| शब्द का अर्थ | 
					
				| चूर्ण					 : | पुं० [सं० चूर्ण (चूर्ण करना)+अप्] १. किसी चीज के वे बहुत छोटे-छोटे कण जो उसे बहुत अधिक कूटने, पीसने रेतने आदि से बनते हैं। चूरा। बुकनी। सफूफ। २. वैद्यक में, औषधों आदि का वह पिसा हुआ रूप जो खाने, छिड़कने आदि के काम में आता है। बुकनी। ३. विशिष्ट रूप से उक्त प्रकार से तैयार की हुई कोई ऐसी दवा जो पाचक हो। जैसे–हिंगाष्टक चूर्ण। ४. अबीर। ५. गर्दा। धूल। ६. चूना। ७. कौड़ी। वि० १. तोड़-फोड या काट-चीर कर बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में लाया हुआ। चूर किया हुआ। २. सब प्रकार से नष्ट-भ्रष्ट या शक्तिहीन किया हुआ। जैसे–किसी का गर्व या शक्ति चूर्ण करना। | 
			
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				| चूर्णक					 : | पुं० [सं० चूर्ण+कन्] १. सत्तू। सतुआ। २. एक प्रकार का शालि धान्य। ३. एक प्रकार का वृक्ष। ४. साहित्य में ऐसी गद्य रचना जिसमें छोटे-छोटे तथा मधुर शब्द और पद होते हैं। | 
			
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				| चूर्ण-कार					 : | वि० [सं० चूर्ण√कृ (करना)+अण्, उप० स०] चूर्ण करनेवाला। पं० १. आटा पीसने और बेचनेवाला व्यापारी। २. पराशर के अनुसार एक संकर जाति जिसकी उत्पत्ति पुंड्रक पुरूष और नट-स्त्री से कही गई है। | 
			
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				| चूर्ण-कुंतल					 : | पुं० [कर्म० स०] गुँथे हुए बाल। लट। जुल्फ। | 
			
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				| चूर्ण-खंड					 : | पुं० [सं० च० त०] कंकड़। | 
			
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				| चूर्णन					 : | पुं० [सं०√चूर्ण+ल्युट-अन] चूर्ण करना। किसी सूखी वस्तु को कूट अथवा पीसकर उसे चूर्ण का रूप देना। | 
			
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				| चूर्ण-पारद					 : | पुं० [एक० त० स०] शिंगरफ। | 
			
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				| चूर्ण-योग					 : | पुं० [ष० त० स०] पीसकर एक में मिलाए हुए बहुत से सुंगधित पदार्थ। | 
			
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				| चूर्णशाकांक					 : | पुं० [सं० चूर्ण-शाक, उपमि० स०√अंक+अण्, उप० स०] गौर सुवर्ण नामक साग। | 
			
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				| चूर्ण-हार					 : | पुं० [ष० त०] चूरनहार नाम की बेल। | 
			
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				| चूर्णा					 : | स्त्री०[सं० चूर्ण+टाप्] आर्या छंद का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में १८ गुरु और २१ लघु होते हैं। | 
			
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				| चूर्णि					 : | स्त्री० [सं०√चूर्ण+इन्] १. पतंजलि मुनि का रचा हुआ भाष्य। २. कौड़ी। ३. सौ कौड़ियों का समूह। | 
			
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				| चूर्णिका					 : | स्त्री० [सं० चूर्ण+ठन्-इक+टाप्] १. सत्तू। सतुआ। २. किसी बहुत कठिन ग्रंथ की किसी टीका या भाष्य जिससे उसके सब प्रसंग या स्थल स्पष्ट हो जाएँ। ३. प्राचीन साहित्य में, गद्य की एक शैली। | 
			
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				| चूर्णि-कृत्					 : | पुं० [सं० चूर्ण√कृ(करना)+क्विप्, उप० स०] १. भाष्यकार। २. महाभाष्यकार पतंजलि मुनि की एक उपाधि। | 
			
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				| चूर्णित					 : | भू० कृ० [सं०√चूर्ण+क्त] १. जिसे कूट अथवा पीसकर चूर्ण का रूप दिया गया हो। २. अच्छी तरह तोड़ा-फोड़ा या नष्ट-भ्रष्ट किया हुआ। | 
			
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				| चूर्णी					 : | स्त्री० [सं० चूर्णि+ङीष्] १. कार्षापण नामक पुराना सिक्का। २. कपर्द्दिका। कौड़ी। ३. एक प्राचीन नदी का नाम। ४. दे० ‘चूर्णिका’। | 
			
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