| शब्द का अर्थ | 
					
				| चै					 : | पुं०[सं० चय] ढेर। राशि। समूह। विभ० [?] १ से। २ के। उदाहरण–देवाधिदेव चै लाधै दूवै।–प्रिथीराज। | 
			
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				| चैक					 : | पुं०=चेक। | 
			
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				| चैकित					 : | पुं० [सं० चिकित+अण] एक गोत्र प्रवर्तक ऋषि। | 
			
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				| चैकितान					 : | वि० [सं० चेकितान+अण्] चेकितान के वंश में उत्पन्न। चेकितान का वंशज। | 
			
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				| चैकित्य					 : | पुं० [सं० चैकित+य] वह जो चैकित ऋषि के गोत्र का हो। | 
			
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				| चैत					 : | पुं० [सं० चैत्र] [वि० चैती] वह चांद्र मास जिसकी पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र पड़े। फागुन के बादवाला महीना। पुं० दे० ‘चैती’ (गीत)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| चैतन्य					 : | पुं० [सं० चेतन+ष्यञ्] १. चेतन आत्मा। २. न्याय दर्शन के अनुसार प्राणियों में होनेवाला ज्ञान। ३. चेतन होने का भाव। चेतनता। ४. ब्रह्म। ५. परमात्मा। ६. निसर्ग। प्रकृति। ७. बंगाल के एक प्रसिद्ध वैभव भक्त श्रीकृष्ण चैतन्य जो गौरांग महाप्रभु भी कहे जाते हैं। वि० १. जिसमें चेतना या चेतना-शक्ति हो। सचेत। सचेतन। २. जो अपना ठीक और पूरा काम करने और सब बातें सोचने-समझने की स्थिति में हो। | 
			
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				| चैतन्यता					 : | स्त्री० [सं० चैतन्य+तल्-टाप्] चैतन्य। (दे०)। | 
			
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				| चैतन्य-भैरवी					 : | स्त्री० [कर्म० स०] १. तांत्रिकों की एक देवी। २. संगीत में एक प्रकार की रागिनी। | 
			
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				| चैता					 : | पुं० [सं० चित्रित] काले रंग का एक प्रकार का पक्षी। पुं० [हिं० चैत] चैत मास में गाये जानेवाले एक प्रकार के लोक-गीत जिनकी प्रत्येक पंक्ति के आरंभ में रामा और अंत में हो रामा विशेष रूप से लगता है। जब वाद्य के साथ गाया जाता है तब इसे झलकुटिया कहते हैं। (उत्तर प्रदेश)। | 
			
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				| चैतावर					 : | पुं० [हिं० चैता] बिहार में चैत मास में गाये जानेवाले लोक-गीत। | 
			
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				| चैती					 : | वि० [हिं० चैत महीना] १. चैत-संबंधी। चैत का। २. चैत महीने में होनेवाला। जैसे–चैती गुलाब, चैती फसल। स्त्री० १. वह फसल जो चैत में तैयार होती और काटी जाती है। रबी। २. चैत-बैसाख में गाया जानेवाला एक प्रकार का पूरबी चलता गाना। ३. चैत में बोया जानेवाला जमुअ नील। ४. बत्तख की जाति की एक प्रकार की चिड़िया जो प्रायः चैत-बैसाख में मैदानों मे दिखाई देती है। | 
			
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				| चैती-गौरी					 : | स्त्री० [सं० चैत्र-गौडी] चैत के महीने में प्रायः संध्या समय गाई जानेवाली षाडव संपूर्ण जाति की एक रागिनी। | 
			
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				| चैतुआ					 : | पुं० [हिं० चैत महीना] चैत में रबी की फसल काटनेवाला मजदूर। | 
			
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				| चैत्त					 : | वि० [सं० चित्त+अण्] चित्त-संबंधी। चित्त का। पुं० बौद्ध दर्शन में विज्ञान स्कंध को छोड़कर शेष सब स्कंध। | 
			
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				| चैत्य					 : | वि० [सं० चित्या+अण्] चिता-संबंधी। चिता का। पुं० १. घर। मकान। २. देवालय। मंदिर। ३. किसी देवी देवता के नाम पर अथवा किसी की मृत्यु या शव-दाह के स्थान पर बना हुआ भवन या चबूतरा। ४. यज्ञ-शाला। ५. गौतम बुद्ध की मूर्ति। ६. बौद्ध भिक्षुओं के रहने का मठ या विहार। ७. बौद्ध भिक्षु। ८. गाँव की सीमा पर के वृक्ष। ९. पीपल। १॰. बेल। ११. चिता। | 
			
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				| चैत्यक					 : | पुं० [सं० चैत्य√कौ (प्रतीत होना)+क] १. अश्वत्थ। पीपल। २. राजगृह के पास का एक पुराना पर्वत। | 
			
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				| चैत्यतरु					 : | पुं० कर्म० स०] १. अश्वत्थ। पीपल। २. गाँव या बस्ती का पूज्य या पवित्र बड़ा वृक्ष। | 
			
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				| चैत्य-द्रुम					 : | पुं० [कर्म० स०] १. पीपल का पेड़। २. अशोक का पेड़। | 
			
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				| चैत्यपाल					 : | पुं० [सं० चैत्य√पाल् (रक्षा करना)+णिच्+अच्] चैत्य (घर, चबूतरे, मन्दिर आदि का) अधिकारी, प्रबंधक या रक्षक। | 
			
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				| चैत्य-मुख					 : | पुं० [ब० स०] कमंडलु। | 
			
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				| चैत्य-यज्ञ					 : | पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का यज्ञ। | 
			
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				| चैत्य-वंदन					 : | पुं० [ष० त०] १. जैन या बौद्ध देवता। २. जैन या बौद्ध मंदिर। | 
			
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				| चैत्य-वृक्ष					 : | पुं०=चैत्य-तरु। | 
			
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				| चैत्य-स्थान					 : | पुं० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ बुद्धदेव की मूर्ति स्थापित हो। २. कोई पवित्र स्थान। | 
			
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				| चैत्र					 : | पुं० [सं०√चि(चयन)+ष्ट्रन्+अण्] १. वह महीना जिसकी पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र पड़े। चैत। २. पुराणानुसार चित्रा नक्षत्र के गर्भ से उत्पन्न बुधग्रह का एक पुत्र जो सातों द्वीपों का स्वामी कहा गया है। ३. पुराणानुसार सात वर्ष पर्वतों में से एक। ४. चैत्य। ५. बौद्ध। भिक्षु। ६.यज्ञ-भूमि। ७. देवालय। मंदिर। वि० चित्रा नक्षत्र संबंधी चित्रा नक्षत्र का। | 
			
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				| चैत्रक					 : | पुं० [सं० चैत्र+कन्] चैत मास। चैत। | 
			
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				| चैत्र-गौड़ी					 : | स्त्री० [मध्य० स०] ओड़व जाति की एक रागिनी जो चैत्र मास में संध्या समय अथवा रात के पहले पहर में गाई जाती है। कुछ लोग इसे श्रीराग की पुत्र वधू मानते हैं। | 
			
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				| चैत्र-मख					 : | पुं० [ष० त०] चैत मास के उत्सव जो प्रायः मदन संबंधी होते हैं। | 
			
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				| चैत-रथ					 : | पुं० [सं० चित्ररथ+अण्] १. पुराणानुसार कुबेर का वह उपवन या बगीचा जो चित्ररथ ने बनाया था। २. एक प्राचीन ऋषि। | 
			
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				| चैत्र-रथ्य					 : | पुं० [सं० चैत्ररथ+ष्यञ्] =चैत्ररथ। | 
			
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				| चैत्रवती					 : | स्त्री० [सं० चैत्र+मनुप्–ङीष्, तत्व] एक पौराणिक नदी। (हरिवंश पुराण) | 
			
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				| चैत्रसखा					 : | पुं० [ष० त०] कामदेव। | 
			
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				| चैत्रावली					 : | स्त्री० [सं० चैत्र-आ√वृ (वरण करना)+णिच्+अच्–ङीष्, लत्व] १. चैत्र शुक्ला त्रयोदशी। २. चैत्र मास की पूर्णिमा। | 
			
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				| चैत्रि					 : | पुं० [चैत्री+इञ्] चैत मास। चैत्र। | 
			
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				| चैत्रिक					 : | पुं० [चैत्र+ठक्-इक] चैत्र। चैत। | 
			
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				| चैत्री					 : | स्त्री [सं० चित्रा+अण्–ङीष्] चैत मास की पूर्णिमा। | 
			
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				| चैदिक					 : | वि० [सं० चेदि+ठञ्–इक] चेदि (प्रदेश उसके निवासी अथवा उसके राज से) संबंध रखनेवाला। | 
			
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				| चैद्य					 : | पुं० [सं० चेदि+ष्यञ्] शिशुपाल। वि० चेदि-संबंधी। चेदि का। | 
			
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				| चैन					 : | पुं० [सं० शयन] १. कष्ट, थकावट, विकलता आदि का अंत होने पर मिलनेवाला आराम या सुख। २. किसी प्रकार की झंझट, दायित्व भार आदि से छुटकारा होने पर मिलनेवाली मानसिक शांति। क्रि० वि० जाना। मिलना। ३. आनंद और सुख का भोग। मुहावरा–चैन उड़ाना आनंद करना। खूब अच्छी तरह मनमाने ढंग से आराम या सुख भोगना। आनंद मंगल करना। चैन पड़ना कष्ट,चिता,विकलता आदि का अन्त होने पर शांति का अनुभूत होना। चैन से कटना आनंद और सुख से समय बीतना। पुं० [सं० चैलक ?] एक छोटी जाति। | 
			
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				| चैपला					 : | पुं० [देश०] एक प्रकार का पक्षी। | 
			
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				| चैयाँ					 : | स्त्री० [?] बाँह।(वज्र०)। | 
			
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				| चैराही					 : | वि० दे० ‘चेहरई’। (रंग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| चैल					 : | पुं० [सं० चेल+अण्] १. कपड़ा। वस्त्र। २. पहनने का कपड़ा। पोशाक। | 
			
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				| चैलक					 : | पुं० [सं० चैल+कन्] एक प्राचीन वर्ण संकर जाति जो शुद्र पिता और क्षत्रिया माता से उत्पन्न मानी जाती है। | 
			
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				| चैला					 : | पुं० [चीरना-छीलना] कुल्हाड़ी से चोरी की हुई लकड़ी का बड़ा टुकड़ा जो जलाने के काम में आता है। | 
			
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				| चैलाशक					 : | पुं० [सं० चैल-आशक, ष० त० ] कपड़ों में लगने वाले कीड़ों को खानेवाला एक छोटा कीड़ा। | 
			
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				| चैलिक					 : | पुं० [सं० चैल+ठक्-इक] कपड़े का टुकड़ा। | 
			
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				| चैली					 : | स्त्री० [हिं० चैला का स्त्री अल्पा रूप] १ रँदने पर निकलने वाले लकड़ी के पतले-पतले टुकड़े जो जलाने के काम आते हैं। २. गरमी के कारण नाक से निकलनेवाला जमे हुए खून का थक्का। | 
			
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				| चैलेज					 : | पुं० [अं०] लड़ाई-भिड़ाई, संघर्ष आदि के लिए ललकारने की क्रिया या भाव। ललकार। | 
			
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