शब्द का अर्थ
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					जब					 :
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					अव्य० [सं० यावत्] १. जिस समय। जिस वक्त। (इस अर्थ में इसका नित्य संबंधी ‘तब’ है) जैसे–जब सवेरा होता है तब अंधकार आप से आप नष्ट हो जाता है। २. जिस अवस्था में। जिस दशा या हालत में। (इस अर्थ में इसका नित्य संबंधी ‘तो’ है) जैसे–जब उन्हें क्रोध चढ़ता है तो उनका चेहरा लाल हो जाता है। पद–जब कभी=किसी समय। जब जब=जिस समय। जब तब-कभी=कभी। जैसे–वहाँ जब=तब ही जाना होता है। जब देखो तब=प्रायः। अक्सर। जैसे–जब देखो तब तुम खेलते ही रहते हों। जब होता है तब=अक्सर प्रायः।				 | 
			
			
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					जबड़ा					 :
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					पुं० [सं० ज्रंभ] मुँह में की उन दो (एक ऊपर तथा एक नीचे) हड्डियों में से हर एक जिसमें दांत जमे या जड़े रहते हैं। पद–जबड़े की सान=गवैयों की एक प्रकार की तान (हलक की तान से भिन्न) जो साधारण या निम्न कोटि की मानी जाती है।				 | 
			
			
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					जबर					 :
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					वि० [अ० ज़बर] १. बलवान। बली। २. पक्का। दृढ़। मजबूत।				 | 
			
			
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					जबरई					 :
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					स्त्री० [हिं० जबर] १. जबरदस्ती। २. ज्यादती।				 | 
			
			
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					जबर-जंग, जबरदस्त					 :
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					वि० [फा०] १. बहुत बड़ा या बलवान। २. उच्च। श्रेष्ठ। वि०=जबरदस्त।				 | 
			
			
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					जबरदस्त					 :
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					वि० [फा०] [भाव०, जबरदस्ती] १. (व्यक्ति) जो बहुत अधिक शक्तिशाली हो तथा स्वभाव से कड़ा हो। जैसे–वह जबरदस्त हाकिम है। २. (वस्तु) जो बहुत ही दृढ़ या मजबूत हो। ३. (कार्य) जो बहुत अधिक कठिन हो। जैसे–जबरदस्त सवाल।				 | 
			
			
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					जबरदस्ती					 :
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					स्त्री० [फा०] १. जबरदस्त या शक्तिशाली होने की अवस्था या भाव। २. कोई ऐसा कार्य या व्यवहार जो बलपूर्वक तथा कड़ाई के साथ किसी के प्रति किया गया हो। जैसे–यह सरासर आपकी जबरदस्ती है। अव्य. १. बलपूर्वक। जैसे–ये जबरदस्ती अंदर घुस आये। २. दबाव पड़ने पर। जैसे–जबरदस्ती खाना पड़ा।				 | 
			
			
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					जबरन्					 :
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					अव्य० [अ० जब्रन] बलात्। जबरदस्ती। बलपूर्वक।				 | 
			
			
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					जबरा					 :
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					पुं० [अं० जेब्रा] घोड़े की तरह का एक जंगली जानवर जिसके सारे शरीर पर लंबी-लंबी सुन्दर काली धारियाँ होती है। वि=जबर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जबरूत					 :
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					स्त्री० [अ०] १. महत्ता। २. वैभव। ३. ऊपर के नौ लोकों में से तीसरा। (मुसल०)।				 | 
			
			
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					जबल					 :
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					पुं० [अ०] पहाड़।				 | 
			
			
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					जबह					 :
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					पुं० [अ०] १. गला काटकर प्राण लेने की क्रिया। २. मुसलमानों में मंत्र पढ़ते हुए पशु-पक्षियों आदि का गला रेतकर काटना।				 | 
			
			
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					जबहा					 :
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					पुं० [?] जीवट। साहस।				 | 
			
			
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					जबाँ					 :
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					स्त्री०=जबान।				 | 
			
			
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					जबान					 :
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					स्त्री० [फा०] [वि० जबानी] १. मुँह के अन्दर का वह लचीला लंबोत्तरा चिपटा अंग, जिसके द्वारा चीजों का स्वाद लिया जाता है, मुँह में डाली हुई चीजें गले के नीचे उतारी जाती है तथा ध्वनियों का उच्चारण किया जाता है। जीभ। मुहावरे (क) स्वाद संबंधी (कोई चीज) जबान पर रखना=किसी वस्तु का स्वाद चखना। थोड़ी मात्रा में कोई चीज चखना। जबान बिगड़ना=(क) बीमारी आदि के कारण मुँह का स्वाद खराब होना। (ख) अच्छी-अच्छी विशेषतः चटपटी चीजें खाने का चस्का लगना। मुहावरे (ख) उच्चारण संबंधी, (किसी की) जबान खींचना या खींच लेना=कोई अनुचित या विरुद्ध बात कहनेवाले को कठोर दंड देना। (किसी की) जबान खुलना=(क) बहुत समय तक चुप रहने पर किसी का कुछ कहना आरंभ करना। (ख) अनुचित या उद्दंतापूर्ण बातें करने का अभ्यास पड़ना या होना। (किसी की) जबान घिस खाना या घिसना=कोई बात कहते-कहते हार जाना। जबान चलना=हर समय कुछ न कुछ कहते या बोलते रहना। जबान चलाना=(क) जल्दी-जल्दी बातें कहना। (ख) अनुचित बात कहना। जबान चलाने की रोटी खाना=केवल लोगों की खुशामद करके जीविका चलाना। (बच्चे की) जबान टूटना-छोटे बच्चे की जबान का ऐसी स्थिति में आना कि वह कठिन शब्दों या संयुक्त वर्णों का उच्चारण कर सके। जबान डालना=किसी से किसी प्रकार की प्रार्थना या याचना करना। (किसी की) जबान थामना या पकड़ना=कहते हुए को कोई बात कहने से रोकना। (कोई बात) जबान पर आना=भूली हुई कोई बात अथवा अवसर के अनुकूल कोई बात याद आना। जबान पर चढ़ना-कंठस्थ होना। जबान पर रखना=सदा स्मरण रखना। जैसे–यह गाली तो उनकी जबान पर रहती है। जबान पर लाना=चर्चा या बात कहना। जबान पर होना=स्मरण होना याद रहना। (किसी की) जबान बंद करना=किसी प्रकार किसी को कुछ कहने से रोकना। जबान बंद होना=कुछ न कहने की विशेषतः उत्तर न देने को विवश होना। जबान बंदी करना=किसी की कही हुई बात को उसी के शब्दों में लिख लेना। जबान बिगड़ना=मुँह से अपशब्द निकलने का अभ्यास होना। जबान में लगाम न होना=अशिष्टता या धृष्टतापूर्वक अनुचित या कठोर बातें कहने का अभ्यास होना। जबान रोकना=(क) कुछ कहते-कहते रुक जाना। (ख) किसी को कुछ कहने से रोकना। जबान संभालना=मुँह से अनुचित या अशिष्ट शब्द न निकलने देना। जबान हिलाना=बहुत दबते हुए कुछ कहना। २. किसी को दिया हुआ वचन। मुहावरा–जबान देना=कोई काम करने का किसी को वचन देना। जबान बदलना=कही हुई बात या दिये हुए वचन से पीछे हट जाना। मुकर जाना। जबान हारना=वचन देना। ३. भाषा। बोल=चाल।				 | 
			
			
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					जबानदराज					 :
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					वि० [फा०] [भाव० जबानदराजी] अशिष्टता या धृष्टतापूर्वक बड़ों से बातें करने वाला। न कहने योग्य बातें भी बढ़ बढ़कर कहनेवाला।				 | 
			
			
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					जबानबंदी					 :
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					स्त्री० [फा०] १. किसी घटना के संबंध में लिखी जानेवाली किसी साक्षी की गवाही। २. मौन। चुप्पी। ३. चुप रहने की आज्ञा।				 | 
			
			
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					जबाला					 :
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					स्त्री० [सं०] छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार सत्यकाम जाबाल ऋषि की माता का नाम जो एक दासी थी।				 | 
			
			
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					जब्त					 :
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					वि० [अ०] १. दबाया या रोका हुआ। जैसे–गुस्सा जब्त करना। २. (वह वैयक्तिक संपत्ति) जो किसी अपराध के दंडस्वरूप शासन द्वारा किसी से छीन ली गई हो। क्रि० प्र०–करना।				 | 
			
			
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					जब्ती					 :
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					स्त्री० [अ० जब्त] जब्त होने की अवस्था, क्रिया या भाव।				 | 
			
			
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					जब्भा					 :
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					पुं०=जबहा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जब्र					 :
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					वि०=जबर।				 | 
			
			
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					जब्रन					 :
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					अव्य=जबरन्।				 | 
			
			
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					जब्री					 :
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					वि० [अ०] जबरदस्ती या बलात् किया हुआ।				 | 
			
			
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