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चूड़  : पुं० [सं० चूडा़] १. चोटी। शिखा। २. पक्षियों आदि के सिर पर की कलगी या चोटी। ३. वास्तु रचना में, खंभे आदि का ऊपरी भाग ४. पहाड़ की चोटी। ५. छोटी कूआँ। ६. शंखचूड़ दैत्य का एक नाम।
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चूड़क  : पुं० [सं० चूड़ा+कन्, हृस्व] कुआँ।
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चूड़ांत  : वि० [सं० चूड़ा-अन्त, ब० स०] १. जो चरम सीमा या पराकाष्ठा तक पहुँचा हो। २. बहुत अधिक। अत्यन्त। पुं० [ष० त०] चूड़ा या शिखर का अन्तिम और ऊपरी भाग।
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चूड़ा  : पुं० [सं०√चुल् (ऊँचा होना)+अङ्, दीर्घ(नि०),ल को ड, प्रा० चूड़, चूडक (भुजा भरण) गु० चूडो, सि० चूरो, मरा० चुड़ा] १. सिर के बालों की चोटी। शिखर। २. पक्षियों आदि के सिर पर की चोटी। ३. किसी चीज का सबसे ऊंचा और ऊपरी भाग। ४. मस्तक। सिर। ५. कूआँ। ६. घुँघची। ७. प्रधान या मुख्य व्यक्ति। ८. हाथ में पहनी जानेवाली एक प्रकार की चूडियाँ जो प्रायः हाथी दांत की बनती और विवाह के समय कन्या को पहनाई जाती है। ९. हाथ में पहनने का कंगन या कड़ा। १॰. दे० ‘चूड़ा करण’। पुं० १. दे० चुहड़ा। २. दे० चिड़वा।
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चूड़ा-करण  : पुं० [ष० त०] हिंदुओं के १६ संस्कारों में से एक,जिसमें बालक का सिर पहले-पहल मूँड़ा जाता है। मुंडन।
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चूड़ा-कर्म (न्)  : पुं० [ष० त०]=चूड़ाकरण।
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चूड़ा मणि  : पुं० [मध्य० स०] १. सिर पर पहनने का एक गहना। शीशफूल। बीज। २. वह जो अपने कुल, वर्ग आदि में सब से बढ़कर या श्रेष्ठ हो। ३. गुंजा। घुँघची।
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चूड़ाम्ल  : पुं० [चूड़ा-अम्ल, ब० स०] इमली।
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चूड़ार  : वि० [सं० चूड़ाऋ (गति) √+अण्] १.चूड़ा से युक्त। चूड़ावाला। २. (बालक) जिसके सिर पर चुंदी या चोटी हो। ३. (पशु या पक्षी) जिसके सिर पर कलगी हो।
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चूड़ाल  : वि० [सं० चूड़ा+लच्] चूड़ायुक्त। पुं० सिर।
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चूड़ाला  : स्त्री० [सं० चूड़ा+टाप्] १. सफेद घुँघची। २. नागरमोथा। ३. एक प्रकार की निर्विषी (वनस्पति)।
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चूड़िया  : पुं० [हिं० चूड़ी+इया (प्रत्यय)] एक प्रकार का धारीदार कपड़ा।
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चूड़ी  : स्त्री० [दे० प्रा० चूड़; बं० उ० चुरी; गु० पं० चूड़ी० सि० चूरी; ने० चूरि, मरा० चूडा] १. स्त्रियों का एक प्रसिद्ध वृत्ताकार गहना जो धातु लाख शीशे सींग आदि का बनता है और जो स्त्रियाँ हाथ में शोभा के लिए और प्रायः सौभाग्य-सूचक चिन्ह के रूप में पहनती हैं। मुहावरा–चूड़ियाँ ठंडी करना या बढ़ाना (क) बदलने के लिए चूडि़यां उतारना। (ख) विधवा होने पर चूड़िया तोड़ डालना। चूडिया पहनना स्त्रियों का सा आचरण या व्यवहार करना। (कायरता सूचक व्यंग्य) जैसे–तुम्हें तो चूड़ियाँ पहनकर घर में बैठना चाहिए था। (किसी पर या किसी के नाम की) चूडियाँ पहनना=स्त्री का किसी को अपना उपपति बना लेना और उसके वशवर्ती होकर रहना। (किसी स्त्री को) चूड़ियाँ पहनाना (क) विधवा स्त्री का विवाह करना। (ख) विधवा स्त्री को पत्नी बनाकर अपने घर में रखना। २. उक्त आकार-प्रकार की वे वृत्ताकार रेखाएँ जो किसी चीज में उसके विभाग नियत करने के लिए बनाई जाती है। जैसे–कल के किसी पुरजे या पेंच की चूड़ियाँ, मेहराब की चूड़ियाँ। ३. फोनोग्राफ नामक बाजे का वह उपकरण जो पहले नल के आकार का होता था और जिस पर उक्त प्रकार की रेखाएँ बनी होती थीं इसी के योग से उक्त बाजा बजता था, क्योंकि वैज्ञानिक क्रिया से इसी पर कही जानेवाली बात या सुनाई पड़नेवाला गीत अंकित होता था। ४. उक्त के आधार पर और उक्त प्रकार का काम देनेवाला तवे की तरह का वह उपकरण जो आजकल ग्रामोफोन नामक बाजे पर रखकर बजाया जाता है। ५. रेशम फेरनेवालों का एक उपकरण जो मोटे कड़े के आकार का होता है। छत में बँधा रहता है और इसके दोनों सिरों पर दो तकलियाँ होती हैं जिनमें से एक पर उलझा हुआ और दूसरी पर साफ किया हुआ तथा सुलझा हुआ रेशम रहता है।
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चूड़ीदार  : वि० [चूड़ी+फा० दार] जिसमें बहुत-सी चूड़ी के आकार की वृत्ताकार रेखाएँ या धारियाँ पड़ी हो या पड़ती हो। जैसे–चूड़ीदार पायजामा।
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चूड़ीदार पायजामा  : पुं० [हिं० चूड़ीदार+पायजामा] तंग और लंबी मोहरी का एक प्रकार का पायजामा जिसे पहनने पर टखने पर चूड़ी के आकार की वत्ताकार अनेक धारियाँ या रेखाएँ बन जाती हैं।
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चूड़ों  : पुं० १. दे० ‘चुहड़ा’। २. दे० ‘चूड़ा’।
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चूड़ामणि  : वि० पुं० =चूड़ामणि।
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