर से देखने पर कुछ और जान पड़े, परन्तु जिसके अन्दर कुछ और ही हो। मुहावरा–टट्टी की आड़ (या ओट) से शिकार खेलना=स्वयं आड़ में रहकर या छिपकर किसी पर आघात या वार करना किसी प्रकार के स्वार्थ-साधन का प्रयत्न। करना। टट्टी में छेद करना=ढकने या परदा करने वाली चीज में ऐसा अवकाश निकालना जिससे बाहरवालों को अन्दर की चीजों या बातों का पता लगने लगे। टट्टी लगाना=ऐसा आवरण या परदा खड़ा करना जिसके अन्दर लुक-छिप कर कोई काम किया जा सके। ४. बाँस की फट्टियों आदि का वह ढाँचा जो बेलें आदि चढ़ाने के लिए खड़ा किया जाता है। जैसे–अंगूर की टट्टी। ५. वे तख्ते या पटरियाँ जिन पर नकली पेड़-पौधें आदि बनाकर रखे या लगाये जाते हैं और जो शोभा के लिए जुलूसों, बरातों आदि के साथ ले जाये जाते हैं। ६. किसी प्रकार की ओट या आड़ करने के लिए बनाई जानेवाली छोटी, पतली दीवार। ७. चारों ओर उक्त प्रकार का दीवारों से घेरा हुआ वह स्थान जो केवल शौच आदि के लिए नियत हो। पाखाना। मुहावरा–टट्टी जाना=मल-मूत्र आदि का विसर्जन करने के लिए उक्त प्रकार के स्थान में अथवा खेत आदि में जाना। ८. मल। गूह। पाखाना। ९. चिक। चिलमन। १॰. कोई पतली, चौकोर या लंबी-चौडी रचना। पद–टट्टी का शीशा=बहुत ही पतले दल का और साधारण शीशा, जैसा तसवीरों दरवाजों आदि की चौखट में लगाया जाता है।
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टट्टर  : पुं० [सं० टटृ√रा (देना)+क] नगाड़े का शब्द।
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टट्टू  : पुं० [अनु०] [स्त्री० टटुआनी, टटुई] १. छोटे या नाटे कद का घोड़ा। टाँगन। पद–भाड़े का टट्टू=ऐसा व्यक्ति जो अपने पद, मर्यादा, विवेक आदि का ध्यान छोड़कर पैसे के लालच में दूसरों का काम करता हो अथवा उनकी बातों का समर्थन करता हो। मुहावरा–टट्टू पार होना=काम पूरा होना। प्रयोजन सिद्ध हो जाना। २. पुरुष की लिगेंद्रिय (बाजारू)।
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टट्डा  : पुं०=टाड़ (गहना)।
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