शब्द का अर्थ
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					जहाँ					 :
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					अव्य० [सं० यत्र पा० यत्थ, प्रा० जह] जिस स्थान पर। जिस जगह। जैसे–जहाँ गये वहीं के हो गये। पद–जहाँ का तहाँ=जिस स्थान पर कोई चीज है या थी उसी स्थान पर। जैसे–गिलास जहाँ का तहाँ रख देना। जहाँ-तहाँ-इधर-उधर। किस जगह। जैसे–उनके दूत जहाँ-तहाँ फैले हुए थे। पुं० [फा० जहान] लोक। संसार।				 | 
			
			
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					जहाँगीर					 :
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					वि० [फा०] [भाव० जहाँगीरी] संसार को अपने अधिकार में रखनेवाला।				 | 
			
			
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					जहाँगीरी					 :
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					स्त्री० [फा०] हथेली के पिछले भाग पर पहना जानेवाला एक गहना जिसके आगे पाँचों उँगलियों में पहनने के लिए पाँच अँगूठियाँ लगी रहती है।				 | 
			
			
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					जहाँदीद (ा)					 :
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					वि० [फा०] जिसने संसार को देखा परखा हो। अनुभवी।				 | 
			
			
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					जहाँपनाह					 :
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					वि० [फा०] संसार की रक्षा करनेवाला। पुं० १. ईश्वर। २. राजा।				 | 
			
			
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					जहा					 :
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					स्त्री० [सं०] गोरखमुंडी।				 | 
			
			
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					जहाज					 :
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					पुं० [अ० जहाज] १. समुद्रों में चलनेवाली बहुत बड़ी नाव। पद–जहाज का पंछी=ऐसा व्यक्ति जिसका आधार या आश्रय एक ही व्यक्ति या स्थान हो। एक को छोड़कर जिसका और कहीं ठिकाना न लगे। २. दे० जलयान। ३. दे० वायुयान। विशेष–जो पक्षी कहीं से जहाज पर आ बैठता है, वह जहाज के बीच समुद्र में पहुँच जाने पर इधर-उधर आश्रय नहीं पाता और चारों ओर से घूम-फिरकर उसी जहाज पर आ बैठने के लिए विवश होता है। इसी आधार पर यह पद बना है।				 | 
			
			
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					जहाजी					 :
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					वि० [अ०] १. जहाज या जहाजों पर बनने, रहने या होने वाला। पद–जहाजी कौआ (क) जहाज के अन्तर्गत जहाज के पंछी। (ख) बहुत बड़ा चालाक या धूर्त्त। २. जहाज के कर्मचारियों से संबंध रखनेवाला। पुं० १. जहाज का कर्मचारी। खलासी। २. जहाज पर यात्रा करने वाला व्यक्ति। स्त्री० पुरानी चाल की एक प्रकार की तलवार।				 | 
			
			
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					जहाजी सुपारी					 :
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					स्त्री० [हि०] एक प्रकार की सुपारी जो साधारण सुपारी से कुछ बड़ी होती है।				 | 
			
			
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					जहाद					 :
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					पुं० [अ० जिहाद] धर्म की सुरक्षा अथवा अपने सहधर्मियों के लिए किया जानेवाला युद्ध। (मुसलमान)।				 | 
			
			
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					जहादी					 :
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					वि० [हिं० जहाद] जहाद संबंधी। जहाद का। पुं० वह व्यक्ति जो सहाद में सम्मिलित होता हो।				 | 
			
			
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					जहान					 :
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					पुं० [फा०] जगत। लोक। संसार।				 | 
			
			
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					जहानक					 :
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					पुं० [सं०√हा (त्याग)+शानच्, द्वित्वादि,+कन्] प्रलय।				 | 
			
			
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					जहालत					 :
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					स्त्री० [अ०] १. अज्ञान। २. मूर्खता।				 | 
			
			
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