| शब्द का अर्थ | 
					
				| चैत्य					 : | वि० [सं० चित्या+अण्] चिता-संबंधी। चिता का। पुं० १. घर। मकान। २. देवालय। मंदिर। ३. किसी देवी देवता के नाम पर अथवा किसी की मृत्यु या शव-दाह के स्थान पर बना हुआ भवन या चबूतरा। ४. यज्ञ-शाला। ५. गौतम बुद्ध की मूर्ति। ६. बौद्ध भिक्षुओं के रहने का मठ या विहार। ७. बौद्ध भिक्षु। ८. गाँव की सीमा पर के वृक्ष। ९. पीपल। १॰. बेल। ११. चिता। | 
			
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				| चैत्यक					 : | पुं० [सं० चैत्य√कौ (प्रतीत होना)+क] १. अश्वत्थ। पीपल। २. राजगृह के पास का एक पुराना पर्वत। | 
			
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				| चैत्यतरु					 : | पुं० कर्म० स०] १. अश्वत्थ। पीपल। २. गाँव या बस्ती का पूज्य या पवित्र बड़ा वृक्ष। | 
			
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				| चैत्य-द्रुम					 : | पुं० [कर्म० स०] १. पीपल का पेड़। २. अशोक का पेड़। | 
			
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				| चैत्यपाल					 : | पुं० [सं० चैत्य√पाल् (रक्षा करना)+णिच्+अच्] चैत्य (घर, चबूतरे, मन्दिर आदि का) अधिकारी, प्रबंधक या रक्षक। | 
			
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				| चैत्य-मुख					 : | पुं० [ब० स०] कमंडलु। | 
			
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				| चैत्य-यज्ञ					 : | पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का यज्ञ। | 
			
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				| चैत्य-वंदन					 : | पुं० [ष० त०] १. जैन या बौद्ध देवता। २. जैन या बौद्ध मंदिर। | 
			
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				| चैत्य-वृक्ष					 : | पुं०=चैत्य-तरु। | 
			
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				| चैत्य-स्थान					 : | पुं० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ बुद्धदेव की मूर्ति स्थापित हो। २. कोई पवित्र स्थान। | 
			
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