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छ  : देवनागरी वर्ण-माला में चवर्ग का दूसरा व्यंजन जो उच्चारण की दृष्टि से तालव्य, अघोष, महाप्राण और स्पष्ट है। कभी-कभी इसका प्रयोग ६ संख्या के सूचक के रूप में होता है।
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छंग  : पुं० [हिं० उछंग] गोद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छंगा  : वि० [हिं० छः+उँगली] [स्त्री० छंगी] जिसके हाथ में (पाँच की जगह) छः उँगलियाँ हों।
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छँगुनिया  : स्त्री०=छँगुली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छँगुलिया  : स्त्री०=छँगुली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छँगुली  : स्त्री० [हिं० छोटी+उँगली] हाथ की सबसे छोटी उँगली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छंगू  : पुं०=छंगा।
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छँछला  : पुं० [अनु०] छन छन शब्द (नूपुरों आदि का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छंछाल  : स्त्री० [?+हिं० उछाल] छोटी धारा। फव्वारा। उदाहरण–रायजादी घर-अंगणइ छुटे पेट, छुटे पेट छंछाल।–ढोला मारू।
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छँछौरी  : स्त्री०=छछौरी।
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छंट  : क्रि० वि० [हिं० झट ?] शीघ्र। जल्दी। उदाहरण–कहै सखी सूँनीर लै रावल छंट उनय।–जटमल।
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छँटना  : अ० [हिं० छाँटना] १. किसी वस्तु अथवा उसके किसी अंश का कटकर अलग होना। जैसे–सिर के बाल या पेड़ की डाल छँटना। २. किसी का अपने वर्ग या समूह से अलग होना। जैसे–दल में से चार आदमियों का छँटना। ३. किसी वस्तु में से अतिरिक्त, अनावश्यक या फालतू अंश निकालकर अलग होना। जैसे–कार्यालय से कर्मचारी छँटना। ४. छिन्न-भिन्न या तितर-बितर होना। जैसे–बादल छँटना, भीड़ छँटना। ५. किसी क्रिया के फलस्वरूप कम होना या नष्ट हो जाना। न रह जाना। जैसे–आँख की लाली छँटना, कपड़े की मैल छंटना। ६. चुन कर अच्छी वस्तुएँ अलग रखी जाना। जैसे–ये अनार छँटे हुए हैं। पद–छंटा हुआ=चालाक या धूर्त्त (व्यक्ति)। ७. आकार या मोटाई में कम होना। क्षीण होना।
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छँटनी  : स्त्री० [हिं० छाँटना] १. छाँटने या छाँटे जाने की क्रिया या भाव। छँटाई। २. किसी काम या कार्यालय में लगे हुए आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों या कार्यकत्ताओं को निकालकर अलग करने या सेवा से हटाने का काम। (रिट्रेन्चमेंट)।
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छँटवाना  : स० [हिं० छाँटना का प्रे० रूप] छाँटने का काम दूसरे से कराना।
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छँटाई  : स्त्री० [हिं० छाँटना] १. छाँटने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. दे० ‘छँटनी’।
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छँटाना  : स०=छँटवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छँटाव  : पुं० [हिं० छाँटना] छाँटने की क्रिया या भाव । छँटाई।
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छँटुआ  : वि० [हिं० छाँटना] १. छाँटकर निकाला हुआ। (पदार्थ) २. जिसमें से अच्छी वस्तुएँ निकाल ली गई हों। बचा-खुचा या रद्दी। जैसे–छँटुआ माल।
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छँटैल  : वि० [हिं० छाँटना] १. छँटुआ। (दे०) २. (व्यक्ति) जो बहुत ही धूर्त हो। छँटा हुआ।
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छँटौनी  : स्त्री०=छँटनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छँड़ना  : स० [हिं० छोड़ना] छोड़ना। छोड़ देना। उदाहरण–इमि रसाल गुन गरुब वधि वसुधा महि छंड़हि।–चंदवरदाई। स० [हिं० छड़ना] १. किसी चीज का रद्दी अंश निकालने के लिए उसे कूटना। जैसे–ओखली में धान छड़ना। २. अच्छी तरह मारना-पीटना।
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छँड़ाना  : स० [हिं० छुड़ाना] १. मुक्त कराना। २. छीन लेना। स० [हिं० छड़ना का प्रे० रूप](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) छंडऩे का काम दूसरे से कराना।
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छँड़ुआ  : वि० [हिं० छाड़ना] १. छोड़ा हुआ। त्यागा हुआ। २. मुक्त किया हुआ।
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छंदः शास्त्र  : पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें विभिन्न छंदों के रूप और लक्षण बतलाये जाते हैं।
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छंद  : पुं० [सं०√छंद् (प्रसन्न करना)+घञ्] १. अभिलाषा। इच्छा। २. अभिप्राय। मतलब। ३. उपाय। तरकीब। युक्ति। ४. तरह-तरह के रूप धारण करने की क्रिया या भाव। ५. कपट। छल। ६. संघात। समूह। ७. गाँठ। बंधन। पुं० [सं० छंदस्(√छंद+असुन्)] १. मात्राओं या वर्णों का कोई निश्चित मान जिसके अनुसार किसी पद्य के चरण लिखे जाते हैं। आकार, विस्तार आदि के विचार से वे रूप या साँचे जिनमें पद्यात्मक रचना बनती है। (मीटर) विशेष–हमारे यहाँ छन्द दो प्रकार के होते हैं–मात्रिक और वर्णिक। मात्रिक छंद को मात्रा-वृत्त और जाति छंद तथा वर्णिक को वर्ण-वृत्त भी कहते हैं। २. वह साहित्यिक पद्यात्मक रचना जो किसी छंद के नियमों के अनुसार लिखी गई हो। ३. विवाह के समय वर द्वारा कन्या पक्षवालों को सुनाई जानेवाली एक प्रकार की छोटी कविता। ४. वेद। ५. मनमाना आचरण। स्वेच्छाचार। पुं० [सं० छंदक] कलाई पर पहना जानेवाला एक प्रकार का गहना। छंदक
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छंदना  : अ० [हिं० छंद] १. छंद बनाना। २. किसी छंद में कविता करना। ३. कविता करना। उदाहरण–दुःख प्रद उभय बीच कुछ छंदूँ।–निराला। अ० [हिं० छाँदना का अ० रूप] छाँदा अर्थात् बाँधा जाना। जैसे–गधे या घोड़े का पैर छंदना।
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छँदरना  : स० [सं० छंद] धोखा देना। छलना।
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छंदवासी(सिन्)  : वि० [सं० छंद√वस् (रहना)+णिनि] [स्त्री० छंदवासिनी] उच्छृंखलतापूर्ण और मनमाना आचरण करने वाला।
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छंदा  : वि० [हिं० छानना] [स्त्री० छँदी] चरने के लिए छोड़ा हुआ (पशु) जिसके दोनों पैर बँधे हुए हों।
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छंदानुवृत्ति  : स्त्री० [छंद-अनुवृत्ति, तृ० त०] किसी को किसी छल या बहाने से प्रसन्न करने की क्रिया या भाव।
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छंदित  : भू० कृ० [सं०√ छंद+क्त] प्रसन्न किया हुआ।
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छंदोगति  : स्त्री० [सं० छंदस्-गति, ष० त०] किसी छंद में शब्दों आदि की वह योजना जिसके द्वारा उसके पढ़ने में एक विशेष प्रकार की गति या लय का अनुभव हो।
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छंदोदोष  : पुं० [सं० छंदस्+दोष, ष० त०] छंद में निश्चित मात्राओं या वर्णों से अधिक या कम मात्राएँ या वर्ण होने का दोष। (छंदशास्त्र)।
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छंदोबद्ध  : वि० [सं० छदस्-बद्ध स० त०] (साहित्यिक रचना) जो किसी छंद या पद्य के रूप में हो। छंद या पद्य में बँधा हुआ रचा हुआ। (कथन या लेख)। (मीट्रिकल)
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छंदोभंग  : पुं० [सं० छंदस्-भंग, ष० त०] छंद रचना में छंद-शास्त्र के नियमों के पालन की वह त्रुटि जिससे उसमें ठीक गति या लय का अभाव होता है अथवा ठीक स्थान पर यति या विराम नहीं होता।
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छः  : वि० [सं० षट्; पा० प्रा० छः, अप० चह, बं० छय, ओ० छअ; छे, ल्हां० छे, छी; ने० सि० गु० छ; सिंह० स० सय, ह, हय, मरा० सहा] जो गिनती में पाँच से एक अधिक पं० हो। पुं० उक्त संख्या का सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है।-६।
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छई  : स्त्री० [हिं० छाना] संतान। औलाद। उदाहरण–अब की छई की निराली बातें।–कहा०। स्त्री०=क्षय (रोग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छउँड़ा  : वि० [स्त्री० छउँड़ी]=छौंड़ा (छोकरा)।
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छउनी  : स्त्री०=छावनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छकड़ा  : पुं० [सं० शकट] [स्त्री० अल्पा० छकड़ी] माल ढोने की वह छोटी गाड़ी जिसे आदमी या बैल खींचते हों।
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छकड़ी  : स्त्री० [हिं० छः] १. छः का समूह। २. वह पालकी जिसे छः कहार उठाते हैं।
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छकना  : अ० [सं० चकन] [भाव० छाक] १. किसी प्रकार की यथेष्ठ प्राप्ति से पूर्ण संतुष्ट होना। २. कौशल, चातुरी आदि में परास्त होना। हारना। स० कोई चीज इतनी मात्रा में खाना या पीना कि पूरी तृप्ति हो जाय। जैसे–प्रसाद या भोजन छकना। अ० [सं० चक्र=भ्रांत] १. चकराना। २. भ्रम में पड़कर परेशान होना।
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छकाछक  : क्रि० वि० [हिं० छकना] १. पूरी तरह से। भरपूर। २. भली-भाँति। वि० १. पूर्ण रूप से तृप्त। २. नशे में भरा हुआ।
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छकाना  : स० [हिं० छकना] १. किसी को कुछ देकर पूरी तरह से तृप्त या संतुष्ट करना। २. किसी को अच्छी तरह खिला-पिलाकर तृप्त करना। जैसे–ब्राह्मणों को हलुआ-पूरी छकाना। ३. किसी को किसी प्रयत्न या प्रयास में परास्त या विफल करने के लिए कौशल, छल आदि से दुःखी और शिथिल करना।
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छकित  : वि० [हिं० छकना] छका हुआ। वि०=चकित।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छकीला  : वि० [हिं० छकना] १. छकनेवाला। जी भरकर कोई चीज खाने या पीनेवाला। २. छका हुआ। तृप्त। उदाहरण–रंगनि ढरीले हौ छकीले मद-मोह तें।-घनानंद। ३. मस्त। ४. नशे में चूर।
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छकौंहाँ  : वि० [हिं० छकना] १. छकनेवाला। २. छकानेवाला।
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छक्करा  : पुं० [हिं० छक्का-पंजा या छल] छल-कपट। दाँव-पेंच। पु०=छकड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छक्कवै  : पुं० [सं० चक्रवर्ती] चक्रवर्ती। उदाहरण–अनंगपाल छक्कवै, बुद्धि जो इसी उकिल्लिय।–चंदवरदाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छक्का  : पुं० [सं० षक्ङ, प्रा० छक्को] १. छः का समूह। २. छः अंगों या अवयवों वाली वस्तु। ३. चौसर के खेल में पासे का वह पहल जिस पर छः बिंदियाँ होती है। पद–छक्का-पंजा=दांव-पेंच। मुहावरा–(किसी का या के) छक्का या छक्के छूटना=प्रतियोगिता, प्रयत्न आदि में पूरी तरह से परास्त या विफल होकर निरूपाय और हताश होना। छक्का पंजा भूलना=परास्त या विफल होकर ऐसी स्थिति में होना कि कोई और युक्ति सूझ न पडें। ४. सोलही के खेल में वह स्थिति जिसमें छः कौड़ियाँ चित्त पड़ें। ५. ताश का वह पत्ता जिस पर छः बूटियाँ होती हैं।
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छक्का-पंजा  : पुं० [हिं० छक्का+पंजा] दाँव-पेंच। छल-कपट।
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छक्केबाज  : वि० [हिं० छक्का+फा० बाज] [भाव० छक्केबाजी] बहुत बड़ा चालाक या धूर्त्त।
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छगड़ा  : पुं० [सं० छागल] बकरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=छकड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छगन  : पुं० [सं० छगट-एक छोटी मछली] छोटा बच्चा। छोटा बालक।
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छगन-मगन  : पुं० [हिं० छगन+सं० मग्न] छोटे-छोटे हँसते-खेलते हुए प्यारे बच्चे।
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छगना  : अ०=छकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स०=छकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छगरा  : पुं० [सं० छागल] [स्त्री० छगरी] बकरा।
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छगलांत्री (त्रिन्)  : पुं० [सं० छगलांत्र+इनि, ब० स०] भेड़िया।
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छगुनिया, छगुनी  : स्त्री०=छँगुली।
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छ-गोड़ा  : वि० [हिं० छः+गोड़=पैर] [स्त्री० छ-गोड़ी] जिसके छः पैर हों। छः पैरों वाला। पुं० मकड़ा। (जंतु)।
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छग्गर  : पुं० [सं० शकट] बोझ ढोने की पुरानी चाल की गाड़ी या ठेला जिसे आदमी खींचते या ठेलते हैं। सग्गड़।
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छछंद  : वि० [सं० स्वछन्द] १. मस्त। स्वतन्त्र। २. स्वच्छन्दतापूर्वक आचरण करनेवाला। उदाहरण–छछंद मुक्ता भै भ्रमपारं।–गोरखनाथ। पुं०=छल-छंद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छछार  : पुं० [?] उछले हुए जल-कण। छींटा। उदाहरण–छिछकै छछारे छिति अधिक उछार के।–सेनापति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छछिआ  : स्त्री०=छछिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छछिया  : स्त्री० [हिं० छाछ] छाछ नापने या रखने का एक प्रकार का मिट्टी का छोटा पात्र।
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छछूँदर  : पुं० [सं० छुच्छुंदर] १. चूहे की जाति का एक प्रसिद्ध जंतु जिसके शरीर से बहुत दुर्गन्ध निकलती है। २. पश्चिमी भारत में गले में पहना जानेवाला एक प्रकार का ताबीज। ३. एक प्रकार की छोटी आतिशबाजी जो छोड़े जाने पर छू छू शब्द करती है ४. जगह-जगह छोटे-छोटे उत्पात या उपद्रव करने वाला व्यक्ति।
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छछेरु  : पुं० [हिं० छाछ] घी गरम करने पर उसमें से निकलनेवाला छाछ का अंश।
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छछौरी  : स्त्री० [हिं० छाँछ+बरी] एक व्यंजन जो छाँछ में बरी डालकर बनाया जाता है।
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छजना  : अ० [हिं० सजना] सुशोभित होना। सुन्दर जान पड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छजली  : स्त्री० [हिं० छज्जा] १. छोटा और पतला छज्जा। २. छज्जे के आकार की वह वास्तु-रचना जो प्रायः दीवार के ऊपरी भाग में कुछ आगे या बाहर की ओर निकली हुई होती है। (कारनिस)।
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छज्जा  : पुं० [सं० छाद्य; हिं० छाजन] १. दीवार से बाहर निकली या बढ़ी हुई छत का भाग। २. ओलती। ओरी।
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छज्जू  : वि० [हिं० छीजना] छीजा या फटा हुआ। (नया कपड़ा)। (दलाल)।
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छटंकी  : स्त्री० [हिं० छटाँक] छटाँक भर तौल का बटखरा। वि० बहुत छोटा और हलका।
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छटकना  : अ० [हिं० छूटना] १. आघात, दाब आदि पड़ने पर अपने स्थान से उछलकर वेगपूर्वक किसी चीज का कुछ दूर जा गिरना। जैसे–मुट्ठी में से रुपए छटकना।। २. बंधन या वश में से निकल जाना। जैसे–गाय का छटकना। ३. उलछना। कूदना। ४. वर्ग, समूह आदि में से अलग या दूर रहना या हो जाना। ५. पकड़, बंधन आदि से निकलने या बचने का प्रयत्न करना।
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छटकाना  : स० [हिं० छटकना] झटके से किसी चीज को दूर गिराना या फेंकना। छटकने में प्रवृत्त करना।
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छटपटाना  : अ० [अनु०] [भाव० छटपटी] १. बहुत अधिक पीड़ा के कारण हाथ-पैर आदि पटकना। जैसे–दरद के कारण मछली की तरह छटपटाना। २. बहुत अधिक दुःखी होने के कारण बेचैन या व्यग्र होना। ३. किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए बहुत अधिक चिंतित और व्यग्र होना।
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छटपटी  : स्त्री० [हिं० छटपटाना] १. छटपटाने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. घबराहट। ३.मन में होनेवाली आतुरता या आकुलता।
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छटाँक  : स्त्री० [सं० षट्+टंक;> छटंक>छटांक] १. एक तौल जो ५ तोले अर्थात् सेर के १६ वें.भाग के बराबर होती है। २. उक्त तौल का बटखरा।
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छटा  : स्त्री० [सं०] वह विशिष्ट शोभा या सौन्दर्य जो दूर तक फैलती और देखनेवालों पर यथेष्ट प्रभाव डालकर उन्हें मुग्ध करती है। जैसे–वर्षाऋतु में पर्वत की छटा, देव-मंदिर में मूर्ति की छटा।
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छटुआ  : वि० [हिं० छँटना] छांटकर अलग रखा या निकाला हुआ, फलतः निकम्मा या रद्दी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छट्ठी  : स्त्री०=छठी।
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छठवाँ  : वि० [स्त्री० छठवीं] छठा।
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छठा  : वि० [सं० षष्ठ, हिं० छः] [स्त्री० छठी] गिनती में छः के स्थान पर पड़नेवाला। पद–छठे-छमासे=दो, चार, छः महीनों पर एक-आध बार। साल में एक-दो बार,फलतः कभी-कभी।
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छठी  : स्त्री० [हिं० छठा का स्त्री०] १. चांद्र मास के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की छठवीं तिथि। २. बालक के जन्म से छठे दिन होनेवाला एक कृत्य जो उत्सव के रूप में होता है। मुहावरा–छठी का दूध याद आना=ऐसी कठिन या विकट स्थिति में पड़ना कि बुद्धि ठिकाने न रहे।
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छड़  : पुं० [सं० शर] [स्त्री० अल्पा० छड़ी] किसी धातु का गोल या चौकोर लंबा पतला टुकड़ा।
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छड़ना  : स० [सं० चट] १. अनाज के दाने कूटकर उनकी भूसी अलग करना या छंड़ना। जैसे–जौ या धान छड़ना। २. खूब पीटना या मारना (परिहास)।
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छड़ा  : पुं० [हिं० छड़] १. पैर में पहनने का एक प्रकार का गहना। २. मोतियों की लड़ी। ३. हाथ का पंजा (राज०)। वि० [हिं० छाँड़ना] [स्त्री० छड़ी] अकेला। एकाकी। जैसे–छड़ी सवारी। पुं० नौजवान आदमी जिसका अभी विवाह न हुआ हो अथवा जिसके साथ घर-गृहस्थी न हो।
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छड़ाना  : स०=छुड़ाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छड़िया  : वि० [हिं० छड़ी] जिसके हाथ में छड़ी हो। पुं० दरबान जिसके हाथ में प्रायः मोटा डंडा रहता है। ड्योढ़ीदार।
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छड़ी  : स्त्री० [हिं० छड़] १. वह सीधी पतली लकड़ी जिसे लोग सहारे के लिए हाथ में लेकर चलते हैं। २. उक्त प्रकार की पतली छोटी लकड़ी या डंडी जिस पर फूल-पत्तियाँ बँधी रहती हैं और जो शोभा के लिए कही रखी या लगाई जाती हैं। ३. किसी की कब्र या मजार पर लगाई जानेवाली झंड़ी। ४. कपड़े आदि में बनी हुई सीधी धारी या रेखा।
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छड़ीदार  : पुं०=चोबदार।
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छड़ीबरदार  : पुं०=चोबदार।
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छड़ीला  : पुं०=छरीला।
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छड़ी सवारी  : स्त्री० [हिं०] ऐसा व्यक्ति जो कहीं अकेला जा रहा हो। वह जिसके साथ और कोई न हो। (परिहास और व्यंग्य)
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छत  : स्त्री० [सं० छत्र] १. वह वास्तु-रचना जिससे कमरा ढका होता है। पाटन। २. उक्त रचना का ऊपरी या निचला तल या भाग। जैसे–(क) छत की मिट्टी डालना। (ख) छत में झाड़-फानूस टाँगना। ३. किसी चीज को ऊपर से ढकनेवाला भाग। पुं० [सं० क्षत] घाव। व्रण। वि०=क्षत। क्रि० वि० [सं० सन्] रहते हुए आछत।
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छतगीर  : पुं० [हिं० छत+फा० गीर] १. कमरे में ऊपरवाली छत के साथ प्रायः उसे ढकने के लिए तथा तानी जानेवाली चाँदनी। २. पलंग के पायों से बाँधकर खड़े किए हुए बाँसों आदि पर तानी जानेवाली चाँदनी।
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छतगीरी  : स्त्री०=छतगीर।
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छतना  : स० [हिं० छत] छत डालना या बनाना। कमरा या घर छाना। अ० छाया जाना। छत आदि से युक्त होना। अ० [सं० क्षत] घाव होना। अ० [सं० सत्] वर्त्तमान रहना। अ० [?] अदृश्य होना। पुं० [हिं० छाता] बड़े-बड़े पत्तों का बनाया हुआ छाता।
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छतनार  : वि० [हिं० छाता या छतना] [स्त्री० छतनारी] (वृक्ष) जिसकी शाखाएँ छत्र की तरह चारों ओर दूर तक फैली हुई हों।
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छतराना  : अ० [सं० छत्रक] १. छत्रक या खुमी की तरह चारों ओर फैलना। जैसे–दाद छतराना। २. अधिक विस्तार से युक्त होना। जैसे–घाव छतराना।
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छतरी  : स्त्री० [सं० छत्र] १. चारों ओर से खुले हुए स्थान के ऊपर का मंडप। २. किसी पूज्य व्यक्ति का समाधि-स्थल जिसके ऊपर मंडप बना हुआ हो। ३. कबूतरों के बैठने के लिए बाँस की पट्टियों का टट्टर। ४. खुम। ५. दे० ‘छाता’। ६. एक प्रकार का बहुत बड़ा छाता जिसकी सहायता से हवाई-जहाज पर से कूदकर सैनिक नीचे उतरते हैं (पैराशूट)। पद–छतरी फौज=छतरियों के सहारे हवाई जहाजों से उतरनेवाली सेना।
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छतलोट  : स्त्री० [हिं० छत+लोटना] छत पर पेट के बल लेटकर इधर-उधर लोटते हुए की जानेवाली कसरत या व्यायाम।
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छतवंत  : वि० [सं० क्षत+वंत] जिसे क्षत या घाव लगा हो। घायल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छताँ  : क्रि० वि० [हिं० आछत का एक प्रांतिक रूप] विद्यमानता में। रहते हुए। उदाहरण–देह छताँ तुम मिलहु कृपा करि आरतिवंत कबीर।–कबीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छता  : पुं० १ =छाता। २.=छत्ता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छति  : स्त्री०=क्षति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छतिया  : स्त्री०=छाती।
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छतियाना  : अ० [हिं० छाती] १. छाती से लगाना। २. छाती पर या उसके पास लाना या लाकर रखना। जैसे–गोली चलाने के लिए बंदूक छतियाना।
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छतिवन  : पुं० [सं० छत्रपर्ण] एक प्रकार का बड़ा पेड़ जिसके कुछ अंग दवा के काम आते हैं।
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छतीस  : पुं० [सं० क्षितिश] राजा। उदाहरण–और दसा परहरी छतीस।–गोरखनाथ।
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छतीसा  : वि० [हिं० छत्तीस] [स्त्री० छतीसी] १. बहुत ही चतुर। चालाक। २. ढोंगी। उदाहरण–आए हौ पठाय बा छतीसे छलिया के इतै।–रत्नाकर। ३. व्यभिचारी।
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छतुरी  : स्त्री०=छतरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छतौना  : पुं=छाता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छत्त  : स्त्री०=छत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छत्तर  : पुं० १. दे० ‘छत्र’। २. दे० ‘अन्नसत्र’।
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छत्ता  : पुं० [सं० छत्र] १. छाता। छतरी। २. राजा का छत्र। ३. गली आदि की ऊपरी छत। ४. बर्रे, मधुमक्खियों आदि द्वारा निर्मित मोम की वह रचना जिसमें वे स्वयं रहती अंडे देती और शहद जमा करती हैं। ५. वह पौधा या वृक्ष जिसकी शाखाएँ छितरी या फैली हुई हों। ६. कमल की बीजकोश।
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छत्ति  : स्त्री० [सं० छत्र] चमड़े का वह कुप्पा जिस पर बैठकर प्राचीन काल में लोग नदी पार करते थे।
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छ्त्ती  : स्त्री०=छत्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=क्षत्रिय।
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छत्तीस  : [सं० षट्त्रिशत्, प्रा० छत्तीसंती, छत्तीसम्, बँ० सात्रीस, ओ० छत्रीस, पं० छती; सिं० छत्रीह, गु० छत्रीस; ने० छतिस्० मरा० छत्तीस] जो गिनती में तीस से छः अधिक हो। पुं० उक्त संख्या का सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है।–३६।
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छत्तीसगढ़  : पुं० [हिं० छत्तीस+सं० गढ़] आधुनिक मध्यप्रदेश का एक विभाग।
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छत्तीसगढ़ी  : स्त्री० [हिं० छत्तीसगढ़] छत्तीसगढ़ की बोली।
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छत्तीसा  : वि० [स्त्री० छत्तीसी, भाव० छत्तीसापन]=छ्तीसा।
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छत्तेदार  : वि० [हिं० छत्ता+फा० दार] १. जिसके ऊपर छत्र या छत्ता हो। २. मधुमक्खियों के छत्ते के आकार का।
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छत्र  : पुं० [सं० छद् (ढकना)+णिच्+ष्ट्रन्] १. छतरी। २. राजाओं या राज-सिंहासन के ऊपर लगाया जानेवाला बड़ा छाता। ३. कुकुरमुत्ता। ४. एक विष। ५. गुरु का दोषगोपन। पुं० [सं० छत्र] वह स्थान जहां गरीबों या दीन-दुखियों को धर्मार्थ भोजन कराया जाता है।
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छत्रक  : पुं० [सं० छत्र√कै(मालूम पड़ना)+क] १. एक प्रकार का छोटा उदभिज जिसका निचला भाग छड़ी की तरह पतला होता है और जिसका ऊपरी भाग खुले छाते की तरह फैला हुआ होता है। खुमी। (फंगस) २. कुकुरमुत्ता। ३. तालमखाने की जाति का एक पौधा। ४. कौडिल्ला (पक्षी) ५. मण्डप। ६. [छत्र+कन्] छत्ता।
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छत्रकायमान  : वि० [सं० छत्रक+क्यङ्+शानच्] छत्रक के रुप में होने या फैलनेवाला (फंगेटिव)।
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छत्र-चक्र  : पुं० [मध्य० स०] ज्योतिष में, एक प्रकार का चक्र जिससे शुभ-अशुभ फल जाने जाते हैं।
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छत्र-छाँह  : स्त्री०=छत्र-छाया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छत्र-छाया  : स्त्री० [ष० त०] छाया, ऐसा आश्रय जो छाते की तरह सुरक्षित रखनेवाला और सुखद हो। संरक्षण।
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छत्र-धनी  : पुं=छत्रधारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छत्र-धर  : पुं० [छत्र√धृ (धारण)+अच्] १. वह राजा जो छत्र लगाता हो। २. राजा के ऊपर छत्र लगानेवाला सेवक।
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छत्रधारी(रिन्)  : वि० [सं० छत्र√ धृ+णिनि] छत्र-धर।
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छत्रप  : पुं०=क्षत्रप।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छत्रपति  : पुं० [ष० त०] बहुत बड़ा राजा।
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छत्रपन  : पुं० [सं० छत्रिय+पन(प्रत्य)] क्षत्रियत्व।
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छत्र-बंध  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का चित्रकाव्य जिसमें कविता के अक्षर विशिष्ट प्रकार से सजाने से छत्र या छाते की आकृति बन जाती है।
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छत्र-भंग  : पुं० [ष० त०] १. राजा का नाश या मृत्यु। २. ज्योतिष का एक योग जो राजा या उसके शासन के नाश का सूचक माना जाता है। ३. अराजकता।
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छत्राक  : पुं० [सं० छत्र+टाप्, छत्रा√ कै+क] कुकुरमुत्ते, खुमी आदि की जाति के उद्भिजों की सामूहिक संज्ञा।
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छत्रिक  : पुं० [सं० छत्र+ठन्-इक] छत्र धारण करनेवाला। राजा।
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छत्री(त्रिन्)  : वि० [सं० छत्र+इनि] छत्रयुक्त। पुं०=क्षत्रिय।
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छदंब  : पुं० [सं० छद्य] १. छल। २. बहाना।
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छद  : पुं० [√छद्+अच्] १. ढकनेवाली चीजें। आवरण। २. खाल। ३. छाल। ४. खोल। गिलाफ। ५. पत्ता। ६. चिड़िया का पंख।
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छद-पत्र  : पुं० [ब० स०] १. भोजपत्र। २. तेजपात।
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छदन  : पुं० [√ छद्-ल्युट-अन] छद (दे०)।
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छदाम  : पुं० [हिं० छः+दाम] सिक्के का एक मान जो छः दामों अर्थात् पुराने पैसे के चौथाई भाग के बराबर होता था।
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छद्दर  : पुं० [हिं० छः+दर] वह बैल जिसके मुँह में छः दाँत हों।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छद्म(न्)  : पुं० [√छद्+मनिन्] १. किसी चीज पर आवरण डालकर उसे ढकना या छिपाना। २. वह आवरण जिससे कोई चीज ढकी या छिपाई जाती हो। जैसे–मकान की छत या छाजन। ३. किसी वस्तु या व्यक्ति का वास्तविक बाह्य रूप इस प्रकार कृत्रिम प्रसाधनों, वस्त्रों आदि से छिपाना या बदलना जिससे उसे कोई पहचान न सके। ऐसा रूप प्रायः किसी को छलने या धोखा देने अथवा दूसरे का मनोरंजन करने के लिए धारण किया जाता है। ४. छल। धोखा।
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छद्म-तावस  : पुं० [मध्य० स०] वह व्यक्ति जिसने दूसरों को ठगने के लिए अपना साधुओं का सा वेश बनाया हो।
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छद्म-वेश  : पुं० [मध्य० स०] दूसरों को छलने या धोखा देने या मन-बहलाव के लिए बनाया हुआ कृत्रिम वेश।
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छद्मवेशी(शिन्)  : वि० [सं० छद्यवेश+इनि] १. जिसने छद्मवेश धारण किया हो। २. जो प्रायः छद्मवेश धारण करके दूसरों को छलता, धोखा देता अथवा उनका मनोरंजन करता हो।
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छद्म(द्मिन्)  : वि० [सं० छद्य+इनि] [स्त्री० छद्मनी] १. छद्मवेशी। २. छली।
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छन  : पुं० [सं० क्षण, प्रा० पा० छण, पं० खिण, गु० खण, सि० क्षुणु] १. क्षण। (दे०) २. पर्व का समय। पुण्य-काल। पुं० [हिं० छद] हाथों में पहनने का छंद नामक गहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अनु०] १. तपे हुए धातु के पात्र पर ठंढा तरल पदार्थ पड़ने या छिड़कने से होनेवाला शब्द। २. कड़कड़ाते हुए घी या तेल में किसी वस्तु के तले जाने पर होनेवाला शब्द। ३. घुँघरू या पायल के बजने से होनेवाला शब्द।
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छनक  : स्त्री० [हिं० छनकना] १. छन-छन शब्द। झनकार। जैसे–घुँघरुओं की छनक। २. छन-छन शब्द होने की अवस्था या भाव। क्रि० वि० [सं० क्षण+एक] क्षण भर। वि० [सं० क्षणिक] १. क्षणिक। क्षणभंगुर। २. (व्यक्ति) जो क्षण-क्षण भर में अपना मत बदल देता हो। उदाहरण–छाके है अयान मद छिति के छनक क्षुद्र।–केशव।
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छनकना  : अ० [अनु० छन छन] छन-छन शब्द होना। जैसे–घुँघरु का छनकना। अ० [अनु] चौंकना। भड़कना। पुं० दे० ‘झुनझुना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छनक-भनक  : स्त्री० [हिं० छनक+अनु०] १. वह शब्द जो पहने हुए गहनों के आपस में टकराने से उत्पन्न होता है। २. सक। नखरा।
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छनकाना  : स० [हिं० छनकना] १. पानी को उबाल तथा खौलाकर उसका परिमाण कम करना। २. तपे हुए पात्र में कोई द्रव पदार्थ डालकर उसे गरम करना। ३. भड़काना। चौंकाना। स० १. कोई चीज बजाते हुए उसमें से छन-छन शब्द उत्पन्न करना। २. झुनझुना बजाना।
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छनछनाना  : अ० [अनु०] १. तपी हुई धातु पर जल-कण छोड़ने से छन छन शब्द होना। २. खौलते हुए घी या तेल में तलने के लिए कोई वस्तु छोड़ने पर छन-छन शब्द होना। स० १. छन-छन शब्द उत्पन्न करना। २. कुपित या कुद्र करना।
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छन-छवि  : स्त्री० [सं० क्षण+छवि] बिजली।
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छनदा  : स्त्री०=क्षणदा (रात्रि)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छनन-मनन  : पुं० [अनु०] १. घुँघुरुओं आदि के बजाने से होनेवाला छन-छन शब्द। २. वह शब्द जो खौलते हुए घी या तेल में किसी तली जानेवाली वस्तु को छोड़ने से उत्पन्न होता है।
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छनना  : अ० [सं० क्षरण] १. चलनी या छलनी अथवा किसी महीन कपड़े में से किसी चूर्ण (जैसे–आटा), छोटे कर्णों या दानोंवाली वस्तु (जैसे–गेहूँ) अथवा द्रव पदार्थ (जैसे–भाँग) का छाना जाना। २. उक्त के आधार पर किसी नशीले तरल पदार्थ विशेषतः भाँग का पीसा, छाना या पीया जाना। ३. उक्त के आधार पर आपस में गूढ़ वार्त्तालाप या घनिष्ठ संबंध होना। मुहावरा–(आपस में) गहरी छनना=गूढ वार्त्तालाप का मेल-जोल होना। ४. उक्त क्रिया से किसी वस्तु या द्रव्य पदार्थ का अनावश्यक या अनुपयोगी अंश अलग होना। ५. किसी चीज का छोटे-छोटे छेदों से होकर आना या निकलना। जैसे–पेड़ के पत्तों के बीच से चाँदनी का छनकर आना। ६. किसी आवरण में से किसी चीज का भासित होना या झलक दिखाना। जैसे–घूँघट में से सौंदर्य का छनकर निकलना। ७. छेदों से युक्त होना। जैसे–तीरों से घावों के शरीर छनना। ८. किसी अभियोग, झगड़े या विषय की पूरी तथा सही बातों का पता चलना। जैसे–मामला छनना। ९. किसी प्रकार के जाल या धोखे में फँसना। उदाहरण–घात मैं लगे हैं ये बिसाखी सबै, उनके अनोखे छल-छंदनि छनी नहीं।–रत्नाकर। अ० [हिं० छानना का अ० रूप] १. कड़कड़ाते घी या तेल में खाद्य वस्तुओं का तला जाना। छाना जाना। जैसे–पूरी या बुंदियाँ छनना। २. इस प्रकार तली हुई चीजों का खाया जाना। जैसे–चलो ! वहाँ पूरी-कचौरी छनेगी और खीर उड़ेगी। अ० [सं० आछन्न] १. आच्छादित होना। घिरा होना। २. लिपटा या लपेटा हुआ होना। उदाहरण–मनों धनी के नेह की बनी छनी पट लाज।–बिहारी।
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छनभंगु  : वि०=क्षण-भंगुर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छनभर  : क्रि० वि=क्षण-भर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छनवाना  : स० [हिं० छानना का प्रे० रूप] छानने का काम दूसरे से कराना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छनिक  : वि०=क्षणिक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छन्न  : पुं० १=छन। २ =क्षण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० १.=आच्छन्न। २. =छिन्न।
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छन्ना  : पुं० [हिं० छानना] १. वह कपड़ा जिससे कोई चीज छानी जाय। २. चलनी। छलनी। ३. छोटा कटोरा।
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छप  : स्त्री० [अनु०] १. किसी तरल पदार्थ (जैसे–जल) अथवा किसी गाढ़े तरल पदार्थ (जैसे–कीचड़) में किसी चीज के आ गिरने से होनेवाला शब्द। २. जोर से छींटा पड़ने का शब्द।
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छपकना  : स० [हिं० छप (अनु०)] किसी चीज से आघात करना। मारना।
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छपका  : पुं० [हिं० छपकना] १. बाँस आदि की कमाची। २. पतली छड़ी। पुं० [अनु०] १. कोई चीज कीचड़, जल आदि में फेंककर उसे उछालने की क्रिया या भाव। २. पानी आदि की छींटा। ३. कीचड़ या पानी के छीटें का कपड़े आदि पर पड़ा हुआ धब्बा। ४. लकड़ी के संदूक के ढक्कन में की वह पटरी जिसमें जंजीर लगी रहती है। पुं० सिर पर पहनने का एक आभूषण।
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छपछप  : स्त्री० [अनु०] धारा के किसी चीज से बार-बार टकराने से अथवा किसी चीज को बार-बार धारा में फेंकने से होनेवाला शब्द।
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छपछपाना  : अ० [हिं० छपछप] छप-छप शब्द होना। स० छप-छप शब्द उत्पन्न करना।
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छपटना  : अ० [सं० चिपिट] १. चिपकना। २. आलिंगित होना।
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छपटाना  : स० [हिं० छपटना] १. चिपकाना। २. आलिंगन करना। छाती से लगाना। उदाहरण–छिति-पति उमगि उठाइ छोहि छाती छपटायौ।–रत्नाकर।
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छपद  : पुं० [सं० षट्पद] भौरा। भ्रमर।
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छपन  : वि० [हिं० छिपना] छिपा हुआ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [सं० क्षपण] नाश। संहार।
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छपरनहार  : वि० [हिं० छपन+हारा (प्रत्यय)] नाश या संहार करनेवाला।
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छपना  : अ० [हिं० छापना] १. ठप्पे, साँचे आदि की छाप से युक्त होना। ठप्पे या सांचे से चिन्हित होना। जैसे–धोती छपना। २. कागज, पुस्तक आदि का छपकर तैयार होना। मुद्रित होना। जैसे–कोश छपना। ३. किसी कृति, घटना आदि का प्रकाशित होना। जैसे–कविता, लेख या समाचार छपना। ४. छापे में सीसे के बैठाए हुए अक्षरों का अंकित, चिन्हित या मुद्रित होना। अ०=छिपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छपरखट  : स्त्री० [हिं० छप्पर+खाट] वह पलंग जिसके ऊपर डंडों के सहारे कपड़ा तना हो।
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छपर-खाट  : स्त्री०=छपरखट।
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छपर-छपर  : स्त्री०=छपछप। क्रि० वि० छपछप करते हुए।
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छपरबंद  : वि० पुं०=छप्परबंद।
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छपरबंदी  : स्त्री०=छप्परबंदी।
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छपरा  : पुं० [हिं० छप्पर] १. छप्पर। २. बाँस का टोकरा जो पत्तों में मढ़ा होता है तथा जिसमें तमोली पान रखते हैं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छपरिया  : स्त्री=छपरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छपरिहाना  : अ० [हिं० छप्पर] १. छप्पर का गिरना या टूटना। २. छप्पर से गिरना या गिरकर टूटना।
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छपरी  : स्त्री० [हिं० छप्पर का अल्पा० रूप] १. छोटा छप्पर। २. झोपड़ी (जिसका छोटा सा छप्पर होता है)।
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छपवाई  : स्त्री०=छपाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छपवाना  : स०=छपाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छपवैया  : वि० [हिं० छापना] छापनेवाला।
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छपही  : स्त्री० [देश०] उंगलियों में पहनने का एक गहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छपा  : स्त्री० [सं० छपा] १. रात्रि। २. हलदी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छपाई  : स्त्री० [हिं० छापना] छपने या छापने की क्रिया, ढंग, भाव या पारिश्रमिक।
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छपाकर  : पुं० [सं० क्षपाकर] १. चंद्रमा। २. कपूर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छपाका  : पुं० [अनु० छपछप] १. कीचड़ पानी आदि में कोई चीज फेंकने से होनेवाला छप शब्द। ३. छींटा।
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छपाना  : स० [हिं० छापना] १. छापने (दे० छापना) का काम दूसरे से कराना। २. शीतला का टीका लगवाना। स०=छिपाना। उदाहरण–उठि रेनु रवि गयउ छपाई।–तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ० [अनु० छप छप] खेत का सींचा जाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छपानाथ  : पुं० [सं० क्षपानाथ] चंद्रमा।
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छपाव  : पुं०=छिपाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छप्पन  : वि० [सं० षट्पंटाशत्, प्रा० छप्पणम्, छप्पण] जो गिनती में पचास से छः अधिक हो। पुं० उक्त संख्या का सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है।–५६।
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छप्पन-भोग  : पुं० [हिं० छप्पन+सं० भोग] छप्पन प्रकार के व्यंजन। तरह-तरह की खाद्य वस्तुएँ।
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छप्पय  : पुं० [सं० षट्पद] छः चरणोंवाला एक मात्रिक छंद जिसके पहले चरण में रोला के और फिर दो चरण उल्लाला के होते हैं।
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छप्पर  : पुं० [सं० छत्त्वर, प्रा० छप्पर, बँ० छापर, ओ० छपर, पं० ल्हां० छप्पर, सि० छरू, गु० छाप्रो, ने० छाप्रो, मरा० छप्पर] १. कच्चे मकानों, झोपड़ियों आदि की वह छाजन जो बाँसों, लकड़ियों तथा फूस की बनी होती है। मुहावरा–(किसी पर) छप्पर टूट पड़ना=एकाएक कोई विपत्ति या संकट आ पड़ना। (किसी को) छप्पर पर रखना=नगण्य समझना। (किसी को) छप्पर फाड़कर देना=अनायास और बहुत अधिक देना। २. झोपड़ी या मकान जिसकी छाजन फूस आदि की हो। ३. किसी प्रकार का आवरण जो रक्षा के लिए ऊपर लगाया जाय। जैसे–नाव पर का छप्पर।
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छब  : स्त्री० [सं० छवि] छवि। सौंदर्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छबड़ा  : पुं० [हिं० छबड़ी का पुं० रूप] बड़ी छबड़ी।
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छबड़ी  : स्त्री० [पं० छाबड़ी] १. खोंचा। (दे०) २. टोकरी। डलिया।
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छब-तखत  : स्त्री० [हिं० छबि+अ० तकतीअ] शरीर की सुंदर बनावट।
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छबना  : अ० [हिं० छबि] १. छवि या सौंदर्य से युक्त होना। सुशोभित होना। उदाहरण–उझकि-उझकि पद कंजनि के पंजनि पै पेखि पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगि।–रत्नाकर। २. किसी चीज का किसी स्थान पर लगकर ठहर जाना। जैसे–गाल पर कालिख छबना। (बुंदेल०)।
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छबि  : स्त्री० [सं० छबि] छवि। सौंदर्य। स्त्री० [अ० शबीह] १. ऐसा चित्र या तस्वीर जिसमें किसी व्यक्ति के मुख की आकृति स्पष्ट रूप से दिखाई गई हों। २. चित्र।
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छबीना  : पुं० [देश०] पड़ाव। उदाहरण–आध मील चलने के उपरान्त वह अंग्रेजी छबीने के पास पहुँचा।–वृंदावनलाल वर्मा।
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छबीला  : वि० [सं० प्रा० छवि, दे० प्रा० छाइल्लो, गु० छबिलो, पं० छबीला, मरा० छबिला] [स्त्री० छबीली] १. (व्यक्ति) जो छबि से युक्त हो। सुंदर। २. जो बन-ठन कर रहता हो। छैला। बाँका।
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छबुँदा  : पुं० [हिं० छ+बुंदा] काले रंग का एक प्रकार का छोटा जहरीला कीड़ा जिसकी पीठ पर सफेद रंग की ६ बुंदकियाँ होती हैं।
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छब्बीस  : वि० [सं० षट्विंशति] जो गिनती में बीस से छः अधिक हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।–२६।
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छब्बीसी  : स्त्री० [हिं० छब्बीस] फलों आदि की गिनती का एक प्रकार जिसमें २६ गाहियों (अर्थात् १३० दानों) का सैकड़ा माना जाता है।
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छम  : वि०=क्षम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [अनु०] घुँघरू या पायल के बजने का शब्द।
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छमक  : स्त्री० [हिं० छमकना] छमकने की क्रिया या भाव।
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छमकना  : अ० [हिं० छम (अनु०)] १. घुँघरुओं आदि के बजने का शब्द होना। २. आभूषणों की झंकार होना। ३. स्त्रियों का गहने पहन कर अथवा यों ही इठलाते या चमकते-मटकते हुए इधर-उधर आना जाना। स०=छौंकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ०=छौंकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छमछम  : स्त्री० [अनु०] १. पैरों में पहने हुए गहनों, घुँघरुओं, पायलों आदि के बजने से होनेवाला शब्द। २. जोर से पानी बरसने का शब्द। क्रि० वि० १. छमछम शब्द करते हुए। २. इठलाते या चमकते मटकते हुए।
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छमछमाना  : अ० [अनु०] १. छमछम शब्द उत्पन्न होना। २. चमकना। स० छमछम शब्द उत्पन्न करना।
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छमता  : स्त्री०=क्षमता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छमना  : स० [सं० क्षमन्] क्षमा करना। माफ करना।
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छमवाना  : स० [हिं० छमना का प्रे० रूप] १. किसी को क्षमा करने में प्रवृत्त करना। २. अपने आपको क्षमा या माफ करवाना।
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छमाई  : स्त्री० [हिं० क्षमा] क्षमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छमाछम  : क्रि० वि० [अनु० ] छमछम शब्द करते हुए।
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छमाना  : स० [हिं० छमना का प्रेरूप] १. क्षमा कराना। २. सहन कराना। उदाहरण–कौ लगि जीव छमावै छपा मैं छपाकर की छबि छाई रहैरी।–देव।
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छमाशी  : स्त्री० [हिं० छः+माशा] छः माशे की तौल का बाट।
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छमासी  : स्त्री० [हिं० छः+सं० माश] वह श्राद्ध जो किसी व्यक्ति के मरने के छः महीने बाद किया जाता है। छमाही।
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छमाही  : स्त्री० [हिं० छः+माह] १. छः महीनों का समय। २. छः महीनों बाद मिलनेवाली अनुवृत्ति। ३. दे० छमासी। वि० हर छः महीने पर होनेवाला।
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छमिच्छा  : स्त्री० १.=समीक्षा। २=समस्या।
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छमुख  : वि० [हिं० छः+सं० मुख] जिसके छः मुख हों। पुं० षड़ानन।
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छय  : पुं० [सं० क्षय] क्षय। नाश।
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छयना  : अ० [हिं० छय] १. क्षय होना। २. क्षीण होना। स० क्षय करना। उदाहरण–ह्रै कै काई जल कौ छयौ।-सूर। अ० =छाना। स०=छाना।
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छयल(ल्ल)  : वि०=छैला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छयासठ  : वि०, पुं०=छियासठ।
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छर  : पुं०=छल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=क्षर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० [सं० क्षर] भारी। जैसे–छः भार=भारी बोझ।
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छरकना  : अ० [अनु० छरछर] किसी पदार्थ का कभी तल या धरातल को स्पर्श करते हुए और कभी वेग से उछलते हुए आगे बढ़ना। अ=छटकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अ०=छलकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ० =छिटकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छरकायल  : वि०=छरकीला।
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छरकीला  : वि० [हिं० छड़ी] १. दुबला-पतला। २. बहुत लंबा।
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छरछंद  : पुं=छलछंद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छरछराना  : अ० [सं० क्षार] [भाव० छरछराहट] घाव में चुनचुनाहट या जलन होना। स० चुनचुनाहट या जलन उत्पन्न करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छरद  : स्त्री० [सं० छर्दि] कै। वमन। मुहावरा–छिया छरद करना=दे० छिया के अंतर्गत मुहा०–।
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छरन  : वि० [हिं० छरना=छलना] [स्त्री० छरनि] छलनेवाला। पुं०=क्षरण।
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छरना  : स० [सं० क्षरण] सूप में अनाज आदि छाँटना या फटकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ० १. अनाज आदि का छाँटा या फटका जाना। २. दूर होना। न रह जाना। ३. तरल पदार्थ का कहीं से निकलकर धीरे-धीरे बहना। चूना। टपकना। रसना। स=छलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स०=छड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० =छलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छरबर  : पुं०=छलबल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छरहटा  : पुं० [सं० छलहट्ट] १. ऐसा स्थान जहाँ लोग छले या ठगे जाते हैं। छल का बाजार। २. इन्द्रजाल। उदाहरण–कतहुँ छरहटा पेखन लावा।–जायसी।
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छरहरा  : वि० [हिं० छड़+हरा (प्रत्यय)] [स्त्री० छरहरी, भाव० छरहरापन] १. जो शारीरिक दृष्टि से इकहरे शरीर का हो। जिसमें मोटाई सामान्यतः बहुत कम हो। दुबला-पतला। २. चुस्त। फुरतीला। वि० [हिं० छल+हारा] बहुरुपिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छरा  : पुं० [सं० शर, हिं० छड़] १. माला या हार का लड़। २. इजारबंद। ३. छर्रा।
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छरिंदा  : वि०=छरीदा।
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छरी  : स्त्री०=छड़ी। वि०=छली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं० अप्सरा, हिं० अपछरी] अप्सरा।
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छरीदा  : वि० [अ० जरीदः] १. अकेला। २. (यात्रा के समय) जिसके पास असबाब या माल न हो।
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छरीला  : पुं० [सं० शैलेय] एक सुगंधित वनस्पति। पुं० [?] बकरा।
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छरोरा  : पुं० [सं० क्षर] वह घाव या खरोंच जो शरीर के छिलने से बनती हो।
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छर्द  : पुं० [सं०√ छर्द् (वमन करना)+घञ्] कै। वमन।
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छर्दिका  : स्त्री० [√ छर्द्+णिच्+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व] १. कै। वमन। २. विष्णुकांता लता।
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छर्दिका-घ्न  : पुं० [छर्दिका√ हन् (मारना)+टक्] बकाइन। महानिंवा।
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छर्रा  : पुं० [अनु० छरछर] १. पत्थर आदि का छोटा टुकड़ा। २. कंकड़ का छोटा टुकड़ा जो घुँघरू को कटोरी में बंद रहता है और जो घुँघरू के हिलाए जाने पर शब्द करता है। ३. बंदूक, राइफल के द्वारा छोड़ी जानेवाली किसी धातु की गोली अथवा उसका कोई कण। मुहावरा–छर्रा पिलाना=बंदूक या राइफल में छर्रे भरना।
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छलंक, छलंग  : स्त्री०=छलांग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छल  : पुं० [सं०छो (काटना)+कलच्, पृषो० सिद्धि, पा० प्रा छल, ब० छल, आ० छड़, पं० छल, गु० छड़, ने० छल० मरा० सड़] १. कपट कौशल धूर्त्तता आदि से युक्त वह व्यवहार जो अपना उद्देश्य सिद्धि करने के लिए किसी को धोखे में रखकर, बहकाकर या वास्तविकता छिपाकर उसके साथ किया जाता है। २. बहाना। मिस। ३. धूर्त्तता। ४. कपट। ५. धोखेबाजी। ६. शत्रु पर युद्ध के नियम के विरुद्ध वार करना। ७. शास्त्रार्थ में, प्रतिपक्षी के कथन का उसके अभिप्राय से भिन्न कोई दूसरा अर्थ करना।
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छलक  : स्त्री० [हिं० छलकना] छलकने की क्रिया या भाव।
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छलकन  : स्त्री० [हिं० छलकना] १. छलक। २. वह अंश जो छलक कर गिरे।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छलकना  : अ० [सं० क्षल्] १. किसी तरल पदार्थ का अपने आधान या पात्र में पूरी तरह से भर जाने पर उमड़कर इधर-उधर गिरना या गिरने को होना। जैसे–आँखों में आँसू छलकना। २. किसी पात्र में रखे हुए तरल पदार्थ का (पात्र के हिलने पर) झटके से उछलकर पात्र से बाहर गिरना। ३. लाक्षणिक रूप में, किसी चीज का किसी बात से पूरी तरह से भर जाने या युक्त होने पर चारों ओर फूटना या फैला हुआ दिखाई पड़ना। जैसे–आँखों या हृदय में स्नेह छलकना।
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छल-कपट  : पुं० [द्व० स०] धूर्त्ततापूर्ण आचरण या व्यवहार। धोखेबाजी।
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छलकाना  : स० हिं० ‘छलकना’ का स० रूप।
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छल-छंद  : पुं० [द्व० स०] दूसरे को छलने के लिए किया जानेवाला छलपूर्ण व्यवहार। चालबाजी।
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छलछंदी(दिन्)  : वि० [सं० छलछंद+इनि] चालबाज।
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छलछलाना  : अ०=छलकना।
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छल-छाया  : स्त्री० [ष० त०] माया। कपट-जाल।
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छल-छिद्र  : पुं० [द्व० स०] कपट या छलपूर्ण व्यवहार।
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छल-छिद्री(दिन्)  : वि० [सं० छलछिद्र+इनि] कपटी। धूर्त।
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छलन  : पुं० [सं० छल+णिच्+ल्युट्-अन] छलने की क्रिया या भाव।
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छलना  : स्त्री० [सं० छल+णिच्+युच्-अन, टाप्] १. किसी को छलने अर्थात् धोखा देने की क्रिया या भाव। २. वह काम, चीज या बात जिसका उद्देश्य ही दूसरों को छलना या धोखा देना हो। जैसे–यह सारी सृष्टि ही छलना है। स० [सं० छलन] १. छलपूर्ण आचरण या व्यवहार करना। धोखा देना। भुलावे में डालना। २. अपने गुण, रूप आदि का ऐसा प्रदर्शन करना कि उसकी आड़ में किसी का कुछ हर लिया जाय।
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छलनी  : स्त्री० [सं० क्षरण] १. आटा, आदि चालने का छेदोंवाला या जालीदार छोटा उपकरण। चलनी। मुहावरा–छलनी में डालकर छाज उड़ाना=छोटी बात को बड़ी बात करना। २. ऐसी चीज जिसमें उक्त प्रकार के बहुत से छोटे-छोटे छेद हों। जैसे–काँटा में चलते-चलते पाँव छलनी हो गये।
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छल-बल  : पुं० [द्व० स०] वे कपटपूर्ण ढंग या व्यवहार जिनसे किसी की खुशामद करके धोखा देकर अथवा दबाव डालकर अपना काम निकाला जाता है।
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छलबल  : स्त्री० [अनु०] १. चटक-मटक। शोभा।
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छलमलना  : अ०=छलकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छलमलाना  : अ०=छलकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स०=छलकाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छलहाया  : वि० [सं० छल+हिं० हाया (प्रत्यय)] [स्त्री० छलहाई] छल करने या छलनेवाला। छली। छलिया।
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छलाँग  : स्त्री० [हिं० छाल-उछाल+अंग] एक स्थान से खड़े-खड़े वेगपूर्वक उछलकर दूसरे स्थान पर जा खड़े होने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–भरना। मुहावरा–छलाँगें मारना= (क) बहुत तेजी से चलना। (ख) जल्दी-जल्दी उन्नति करते हुए ऊँचे पर पर पहुँचना।
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छलाँगना  : अ० [हिं० छलाँग] छलाँगे भरते हुए आगे बढ़ना।
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छला  : पुं=छल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छलाई  : स्त्री०=छल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छलाना  : स० [हिं० छल्ला का प्रे० रूप] छलने का काम दूसरे से कराना। अ० छला जाना। धोखे में आना।
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छलावरण  : पुं० [सं० छल-आवरण, ष० त०] [वि० छलावृत्त] १. वास्तविक बात या रूप छिपाने के लिए ऊपर से कोई उसे ऐसा रूप देना जिससे देखनेवाले धोखे में पड़ जायँ। २. युद्ध-क्षेत्र में अपनी तोपों, मोरचों आदि को शत्रु की दृष्टि से बचाने के लिए वृक्षों की डालियों, पत्तियों आदि से ढकना। (कैमोफ्लेज)।
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छलावा  : पुं० [हिं० छल] १. भूत-प्रेत आदि की वह छाया जो एक बार सामने आकर अदृश्य हो जाती है। २. दलदल या जंगलों में रह-रहकर दिखाई पड़नेवाला वह प्रकाश जो मृत शरीरों की हड्डियों में छिपे हुए फासफोरस के जल उठने से उत्पन्न होता है। विशेष–इसी को लोग अगिया बैताल या उल्कामुख (प्रेत के मुख से निकलनेवाली आग) भी कहते हैं मुहावरा–छलावा खेलना=अगिया वैताल का इधर-उधर दिखाई पड़ना।
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छलिक  : पुं० [सं० छल+ठन्-इक] रूपक का एक प्रकार।
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छलित  : वि० [सं० छल+णिच्+क्त] जो छला या ठगा गया हो।
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छलिया  : वि० [सं० छल] दूसरों को छलनेवाला। छलपूर्ण आचरण या व्यवहार करनेवाला।
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छली(लिन्)  : वि० [सं० छल+इनि] छलिया।
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छलौरी  : स्त्री० [हिं० छाला] एक रोग जिसमें उँगलियों के नाखूनों के नीचे का मांस सड़ने लगता है और उसमें छाले पड़ जाते हैं।
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छल्ला  : पुं० [सं० लल्ली=लता] १. किसी धातु अथवा किसी पदार्थ की बनी हुँ अँगूठी के आकार की कोई गोलाकार रचना २. उक्त की तरह की कोई गोलाकार आकृति। जैसे–बालों का छल्ला। ३. वह गोलाकार रचना या घेरा जो हुक्के के नीचे में कलाबत्तू आदि के तारों का बना होता है। ४. किसी प्रकार का गोल घेरा या मंडल।
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छल्लि  : स्त्री० [सं० छल√ ला (लेना)+कि] १. छाल। २. लता। ३. संतति।
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छ्ल्ली  : स्त्री० [सं० छल्लि+ङीष्] १. छाला। २. लता। ३. वृक्षों की टहनियों आदि से बनी हुई दौरी या झाबा। ४. अनाज के बोरों की पंक्ति या क्रम से लगा हुआ ढेर। ५. मक्के की बाल। भुट्टा। (पश्चिम)।
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छल्लेदार  : वि० [हि० छल्ला+फा० दार] मंडलाकार घेरे या चिन्होवाला। जिसकी आकृति छल्ले की तरह घेरदार हो। जैसे–छल्लेदार बाल।
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छव  : वि०=छः।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छवक्क  : वि० [हिं० छकना] छका हुआ । तृप्त।
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छवा  : पुं=छावा (शावक)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [देश] पैर की ऐंड़ी।
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छवाई  : स्त्री० [हिं० छाना] छाने या छवाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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छवाना  : स० [हिं० छाना का प्रे० रूप] छाने का काम दूसरे से कराना।
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छवि  : स्त्री० [सं०√ छो (छेदन)+किन्] छबि। (दे०)।
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छवैया  : वि० [हिं० छाना] छवाने या छानेवाला। छाने या छवाने का काम करनेवाला।
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छहर  : स्त्री० [हिं० छहरना] बिखरने की क्रिया या भाव।
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छहरना  : अ० [सं० क्षरण] छितराना। बिखरना। उदाहरण–मोती की फुहार सी छहरें। -पंत।
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छहराना  : स० [हिं० छहरना] छितराना। बिखेरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ०=छहरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छहरीला  : वि० [हिं० छहरना] [स्त्री० छहरीली] छितराने या बिखरनेवाला।
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छहियाँ  : स्त्री०=छाँह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छही  : स्त्री० [देश०] वह मादा पक्षी विशेषतः कबूतरी जो अन्य पक्षियों को बहलाकर अपने अड्डे पर या दल में लाये।
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छाँ  : स्त्री०=छाँह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छाँउँ  : स्त्री०=छाँह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छाँक  : पुं० [फा० चाक] खंड। भाग। स्त्री=छाक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छाँगना  : स० [सं० छिन्न] १. छिन्न या अलग करना। २. कुल्हाड़ी आदि से पेड़ आदि की शाखा काटना।
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छाँगुर  : पुं० [हिं० छः+अंगुल] वह व्यक्ति जिसके हाथ में छः उँगलियों हों।
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छाँछ  : स्त्री० [हिं० छाछ] १.=छाछ। २. छाछ रखने का एक पात्र। छछिया।
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छाँछी  : स्त्री० [हिं० छाँछ] छाछ रखने का छोटा पात्र। छछिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छाँट  : स्त्री० [हिं० छाँटना] १. छाँटने की क्रिया या भाव। २. छाँटकर अलग की हुई निकम्मी वस्तु या रद्दी अंश। ३. दे० छँटनी। स्त्री० [सं० छर्दि] कै। वमन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छाँट-छिड़का  : पुं० [हिं० छीटा+छिड़कना] बूँदा-बाँदी। हलकी वर्षा।
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छाँटना  : स्त्री०=छाँट।
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छाँटना  : स० [सं० छर्द, प्रा० छद्द, २. सं० शत्>शातः>छाट, उसं० श्वठ, दे० प्रा० छाण्ट, बं, छाटा, ओ० छाटिबा, पं० छाटणा, गु० छाटवूँ, मराठी छाट (णे)] १. आगे की ओर निकला या बढ़ा हुआ (फलतः अनावश्यक और फालतू अंश) काटकर अलग करना। जैसे–पेड़ की शाखाएँ या सिर के बाल छाँटना। २. कूट-फटक कर अनाज की भूसी अलग करना। ३. गंदी या दूषित वस्तु किसी चीज से निकालना। साफ करना। जैसे–मैल छाँटना। ४. कै करना। वमन करना। ५. किसी वस्तु को कतरकर विशेष आकार या रूप देना। जैसे–मलमल के टुकड़े में से कुर्ता छांटना। ६. कुल सामग्री में से उपयुक्त वस्तुएँ चुनकर अपने काम के लिए अलग कर लेना। जैसे–पुस्तकें छाँटना। ७. लेख आदि में का वांछनीय अंश ले लेना और अवांछनीय अंश काट या छोड़ देना। पद–काटना-छाँटना। (दे०) ८. अनावश्यक रूप से अपनी योग्यता दिखाना। जानकारी बघारना। जैसे–अंग्रेजी छाँटना, कानून छाँटना।
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छाँटा  : पुं० [हिं० छाँटना] १. छाँटने की क्रिया या भाव। २. किसी को छल से किसी मंडली, सभा अथवा उसकी सदस्यता से अलग करना। क्रि० प्र०-देना।
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छाँड़ना  : स०=छोड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छाँद  : स्त्री० [सं० छंद-बंधन] १. चौपायों के पैंरों में बाँधी जानेवाली रस्सी। २. छाँदने की क्रिया या भाव।
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छाँदना  : स० [हिं० छाँद+ना (प्रत्यय)] १. रस्सी से बाँधना। जैसे–असबाब बाँधना-छाँदना। २. चौपायों के पिछले दोनों पैरों को सटाकर रस्सी से बाँधना जिससे वह दूर जाने या भागने न पावें।
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छाँदसीय  : वि० [सं० छन्दस्+अण्+छ-ईय](वह) जो छंदशास्त्र का ज्ञाता हो।
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छाँदा  : पुं० [हिं० छाँदना] वह भोजन जो ज्योनार, भंडारे आदि से कपड़े आदि में बाँधकर लाया जाय। परोसा। जैसे–ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद एक-एक छाँदा भी दिया गया था।
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छांदोग्य  : पुं० [सं० छन्दोग+ञ्य] एक प्रसिद्ध उपनिषद् जो सामवेद का अंग है और जिसमें दृष्टि की उत्पत्ति,यज्ञों के विधान तथा अनेक प्रकार के उपदेश हैं।
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छाँधना  : स०=छाँदना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छाँव  : स्त्री०=छाँह।
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छाँवड़ा  : पुं०=छौना।
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छाँह  : स्त्री० [सं० छाया; पा० छाय, प्रा० छाआ, छाहा, का० छाय, उ० छाइ, पं० छाँ, सि० छाव, गु० छाँइ, मराठी सावली] १. दे० छाया। २.दे० प्रतिबिंब। ३. ऊपर से छाया हुआ स्थान। ४. शरण। मुहावरा–छाँह न छूने देना=किसी को पास या समीप न आने देना। ५. भूत-प्रेत आदि का प्रभाव। मुहावरा–छाँह बचाना=बहुत दूर या परे रहना।
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छाँहगीर  : पुं० [हिं० छाँह+फा० गीर] १. राजछत्र। २. चँदोआ (दे०) ३. दर्पण।
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छाई  : स्त्री० [सं० क्षार] १. राख। २. जले हुए पत्थर के कोयले के वे छोटे-छोटे कण जिनमें चूना मिलाकर जुडा़ई के लिए गारा बनाया जाता है।
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छाउँ  : स्त्री=छाया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छाउर  : पुं० [सं० क्षार] राख।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छाक  : स्त्री० [हिं० छकना] १. छकने की क्रिया या भाव। २. वह भोजन जो दोपहर के समय खेत पर काम करने वाले व्यक्ति के लिए भेजा जाता है। दोपहर का कलेवा। ३. शराब पीने के समय खाई जानेवाली चटपटी चीजें। चाट। ४. नशा। मद। उदाहरण–दिन छिनदा छाकी रहत छुटत न बिनु छबि छाकुं।–बिहारी। ५. नशीली चीज। मादक पदार्थ। उदाहरण–आठहू पहर की छाक पीवै।–कबीर। ६. ममता। मस्ती।
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छाकना  : अ० [हिं० छकना] १. तृप्त होना। छकना। २. भर जाना। उदाहरण–कियो हुमुकि हुंकार छोभि त्रिभुवन भय छाक्यौ।–रत्नाकर। ३. चकित होना। अ० छकना। धोखा खाना।
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छाकु  : पुं० [हिं० छाक] मद्य। मदिरा।
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छाग  : पुं० [√ छो (काटना)+गन्] १. बकरा। २. बकरी का दूध। ३. पुरोडश। ४. मेष राशि। वि० बकरा संबंधी। बकरे का।
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छागभोजी(जिन्)  : वि० [छाग√भुज्(खाना+णिनि)] बकरे का मांस खानेवाला। पुं० भेड़िया।
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छागमय  : पुं० [सं० छाग+मयट्] कार्तिकेय का छठा मुख।
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छाग-मुख  : पुं० [ब०स०] १. कार्तिकेय। २. कार्तिकेय का एक अनुचर।
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छागर  : पुं० [सं० छागल] बकरा। उदाहरण–छगर मेढ़ा बड़ औ छोटे-जायसी।
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छाग-रथ  : पुं० [ब० स०] अग्नि।
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छागल  : पुं० [सं० छगल+अण्] बकरा। स्त्री० पानी भरने के लिए बनाई हुई चमड़े की मशक। डोल। स्त्री० [पश्तो] पैर में पहनने का एक गहना।
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छाग-वाहन  : पुं० [ब० स०] अग्नि।
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छागिका  : स्त्री० [सं० छागी+कन्, टाप्, हृस्व] बकरी।
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छागी  : स्त्री० [सं० छाग+ङीष्] बकरी।
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छाच्छार  : वि० [सं० छच्छिका] मूर्तिमान। साकार। उदाहरण–रानी का है छाच्छार दर्गा है।
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छाछ  : स्त्री० [सं० छच्छिका] दही का वह घोल जिसमें से मक्खन मथकर निकाल लिया गया हो। मट्ठा।
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छाछरी  : स्त्री० [?] मछली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छाछठ  : वि० [सं० षट्ष्ठि] जो गिनती या संख्या से साठ से छः अधिक हो। पुं० उक्त संख्या का सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है।–६६।
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छाछी  : स्त्री०=छाछ।
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छाज  : पुं० [सं० छाद] १. सरकंडों, सीकों आदि का बना हुआ एक प्रसिद्ध उपकरण जिससे अनाज फटका जाता है। सूप। २. छप्पर। ३. छज्जा। पुं० [हि० छजना] १. छजने की क्रिया या भाव। २. किसी को खेलने या ठगने के लिए बनाया जानेवाला रूप। स्वाग। ३. सजावट। ४. वेष-भूषा।
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छाजन  : स्त्री० [सं० छादन] १. छाने की क्रिया, भाव या मजदूरी छवाई। २. छप्पर। ३. घर के ऊपर की बनावट जो छत के रूप में और छाया के लिए होती है। ४. त्वचा का एक रोग जिसमें जलन होती है। पुं० कपड़ा। वस्त्र। पुं० [हिं० छजना] १. सुंदर जान पड़ना। २. सुशोभित होना। फबना। स० १. सुंदर बनाना। सजाना। २. सुशोभित करना।
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छाड़ना  : स०=छोड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छात  : स्त्री०=छत। पुं० १. =छत्र। उदाहरण–का कहँ बोलि सौहँभा,पातसाहि कर छात।–जायसी। २. छाता।
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छाता  : पुं० [सं० छत्रकम्, पा० छत्तकम्, सि० छद्रु, उ० छाता, मराठी० छत्र] १. कपड़े का वह प्रसिद्ध आच्छादन जो छड़ी में लगी हुई तीलियों पर कपड़ा आदि चढ़ाकर बनाया जाता है और जिसे धूप, वर्षा आदि से रक्षित रहने के लिए सिर के ऊपर खोल या तानकर चलते हैं। २. उक्त आकार की कोई वानस्पतिक रचना। छत्ता। जैसे–खुमी का छाता। ३. दे० ‘छतरी’।
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छाती  : स्त्री० [सं० छादिन् छाने या छाया करनेवाला] १. जीवों के शरीर का सामने वाला वह भाग जो पेट और गरदन के बीच स्थित होता है। वक्षस्थल। २. मनुष्य के शरीर का उक्त भाग, जिसमें स्त्री जाति में स्तन होते हैं। मुहावरा–छाती डलना=अपच के कारण उक्त अंश के भीतरी भागों में जलन होना। छाती पीटना=बहुत दुःखी या शोकमग्न होने पर छाती पर हथेली से बार-बार आघात करना। छाती लगाना=आलिंगन करना। ३. स्त्रियों का स्तन। मुहावरा–छाती छुड़ाना=ऐसी क्रिया करना जिससे शिशुओं के स्तन-पान करने का अभ्यास छूटे। छाती पिलाना=स्त्री का संतान को अपना दूध पिलाना। ४. मन। हृदय। मुहावरा–छाती उमडना=प्रसन्नता से फूले न समाना। छाती जलना=कोई कष्टदायक घटना या बात होने पर संतप्त होना। छाती जुड़ाना या ठंडी होना=अभिलाषा पूर्ण होने पर मन शान्त होना। छाती पत्थर की करना=अपने हृदय को इतना कड़ा करना या बनाना कि उस पर दुख का प्रभाव न पड़े। (किसी की) छाती पर कोदों या मूँग दलना=किसी के सामने जान-बूझकर ऐसा आचरण या व्यवहार या काम करना जिससे उसका दिल दुखता हो। छाती पर पत्थर रखना=दुःखी या शोकमग्न होने पर अपने दिल को कड़ा करना। छाती पर साँप फिरना या लेटना=(क) कलेजा दहल जाना। (ख) ईर्ष्या के कारण व्यथित होना। छाती फटना=बहुत अधिक असह्र दुःख या वेदना होना। छाती भर आना=ह्रदय गद्गद हो जाना। ५. जीवट। साहस। हिम्मत।
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छात्र  : पुं० [सं० छत्र+ण्] [स्त्री० छात्रा] १. विद्यार्थी। २. शिष्य। वि० १. छात्र-संबंधी। २. गुरु या बड़े पर छत लगाकर उसके पीछे-पीछे चलनेवाला।
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छात्रवृत्ति  : स्त्री० [ष० त०] निर्धन तथा योग्य छात्रों को विद्याध्ययन करने अथवा किसी विषय में अनुसंधान करने के लिए कुछ समय तक नियमित रूप से दी जानेवाली आर्थिक सहायता। (स्कालर शिप)।
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छात्रालय  : पुं० [सं० छात्र+आलय, ष० त०]=छात्रावास।
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छात्रावास  : पुं० [सं० छात्र-आवास, ष० त०] वह स्थान जहाँ बहुत से छात्र निवास करते हों। छात्रों के रहने का स्थान। (बोडिंग हाउस)।
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छाद  : पुं० [सं०√ छद् (छाना)+णिच्+घञ्] १. छत। २. छप्पर।
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छादक  : वि० [सं०√ छद्+णिच्+ण्वुल्-अक] आच्छादित करने या छानेवाला।
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छादन  : पुं० [सं०√ छद्-णिच्+ल्युट्-अन] [वि.छदित] १. छाने या ढकने की क्रिया या भाव। २. वह चीज जिससे कुछ छाया या ढका जाय। आच्छादन। आवरण। ३. छिपाव। दुराव। ४. कपड़ा। ५. चादर। दुपट्टा।
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छादित  : भू० कृ० [सं०√ छद्=णिच्+क्त] ऊपर छाया हुआ। उदाहरण–तुहिन वाष्प के सुरंग जलद से छादित, इन्दु रश्मि के इन्द्रजाल से स्पर्शित।–पंत।
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छादिनी  : स्त्री० [सं०√छद्+णिनि-ङीष्] १. चमड़ा। २. खाल।
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छाद्मिक  : वि० [सं० छद्मन्+ठक्-इक] १. (व्यक्ति) जो छद्मवेश धारण किये हो। बहुरूपिया। २. ढोगीं। मक्कार।
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छान  : स्त्री० [सं० छादन] छप्पर। छाजन। स्त्री० [हिं० छानना] छानने की क्रिया या भाव। पद–छान-बीन-(दे०)। स्त्री० [सं० छंद या हिं० छाँद] चौपायों के पैरों में बाँधी जानेवाली रस्सी।
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छानना  : स० [सं० चालन] १. (क) चलनी या छाननी में कोई चीज डालकर उसे (चलनी को) बार-बार इस प्रकार हिलाना कि उस चीज के मोटे कण चलनी में बचे रहें और महीन कण नीचे गिर पड़ें। जैसे–गेहूँ छानना। (ख) कपड़े के ऊपर चूर्ण या बुकनी रखकर उसे ऊपर से हाथ से इस प्रकार चलाना कि उसमें का महीन अंश नीचे छनकर गिर पड़े। कपड़छान करना। (ग) किसी तरल पदार्थ को चलनी या वस्त्र में से इस प्रकार निकालना कि उसमें मिले या पड़े मोटे कण ऊपर रह जाएँ। जैसे–चाय या दूध छानना। (घ) उक्त के आधार पर पिसी या धुली हुई भाँग के संबंध में उक्त क्रिया करना। मुहावरा–भाँग छानना=भाँग पीस या घोलकर पीना। विशेष–कुछ लोग इसी के आधार पर शराब के साथ छानना क्रिया का प्रयोग करते है जो ठीक नहीं है। २. ऐसी रासायनिक क्रिया करना जिससे एक धातु में मिला हुआ दूसरी धातु का अंश अलग हो जाय। जैसे–तेजाब में सोना छानना। ३. कोई चीज ढूँढने के लिए सब जगह या सब चीजें अच्छी तरह देखना भालना। जैसे–(क) सारा घर या शहर छानना। (ख) पूरी रामायण या महाभारत छानना।
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छाननी  : स्त्री०=चलनी।
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छान-बीन  : स्त्री० [हिं० छानना+बीनना] १. छानने या बीनने की क्रिया या भाव। २. अनुंसधान। जाँच-पड़ताल।
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छाना  : स० [सं० छादनकृ० पा० छाद] १. छाया के लिए किसी स्थान पर कोई आवरण डालकर या कोई रचना खड़ी कर उसे ढकना। जैसे–छाजन छाना। २. छाया करने के लिए किसी स्थान से कुछ ऊपर कोई वस्त्र तानना या फैलाना। ३. आवास के प्रसंग में, निर्मित करना। जैसे–घर या झोपड़ी छाना। अ० १. किसी चीज या बात का इस प्रकार चारों ओर फैल जाना कि अपने क्षेत्र में हर जगह दिखाई दे। जैसे–अंधकार छाना, बादल छाना, रोव छाना। २. डेरा डाल कर या जमकर कहीं रहना। उदाहरण–जोगिया जी छाइ रह्या परदेश।–मीराँ।
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छानि  : स्त्री०=छानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छानी  : स्त्री० [हिं० छाना] घास-फूस की छाजन। मुहावरा–(किसी की) छानी छवाना=ऐसी व्यवस्था करना कि कोई सुरक्षित रूप से रह सके। वि० छिपा हुआ। गुप्त।
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छाने-छाने  : क्रि० वि० [हिं० छाना] चुपके से। छिपे-छिपे।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छाप  : स्त्री० [हिं० छापना] १. छापने की क्रिया या भाव। २. वह ठप्पा या साँचा जिससे कोई चीज छापी जाय। ३. छापने से बननेवाला विशिष्टता सूचक कोई चित्र या चिन्ह। जैसे–वैष्णवों के अंगों पर गरम धातु से अंकित शंख, चक्र आदि का चिन्ह। ४. ऐसी अँगूठी जिस पर छापने के लिए कोई अंक या चिन्ह बना हो। मुद्रा। ५. अँगूठी (पश्चिम)। ६. कविता के अन्त में रहनेवाला कवि का उपनाम। ७. किसी प्रकार के विशिष्ट प्रभाव के फलस्वरूप दिखाई देनेवाला चिन्ह या बात। जैसे–इस कवि पर ब्रजभाषा की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। ८. किसी कथन, घटना, दृश्य आदि के प्रभावशाली होने या ठीक जान पड़ने के कारण मन पर पड़नेवाला उसका प्रभाव।
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छापना  : स० [हिं० छाप] १. ठप्पे आदि पर रंग या स्याही लगाकर उसे किसी वस्तु पर इस प्रकार दबाना कि ठप्पे पर बनी हुई आकृति उस वस्तु पर छप या बन जाय। २. यंत्रों की सहायता से अक्षर, चित्र आदि मुद्रित करना। ३. पुस्तक, लेख, समाचार-पत्र आदि प्रकाशित करना। ४. किसी तल पर काला कागज रख कर उस पर इस प्रकार चित्र बनाना या कुछ लिखना कि उस तल पर उस कागज की सहायता से चिन्ह बन जायँ। स० =छोपना। उदाहरण–सब मुख कंजनि खिलत सोक पाला परिछाप्यौ।–रत्नाकर।
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छापा  : पुं० [हि० छापना] १. धातु अतवा लकड़ी का वह टुकड़ा जिस पर फूल-पत्ती आदि खुदी रहती है और जिस पर रंग या स्याही लगाकर उसकी छाप किसी तल पर लगाई जाती है। ठप्पा। २. उक्त उपकरण की छाप। ३. विष्णु के आयुधों के वे चिन्ह जो भक्त लोग तप्त मुद्रा से अपने शरीर पर अंकित कराते हैं। उदाहरण–जप माला छापे तिलक..।-बिहारी। ४. गोहर, मुद्रा और उसकी छाप। ५. मंगल अवसरों पर हथेली और पाँचों उँगलियों का वह चिन्ह जो हल्दी आदि की सहायता से दीवारों आदि पर लगाया जाता है। ६. पुस्तकें, समाचार-पत्र आदि छापने की कला या यंत्र। ७. शत्रु या शिकार पर अचानक किया जानेवाला हमला। क्रि० प्र०–डालना। मारना। ८. किसी की तलाशी लेने के लिए और कुछ विशिष्ट वस्तुएँ पकड़ने के लिए पुलिस का अचानक या अप्रत्याशित रूप से कहीं पहुँचकर सब चीजें देखना-भालना। क्रि० पर०–मारना।
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छापा-खाना  : पुं० [हि० छापना+फा० खानः] वह संस्थान जहाँ यंत्रों आदि की सहायता से छपाई का काम होता हो। मुद्रणालय। (प्रिटिंग प्रेस)
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छापामार  : वि० [हि० छापा+मारना] अचानक किसी पर आक्रमण करनेवाला। छापा मारनेवाला।
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छापामारी  : स्त्री० [हि० छापामार] छापा मारने की क्रिया या भाव।
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छाब  : पुं० [देश०] घुटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छाबड़  : पुं० [हि० छाबड़ी] बड़ी छाबड़ी। उदाहरण–मिणधर छाबड़ माय,पडै न राणप्रतापसी।–दुरसाजी।
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छाबड़ी  : स्त्री० [हि० छाबा] वह टोकरी या थाल जिसमें खाने-पीने की चीजें रखकर बेची जाती है। खोंचा।
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छाबा  : पुं०=झाबा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छाम  : वि०=छाँह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=क्षाम।
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छामोदर  : वि० [स्त्री० छामोदरी]=क्षामोदर।
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छाय  : स्त्री०=छाया।
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छायल  : स्त्री० [?] स्त्रियों की एक प्रकार की कुरती।
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छायांक  : पुं० [सं० छाया-अंक, ब० स०] चंद्रमा।
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छाया  : स्त्री० [सं०√ छो (काटना)+य-टाप्] १. वह अंधकार या अंधकारपूर्ण वातावरण जो किसी स्थान (अवकाश) में प्रकाश की किरणें किसी बीच में पड़नेवाली आड़ या आवरण के कारण न पहुँच सकने पर उत्पन्न होता है। २. ऐसा स्थान जहाँ उक्त प्रकार का अंधकार या अंधकारपूर्ण वातावरण हो। ३. ऊपर या सामने रहनेवाली वह चीज जो धूप, वर्षा, शीत आदि से बचाती है। ४. वह अंधकारपूर्ण आकृति जो किसी स्थान पर प्रकाश की किरणें न पहुँच सकने पर बनती है और यह उस वस्तु की आकृति जैसी होती है जो प्रकाश की किरणों को किसी स्थान पर नहीं पहुँचने देती। परछाई। प्रतिबिंब। ५. प्रायः किसी के पीछे या साथ टोह, रक्षा आदि के लिए लगा रहनेवाला व्यक्ति। ६. किसी वस्तु के अनुकरण पर बनी हुई और कुछ-कुछ वैसी ही जान पड़नेवाली पर कम महत्व की चीज। प्रतिकृति। अनुहार। ७. ऐसी तत्त्वहीन या निस्सार बात या पदार्थ जो किसी वास्तविक या महत्त्वपूर्ण बात या पदार्थ की भद्दी नकल भर हो। व्यर्थ की निकम्मी और भ्रामक प्रतिकृति। ८. किसी बात या पदार्थ का बहुत ही क्षीण या नाम-मात्र का अवशेष जो उस मूल बात या पदार्थ का आभास देता हो। ९. चित्र का वह अंश जहाँ पर किसी अंश की छाया पड़ने के कारण अपेक्षाकृत कुछ अधिक कालापन आ गया हो। (शेड) १॰. भूत-प्रेत आदि के कारण होनेवाली बाधा। ११. कांति। दीप्ति। १२. एक रागिनी। १३. दुर्गा। १४. सूर्य की पत्नी। १५. आर्या छंद का एक भेद।
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छाया-कर  : पुं० [छाया√ कृ (करना)+अच्] किसी के पीछे छतरी लेकर चलनेवाला व्यक्ति।
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छाया-गणित  : पुं० [मध्य० स०] गणित की वह प्रक्रिया जिससे उनकी छाया के सहारे ग्रहों की गति-विधि आदि जानी जाती है।
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छाया-गत  : वि० दे० पार्श्वगत।
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छाया-ग्रह  : पुं० [छाया√ ग्रह (ग्रहण)+अच्] आईना। शीशा।
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छाया-ग्राहिणी  : स्त्री० [सं० छायाग्राहिन+ङीष्] सिहिंका। (दे०) नामक राक्षसी।
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छाया-ग्राही(हिन्)  : वि० [सं० छाया√ग्रह-णिनि] [स्त्री० छायाग्राहिणी] किसी की छाया के आधार पर ही उसे ग्रहण लेने या पकड़नेवाला।
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छाया-चित्र  : पुं० [मध्य० स०] वह चित्र जो विशेष प्रकार से निर्मित कागज या शीशे पर किसी वस्त्तु की छाया मात्र पड़ने पर उत्तर आता है। २. उक्त प्रतिबिम्ब को छापने से बननेवाला चित्र। (फोटो)।
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छाया-चित्रण  : पुं० [ष० त०] वह कला या क्रिया जिससे किसी वस्तु की छाया या प्रतिबिम्ब एक प्रकार के शीशे पर ले लिया जाता है और उसके द्वारा एक विशेष प्रकार के कागज पर उसका चित्र छापा जाता है। (फोटोग्राफी)।
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छाया-तनय  : पुं० [ष० त०] शनि।
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छाया-दान  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का दान जिसमें ग्रहजन्य अरिष्टों की शांति के लिए काँसे की कटोरी में घी या तेल भरकर पहले उसमें अपनी छाया देखी जाती है और तब उस पात्र का घी या तेल दक्षिणा सहित किसी को दे दिया जाता है।
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छाया-नट  : पुं० [ब० स०] षाड़व संपूर्ण जाति का एक संकर राग जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
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छाया-नाटय  : पुं० [सं०] पुतलियों का एक प्रकार का नाटक जिसमें चमड़े की पुतलियाँ और पुतले बनाकर उन्हें कठपुतलियों की तरह इस प्रकार नचाया और उनसे अभिनय कराया जाता था कि उनकी छाया आगे पड़े हुए उस पर्दे पर पड़ती जो दर्शकों के सामने होता था। विशेष–इसका आरंभ चीन में और विकास भारत में हुआ था जहाँ से यह भारत और अरब होता हुआ अफ्रीका और यूरोप में पहुँचा था। यही आधुनिक चलचित्रों का मूल रूप माना गया है।
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छाया-पथ  : पुं० [मध्य० स०] असंख्य नक्षत्रों का विशिष्ट समूह जो हमें उत्तर-दक्षिण फैला हुआ दिखाई देता है। आकाशगंगा। (गैलेक्सी)। विशेष–वस्तुतः महाशून्य में ऐसे अनेक छाया-पद जगह-जगह फैले हुए हैं और हमारी पृथ्वी तथा सौर मंडल इसी प्रकार के एक छाया छाया-पथ के अंतर्गत हैं।
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छायापाती(तिन्)  : पुं० [सं० छाया√पत्(गिरना)+णिनि] सूर्य।
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छायापात्र  : पुं० [ष० त०] वह छोटा पात्र जिसमें घी या तेल भर कर छाया-दान किया जाता है।
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छाया-पुरुष  : पुं० [मध्य० स०] हठ योग की एक साधना के फलस्वरूप द्रष्टा को आकाश में दिखाई पड़नेवाली निजी छाया रूपी आकृति।
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छायाभ  : (ा) यवि० [सं० छाया-आभा, ब०स०] १. जो छाया से युक्त हो। २. जिस पर छाया पड़ी हो। स्त्री० अंधकार और प्रकाश। उदाहरण–यह छायांभा है अविच्छिन्न यह आँख मिचौनी चिर सुन्दर।–पंत।
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छायामय  : वि० [सं० छाया+मयट्] छाया से युक्त।
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छायामान  : पुं० [ब० सत०] चंद्रमा।
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छाया  : मित्र
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छाया-मूर्ति  : स्त्री० [मध्य० स०] छाया पड़ने से बनी हुई आकृति या रूप।
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छाया-मृगधर  : पुं० [छाया-मृग, मध्य० स० छायामृग-कर, ष० त०] चंद्रमा।
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छाया-यंत्र  : पुं० [मध्य० स०] धूप-घड़ी।
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छाया-लोक  : पुं० [मध्य० स०] अदृश्य जगत् (इस लोक से परे माना जानेवाला वह लोक जो दिखाई न देता हो।
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छाया-वाद  : पुं० [ष० त०] आधुनिक साहित्य में आत्म अभिव्यक्ति का वह नया ढंग या उससे संबंध रखनेवाला सिद्धांत जिसके अनुसार किसी सौंदर्यमय प्रतीक की कल्पना करके ध्वनि, लक्षणा आदि के द्वारा उसके संबंध में अपनी अनुभूति या आंतरिक भाव प्रकट किए जाते हैं।
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छायावादी(दिन्)  : वि० [सं० छायावाद+इनि] १. छायावाद संबंधी (रचना)। २. छायावाद के सिद्धांत माननेवाला या उसका अनुसरण करनेवाला (व्यक्ति)।
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छाया-सुत  : पुं० [ष० त०] शनि।
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छार  : पुं० [सं० क्षार] १. जली हुई वस्तु का वह अंश जो भस्म या राख हो गया हो। २. खारा नमक।
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छारना  : सं० [हिं० छार] १. पूरी तरह से जलाकर राख करना। २. चौपट या नष्ट करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छारा  : पुं०=छाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छाल  : स्त्री० [सं० पा० प्रा० छल्ली] वृक्षों आदि के तने पर का कड़ा, खुरदरा और मोटा छिलका। पुं० चिट्ठी या पत्र (जो पहले छाल पर लिखा जाता था)। पुं० छाला। चर्म। उदाहरण–बैठ सिंध छाला होइ तपा।–जायसी। स्त्री०=उछाल। पश्चिम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छालक  : वि० [सं० छालक] [स्त्री० छालिका] धोने या धोकर साफ करनेवाला। उदाहरण–त्रिपथ गासि पुन्य रासि पाद–छालिका।–तुलसी।
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छालटी  : स्त्री० [हिं० छाल] एक प्रकार का कपड़ा जो अलसी आदि के रेशों से बनाया जाता है।
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छालित  : भू० कृ० [सं० प्रक्षालित] धोया अथवा साफ किया हुआ।
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छालिया  : वि० [सं० स्थाली] एक प्रकार की छिछली तथा छोटी कटोरी। पुं० [?] १. सुपारी केकटे हुए छोटे-छोटे टुकड़े। २. बादाम, पिस्ते आदि के एक में मिले हुए छोटे टुकड़े।
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छाली  : पुं=छागल (बकरी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छाँव  : स्त्री०=छाँह।
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छावना  : स०=छाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छावनी  : स्त्री० [हिं० छाना] १. छप्पर आदि छाने की क्रिया या भाव। २. छप्पर। ३. डेरा। पड़ाव। मुहावरा–छावनी छाना=मार्ग में डेरा लगाना। अस्थायी रूप से कहीं परदेश में जाकर रहना। ४. शहर का वह भाग जहाँ सैनिक रहते हों। सैनिकों की बस्ती। (कैन्ट्रनमेंट)।
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छाहरि  : स्त्री० [हिं० छाँह] छाया। उदाहरण–आपनि छाहरि तेज न पास।–विद्यापति।
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छिउँकी  : स्त्री० [हिं० च्यूँटी] [पुं० छिउका] १. एक प्रकार की भूरे रंग की च्यूँटी। २. एक प्रकार का कीड़ा। स्त्री० चिकोटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिंकना  : अ०=छिकना।
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छिंकोरा  : पुं० [देश०] एक वन्य पशु।
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छिंछ  : पुं० [अनु०] १. फुहारा। फव्वारा। उदाहरण–ऊँच छिंछ ऊछलै अति।–प्रिथीराज। २. छींटा। वि०=छूँछा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिछना  : स० [सं० इच्छ] चाहना। इच्छा करना।
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छि  : अव्य० [अनु०] अश्रद्धा, घृणा तिरस्कार आदि का सूचक एक शब्द। जैसे–छिः तुम भी ऐसा करने लगे।
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छिअ  : वि० छः (संख्या)।
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छिउकी  : स्त्री०=छिउँकी।
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छिउल  : पुं० [सं० छाल्मलि] टेसू। पलाश।
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छिकना  : अ० [हिं० छेकना] १. (स्थान आदि का) घेरा जाना। २. मार्ग में अवरुद्ध किया या रोक लिया जाना। ३.(खाते में नाम पड़ी रकम का वसूल होने पर) काटा या रद्द किया जाना।
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छिकनी  : स्त्री० [सं० छिक्कनी] नकछिकनी नाम की एक बूटी।
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छिकरा  : पुं०=चिकारा।
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छिकुला  : पुं०=छिलका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिक्कनी  : स्त्री० [सं० छिक्√ कन् (शब्द करना)+अप, ङीष्] नकछिकनी नाम की बूटी।
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छिक्का  : स्त्री० [सं० छिक्√ कै (शब्द करना)+क-टाप्] छींक। पुं०=छीका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिगार  : पु०=चिकारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिगनी  : स्त्री० [सं० क्षुद्र+हिं० उँगली०] हाथ या पैर की सबसे छोटी उंगली। कानी उँगली।
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छिगुली  : स्त्री०=छिगुनी।
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छिच्छ  : पुं०=छींटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिछकारना  : स०=छिड़कना।
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छिछड़ा  : पुं०=छीछड़ा।
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छिछड़ी  : स्त्री० [हिं० छिछड़ा] लिगेंन्द्रिय के अगले भाग का आवरण।
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छिछला  : वि० [सं० उच्छल] [स्त्री० छिछली] १. जिसमें गरहाई न हो। कम गहरा। जैसे छिछला पात्र। २. (जलाशय) जो कम गहरा हो और इसी लिए जिसमें जल थोड़ी मात्रा में रहता हो। ३. तुच्छ (बात या स्वभाव)।
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छिंछिल  : वि०=छिछला।
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छिछोरा  : वि० [हिं० छिछला] [स्त्री० छिछोरी, भाव, छिछोरापन] (व्यक्ति) जो स्वभाव से गंभीर न हो।
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छिजना  : अ०=छीजना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिटकना  : अ० [सं० क्षिप्ति] १. किसी पदार्थ के कणों का इधर-उधर बिखरना। २ =छिड़कना। स०=छिड़काना।
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छिटकाना  : स० [हिं० छिटकना] किसी पदार्थ के कणों को चारों ओर डालना, फेंकना या बिखेरना। जैसे–अन्न या बालू छिटकाना।
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छिटकी  : स्त्री० [हिं० छींटा] कोई चीज छिटकने के कारण पड़ा हुआ उसका कण या चिन्ह।
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छिट-फुट  : क्रि० वि० [हिं० छिटकना+अनु०] १. कुछ यहाँ कुछ वहाँ। थोड़ा यहां थोड़ा वहाँ। २. कहीं-कहीं। चुट-फुट। वि० गिनती और मान में कम।
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छिटवा  : पुं० [सं० शिक्य] टोकरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिड़कना  : स० [हिं० छींटना] १. जल या कोई तरल पदार्थ को इस प्रकार फेंकना कि उसके छींटे बिखर कर चारों ओर पड़े। जैसे–आग या जमीन पर पानी छिड़कना, अभ्यागतों पर गुलाब-जल छिड़कना। २.=छिटकना।
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छिड़का  : पुं०=छिड़काव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिड़काई  : स० [हिं० छिड़कना] १. छिड़कने का कार्य या भाव। २. छिड़कने का पारिश्रमिक या पुरस्कार। जैसे–गुलाब छिड़काई।
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छिड़काव  : पुं० [हिं० छिड़कना] जल या कोई तरल पदार्थ छिड़कने की क्रिया या भाव।
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छिड़ना  : अ० [हिं० छेड़ना] १. छेड़ा जाना। जैसे–बात छिड़ना, राग-छिड़ना। २. आरंभ होना। जैसे–युद्ध छिड़ना।
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छिण  : पुं०=क्षण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छित  : वि० [सं० सित] सफेद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छितनी  : स्त्री० [?] एक प्रकार की छिछली या कम गहरी टोकरी।
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छितराना  : अ०, स०=छितराना।
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छितर-बितर  : वि०=तितर-बितर।
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छितरा  : वि० [हिं० छितराना] छितराया हुआ।
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छितराना  : अ० [सं० क्षिप्त+करण] १. किसी वस्तु के कणों या छोटे-छोटे टुकड़ों का चारों ओर बिखरना। २. थोड़े से पशुओं, व्यक्तियों वस्तुओं आदि का विस्तृत भू-भाग में फैलना। जैसे–यहूदी सारे संसार में छितरे हुए हैं। स० १. किसी वस्तु के कणों को चारों ओर गिराना, फेंकना या बिखेरना। २. दूर-दूर या विरल करना। जैसे–किताबें छितराना। ३. व्यक्तियों, पशुओं आदि को तितर-बितर करना।
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छितराव  : पुं० [हिं० छितराना] छितरे या छितराए हुए होने की अवस्था या भाव।
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छितव  : स्त्री०=क्षिति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छिताई  : स्त्री० [सं० क्षिति] देवगिरि के राजा की पुत्री।
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छिति  : स्त्री० [सं० क्षिति] पृथ्वी। भूमि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छितिकंत, छितिनाथ, छितिपाल  : पुं० [हिं० छित+सं० कंत, नाथ या पाल] राजा।
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छितिरुह  : पुं० [हिं० छिति+सं० रुह] वृक्ष।
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छितीस  : पुं० [सं० क्षितीश] राजा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छित्ति  : स्त्री० [सं०√ छिद् (छेदना)+क्तिन्] काटने अथवा छेदने की क्रिया या भाव।
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छिदक  : पुं० [सं०√ छिद् (छेदना)+क्वुन्-अक] १. वज्र। २. हीरा।
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छिदना  : अ० [हिं० छेदना] १. नुकीली वस्तु के धँसने या धँसाये जाने के कारण किसी वस्तु में आर-पार छेद होना। जैसे–कान या नाक छिदना। २. सुराख होना। छेदा जाना जैसे–तीर से शरीर छिदना। ३. घायल होना। ४. चुभना। धँसना।
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छिदवाई  : स्त्री० [हिं० छिदवाना] १. छेदने की क्रिया या भाव। २. छेदने का पारिश्रमिक या मजदूरी।
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छिदवाना  : स० [हिं० छेदना का प्रे० रूप] [भाव० छिदवाई] छेद या सुराख करवाना।
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छिदाना  : स=छिदवाना।
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छिदि  : स्त्री० [√छिद् (काटना)+इन्] १. काटने या छेदने की क्रिया या भाव। २. कुल्हाड़ी। ३. वज्र।
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छिदिर  : पुं० [सं०√ छिद्+किरच्] १. कुल्हाड़ी। २. तलवार। ३. अग्नि। ४. रस्सी।
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छिद्र  : पुं० [√छिद्+रक्] १. किसी वस्तु के बीच में का दोनों ओर से खुला हुआ छोटा भाग। छेद। जैसे–कपड़े या चलनी में का छिद्र। २. किसी घन या ठोस वस्तु में का वह गहरा स्थान जिसमें उस वस्तु का कुछ अंश निकाल लिया गया हो। जैसे–जमीन, दीवार या फल मे का छिद्र। ३. किसी कार्य वस्तु या व्यक्ति में होनेवाली कोई त्रुटि या दोष जैसे–छिद्रान्वेषण।
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छिद्र-कर्ण  : वि० [ब० स०] जिसके कान छिदे या बिधे हुए हों।
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छिद्रदर्शी(र्शिन्)  : पुं० [छिद्र√दृश् (देखना)+णिनि] व्यक्ति जो दूसरों के कार्यों में त्रुटियाँ या दोष ही ढूँढता हो।
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छिद्र-पिप्पली  : स्त्री० [मध्य० स०] गजपिप्पली।
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छिद्र-वैदेही  : स्त्री० [मध्य ० स०] गजपिप्पली।
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छिद्रांतर  : पुं० [सं० छिद्र-अंतर, ब० स०] १. सरकंडा। २. नरकुल।
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छिद्रांश  : पुं० [सं० छिद्र-अंश, ब० स०] सरकंडा।
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छिद्रात्मा(त्मन्)  : पुं० [सं० छिद्र-आत्मन्, ब० स०] छिद्रान्वेषी।
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छिद्रान्वेषण  : पुं० [सं० छिद्र-अन्वेषण, ष० त०] किसी कार्य, बात या व्यक्ति में से त्रुटियाँ या दोष ढूँढने का काम।
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छिद्रान्वेषी(षिन्)  : पुं० [सं० छिद्र-अनु√इष् (गति+णिनि)] वह जो छिद्रान्वेषण करता हो। दूसरों के कार्यों में से त्रुटियाँ या दोष खोजने वाला।
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छिन  : पु०=क्षण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छिनक  : पुं० [हिं० छिन+एक] एक क्षण। क्रि० वि० क्षण भर। थोड़ी देर।
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छिनकना  : स० [हिं० छिड़कना] नाक में से इस प्रकार जोर से हवा निकालना कि उसमें रुका हुआ मल बाहर निकल पड़े। सिनकना।
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छिनकु  : पुं० क्रि० वि०=छिनक।
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छिनकुरना  : अ० [हिं० छिनकु+करना] १. एक-क्षण रूकना। २. रूकना। ३. विलंब करना।
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छिनछबि  : वि० [हिं० छिन+छबि] जिसकी छबि क्षणिक या अस्थायी हो। स्त्री० बिजली। विद्युत।
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छिनदा  : स्त्री० [सं० क्षणदा] रात।
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छिनना  : अ० [हिं० छीनना] (किसी अधिकार,वस्तु आदि का किसी से) छीना जाना। जैसे–धन छिनना।
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छिनभंग  : वि० [सं० क्षणभंगुर] १. जो क्षण में नष्ट हो जाने को हो। क्षणिक। २. नश्वर।
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छिनरा  : वि=छिनाल।
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छिनवाना  : स० [हिं० छीनना का प्रे.रूप] किसी को किसी दूसरे से कोई चीज छीनने में प्रवृत्त करना। छीनने का काम दूसरे से कराना।
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छिनाना  : अ० [हिं० छिनना] छीन लिया जाना। स० छीनना।
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छिनाल  : वि० [सं० छिन्ना] (स्त्री) जिसका संबंध बहुत से पर-पुरुषों से हो। स्त्री० पुंश्चली। व्यभिचारिणी स्त्री।
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छिनाला  : पुं० [हिं०छिनाल] पर-पुरुष या पर-स्त्री से होनेवाला अनुचित संबंध या सहवास। व्यभिचार।
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छिनौछबि  : स्त्री० [हिं० छिनछबि] बिजली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छिन्न  : वि० [सं०√ छिद् (छेदना)+क्त] १. (किसी वस्तु का वह अंश) जो मूल वस्तु से कटकर अलग हुआ हो। २. (वस्तु) जिसमें का कोई अंश या भाग काट लिया गया हो अथवा कट कर अलग हो गया हो। खंडित। ३. जो किसी के साथ लगा हुआ न हो। किसी से अलग। ४. नष्ट किया हुआ। ५. क्षीण। ६. थका हुआ। क्लांत।
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छिन्नक  : वि० [सं० छिन्न+कन्] जिसका कुछ भाग कटकर अलग हो गया हो। पुं० ज्यामिति में, किसी कोण या कोणाकार गड़े हुए धन पदार्थ का वह बचा हुआ भाग जो उसका ऊपरी अंश तल के समानान्तर धरातल पर से काट लेने के बाद बचे। (फ्रस्टम)।
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छिन्न-धान्य  : वि० [ब० स०] (शत्रुओं द्वारा घिरी हुई वह सेना) जिसके पास धान्य न पहुँच सकता हो।
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छिन्न-नास  : वि० [ब० स०] जिसकी नाक कटी हुई हो। नकटा।
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छिन्न-नासिक  : वि० [ब० स०] कटी हुई नाकवाला। नकटा।
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छिन्न-पत्री  : स्त्री० [ब० स०] पाठा।
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छिन्न-पुष्प  : पुं० [ब० स०] पुन्नाग की जाति का वृक्ष। तिलक।
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छिन्न-बंधन  : वि० [ब० स०] जिसके बंधन खोल या काट दिये गये हों। मुक्त।
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छिन्न-भिन्न  : वि० [द्व० स०] १. (वस्तु) जिसके अंग अथवा अंश कट-फट या टूट-फूट कर इधर-उधर बिखर गये हों। २. तितिर-बितर। बिखरा या छितराया हुआ।
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छिन्न-मस्त(क)  : वि० [ब० स०] जिसका सिर कट गया हो।
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छिन्न-मस्तका  : स्त्री० [ब० स० टाप्] दस महाविद्याओं में से एक देवी जिसके संबंध में कहा जाता है कि वह अपना सिर हथेली पर रखती है और गले में से निकलती हुई रक्त धारा पीती है।
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छिन्न-मस्ता  : स्त्री० [ब० स० टाप्]=छिन्न-मस्तका।
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छिन्न-मूल  : वि० [ब० स०] जो जड़ से उखाड़ या काट दिया गया हो।
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छिन्न-रुह  : पुं० [छिन्न√ रुह (उगना)+क] तिलक नाक वृक्ष।
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छिन्न-रुहा  : स्त्री० [छिन्नरुह+टाप्] गुडुची।
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छिन्न-वेशिका  : स्त्री० [छिन्न-वेश, ब० स० कन्-टाप्, इत्व] पाठा।
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छिन्न-व्रण  : पुं० [कर्म० स०] चोट, हथियार आदि से शरीर में होनेवाला घाव।
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छिन्न-श्वास  : पुं० [कर्म० स०] एक प्रकार का स्वास रोग।
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छिन्नांत्र  : पुं० [सं० छिन्न-अंत्र० ब० स०] एक प्रकार का उदर रोग।
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छिन्ना  : स्त्री० [सं० छिन्न+टाप्] १. गुर्च। २. व्यभिचारिणी स्त्री। छिनाल।
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छिन्नाधार  : वि० [छिन्न+आधार, ब० स०] १. जिसका आधार कट या टूट चुका हो। उदाहरण–पात हत लतिका वह सुकुमार पड़ी है छिन्नाधार।-पंत। २. निस्सहाय।
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छिपकली  : स्त्री० [सं० शेप (=दुम) या रोप्यवान्] एक प्रसिद्ध चार पैरों और लंबी दुमवाला सरी-सृप जो दीवारों तथा छतों पर रेंगता है और कीड़े-मकोड़े पकड़कर खाता है।
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छिपना  : अ० [सं० क्षिप्=डालना] १. दूसरों की दृष्टि से ओझल होने के लिए आड़ के पीछे खड़े होना अथवा किसी गुप्त स्थान में चले जाना। जैसे–चोर अलमारी के पीछे छिप गया था। २. किसी चीज का इस प्रकार ढका जाना कि वह दृश्य न रहे। जैसे–वस्त्र से अंग छिपाना, बादलों में सूर्य छिपना। ३. किसी ऐसे स्थान या स्थिति में होना कि दूसरों को जल्दी उसका पता न लग सके। जैसे–वे छिप-छिपे चालें चलते हैं। ४. जो प्रकट या प्रत्यक्ष न हो। ५. अस्त होना, जैसे–दिन छिपना।
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छिपाठी  : स्त्री० [?] किनारे का भाग।
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छिपाना  : स० [हिं० छिपना] १. दूसरों की दृष्टि से बचाकर अथवा उनकी दृष्टि से बचाने के लिए किसी (जीव या वस्तु) को आड़ या गुप्त स्थान में रखना। जैसे–यह चित्र मैंने संदूक में छिपा दिया था। २. किसी वस्तु या शरीर के किसी अंग को वस्त्र आदि से ढाँकना। ३. किसी बात की किसी को जानकारी न कराना अथवा न होने देना। जैसे–भेद छिपाना।
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छिपाव  : पुं० [हिं० छिपाना] छिपने या छिपाने की क्रिया या भाव। दुराव।
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छिपिया  : पुं० [?] दर्जी। उदाहरण–अँगिया जो उघड़ी हरेलाल की छिपिया को नइआँ। पुं० =छीपी। स्त्री० [हिं० छीपा] छोटा छीपा या डलिया।
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छिपी  : पुं०=छीपी।
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छिपे-छिपे  : क्रि० वि० [हिं० छिपना] इस प्रकार गुप्त रूप से कि दूसरों को पता न चले।
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छिप्र  : क्रि० वि०=क्षिप्र।
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छिमता  : स्त्री०=क्षमता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=क्षमा।
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छियना  : अ० [हिं० छीजना] क्षीण होना। उदाहरण–काम दंभ मद श्रवण छिया है।-निराला।
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छिया  : स्त्री० [हिं० छी] गुह मल। मुहावरा–छिपा छरद करना=गुह और वमन की तरह घृणित समझकर दूर हटाना उदाहरण–जो छिपा छरद करि सकल संतति तजी तासौं मैं मूढ़-मति प्रीति ठानी।–सूर। स्त्री० [?] युवती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छियाज  : पुं० [हिं० ब्याज का अनु०] ब्याज की रकम पर भी जोड़ा जाने वाला ब्याज। कटुआँ ब्याज।
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छियानवे  : वि० [सं० षण्णवति] जो गिनती में नब्बे से छः अधिक हो। उक्त की सूचक संख्या---९६।
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छियालीस  : वि० [सं० षट्चत्वारिंशत्; प्रा० छायालीसम्] जो गिनती में चालीस से छः अधिक हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या---४६।
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छियासठ  : वि० [सं० षट्षष्टि, प्रा० छसठि, छवठिठ्म्] जो साठ से छः अधिक हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या–६६।
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छियासी  : वि० [सं० षड शीति; या छड़सीति; प्रा० छबसीईअँ] जो गिनती में अस्सी से छः अधिक हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या---८६।
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छिरकना  : स०=छिड़कना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिरना  : अ०=छिड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अ०=छिड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स०=छीलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छिरिआना  : अ० दे० ‘छिटकना’। उदाहरण–उघसल केस कुसुम छिरिआयल।–विद्यापति।
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छिलक  : पुं० [सं० तिलक] तिलक नामक वृक्ष।
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छिलकना  : स०=छिड़कना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिलका  : पुं० [सं० छिल्लक] वह आवरण जिसके अंतर्गत फल का सार भाग रहता है। फल की त्वचा। जैसे केले या सेब का छिलका।
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छिलन  : स्त्री० [हिं० छिलना] १. छिलने या छीलने की क्रिया या भाव। २. शरीर के किसी अंग की त्वचा रगड आदि के कारण छिल जाने से होनेवाला घाव।
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छिलना  : अ० [हिं० छीलना] १. फलों आदि का छिलका उतारा जाना। २. वृक्ष आदि की छाल उतारी जाना। ३. पशु आदि की खाल मांसल भाग पर से उतारी जाना। ४. शरीर के किसी अंग में रगड़ लगने से त्वचा का उतर जाना।
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छिलवाना  : स० [हिं० छीलना का प्रे० रूप] छीलने का काम दूसरे से कराना।
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छिलाई  : स्त्री० [हिं० छीलना] छिलने या छीलने की क्रिया या भाव। छीलने की मजदूरी।
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छिलाना  : स० [हिं० छीलना का प्रे०] छीलने का काम दूसरे से कराना। अ=छिलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छिल्लड़  : छिलका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छींक  : स्त्री० [सं० छिक्का] १. शरीर का एक प्राकृतिक व्यापार जिसमें श्वास की वायु अकस्मात् नाक और गले से एक साथ ही एक विशिष्ट प्रकार का शब्द करती हुई निकलती है। २. उक्त शारीरिक व्यापार से होनेवाला शब्द।
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छींकना  : अ० [हिं० छींक] सहसा जोर से नाक और मुंह में से इस प्रकार साँस फेंकना कि जोर का शब्द हो।
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छींका  : पुं० [सं० शिक्य, प्रा० सिक्का] १. दीवार की खूँटी अथवा छत में की कड़ी में टाँगा या लटकाया जानेवाला तारों या रस्सियों का वह उपकरण जिसमें खाने, पीने आदि की रखी हुई वस्तुएँ चूहों, बिल्लियों, बच्चों आदि से सुरक्षित रहती है। मुहावरा–बिल्ली के भाग से छींका टूटना=संयोग से कोई अभीष्ट या वांछित घटना घटित होना। २. बैलों के मुंह पर बाँधी जानेवाली रस्सियों की जाली। ३. झूला। (क्व०)।
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छींट  : स्त्री० [सं० क्षिप्त, हिं० छींटना] १. पानी अथवा किसी द्रव पदार्थ का किसी तल से टकराने पर उड़नेवाला छोटा जल-कण या बूँद। २. किसी वस्तु, वस्त्र शरीर आदि पर उक्त जल-कण या बूँद पड़ने से होनेवाला दाग या धब्बा। ३. एक प्रकार का वह कपड़ा जिस पर छापकर बेल-बूटे या फूल पत्तियाँ बनाई गई हों। ४. चित्र कला में चित्रों में बनाये जानेवाले बेल-बूटे या फूल-पत्तियाँ।
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छींटना  : स०=छितराना। स०=छिड़कना।
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छींटा  : पुं० [संक्षिप्त हिं० छींटना] १. झटके से उछली या उछाली हुई जल अथवा द्रव पदार्थ की बूदें। जैसे–(क) मुँह पर पानी का छींटा देना। (ख) कीचड़ में पत्थर फेंकने से छीटें उड़ना। २. उक्त बूदों के वस्त्र आदि पर पड़ने से होनेवाला धब्बा। ३. हलकी वृष्टि। ४. मुट्ठी में बीज भरकर एक बार में खेत में बिखेरने की प्रक्रिया। ५. बोआई का वह ढंग जिसमें बीज खेत में छींटे जाते हैं। ६. चंडू या मदक की एक मात्रा। दम। ७. किसी को खिन्न या लज्जित करने के लिए कही जानेवाली चुभती हुई व्यग्यपूर्ण बात।
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छींबी  : [सं० शिम्बी] १. पौधे की फली जिसमें बीज रहते हैं। २. मटर की फली। ३ पशुओं विशेषतः गाय, बकरी, भैंस आदि के थन में का फली के आकार का वह अंश जो नीचे लटकता रहता है और जिसे खींच तथा दबाकर दूध निकाला जाता है।
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छी  : अव्य, [अनु०] घृणा, तिरस्कार, धिक्कार आदि का सूचक एक अव्यय। मुहावरा–छी छी करना=घृणा करना। स्त्री० [अनु०] छिया। गूह।
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छीअना  : स०=छूना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छीआ  : स्त्री०=छिया।
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छीआ-बीआ  : वि० [अनु०] छिन्न-भिन्न।
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छीका  : पुं०=छींका।
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छीछ  : वि० [सं० क्षीण] क्षीण। दुर्बल। उदाहरण लाज की आंचनि या चित राचन नाच नचाई हौ नेहन छीछैं।–देव।
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छीछड़ा  : पुं० [सं० छुच्छ, प्रा० तुच्छ] १. कटे हुए मांस का रद्दी टुकड़ा। २. पशुओं की अँतड़ी का वह भाग जिसमें मल भरा होता है
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छीछना  : अ० [सं० क्षीण] क्षीण होना।
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छीछल  : वि०=छिछला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छीछा  : वि० [स्त्री० छी छी]=छिछला।
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छीछालेदर  : स्त्री० [हिं० छीछी] बुरी तरह से की हुई दुर्गति।
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छीज  : स्त्री० [हिं० छीजना] १. किसी वस्तु में का वह अंश जो नष्ट हो गया हो। २. कमी। घाटा। हानि।
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छीजना  : अ० [सं० क्षीण] १. उपयोग, व्यवहार आदि में आते रहने अथवा पुराने पड़ने के कारण किसी चीज का क्षीण होना या घिस जाना। २. उपयोग में आ जाने अथवा व्यय हो जाने के कारण किसी चीज का कम होना। ३. हानि होना। उदाहरण–लंकापति-तिय कहति पियसों या मैं कछू न छीजौ।–सूर ४. नष्ट होना।
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छीट  : स्त्री०=छींट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छीटा  : पुं० [सं० शिक्य, हिं० छींका] [स्त्री० अल्पा० छिटनी] १. बाँस की खपाचियों या किसी अन्य वृक्ष की पतली टहनियों का बना हुआ टोकरा। २. चिलमन। चिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छीड़  : स्त्री० [सं० क्षीण] मनुष्यों के जमघट सा अभाव। ‘भीड़’ का विपर्याय।
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छींण  : वि० [सं० क्षीण] क्षीण। दुर्बल। वि० [सं० छिन्न, प्रा० छिण्ण] टूटा हुआ। उदाहरण–छीणे जाणि छछोहा छूटा।–प्रिथीराज।
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छीत(ति)  : स्त्री० [व्रज० छीना=छूना] १. छूने या स्पर्श करने की क्रिया या भाव। २. संपर्क। संबंध। उदाहरण–सो करु सूर जेहि भाँति रहै प्रति जनि जल बाँधि बढ़ावहु छीति।–सूर। स्त्री०=छीज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छीदा  : वि० [सं० क्षीण] जो घना या सघन न हो। उदाहरण–मांहिली माँड़ली छीदा होइ।–नरपतिनाल्ह। वि० [सं० छिद्र] जिसमें बहुत से छेद हों।
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छीन  : वि०=क्षीण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छीन-झपट  : स्त्री० [हिं० छीनना+झपटना] किसी से अथवा आपस में एक दूसरे से कुछ छीनने के लिए झपटने की क्रिया या भाव।
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छीनना  : स० [सं० छिन्न, प्रा० छिण्ण, बं० छिना, सि० छिनो, छिनणु० गु० छिनवूँ, मराठी छिण(णें)] १. छिन्न करना। काटकर अलग करना। २. किसी के हाथ से कोई वस्तु बलात् ले लेना। ३. अनुचित रूप से किसी की वस्तु अपने अधिकार में कर लेना। ४. किसी को दिया हुआ अधिकार, सुविधा आदि वापस ले लेना। ५. दे० ‘रेहना’।
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छीना  : स०=छूना। (व्रज)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छीना-खसोटी  : स्त्री०=छीन-झपट।
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छीना-छीनी  : स्त्री०=छीन-झपट।
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छीना-झपटी  : स्त्री०=छीन-झपट।
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छीप  : स्त्री० [हिं० छाप] १. मुद्रण का चिन्ह। छाप। २. चिन्ह। ३. दाग। ४. एक प्रकार का चर्म रोग। वि० [सं० क्षिप्र] तेज। वेगमान्।
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छीपा  : पुं० [१] [स्त्री० अल्पा० छीपी] १. बाँस आदि की खमाचियाँ का टोकरा। २. थाली।
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छीपी  : पुं० [हिं० छापा] [स्त्री० छीपनी, छीपिनी] १. वह व्यक्ति जो कपड़ों पर बेल-बूटे आदि छापने का काम करता हो। २. दरजी। (बुदेल०)।
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छीबर  : स्त्री० [सं० चीवर] १. छींट नामक कपड़ा। २. एक प्रकार की चुनरी। उदाहरण–हा हा हमारी सौ साँची कहौ वह कौन ही छोहरी छीवर वारी।–देव।
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छीमर  : स्त्री०=छीबर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छीमी  : स्त्री=छीबी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छीया  : पुं० [अनु० छी] गूह। विष्ठा।
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छीर  : पुं०=क्षीर। पुं० [सं० चीर] १. दे० ‘चीर’। २. कपड़े की लम्बाई वाले सिरे का किनारा। ३. उक्त किनारे पर की पट्टी या धारी।
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छीरधि  : पुं०=क्षीरधि (समुद्र)।
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छीरप  : पुं० [सं० क्षीरप] दूध-पीता बच्चा। शिशु। वि० दूध पीनेवाला।
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छीर-फेन  : पुं० [सं० क्षीर(=दूध)+फेन] दूध पर की मलाई।
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छीर-सागर  : पुं०=क्षीर-सागर।
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छीलक  : पुं०=छिलका।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छीलन  : स्त्री० [हिं० छीलना] १. छीलने की क्रिया या भाव। २. किसी वस्तु के वे छोटे टुकड़े जो उसे छीलने पर निकलते हैं। (शेविंग्स)।
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छीलना  : अ० [प्रा० छोल्लइं, पुं० हिं० छोलना] १. किसी चीज के ऊपर जमा या सटा हुआ आवरण, तह या परत खींचकर उससे अलग करना। जैसे–(क) फल के ऊपर का छिलका छीलना। (ख) पेड़ पर की छाल छीलना। (ग) प्याज छीलना। २. उगी या जमी हुई चीज को काट, खुरच या नोचकर निकालना या हटाना। जैसे–(क) घास छीलना। (ख) भुथरे उस्तरे से दाढ़ी छीलना। (ग) रंदे से लकड़ी छीलना।
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छीलर  : पुं० [हिं० छिछला] पानी से भरा हुआ छोटा गड्ढा। वि० छिछला।
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छीव  : पुं०=क्षीव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छीवना  : स०=छीना(छूना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छीवर  : स्त्री०=छीबर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुँगनी  : स्त्री०=छगुँली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुँगली  : स्त्री०=छँगुली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छुआई  : स्त्री० [हिं० छूना] छूने या छुआने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। जैसे–मकान की चूना छुआई।
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छुआना  : स०=छुलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुई-मुई  : स्त्री=छूई-मुई (पौधा)।
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छुगनूँ  : पुं=घुँघरू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुच्छा  : वि० [स्त्री० छुच्छी]=छूँछा।
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छुच्छी  : स्त्री० [हिं० छूछा] १. कोई छोटी नली। जैसे–दीये में की छुच्छी जिसके अंदर कपड़े की बत्ती रहती है। २. कान या नाक में पहनने के फूल या लौंग का वह पूरक अंश जो बहुत छोटी पतली नली के रूप में होता है और जिसमें फूल या लौंग के नीचे की कील घुमा या धँसाकर जमाई या बैठाई जाती है। ३. कीप, जिसकी सहायता से बोतलों में तेल डाला जाता है।
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छुच्छू  : वि० [सं० छूछा] १. मूर्ख। २. तुच्छ।
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छुछमछली  : स्त्री० [सं० सूक्ष्म, पुं० हि० छूछम+मछली] मेंढक आदि कई छोटे जल-जंतुओं के बच्चों का वह आरंभिक रूप जो बहुत कुछ लंबी पूँछवाले कीड़े अथवा मछली के बच्चे जैसा होता है। (टेडपोल)।
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छुछहँड़  : स्त्री० [हिं० छूछा+हाड़ी] १. वह हाँड़ी जिसमें से पकाई हुई खाद्य वस्तु निकाल ली गई हो। २. खाली हाँड़ी।
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छुछूदर  : स्त्री०=छछूँदर।
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छुट  : अव्य० [हिं० छूटना] छोड़कर। अतिरिक्त। सिवा। जैसे–जिसमें हिंदी छुट और किसी बोली का पुट न हो।–इंशाउल्ला खाँ। प्रत्यय एक प्रत्यय जो कुछ यौगिक शब्दो के अंत में लगकर अनियंत्रिण आचरण करने वाले का सूचक होता है। जैसे–बत-छुट, हथ-छुट आदि करनेवाला वि० हिं० छोटा का लघु रूप जो उसे यौगिक शब्दों में प्राप्त होता है। जैसे–छुट-भैया।
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छुटकना  : अ०=छूटना (छोड़ाजाना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुटकाना  : स०=छुड़ाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छुटकारा  : पुं० [हिं० छूटना] १. छूटने अथवा छुड़ाये जाने अर्थात् मुक्त होने या मुक्त किये या कराये जाने की अवस्था, क्रिया या भाव। मुक्ति। जैसे–कारागार से छुटकारा पाना या मिलना। २. किसी प्रकार की विपत्ति, संकट आदि से सकुशल बच निकलने का भाव। जैसे–कष्टों से छुटकारा पाना या मिलना।
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छुटना  : अ०=छूटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुटपन  : पुं० [हिं० छोटा+पन] १. छोटे होने की अवस्था या भाव। छोटाई। २. बचपन। लड़कपन।
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छुट-फुट  : वि० [हिं० छूटा+फूटा] १. मूल अंग से कटकर छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में इधर-उधर फैला हुआ। २. जो थोड़ा-थोड़ा करके कभी कहीं और कभी कहीं घटित हो। चुट-फुट। (स्पोरडिक) जैसे–छुट-फुट मुठभेंड़, छुट-फुट वर्षा आदि।
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छुटभैया  : पुं० [हिं० छोटा+भैया] व्यक्ति जिसकी गिनती बड़े आदमियों में न होकर छोटे या साधारण आदमियों में होती हो। बड़ो की तुलना में अपेक्षया निम्न स्थिति का व्यक्ति।
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छुटलना  : अ०=छूटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छुटाना  : स०=छुड़ाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुटौती  : स्त्री०=छूट।
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छुट्टा  : वि० [हिं० छूटना] [स्त्री० छुट्टी] १. (वह) जो बंधन से मुक्त होकर स्वतंत्रपूर्वक विचरण कर रहा हो। २. (जंतु या जीव) जो अपने दल, वर्ग से निकल कर अलग हो गया हो। जैसे–छुट्टा कबूतर, छुट्टा बन्दर। ३. एकाकी। अकेला। ४. फुटकर। पुं० छोटे सिक्के। रेजगारी।
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छुट्टी  : स्त्री० [हिं० छूटना] १. छूटने या छोड़े जाने की क्रिया या भाव। छुटकारा। जैसे–चलो, इस काम से भी छुट्टी मिली। २. कोई काम कर चुकने के उपरांत अथवा कुछ निश्चित समय तक काम करने के उपरांत मिलनेवाला अवकाश। जैसे–भोजन करने के लिए दस मिनट की छुट्टी मिलती है। ३. वह दिन जिसमें नियमित रूप से लोग काम पर उपस्थिति नहीं होते। जैसे–होली की दो दिन की छुट्टी मिलती है। ४. वह दिन जिसमें काम पर से अनुपस्थित रहने की स्वीकृति मिल गई हो। जैसे–विवाह में चलने के लिए दो दिन की छु्टटी लेनी पड़ेगी। ५. कहीं से चलने या जाने की अथवा इसी प्रकार के और किसी काम की अनुमति या आज्ञा।
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छुड़ाई  : स्त्री० [हिं० छोड़ना] छोड़ने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। स्त्री० [हिं० छुड़ाना] छुड़ाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक।
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छुड़ाना  : स० [हिं० छोड़ना] १. बंधन, बाधा आदि से मुक्त कराना। उन्मुक्त या स्वतंत्र कराना। जैसे–जेल से कैदी छुड़ाना। २. जकड़ पकड़ आदि से अलग या रहित करना। जैसे–पल्ला या हाथ छुड़ाना। ३. डोरे, रस्सी आदि में का उलझाव दूर करना। जैसे–गाँठ छुड़ाना ४. देन चुकाकर अथवा और किसी प्रकार से अपनी वस्तु वापस लेना। जैसे–(क) ऋण चुकाकर धरोहर छुड़ाना। (ख) दंड भरकर कांजी हौज से गाय छुड़ाना। ५. किसी को सेवा से अलग करना। नौकरी से हटाना। ६. किसी के साथ चिपकी, सटी या लगी हुई वस्तु अथवा उसका कोई अंश अलग करना। जैसे–(क) लिफाफे पर से टिकट छुड़ाना। (ख) कपड़े पर का दाग या धब्बा छुड़ाना। ७.(देय धन में) कुछ कमी कराना। जैसे–सौ रुपयों में से दस रुपए तो तुमने छुड़ा ही लिये। ८. किसी प्रकार की क्रिया, प्रवृत्ति आदि से रक्षित या रहित करना। जैसे–(क) बालक की पढा़ई छुड़ाना। (ख) किसी का अभ्यास या आदत छुड़ाना। (ग) हाथा-बाहीं करने वाले लोगों को छुड़ाना। स०=छुड़वाना। जैसे–आतिशबाजी छुड़ाना।
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छुड़ैया  : वि० [हिं० छुड़ाना+ऐसा (प्रत्यय)] बंधन से छुड़ाने या मुक्त करानेवाला। स्त्री. १. छोड़ने की क्रिया या भाव। २. गुड्डी उडा़ने वाले की सहायता के लिए उसकी गुड्डी को कुछ दूर ले जाकर इस प्रकार उसे हवा में छोड़ना कि उडा़नेवाला उसे सहज में उड़ा सके। क्रि० प्र०–देना।
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छुतहा  : वि० [हि० छूत+हा (प्रत्य)] १. (रोग) जो छूत से फैलता या बढ़ता हो। छूतवाला। संक्रामक। २. जो किसी प्रकार की छूत लगने के कारण अस्पृश्य हो गया हो। ३. जिसे किसी कारण से छूना निषिद्ध हो।
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छुतिहर  : वि०=छुतहा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुतिहा  : वि०=छुतहा।
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छुद्र  : वि०=क्षुद्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छुद्रघंटिका  : स्त्री०=क्षुद्रघंटिका।
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छुद्रावली  : स्त्री०=क्षुद्रघंटिका।
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छुधा  : स्त्री०=क्षुधा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुधावंत  : वि० [सं० क्षुधा+हिं० वंत (प्रत्य)] जिसे भूख लगी हो। भूखा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुधित  : वि० [सं० क्षुधित] भूखा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छुन्य  : वि=शून्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुप  : पुं=क्षुप।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छुपना  : अ०=छिपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुभित  : वि०=क्षुब्ध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छुभिराना  : अ० [सं० क्षोभ] क्षुब्ध होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छुलरधार  : स्त्री० [सं० क्षुरधार] १. छुरे की धार। २. किसी हथियार की तेज धार। वि० तेज धारवाला। (अस्त्र)।
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छुरहँड़ी  : स्त्री० [सं० क्षुर भांडिक] वह आधान या पात्र जिसमें नाई उस्तरा, कैंची आदि रखते हैं। किस्बत।
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छुरा  : पुं० [सं० क्षुर] [स्त्री० अल्पा० छुरी] १. लंबे फलवाला बड़ा चाकू। २. बाल मूँड़नेवाला उस्तरा।
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छुरिका  : स्त्री० [सं०√ छुर (काटना)+कुन्-अक-इत्व-टाप्] छुरी।
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छुरित  : पुं० [सं०] लास्य नृत्य का वह प्रकार जिसमें नायक और नायिका परस्पर आलिंगन चुंबन आदि भी करते चलते हैं।
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छुरी  : स्त्री० [सं० क्षुरिका] लंबे फलवाला एक प्रकार का चाकू। मुहावरा–(किसी पर) छुरी चलाना या फेरना=जानबूझकर ऐसा काम करना जिससे किसी की बहुत बड़ी हानि हो।
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छुलकना  : अ०=छुलछुलाना।
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छुलछुलाना  : अ० [अनु०] थोड़ा-थोड़ा करके मूतना।
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छुलाना  : स० [सं० हिं० छूना] स्पर्श कराना।
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छुवना  : स०=छूना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुवाना  : स०=छुलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुहना  : अ० [हिं० छूना] १. छूआ जाना। २. किसी तरल पदार्थ से लेप या पोता जाना। उदाहरण–त्यौं त्यौं गुलाब सै छतिया अति सियराति।–बिहारी। स=छूना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छुहारा  : पुं० [?] खजूर की जाति का एक सूखा मेवा।
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छुही  : स्त्री० [हिं० छूना] खड़िया नाम की सफेद मिट्टी।
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छूँछा  : वि०=छूछा।
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छूँटा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का गहना जो काले काँच की गुरियों का बना होता है।
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छू  : पुं० [अनु०] मंत्र पढ़कर फूँक मारने का शब्द। जैसे–दन्त-डाक छू। मियाँ की माई का मूई की भू।–भारतेन्दु। मुहावरा–छू-मंतर होना=चंपत होना। गायब होना।
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छूआछूत  : स्त्री० [हिं० छूना+छूत] १. अछूत अर्थात् अस्पृश्य को न छूने या उससे अपने को न छुलाने की भावना या विचार। २. धार्मिक या सामाजिक दृष्टि से अस्पृश्य वस्तुओं या व्यक्तियों से छूए जाने का भाव। ३. बच्चों का एक खेल, जिसमें किसी एक लड़के को दूसरे लड़कों को छूना पड़ता है।
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छूई-मूई  : पुं० [हिं० छूना+मूना=मरना] लजालू या लज्जावंती नाम का पौधा जो स्पर्श किये जाने पर अपनी पत्तियाँ सिकोड़ लेता है।
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छूछा  : वि० [हिं० तुच्छ] १. (पात्र) जिसमें कुछ भी न हो। खाली। २. (व्यक्ति) जिसके पास या हाथ में धन, हथियार आदि कुछ न हो। जैसे–छूछे हाथ चला आया हूँ। ३. तत्त्वहीन। निःसार।
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छछुम  : वि० [सं० सूक्ष्म] १. सूक्ष्म। २. अल्प। थोड़ा। थोडी़ मात्रा का।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छूट  : स्त्री० [हिं० छूटना] १. छूटने अर्थात् बंधन आदि से मुक्त होने की अवस्था, क्रिया या भाव। जैसे–बच्चों को मिलनेवाली खेलने की छूट। २. नियम, बंधन, मर्यादा आदि से मिली हुई स्वतंत्रता। जैसे–(क) दिल्लगी में होनेवाली छूट अर्थात् ऐसी स्थिति जिसमें मर्यादा, शिष्टता, श्लीलता आदि का ध्यान न रखा जाता हो। (ख) पटा, बनेठी, बांक आदि खेलों में की छूट अर्थात् वह स्थिति जिसमें खिलाड़ी अपने विपक्षी के जिस अंग पर चाहे चोट कर सकता है। ३. वह रियायत या सुविधा जिसके कारण किसी को कोई कत्तर्व्य या दायित्व पूरा न करने पर भी दंड का भागी नहीं समझा जाता है। ४. देय धन चुकाने में किसी कारण से मिलनेवाली सुविधा जिसमें उसका कुछ अंश नहीं देना पड़ता है। ५. असावधानता, जल्दी आदि के कारण कार्य के किसी अंग पर ध्यान न जाने अथवा उसके छूट या रह जाने की अवस्था या भाव ६. मालखंभ की एक कसरत। ७. स्त्री-पुरूष का संबंध त्याग। ८. परिहास के समय अशिष्ट अश्लील आदि बातों का किया जानेवाला प्रयोग (बोलचाल)।
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छूटना  : अ० [सं० छुट्ट या आच्छोहन] १. बंधन आदि से मुक्त होकर स्वतंत्र होना। जैसे–(क) कैदियों का छूटना। (ख) सांसारिक आवागमन या जन्म-मरण से छूटना। २. जकड़, पक़ड आदि से रहित होकर अलग या दूर होना। जैसे–हाथ में पकड़ा हुआ गिलास या शीशा छूटना (अर्थात् नीचे गिर पड़ना) ३. द्रव पदार्थ का बंधन टूटने या हटने पर धारा के रूप में वेगपूर्वक आगे बढ़ना। जैसे–रक्त की धारा छूटना। ४. द्रव पदार्थ का किसी चीज में से रस-रसकर निकलना। जैसे–(क) शरीर में से पसीना छूटना। (ख) पकाते समय तरकारी में से पानी छूटना। ५. निर्दोष सिद्ध होने पर अभियोग, आरोप आदि की क्रियाओं से मुक्त या रहित होना। बरी होना। जैसे–अदालत से अभियुक्त का छूटना। ६. व्यवहार, संग-साथ से अलग या विमुक्त होना। वियोग होना। बिछुड़ना। जैसे–(क) नौकरी के कारण घर छूटना। (ख) लड़ाई-झगड़े के कारण भाई-बंधु या मित्र छूटना। ७. देन आदि चुकाये जाने पर अथवा और किसी प्रकार से किसी दूसरे के हाथ गई हुई वस्तु का वापस मिलना। जैसे–(क) बंधक रखा हुआ मकान छूटना। (ख) वयस्क होने पर अभिभावक के हाथ से संपत्ति छूटना। ८. किसी स्थान पर जमे या लगे हुए तत्त्व या पदार्थ का किसी प्रकार अलग या दूर होना। जैसे–(क) कागज पर लगा हुआ टिकट छूटना। (ख) कपड़े पर लगा हुआ दाग या मैल छूटना। (ग) दीवार पर लगा हुआ रंग छूटना। ९. यांत्रिक, रासायनिक आदि क्रियाओं से चलनेवाली चीजों के संबंध में पकड़ या रोक से निकलकर वेगपूर्वक किसी ओर बढ़ना या किसी व्यापार में प्रवृत्त होना। जैसे–आतिशबाजी, गोली, तीर या फुहारा छूटना। १॰. आगे बढ़ते हुए या चलते समय मार्ग में किसी का पीछे पड़ या रह जाना। जैसे्–(क) यात्रियों में से किसी का पीछे छूटना। (ख) किसी की दूकान या कोई बाजार पीछे छूटना। ११. किसी यान आदि की गंतव्य स्थान के लिए चल पड़ना। प्रस्थान या यात्रा आरंभ करना। जैसे–गाड़ी या जहाज छूटना। १२. अनुसंधान करने या टोह लेने के लिए किसी के पीछे लगना या लगाया जाना। जैसे–उनके पीछे जासूस छूटे हैं। १३. शारीरिक विकार का दूर होना अथवा न रह जाना। जैसे–खाँसी या बुखार छूटना। १४. कुछ विशिष्ट मानसिक या शारीरिक क्रियाओं के संबंध में, अस्तित्व, गति, व्यवहार, व्यापार आदि से रहित होना। जैसे–(क) रोगी की नाड़ी या प्राण छूटना। (ख) भय या साहस छूटना। (ग) अभ्यास या आदत छूटना। 1५. काम-धंधे से अलग किया जाना या होना। जैसे–नौकरी या रोजगार छूटना। १६. कष्ट, विपत्ति, बाधा, विघ्न आदि से मुक्त या रहित होना। जैसे–(क) झगड़े-बखेड़े या मुकदमेबाजी से जान छूटना। १७. औचित्य, मर्यादा आदि का इस प्रकार अतिक्रमण या उल्लंघन होना कि उसके फल-स्वरूप कोई अनुचित या निन्दनीय कार्य या व्यापार घटित हो। जैसे–(क) बात-चीत करने में जबान छूटना। (ख) क्रोध में किसी पर हाथ छूटना। 1८. कथन, लेख आदि के प्रसंग में, आवश्यक या उपयुक्त पद वाक्य या विषय यथास्थान आदि आने से रह जाना। जैसे–(क) भाषण में कोई प्रसंग छूटना। (ख प्रतिलिप करने में अक्षर, पद या वाक्य छूटना। १९. किस चीज का भूल से कहीं रह जाना या न लाया जाना। जैसे–न जाने मेरा छाता कहाँ छूट गया है। २॰. उपयोग, व्यवहार आदि में आने से बचा या रह जाना। जैसे–(क) थाली में जूठन छूटना (ख) प्रश्नपत्र में का कोई प्रश्न छूटना। २१. नियम, व्रत आदि का भंग होना। जैसे–रोजा छूटना। २२. संयोग के लिए नर का मादा की ओर प्रवृत्त होना या उस पर आसन जमाना। जैसे–घोड़ी पर घोड़ा छूटना।
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छूटा  : स्त्री० [हिं० छूटना] एक प्रकार की बरछी। वि=छुट्टा।
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छूत  : स्त्री० [सं० युप्ति, प्रा० छुट्टी] १. छूने की क्रिया या भाव। मुहावरा–छूत छुड़ाना=पीछा छुड़ाने या नाम-मात्र के लिए यों ही अवज्ञापूर्वक कोई काम करना। २. ऐसा निषिद्ध संसर्ग जिससे रोग आदि का संचार होता हो। ३. गंदी अथवा घृणित वस्तु का संसर्ग। ४. धार्मिक क्षेत्र में अपवित्र होने अथवा घृणित वस्तु छूने पर लगनेवाला दोष। ५. यह धारणा कि अमुक वस्तु या व्यक्ति छूने अथवा उससे छुए जाने पर हम अपवित्र हो जायँगे। ६. व्यक्ति पर पड़नेवाली भूत-प्रेत आदि की छाया या उससे होनेवाली बाधा। मुहावरा–छूत जाड़ना=प्रेत बाधा दूर करना।
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छूत-छात  : स्त्री० [हिं० छूत+अनु० छात] स्पृश्य और अस्पृश्य का भाव। छुआछूत।
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छूना  : स० [सं० चुपति, प्रा० छुवइ] १. उँगलियों या हाथ से किसी वस्तु या व्यक्ति को अथवा उसके तल का कोई अंश स्पर्श करना। मुहावरा–आकश छूना=बहुत ऊँचा होना। २. शरीर के किसी अंग का अथवा पहने हुए किसी वस्त्र का किसी से लगना या स्पर्श करना। जैसे–तुम्हें चमार ने छू दिया है। ३. दान के लिए कोई वस्तु स्पर्श करना। जैसे–चावल छूकर भिखमंगे को बाँटना। ४. ऐसा काम करना जिससे किसी चीज में गति उत्पन्न हो। जैसे–हृदय के तार छूना। ५. किसी विषय के संबंध में कुछ कहना या लिखना। जैसे–इस विषय को भी उन्होंने छुआ है। ६. लीपना। पोतना। जैसे–कमरा छूना।
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छेंक  : स्त्री० [हिं० छेकना] १. छेंकने की क्रिया या भाव। २. रोक। पुं०=छेद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छेंकन  : स्त्री० [हिं० छेकना] १. छेंकने की क्रिया या भाव। २. वास्तुकला में मकान आदि बनाने से पहले उसके भूमि-तल के संबंध में यह निश्चय या स्थिर करना कि आँगन, कोठरियाँ, बैठक, रसोई आदि विभाग कहाँ-कहाँ रहेंगे। जैसे–इस मकान की छेंछन बहुत अच्छी हुई है।
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छेंकना  : स० [हिं० छंद] १. स्थान घेरना। २. विभाग आदि करने के लिए लकीरों से अवकाश घेरना। ३. जानेवाले के सामने खड़े होकर उसे जाने से रोकना। ४. किसी का मार्ग अवरुद्ध करना। मिटाना। ५. किसी के नाम लिखी हुई चीज या रकम लौट आने पर काट कर रद्द करना।
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छेक  : पुं०=छेद। (पश्चिम)। पुं० [सं०√छो (काटना)+डेकन्] १. पालतू पशु-पक्षी। २. शब्दालंकार का एक भेद। छेकानुप्रास। वि० १. पालतू। २. नागरिक।
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छेकानुप्रास  : पुं० [सं० छेक-अनुप्रास, कर्म० स०] कवित्त में एक प्रकार का अनुप्रास जिससे एक ही चरण में दो या अधिक वर्णों की आवृत्ति कुछ अन्तर पर होती है।
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छेकापहनुति  : स्त्री० [सं० छेक-अपह्रुति ष० त०] साहित्य में अपह्रुति अलंकार का एक भेद जिसमें किसी से कही जानेवाली कोई भेद की बात किसी तीसरे या अनभीष्ट व्यक्ति के सुन लेने पर कोई दूसरी बात बनाकर वह भेद छिपाने का उल्लेख होता है। ‘कह मुकरी’ या मुकरी में यही अलंकार होता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
छेकोक्ति  : स्त्री० [सं० छेक-उक्ति, ष० त०] साहित्य में एक अलंकार जिसमें कोई बात सिद्ध करने के लिए उसके साथ किसी लोकोक्ति या कहावत का भी उल्लेख किया जाता है।
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छेड़  : स्त्री० [हिं० छेड़ना] १. छेड़ने की क्रिया या भाव। २. ऐसा शब्द, पद या बात जिसके कहने से कोई चिढ जाता हो। चिढा़नेवाली बात। ३. दे० चिढौ़नी। ४. झगड़ा। ५. किसी कार्य का आरंभ या श्री गणेश। ६. अपनी ओर से कोई ऐसी बात आरंभ करना कि उसका उत्तरदायित्व या भार अपने ऊपर आता हो। पहल। उदाहरण–हम तो चुपचाप बैठे थे, छेड़ तो तुम्हीं ने की। मुहावरा–छेड़ निकालना=उक्त प्रकार से कोई ऐसा काम या बात करना जिससे कोई लड़ाई झगड़ा या वैर-विरोध खड़ा हो सकता हो।
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छेड़खानी  : स्त्री० =छेड़-छाड़।
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छेड़छाड़  : स्त्री० [हिं० छेड़ना+अनु०] १. किसी को तंग करने के लिए छेड़ने की क्रिया या भाव। २. अनुचित रूप से किसी के प्रति आरंभ किया जानेवाला व्यवहार।
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छेड़ना  : स० [सं० छिंदन या हिं० छेड़] १. इस प्रकार छुना या स्पर्श करना कि उसके फल-स्वरूप कोई क्रिया या व्यापार घटित हो। जैसे–बीन या सितार के तार छेड़ना। २. जीव-जन्तुओं आदि को इस प्रकार स्पर्श करना या उन्हें तंग करना जिससे वे क्षुब्ध होकर आक्रमण कर सकते हो। जैसे–कुत्ते, साँड़ या साँप को छेड़ना। ३. व्यक्ति को चिढ़ाने या तंग करने के लिए हँसी-ठट्ठे के रूप में कोई ऐसी बात कहना अथवा कोई ऐसा काम करना जिससे वह चिढ़ या दुःखी होकर प्रतिकार कर सकता हो। जैसे–पागल, बच्चे या स्त्री को छेड़ना। ४. किसी को तंग करने के लिए उसके काम में अड़ंगा लगाना या बाधा खड़ी करना। ५. किसी चीज को अकारण या व्यर्थ में छूना जिससे उनमें विकार उत्पन्न हो सकता हो। जैसे–घाव या उसमें बँधी पट्टी को छेड़ना। ६. किसी को कोई ऐसी बात (छेड़) बार-बार कहना जिससे कोई चिढ़ता हो। जैसे–उसे सब बुद्दू मियाँ कह कर छेड़ते हैं। ७. कोई कार्य या बात आरंभ करना। जैसे–मकान की मरम्मत छेड़ना। ८. संगीत में गीत, वाद्य आदि कलापूर्ण ढंग से आरंभ करना। ९. चिकित्सा के क्षेत्र में फोड़ा बहाने के लिए नश्तर से उसका मुँह खोलना। स०=छेतना। (छेदना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छेड़वाना  : स० [हिं० छेड़ना का प्रे० रूप] छेड़ने का काम दूसरे से करवाना।
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छेड़ी  : स्त्री० [?] छोटी और तंग गली। (बुदेल०)। स्त्री०=छेरी (बकरी)।
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छेत  : पुं० [सं० छेद] १. अलग होने की क्रिया या भाव। पार्थक्य। २. वियोग। ३. छेद।
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छेतना  : सं=छेदना। स० [?] १. ठोंक-पीटकर कोई चीज तैयार करना या बनाना। जैसे–चाँदी की गुल्ली से कड़ा छेतना। २. अच्छी तरह मारना-पीटना या प्रहार करना। जैसे–किसी का मुँह छेतना।
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छेति  : स्त्री० [सं० छेदन] बाधा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छेत्ता(त्तृ)  : वि० [सं०√ छिद् (काटना)+तृच्] छेद करने या छेदनेवाला।
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छेत्र  : १. =क्षेत्र। २. =सत्र (अन्नसत्र)।
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छेद  : पुं० [सं०√ छिद्+घञ्] १. काटने, छेदने या विभक्त करने की क्रिया या भाव। जैसे– उच्छेद विच्छेद। २. बकरे आदि मारने की झटका नाम की क्रिया। उदाहरण–कतहूँ मिस मिल कतहूँ छेद।–कबीर। ३. विनाश। बरबादी। पुं० [सं० छिद्र] १. किसी वस्तु में का दोनों का दोनों ओर से खुला हुआ छोटा अंश। छिद्र। सुराख। जैसे–चलनी में का छेद, कपड़े में का छेद। २. किसी घन या ठोस वस्तु में का वह गहरा स्थान जिसमें से उस वस्तु का कुछ अंश निकाल लिया गया हो। जैसे–जमीन या दीवार में का छेद। ३. विवर। बिल। ४. दोष। दूषण।
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छदक  : वि० [सं० छिद+ण्वुल-अक] छेदनेवाला।
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छेदन  : पुं० [सं०√छिद्+ल्युट-अन] छेदने की क्रिया या भाव।
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छेदनहार  : वि० [हिं० छेदना+हार (प्रत्यय)] १. छेदनेवाला। २. काटनेवाला। ३. नष्ट करने या मिटानेवाला।
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छेदना  : स० [सं० छेदन] १. किसी तल में नुकीली वस्तु धँसाकर उसमें छेद या सुराख करना। २. शरीर में क्षत या घाव करना। जैसे–तीरों से किसी का शरीर छेदना। ३. छिन्न करना। काटना।
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छेदनीय  : वि० [सं०√ छिद+अनीयर] जिसका छेदन हो सकता हो या किया जाने को हो।
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छेदि  : वि० [सं० छिद+इनि] छेद करनेवाला। पुं० बढ़ई।
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छेदिका  : स्त्री० [सं० छेदक+टाप्, इत्व] १. छेदन करनेवाली चीज या रेखा। २. ज्यामिति में वह रेखा जो किसी वक्र रेखा को दो या अधिक भागों में काटती हो (सिकैन्ट)।
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छेदित  : भू० कृ० [सं० छेद+इतच्] १. जिसमें छेद किया गया हो। छेदा हुआ। २. कटा या काटा हुआ।
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छेना  : पुं० [सं० छिन्न] फटे या फाड़े हुए दूध का वह गाढ़ा अंश जो उसका पानी निकाल देने पर बच रहता है।
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छेनी  : स्त्री० [हिं० छेदना] धातु, पत्थर आदि काटने का चौड़े फलवाला एक प्रसिद्ध उपकरण टाँकी।
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छेर  : स्त्री०=छेरी। (बकरी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छेरना  : अ० [सं० क्षरण] बार-बार पतला मल त्याग करना। स०=छेड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छेरवा  : पुं=छुहारा।
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छेरा  : पुं० [हिं० छेरना] पतला मल। पतला दस्त। पुं० [स्त्री० छेरी](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. बच्चा। २. बकरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छेरी  : स्त्री० [सं० छेलिका] बकरी।
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छेलक  : पुं० [सं०√ छो (काटना)+डेलकन्] बकरा।
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छेलरा  : पुं०=छैला।
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छेव  : पुं० [सं० क्षेप] १. किसी वस्तु के तल का कुछ अंश काटने या छीलने की क्रिया या भाव। २. कुछ विशिष्ट अंशों का रस निकालने के लिए उनके तने का कुछ अंश काटने या छीलने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–लगाना। ३. प्रहार। वार। ४. चोट। घाव। ५. नाश। ६. मृत्यु। ७. विपत्ति। संकट। ८. कपटपूर्ण व्यवहार।
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छेवना  : स० [सं० छेव] १. किसी चीज में छेव लगाना। २. आघात, प्रहार या वार करना। ३. चोट पहुँचाना। ४. कष्ट आदि झेलना या सहना। जैसे–अपने जी पर छेवना (अर्थात् मन ही मन कष्ट सहना या दुःखी होना) उदाहरण–जो अंस कोई जिय पर छेवा।–जायसी। ५. फेंकना। स्त्री० ताड़ी जो ताड़ के वृक्ष में छेव लगाकर निकाली जाती है। स० [हिं० छेदना] १. काटना २. चिन्ह लगाना।
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छेवला  : पुं० [?] पलाश का वृक्ष। (बुदेल०)।
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छेवा  : पुं० [हिं० छेव] १. छीलने काटने आदि का काम। २. काटने, छीलने आदि से पड़ा हुआ निशान। ३. महाजनी बहीखाते में वह चिन्ह जो कहीं से लौटी हुई चीज या रकम के लेख पर यह सूचित करने के लिए लगाया जाता है कि अब वह प्राप्य नहीं रह गई। ४. पानी के तेज बहाव (मल्लाह)। पुं०–छेद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छेह  : पुं० [हिं० छेव](यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) १. दे० छेव। २. ध्वंस। नाश। ३. वियोग। विच्छेद। ४. परम्परा का भंग। ५. अंत। समाप्ति। वि० १. खंडित। २. न्यून। स्त्री०=खेद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छेहर  : स्त्री०=छाया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छेहरा  : पुं=छेह।
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छै  : वि०=छः।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=क्षय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छैदिक  : पुं० [सं० छेद+ठञ्-इक] बेत।
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छैना  : अ० [सं० क्षय] १. क्षय होना। २. क्षीण होना। स० १. नष्ट करना। २. क्षीण करना। पुं० [छन छन से अनु०] छोटी झाँझ (बाजा)।
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छैया  : पुं० [हिं० छवना] बच्चा।
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छैल  : स्त्री० [हिं० छैलाना] छैलने या छैलाने की क्रिया या भाव। लड़कों को सी मचल या हठ। पुं०=छैला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छैलचिकनिया  : पुं०=छैला।
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छैल-छबीला  : पुं०=छैला।
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छैलना  : अ०=छैलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छैला  : पुं० [सं० छविल्ल, प्रा० छइल्ल] बहुत बन-ठनकर रहनेवाला नवयुवक।
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छैलाना  : पुं० [हिं० छैला] लड़कों का कोई काम करने या कोई चीज पाने के लिए मचलना और हठ करना। उदाहरण–कोउ छेंकत छैलात देखि कहुँ मंजु खिलौना।–रत्नाकर। स० किसी को छैलाने या हठ करने में प्रवृत्त करना।
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छोंच  : पुं०=शौच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोंड़ा  : पुं० [सं० क्ष्वे] [स्त्री० अल्पा० छोड़ी] मथानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छोआ  : पु० दे० ‘खोई’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोई  : स्त्री० [सं० क्षोद] १. दे० खोई। २. निस्सार वस्तु। रद्दी चीज। उदाहरण–आन ब्रतै मानै सब छोई।–श्री भट्ट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोकरा  : पुं० [सं० शावक+रा; प्रा० छावक+रा; दे प्रा० छाक्कर] [स्त्री० छोकरी] लड़का। बालक।(उपेक्षा सूचक)
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छोछा  : वि० [स्त्री० छोछी] दे० ‘छूछा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोट  : वि०=छोटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोटा  : वि० [सं० क्षुद्र+ट, दे० प्रा० छोट्ट] मान, विस्तार आदि में अपेक्षया कम या थोड़ा। जैसे–(क) छोटा पेड़, छोटा मकान। २. जिसकी अवस्था या उमर किसी की तुलना में कम हो। थोड़े वय का। जैसे–छोटा भाई, छोटा लड़का। ३. प्रतिष्ठा, मान आदि में औरों से घटकर होनेवाला। तुच्छ। हीन। जैसे–छोटा काम, छोटी जाति, छोटी बात।
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छोटाई  : स्त्री० [हिं० छोटा+ई (प्रत्य)] छोटे होने की अवस्था या भाव। छोटापन।
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छोटापन  : पुं० [हिं० छोटा+पन] छोटाई।
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छोटिका  : स्त्री० [सं०√छुट्ट (काटना)+ण्वुल्-अक, टाप्, इत्व] चुटकी।
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छोटी(टिन्)  : पुं० [सं०√छुट्+णिनि] मछुआ।
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छोटी इलायची  : स्त्री० [हिं०] छोटे आकार की एक प्रकार की इलायची। जिसका छिलका पीलेपन लिए सफेद होता है।
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छोड़  : अव्य० [हि० छोड़कर का संक्षिप्त रूप] छोड़कर। अतिरिक्त। सिवाय। जैसे–तुम्हें छोड़कर और कोई ऐसा नहीं कहता।
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छोड़ना  : स० [सं० छोड़] १. बंधन से मुक्त करना। स्वतंत्र करना। जैसे–कैदियों को छोड़ना। २. अभियोग, आरोप आदि से मुक्त करना। जैसे–अदालत ने उसे छोड़ दिया है। ३. कोई काम चीज या बात कुछ समय के लिए अथवा सदा के लिए न करने का निश्चय करना। त्याग देना अथवा संबंध विच्छेद करना। परित्याग करना। जैसे–(क) आजकल हमने अन्न छोड़ दिया है। (ख) उसने अब कलकत्ता छोड़ दिया है। (ग) उन्होंने अपनी पत्नी को छोड़ दिया है। ४. कथन, लेख आदि के प्रसंग में, कोई आवश्यक अक्षर, पद या वाक्य का उपयोग या व्यवहार न करना अथवा न लिखना। ५. कोई चीज जान-बूझकर या भूल से कहीं रख देना या रहने देना। जैसे–(क) वह अपना सामान यहीं छोड़ गये हैं। (ख) कोई अपनी छड़ी यहीं छोड़ गया है। ६. उत्तराधिकार आदि के रूप में किसी के लिए कुछ बचा या बाकी रहने देना। जैसे–पिता का पुत्र के लिए ऋण या संपत्ति छोड़ना। ७. अवशिष्ट या बाकी रहने देना। जैसे–आज का काम कल पर छोड़ना। ८. कोई चीज किसी में अथवा किसी पर डालना। जैसे–(क) पत्र-पेटी में पत्र छोड़ना। (ख) जलते अंगारों पर पानी छोड़ना। (ग) खेत में खाद छोड़ना। ९. किसी वस्तु से अपना अधिकार, प्रभुत्व या स्वामित्व हटा लेना। जैसे–मकान छोड़ना। १॰. कोई चीज किसी से उदारतापूर्वक या रियायत करते हुए न लेना। जैसे–मूलधन लेकर ब्याज छोड़ना। ११. उपेक्षा या तिरस्कारपूर्वक जाने देना। ध्यान न देना। जैसे–ये सब बातें छोड़ों, इनमें क्या रखा है। १२. कोई ऐसी यांत्रिक या रासायनिक क्रिया करना जिससे कोई चीज गति में आ जाय या अपना कार्य करने लगे। जैसे–(क) अग्निबाण या उपग्रह छोड़ना। (ख) तोप, बंदूक मोटर छोड़ना। १३. अनुसंधान या पीछा करने के लिए किसी को गुप्त रूप से नियुक्त करना। जैसे–उनका पता लगाने के लिए कई आदमी छोड़े गये हैं। १४. कोई ऐसा कार्य या व्यापार करना जिससे किसी चीज या बात का उपयुक्त परिणाम या फल निकले, उसका कोई प्रभाव पड़े अथवा स्पष्ट रूप से सामने आवे। जैसे–(क) तान छोड़ना। (ख) फुलझड़ी या शगूफा छोड़ना। १५. आश्रय के रूप में रहनेवाली चीज का अपने ऊपर टिकी, ठहरी या लगी हुई चीज को अपने से अलग या दूर करना। जैसे–(क) पेड़ की छाल छोड़ना। (ख) खंभे का छत या दीवार छोड़ना। १६. कर्त्तव्य, कार्य आदि का निर्वाह या पालन करना। जैसे–तुम आधा काम करते हो और आधा छोड़ देते हो।
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छोड़वाना  : स० [हिं० छोड़ना का प्रे० रूप] छोड़ने का काम दूसरे से करवाना। छुड़वाना।
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छोत  : स्त्री=छूत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोतरा  : पुं० [?] १. छिलका। २. अफीम।
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छोना  : पुं० स०=छूना।
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छोणिप  : पुं०=क्षोणिप।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छोनिय  : स्त्री=क्षोणी (पृथ्वी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छोनी  : स्त्री=क्षोणी। (पृथ्वी)।
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छोप  : स्त्री [हिं० छोपना] १. छोपने की क्रिया या भाव। २. छोपा हुआ अंश। छोपकर जमाई या लगाई हुई तह।
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छोपना  : स० [सं० क्षेपण] १. बहुत गाढ़ी वस्तु या सानी हुई वस्तु को किसी दूसरी वस्तु पर थोपना या लगाना। २. ढकना। २३. दबोचना।
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छोभ  : पुं=क्षोभ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोभन  : पुं०=क्षोभ।
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छोभना  : अ०, स० [सं० क्षोभ] क्षुब्ध होना या करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छोभित  : वि०=क्षोभित।
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छोम  : वि० [सं० क्षोभ] १. चिकना। २. कोमल।
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छोर  : पुं० [हिं० ओर का अनु०] किसी वस्तु के किनारे या सिरे पर का अंश, भाग या विस्तार। अंतिम सिरा। पुं०=छोरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छोरटा  : पुं० [स्त्री० छोरटी]=छोर।
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छोरना  : स० [सं० छोरण] १. गाँठ आदि खोलना। २. पहने हुए वस्त्र उतारना। उदाहरण–कोउ ऐंठति तन तोरि छोरि अंगिया कोउ पैठति।–रत्नाकर। ३. किसी की चीज बलात् लेना। छीनना। स०=छोड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छोलंग  : पुं० [सं० छुर+अञच्-रू ल्] नीबू।
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छोलना  : स० [हिं० छीलना का पुराना रूप] १. छीलना। २. अनावश्यक और फालतू रूप से अधिक योग्यता दिखाना। छाँटना। उदाहरण–जाहु चले गुन प्रगट सूर प्रभु कहा चतुराई छोलत हौ।–सूर। पुं० वह उपकरण जिससे कोई चीज छीली जाय।
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छोला  : पुं० [हिं० छोलना] १. छोलने या छीलने का काम करनेवाला व्यक्ति। २. चना।
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छोह  : पुं० [सं० क्षोभ] १. प्रेम। स्नेह। २. अनुग्रह। दया।
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छोहगर  : वि० [हिं० छोह] छोह या प्रेम करनेवाला। प्रेमी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोहना  : अ० [हिं० छोह-प्रेम+ना (प्रत्यय)] १. प्रेम या स्नेह करना। उदाहरण–छितिपति उमगि उठाइ छोहि छाती छपटायौ।–रत्नाकर। २. विचलित या क्षुब्ध होना।
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छोहर (ा )  : पुं० [स्त्री० छोहरिया, छोहरी] छोकरा। लड़का।
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छोहाना  : अ०=छोहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छोहारा  : पुं०=छुहारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छोहिनी  : स्त्री=अक्षौहिणी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छोही  : वि० [हिं० छोह] १. प्रेम करनेवाला। २. अनुग्रह या दया करनेवाला।
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छौंक  : स्त्री० [हिं० छौंकना] १. छौंकने की क्रिया या भाव। बघार। २. वह मसाला जिससे तरकारी, दाल आदि छौंकी जाती है। तड़का। बघार।
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छौंकन  : स्त्री०=छौंक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छौंकना  : स० [अनु० छँव छँव] दाल, तरकारी को सुगंधित या सोंधा करने के लिए उसमें जीरे, मिर्च, हींग आदि से मिला हुआ कड़कड़ाता घी या तेल छोड़ना। बघारना। (स्पाइसिंग)। अ० [अनु० या सं० चतुष्क] १. शिकार को पकड़ने के लिए हिंसक जंतु का अकस्मात् उछलकर आगे बढ़ना। जैसे–बकरी पर शेर का छौंकना। २. आक्रमण या वार करने के लिए अचानक उछलकर आगे बढ़ना।
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छौंक-बघार  : स्त्री० [हिं०] १. दाल, तरकारी आदि छौंकने की क्रिया या भाव। २. किसी बात में उसे आकर्षक या रोचक बनाने के लिए अपनी ओर से कुछ बातें मिलाकर कहना।
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छौंड़ा  : पुं० [सं० शंकटा, हिं० छोकरा] [स्त्री० छौंड़ी] लड़का। बालक। पुं० [सं० चुंडा] अनाज रखने का गड्ढा।
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छौना  : पुं० [सं० शाव, पा० छाप; प्रा० छाव] १. पशु का बच्चा। जैसे–मृग-छौना। २. बच्चा। बालक।
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छौर  : पुं०=क्षौर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छौलदारी  : स्त्री० [हिं० छौल ?+फा० दारी] एक प्रकार का छोटा खेमा। रावटी।
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छ्वाना  : स०=छुलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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