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शब्द का अर्थ

चौकड़  : वि० [हिं० चौ+सं० कलाअंग, भाग] अच्छा। बढ़िया। (बाजारू) जैसे–चौकड़ माल।
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चौकड़याऊ  : पुं० [?] बुदेलखंड में होली के दिनों में गाया जानेवाला एक प्रकार का गीत।
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चौकड़ा  : पुं० [हिं० चौ+कड़ा] १. कान में पहनने की बाली जिसमें दो दो मोती हों। २. फसल में का चौथा भाग जो जमींदार का होता है। ३. दे० ‘चौघड़ा’।
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चौकड़ी  : स्त्री० [हिं० चौक(चार चीजों का समूह) का स्त्री०] १. एक में बँधी या लगी हुई एक ही तरह की चार चीजों का वर्ग या समूह। घोड़ों दाँतों या मोतियों की चौकड़ी। पद–चंडाल चौकड़ी=चार अथवा चार के लगभग गुडो़, बदमाशों या लुच्चों का वर्ग या समूह। २. वह गाड़ी जिसके आगे चार घोड़े या बैल अथवा ऐसे ही और पशु जुतकर खींचते हों। ३. गले में पहनने का एक प्रकार का गहना जिसमें चार-चार चौकोर खंड एक साथ पिरोये या लगे रहते हैं। ४. कालमान की सूचना के लिए चार युगों या समूह। चतुर्युगी। ५. बैठने का वह ढंग या प्रकार जिसमें दोनों पैरों और दोनों जाँघों के नीचेवाले भाग जमीन पर समतल रूप से लगे रहते हैं। पलथी। पालथी। मुहावरा–चौकड़ी मारकर बैठना=उक्त प्रकार से आसन या जमीन पर बैठना। ६. चारपाई की वह बुनावट जिसमें चार-चार डोरियाँ इकट्ठी और एक साथ बुनी जाती हैं। ७. हिरन की वह चाल या दौड़ जिसमें वह चारों पैर एक साथ जमीन पर उठाकर कूदता य छलाँग मारता हुआ आगे बढता है। क्रि० प्र०–भरना। मुहावरा–(किसी की) चौकड़ी भूल जाना=तेजी से आगे बढ़ते रहने की दशा में सहसा बाधा, विपत्ति आदि आने पर इतन घबड़ा जाना कि यह समझ में न आवे कि अब क्या उपाय करना चाहिए अथवा कैसे आगे बढ़ना चाहिए। ८. वास्तु रचना में, मंदिर की चौकी या मंडप का वह ऊपरी भाग या शिखर जो प्रायः चार खंभों पर स्थित रहता है।
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