शब्द का अर्थ
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					जौं					 :
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					अव्य० [सं० यदि] जो। यदि। अव्य०=ज्यों।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					जौंकना					 :
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					स० [अनु० झाँव-झाँव] १. रोष जतलाते हुए ऊँचे स्वर में बोलना। २. एकाएक बहुत जोर से चिल्ला या बोल उठना।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					जौंची					 :
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					स्त्री० [देश०] एक रोग जिसमें पौधों की बालें (जैसे–गेहूँ, चने आदि की बालें) काली पड़ कर मुरझा जाती हैं।				 | 
			
			
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					जौंड़					 :
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					स्त्री=जोंवड़ी (रस्सी)				 | 
			
			
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					जौंड़ा					 :
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					पुं०=जौरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जौंरा					 :
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					पुं०=जौरा।				 | 
			
			
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					जौंरा-जौंरा					 :
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					पुं० [हिं० भुइँहरा] १. किले या राजमहल का वह तहखाना जिसमें प्राचीन काल में राजे, नवाब आदि सुरक्षा की दृष्टि से सोना, चाँदी, हीरे-मोती रखते थे। २. एकसाथ जन्म लेनेवाले दो बालक। ३. प्रायः या बराबर साथ रहनेवाले दो व्यक्ति।				 | 
			
			
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					जौंरे					 :
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					क्रि० वि० [फा० जवार] निकट। समीप।				 | 
			
			
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					जौ					 :
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					पुं० [सं० यव] १. एक प्रसिद्द पौधा जिसके दानों या बीजों को पीसकर बनाया हुआ चूर्ण रोटी बनाने के काम आता है। विशेष–यह पौधा गेहूँ के पौधे से बहुत कुछ मिलता-जुलता होता है। २. उक्त पौधे का दाना या बीज जो गेहूँ के दाने की अपेक्षा कुछ बड़ा तथा लंबोतर होता है। ३. ६ राई की एक तौल। ४. एक पौधा जिसकी लचीली टहनियों से टोकरे आदि बनते हैं। मध्य एशिया के प्राचीन खंडहरों में इसकी बनी हुई टट्टियाँ भी पाई गई है। अव्य० १.=जो (अगर या यदि)। २.=जब। सर्व०=जो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जौक					 :
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					पुं० [तु० जूक=सेना] १. सेना। फौज। २. गोल। झुंड। ३. जत्था। मंडली। ४. पंक्ति श्रेणी। पुं० [अ० जौक] किसी वस्तु या वस्तु से प्राप्त होनेवाला आनंद या सुख। पद–जौक शौक=आनंद उत्साह और प्रसन्नता।				 | 
			
			
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					जौ केराई					 :
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					स्त्री० [हिं० जौ+केराव] केराव या मटर के साथ मिला हुआ जौ।				 | 
			
			
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					जौख					 :
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					पुं०=जौक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जौगड़वा					 :
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					पुं० [जौगढ़=कोई प्रदेश] अगहन में तैयार होनेवाला एक प्रकार का धान।				 | 
			
			
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					जौचनी					 :
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					स्त्री० [हिं० जौ+चना] एक में मिले हुए जौ तथा चने के दाने या बीज।				 | 
			
			
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					जौजा					 :
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					स्त्री० [अ० जौजः] जोरू। पत्नी।				 | 
			
			
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					जौजियत					 :
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					स्त्री० [फा० जौजियत] जौजा अर्थात जोरू या पत्नी होने की अवस्था या भाव।				 | 
			
			
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					जौतुक					 :
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					पुं=यौतुक (दहेज)।				 | 
			
			
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					जौधिक					 :
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					पुं० [सं० यौधिक] तलवार चलाने का एक ढंग, प्रकार या हाथ।				 | 
			
			
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					जौन					 :
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					सर्व० [सं० यः हिं जो] जो। वि०=जो। पुं=यवन। स्त्री०=योनि।				 | 
			
			
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					जौनाल					 :
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					स्त्री० [सं० यव+नाल] १. जौ के पौधे का डंठल और बाल। २. वह भूमि जिसमें जौ बोया जाता हो। ३. ऐसी भूमि जिसमें रबी की कोई फसल होती है				 | 
			
			
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					जौन्ह					 :
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					स्त्री=जोन्ह (चाँदनी)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जौपै					 :
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					अव्य० [हिं० जौ+पै-पर] अगर। यदि।				 | 
			
			
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					जौवति					 :
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					स्त्री०=युवती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जौबन					 :
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					पुं०=जोबन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जौम					 :
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					पुं०=जोम (ताकत)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जौर					 :
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					पुं० [फा०] अत्याचार जुल्म।				 | 
			
			
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					जौरा					 :
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					पुं० [हिं० जूरा] वह अनाज जो गाँवों में नाई, बारी आदि पौनियों को उनके काम के बदले में प्रति वर्ष दिया जाता है। पुं० [हिं० जेवड़ी] बड़ा रस्सा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=यमराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जौलाई					 :
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					स्त्री०=जुलाई (महीना)।				 | 
			
			
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					जौलाय					 :
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					वि० [?] बारह। (दलाल)				 | 
			
			
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					जौशन					 :
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					पुं०=जोशन।				 | 
			
			
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					जौहड़					 :
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					पुं० [पहलवी आवे जोहर=पवित्र जल] १. वह गड्ढा जिसमें बरसाती जल जमा होता हो २. छोटा ताल।				 | 
			
			
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					जौहर					 :
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					पुं० [फा० गौहर का अरबी रूप] १. कोई बहुमूल्य पत्थर। जैसे–नीलम, पन्ना, हीरा आदि। २. किसी बात, वस्तु या व्यक्ति में निहित वे तात्त्विक और मौलिक बातें जो उसके गुणों, दोषों, विशेषताओं, त्रुटियों आदि की परिचायक और सूचक होती है। जैसे–आदमी का जौहर विकट परिस्थितियों में, बहादुरों का जोहर लड़ाई के मैदान में अथवा सोने का जौहर उसे तपाने पर खुलते हैं। क्रि० प्र०–खुलना। ३. उक्त के आधार पर लोहे के धारदार औजारों, हथियारों आदि के संबंध में विशिष्ट प्रकार के चिन्ह या धारियाँ जो लोहे की उत्तमता की सूचक होती है। जैसे–तलवार या कटार का जौहर। ४. उत्तमता। श्रेष्ठता। पुं० [सं० जीव-हर] १. मध्य युग में राजपूत स्त्रियों की एक प्रथा जिसमें गढ़ या नगर के शत्रुओं से घिर जाने और अपने पक्ष की हार निश्चित होने पर वे एक साथ उद्देश्य से जलती चिता में कूद पड़ती थीं कि विजयी शत्रु हमारा अपमान तथा हम पर अत्याचार न करने पावें। ३. उक्त उद्धेश्य से बनाई हुई बहुत बड़ी चिंता। क्रि० प्र०–सँजोना।–सजाना। ३. आत्म सम्मान की रक्षा के लिए की जानेवाली आत्म-हत्या। पुं०=जौहड़।				 | 
			
			
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					जौहरी					 :
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					पुं० [फा०] १. हीरा लाल आदि बहुमूल्य रत्न परखने और बेचनेवाला व्यापारी। २. किसी काम, चीज या बात के गुण-दोष आदि अच्छी तरह जानने और समझने वाला व्यक्ति। पारखी। जैसे–शब्दों का जौहरी।				 | 
			
			
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