| शब्द का अर्थ | 
					
				| चिलम					 : | स्त्री० [फा०] मि्टटी का कटोरी के आकार का नलीदार एक प्रसिद्ध पात्र जिसमें गाँजा चरस या तमाकू तथा आग रखकर यों ही अथवा हुक्के की नली पर लगाकर पीया जाता है। क्रि० प्र०–पीना। मुहावरा–चिलम चढ़ाना या भरना=चिलम पर तमाकू (गाँजा आदि) और आग रखकर उसे पीने के लिए तैयार करना। (किसी की) चिलमें चढ़ाना या भरना=किसी की तुच्छ से तुच्छ सेवाएँ करना। | 
			
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				| चिलम-गर्दी					 : | स्त्री० [फा०] हुक्के में वह लंबी बाँस की नली जो चुल और जामिन से मिली होती है। इस पर चिलम रखी जाती है। (नैचाबन्द)। | 
			
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				| चिलम-चट					 : | वि० [फा० चिलम+हिं० चाटना] १. वह जो चिलम पीने का बहुत व्यसनी हो। २. वह जो इस प्रकार कसकर चिलम पीता हो कि फिर वह दूसरे के पीने योग्य न रह जाय। | 
			
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				| चिलमची					 : | स्त्री० [फा०] देग के आकार का एक बरतन जिसके किनारे चारों ओर थाली की तरह दूर तक फैले होते हैं। इसमें लोग हाथ धोते और कुल्ली आदि करते हैं। | 
			
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				| चिलमन					 : | स्त्री० [फा०] बाँस की फट्टियों आदि का परदा जो खिड़कियों दरवाजों आदि के आगे लटकाया जाता है। चिक। | 
			
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				| चिलम-पोश					 : | पुं० [फा०] धातु का झँझरीदार गहरा ढक्कन जो चिलम पर इसलिए रखा जाता है कि उसमें से चिनगारियाँ उडकर इधर-उधर न गिरे। | 
			
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				| चिलम-बरदार					 : | पुं० [फा०] चिलम भरकर हुक्का पिलानेवाला । सेवक। | 
			
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				| चिलमिलिका					 : | स्त्री० [सं० चिर√मिल्+ण्वुल्-अक, टाप्, इत्व] १.गले में पहनने की एक प्रकार की माला। २. खद्योत जुगनूँ। ३. बिजली। | 
			
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				| चिलमीलिका					 : | स्त्री०=चिलमिलिका। | 
			
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