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छेड़ना  : स० [सं० छिंदन या हिं० छेड़] १. इस प्रकार छुना या स्पर्श करना कि उसके फल-स्वरूप कोई क्रिया या व्यापार घटित हो। जैसे–बीन या सितार के तार छेड़ना। २. जीव-जन्तुओं आदि को इस प्रकार स्पर्श करना या उन्हें तंग करना जिससे वे क्षुब्ध होकर आक्रमण कर सकते हो। जैसे–कुत्ते, साँड़ या साँप को छेड़ना। ३. व्यक्ति को चिढ़ाने या तंग करने के लिए हँसी-ठट्ठे के रूप में कोई ऐसी बात कहना अथवा कोई ऐसा काम करना जिससे वह चिढ़ या दुःखी होकर प्रतिकार कर सकता हो। जैसे–पागल, बच्चे या स्त्री को छेड़ना। ४. किसी को तंग करने के लिए उसके काम में अड़ंगा लगाना या बाधा खड़ी करना। ५. किसी चीज को अकारण या व्यर्थ में छूना जिससे उनमें विकार उत्पन्न हो सकता हो। जैसे–घाव या उसमें बँधी पट्टी को छेड़ना। ६. किसी को कोई ऐसी बात (छेड़) बार-बार कहना जिससे कोई चिढ़ता हो। जैसे–उसे सब बुद्दू मियाँ कह कर छेड़ते हैं। ७. कोई कार्य या बात आरंभ करना। जैसे–मकान की मरम्मत छेड़ना। ८. संगीत में गीत, वाद्य आदि कलापूर्ण ढंग से आरंभ करना। ९. चिकित्सा के क्षेत्र में फोड़ा बहाने के लिए नश्तर से उसका मुँह खोलना। स०=छेतना। (छेदना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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