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झालर  : स्त्री० [सं० झल्लरी] १. किसी विस्तार में उनके एक या कई सिरों पर शोभा या सजावट के लिए टाँका, बनाया या लगाया जानेवाला लहरियेदार किनारा या हाशिया। जैसे–तकिये, पंखे या परदे में लगी हुई झालर, सायबान में लगाई जानेवाली झालर। २. वास्तु-रचना में पत्थर, लकड़ी आदि को गढ़ या तराशकर प्रस्तुत की जानेवाली उक्त प्रकार की बनावट। जैसे–दरवाजे के पल्ले या मेहराब में की झालर। ३. उक्त आकार या प्रकार की कोई ऐसी लटकती हुई चीज जो प्रायः हिलती रहती हो। जैसे–गौ या बैल के गले की झालर। ४. किनारा। छोर। सिरा। (क्व०) ५. एक प्रकार का बहुत बड़ा छैना या झाँझ जो पूजा आदि के समय देवताओं के सामने बजाते हैं। पुं०=झलरा (पकवान)। उदाहरण–झालर माँड़े आय पोई।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झालरदार  : वि० [हिं० झालर+फा० दार] जिसमें झालर टँकी, बनी या लगी हो।
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झालरना  : अ० [हिं० झालर+ना (प्रत्य०)] १. झालर का हिलना या हवा में लहराना। २. हवा में किसी वस्तु का लहराना। ३. (पेड़-पौधों का) शाखाओं, पत्तियों, फूलों आदि से युक्त या संपन्न होना। उदाहरण–नित नित होति हरी हरी खरी झालरति जाति।–बिहारी।
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झालरा  : पुं० [हिं० झालर] एक प्रकार का रुपहला हार। हुमेल। पुं० [?] कुछ विशिष्ट प्रकार का बना हुआ चौकोर और बड़ा कूआँ। बावली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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