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चित्र  : पुं० [सं०√चित्र (लिखना)+अच्] १. चंदन आदि से शरीर के किसी अंग विशेषतः मस्तक पर बनाया जानेवाला चिन्ह। तिलक। २. कलम कूचीं पेंसिल आदि की सहायता से कपडे़ कागज दीवार या किसी चिपटे तलवाली वस्तु पर बनाई हुई किसी वस्तु या व्यक्ति की आकृति। क्रि० प्र०–उतारना।–बनाना।–लिखना। ३. यंत्र की सहायता से खींचा या छापा जानेवाला चित्र। जैसे–कैमरे का चित्र (फोटो) या समाचार-पत्रों में प्रकाशित होनेवाले चित्र। ४. कल्पना करने या सोचने पर मानसिक चक्षुओं के सामने आनेवाली आकृति या रूप। मानसिक चित्र। ५. चित्र काव्य। (दे०) ६. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसका प्रत्येक चरण समानिका वृत्त के दो चरणों के योग से बनता है। ७. काव्य के तीन अंगो में से एक जिसमें व्यंग्य की प्रधानता नहीं होती। अलंकार। ८. चित्रगुप्त। ९. एक यम का नाम १॰. धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक। ११. रेंड़ का पेड़। १२. अशोक का वृक्ष। १३. चित्रक। चीता। १४. एक प्रकार का कोढ़ जिसमें शरीर में सफेद चितियाँ या दाग पड़ जाते हैं वि० १. रंग-बिंरंगा। कई रंगों का २. चित-कबरा। ३. अनेक प्रकार का। कई तरह का। ४. अदभुत। विचित्र। विलक्षण। ५. प्रायः बदलता रहनेवाला या तरह-तरह के रंग बदलनेवाला। ६. चित्र की तरह सब प्रकार से ठीक, दुरुस्त और सुंदर।
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चित्र-कंठ  : पुं० [ब० स०] कबूतर।
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चित्र-कंबल  : पुं० [कर्म० स०] १. कालीन दरी या इसी तरह की और कोई रंगीन बुनावटवाला कपड़ा। २. हाथी की झूल।
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चित्रक  : पुं० [सं० चित्र+कन्] १. मस्तक पर लगाया जानेवाला टीका या तिलक। २. चीता नामक पेड़। ३. चीता नाम का जंतु। ४. रेड़ का पेड़। ५. चिरायता। ६. मुचकुंद का पेड़। ७. चित्रकार। ८. बहादुर। शूर-वीर।
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चित्र-कर  : पुं० [सं०√चित्रकृ (करना)+ट, उप० स०] १. एक संकर जाति जिसकी उत्पत्ति विश्वकर्मा पुरुष और शूद्रा स्त्री से कही गई है। २. उक्त जाति का व्यक्ति। ३. तिनिश का पेड़। ४. चित्रकार।
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चित्र-कर्म(न्)  : पुं० [ष० त०] चित्रकारी।
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चित्रकर्मी(र्मिन्)  : पुं० [सं० चित्रकर्म+इनि] १. चित्रकार। मुसौवर। २. अदभुत या विलक्षण काम करनेवाला व्यक्ति। ३. तिनिश का पेड़।
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चित्र-कला  : स्त्री० [ष० त०] चित्र अंकित करने की क्रिया, ढंग भाव या विद्या। तसवीर बनाने का हुनर।
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चित्र-काय  : पुं० [ब० स०] चीता (जंतु)।
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चित्र-कार  : पुं० [सं० चित्र√कृ (करना)+अण्, उप० स०] वह व्यक्ति जो चित्र अंकित करने की कला में दक्ष हो। चित्र बनानेवाला। चितेरा।
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चित्रकारी  : स्त्री० [हिं० चित्र+कारी] १. चित्र बनाने की कला या विद्या। २. चित्रकार का काम, पद या भाव। ३. बनाये हुए चित्र।
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चित्र-काव्य  : पुं० [मध्य० स०] वह आलंकारिक काव्य जिसके चरणों की रचना ऐसी युक्ति से की गई हो कि वे चरण किसी विशिष्ट क्रम से लिखे जाने पर कमल, खड़ग, घोड़े, रथ, हाथी आदि के चित्रों के समान बन जाते हों। (इसकी गणना अधम प्रकार के काव्यों में होती है।)
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चित्र-कुष्ठ  : पुं० [मध्य० स०] सफेद कोढ़।
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चित्र-कूट  : पुं० [सं० ब० स०] १. उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध रमणीय पर्वत जहां वन-वास के समय राम-लक्ष्मण और सीता ने बहुत दिनों तक निवास किया था। यह बाँदा जिले में है और इसके नीचे पयोष्णी नदी बहती है। २. हिमवत् खंड के अनुसार हिमालय की एक चोटी का नाम। ३. राजस्थान के चित्तौर नगर का पुराना नाम।
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चित्र-कृत्  : पुं० [सं० चित्र√कृ (करना)+क्विप्, तुक्, उप० स०] १. चित्र कार। २. तिनिश का पेड़। वि० अद्भुत। विलक्षण।
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चित्र-केतु  : पुं० [ब० स०] १. वह जिसकी पताका चित्रित या रंग-बिरंगी हो। २. लक्ष्मण के एक पुत्र का नाम। (भागवत) ३. वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम। ४. गरुड़ के एक पुत्र का नाम। ५. शूरसेन का एक पौराणिक राजा जिसे नारद ने मंत्र का उपदेश दिया था।
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चित्र-कोण  : पुं० [ब० स०] १. कुटकी। २. काली कपास।
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चित्र-गंध  : पुं० [ब० स०] हरताल।
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चित्रगुप्त  : पुं० [ब० स०] पुराणानुसार चौदह यमराजों में से एक जो प्राणियों के पाप और पुण्य का लेखा रखनेवाले कहे गये हैं।
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चित्र-घंटा  : स्त्री० [ब० स०] एक देवी जो नौ दुर्गाओं में से एक है।
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चित्र-जल्प  : पुं० [कर्म० स०] साहित्य में ऐसी बातें जो मान करनेवाली नायिका अथवा रूठा हुआ नायक एक दूसरे से कहते हैं। (इसके दस भेद कहे गये हैं)।
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चित्र-जात  : पुं०=चित्र योग।
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चित्रण  : पुं० [सं०√चित्र+णिच्+ल्युट-अन] १. चित्र अंकित करने या बनाने की क्रिया या भाव। २. चित्र में रंग भरने का भाव। ३. किसी घटना, भाव, वस्तु, व्यक्ति, आदि का विशद तथा सजीव रूप से शब्दों में किया जानेवाला वर्णन। जैसे–चरित्र-चित्रण।
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चित्र-तंडुल  : पुं० [ब० स०] वायविडंग।
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चित्र-तल  : पुं० [ष० त०] वह तल या सतह जिस पर चित्र अंकित हो। जैसे–कपड़ा, कागज, काठ, पत्थर आदि।
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चित्र-ताल  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में एक प्रकार का चौताला ताल।
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चित्र-तैल  : पुं०[कर्म० स०] अंडी या रेंडी का तेल।
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चित्र-त्वक्(च्)  : पुं० [ब० स०] भोज-पत्र।
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चित्र-दंडक  : पुं० [ब० स० कप्] जमीकंद। सूरन।
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चित्र-देव  : पुं० [कर्म० स०] कार्तिकेय के एक अनुचर का नाम।
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चित्र-देवी  : स्त्री० [कर्म० स०] १. एक प्रकार की देवी या शक्ति। २. महेन्द्रवारुणी लता।
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चित्र-धर्मा(र्म)  : पुं० [ब० स० अनिच्] महाभारत में उल्लिखित एक दैत्य।
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चित्र-धाम  : पुं० [कर्म० स०] यज्ञादि में पृथ्वी पर बनाया जानेवाला एक चौखूँटा चक्र जिसके खाने भिन्न-भिन्न रंगों से भरे जाते हैं। सर्वतोभद्र चक्र।
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चित्रना  : स० [सं० चित्र+हिं० ना (प्रत्य)] १. चित्र आदि बनाना। २. चित्रों में रंग भरना। ३. किसी तल या बेल-बूटे आदि बनाना। ४. शोभा के लिए मुँह पर चमकी आदि लगाना।
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चित्र-नेत्रा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] मैना पक्षी।
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चित्र-पक्ष  : पुं० [ब० स०] तीतर पक्षी।
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चित्र-पट  : पुं० [ष० त० ] १. वह पट (वस्त्र) जिस पर प्राचीन भारत में चित्र बनता था। २. कपड़े या चमड़े पर बना हुआ वह चित्र जो लपेटकर रखा जा सकता हो और आवश्यकता पड़ने पर दीवार आदि पर टाँगा जा सकता हो। ३. कोई ऐसा तल (जैसे–कागज, काठ, पत्थर, हाथी दांत आदि) जिस पर चित्र बना या अंकित हुआ हो। ४. चल-चित्र। (दे०)।
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चित्र-पटी  : स्त्री० [ष० त०] छोटा चित्र-पट।
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चित्र-पत्र  : पुं० [ब० स०] आँख की पुतली के पीछे का वह परदा जिस पर देखी जानेवाली वस्तुओं का प्रतिबिंब पड़ता है। वि० रंग-बिरंगे और विचित्र पंखों या परों वाला।
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चित्र-पत्रिका  : स्त्री० [ब० स० कप्, टाप्, इत्व] १. कपित्थपर्णी वृक्ष। २. द्रोणपुष्पी। गूमा।
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चित्र-पत्री  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] जल-पिप्पली।
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चित्र-पथा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] प्रभास तीर्थ के अंतर्गत ब्रह्मकुंड के पास की एक छोटी नदी जो अब सूख चली है।
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चित्र-पदा  : पुं० [ब० स० टाप्] १. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में २ भगण और २ गुरु होते हैं। २. मैना पक्षी। ३. लजालू या लज्जावती लता। छूई-मुई।
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चित्र-पर्णी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] १. मजीठ। २. कनफोड़ा नाम की लता। ३. जल-पिप्पली। ४. द्रोण पुष्पी। गूमा।
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चित्र-पादा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] मैना पक्षी।
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चित्र-पिच्छक  : पुं० [ब० स०] मयूर। मोर।
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चित्र-पुंख  : पुं० [ब० स०] बाण। तीर।
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चित्र-पुट  : पुं० [ब० स०] संगीत में एक प्रकार का छः ताला ताल।
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चित्र-पुत्री  : स्त्री० [मध्य० स०] कपड़े, लकड़ी आदि की बनी हुई गुड़िया।
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चित्र-पुष्प  : पुं० [ब० स०] शर जाति की एक घास जिसे राम-शर कहते हैं।
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चित्र-पुष्पी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] आमड़ा।
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चित्र-पृष्ठ  : पुं० [ब० स०] गौरैया पक्षी।
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चित्र-फल  : पुं० [ब० स०] चितला मछली। २. तरबूज।
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चित्र-फलक  : पुं० [ष० त०] काठ, पत्थर, हाथी-दांत आदि की वह तख्ती या पटिया जिस पर चित्र बना हो।
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चित्रफला  : स्त्री० [ब० स० टाप्] १. ककड़ी। २. बैंगन। ३. भटकटैया। ४. लिंगिनी नाम की लता। ५. महेंन्द्र वारुणी लता। ६. फलुई नाम की मछली।
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चित्र-बर्ह  : पुं० [ब० स०] १. मोर। मयूर। २. गरुड़ के एक पुत्र का नाम।
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चित्र-भानु  : पुं० [ब० स०] १. अग्नि। २. सूर्य। ३. चीते का पेड़। ४. आक। मदार। ५. भैरव का एक नाम। ६. अश्विनीकुमार। ७. साठ संवत्सरों के अंतर्गत सोलहवें वर्ष का नाम. ८. अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा के पिता जो मणिपुर में राज्य करते थे।
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चित्र-भेषजा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] कठगूलर। कठूमर।
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चित्र-भोग  : पुं० [ब० स०] राजा का वह सहायक और शुभ-चिंतक जो समय पर अनेक प्रकार के पदार्थों तथा गाड़ी घोड़े आदि से उसकी सहायता करे। कौ०)।
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चित्र-मंच  : पुं० [ब० स०] संगीत में एक प्रकार का ताल।
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चित्र-मंडप  : पुं० [ब० स०] १. अश्विनी कुमार । २. अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा के पिता का नाम।
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चित्र-मंडल  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का साँप।
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चित्र-मति  : वि० [ब० स०] विचित्र या विलक्षण बुद्धिवाला।
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चित्र-मद  : पुं० [तृ० त०] नाटक में किसी स्त्री का पति या प्रेमी का अभिनय या चित्र देखकर मस्त होना और उसके प्रति अपने अनुराग का भाव दिखलाना।
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चित्र-मृग  : पुं० [कर्म० स०] एक प्रकार का चितकबरा हिरन जिसकी पीठ पर सफेद सफेद-चित्तियाँ होती हैं। चीतल।
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चित्र-मेखल  : पुं०[ब० स०] मयूर। मोर।
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चित्र-योग  : पुं० [कर्म० स०] ६४ कलाओं में से एक जिसके द्वारा बुड्ढे को जवान या जवान को बुड्ढा बनाया जाता था।
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चित्र-योधी(धिन्)  : वि० [सं० चित्र√युध् (युद्ध करना)+णिनि, उप० स०] असाधारण और विलक्षण योद्धा। अद्भुत ढंग से युद्ध करनेवाला। पुं० १. अर्जुन। २. अर्जुन वृक्ष।
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चित्र-रथ  : पुं० [ब० स०] १. सूर्य। २. कुबेर का सखा एक गंधर्व, अंगारपर्ण। ३. गद के एक पुत्र और श्रीकृष्ण के पौत्र का नाम ४. गंधर्वों के एक राजा का नाम जो कश्यप ऋषि का पुत्र था।
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चित्ररथा  : स्त्री० [सं० चित्ररथ+टाप्] महाभारत में वर्णित एक नदी।
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चित्र-रश्मि  : पुं० [ब० स०] ४९ मरुतों में से एक।
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चित्र-रेखा  : स्त्री० [ब० स०] वाणासुर की कन्या ऊषा की एक सखी का नाम।
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चित्र-रेफ  : पुं० [ब० स०] १. भागवत के अनुसार शाकद्वीप के राजा प्रियव्रत् के पुत्र मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक। २. उक्त के नाम पर प्रसिद्ध एक वर्ष अर्थात् भूखंड।
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चित्रल  : वि० [सं० चित्र√ला (लेना+क] चितकबरा। रंग-बिंरगा। चितला।
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चित्र-लता  : स्त्री० [कर्म० स०] मँजीठ।
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चित्रला  : स्त्री० [सं० चित्रिल+टाप्] गोरख इमली।
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चित्र-लिखित  : भू० कृ० [उपमि० स०] १. जो चित्र की तरह सुन्दर बनाकर या सजा-सँवारकर लिखा गया हो। २. जो लिखे हुए चित्र की तरह निश्चल हो गया हो।
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चित्र-लिपि  : स्त्री० [मध्य० स०] वह लिपि जिसमें अक्षरों या वर्णों की जगह वस्तुओँ और क्रियाओं के चित्र बनाकर उनके द्वारा भाव व्यक्त किये जाते हैं। (पिक्टोग्राफी) जैसे–चीन की प्राचीन लिपि।
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चित्र-लेखक  : पुं० [ष० त०] चित्रकार
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चित्र-लेखन  : पुं० [ष० त०] १. कलम, कूँची आदि की सहायता से चित्र अंकित करना। २. बहुत बनाकर और सुन्दर अक्षर लिखना।
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चित्र-लेखनी  : स्त्री० [ष० त०] चित्र अंकित करने की कलम। कूँची।
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चित्र-लेखा  : स्त्री० [ब० स०] १. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में १ भगण, १ मगण, १ नगण और ३ यगण होते हैं २. बाणासुर की कन्या ऊषा की एक सखी जो चित्र बनाने में बहुत निपुण थी। ३. एक अप्सरा का नाम। ४. [ष० त०] चित्र बनाने की कलम या कूँची।
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चित्र-लोचना  : स्त्री० [ब० स०] मैना पक्षी।
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चित्रवत  : पुं०=चित्रकार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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चित्रवत्  : वि० [सं० चित+वति] उसी प्रकार गति-रहित और स्तब्ध जिस प्रकार चित्र होता है। (ला०)।
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चित्रवती  : स्त्री० [सं० चित्र+मतुप्, वत्व,+ङीष्] गांधार स्वर की एक मूर्च्छना। (संगीत)।
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चित्रवदाल  : पुं० [सं०√ आल, आअल् (पर्याप्ति)+अच्, चित्रवत्, आल, कर्म० स०] पाठीन मत्स्य। पहिना मछली।
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चित्र-वन  : पुं० [कर्म० स०] गंडकी नदी के किनारे का पुराण-प्रसिद्ध एक वन।
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चित्र-वर्मा(र्मन्)  : पुं० [ब० स०] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम।
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चित्र-वल्ली  : स्त्री० [कर्म० स०] १. विचित्र नामक लता। २. महेन्द्रवारुणी।
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चित्र-वहा  : स्त्री० [सं० चित्र√वह् (ढोना)+अच्-टाप्] महाभारत के अनुसार एक नदी।
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चित्र-वाण  : पुं० [ब० स०] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम।
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चित्र-विचित्र  : वि० [द्व० स०] १. जिसमें कई रंग हों। रंग बिरंगा। २. जिसके कई रूप या प्रकार हों। ३. विलक्षण। ४. बेल-बूटेदार. ५. नक्काशीदार।
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चित्र-विद्या  : स्त्री० [ष० त०] चित्र बनाने की विद्या। चित्रकारी। चित्रकला।
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चित्र-विन्यास  : पुं० [ष० त०] चित्रकारी।
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चित्र-वीर्य्य  : वि० [ब० स०] विचित्र और बहुत बड़ा बलवान या वीर। पुं० लाल रेंड।
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चित्र-शार्दूल  : पुं० [कर्म० स०] चीता नामक हिंसक पशु।
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चित्र-शाला  : स्त्री० [ष० त०] १. वह स्थान जहां चित्र बनते हों या विक्रयार्थ रखे जाते हों। २. वह स्थान जहाँ प्रदर्शन के लिए बहुत से चित्र रखे रहते हों। ३. एक कमरा जिसमें बहुत से चित्र टँगें या लगे हों। (पिक्चर गैलरी) ४. मध्य युग में दंपति के रहने और सोने का कमरा। (राज०)
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चित्र-शालिका  : स्त्री०=चित्र-शाला।
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चित्र-शिखंडिज  : पुं० [सं० चित्र-शिखंडिन्√जन् (उत्पत्ति+ड, उप० स०] बृहस्पति।
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चित्र-शिखंडी(डिन्)  : पुं० [सं० चित्र-शिखंड, कर्म० स०+इनि] मरीचि, अंगिरा, अत्रि पुलस्त्य, पुलह क्रतु वसिष्ठ ये सातों ऋषि। सप्तऋषि।
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चित्र-शिर(स्)  : पुं० [सं० ब० स०] १. एक गंधर्व का नाम। २. मल-मूत्र के विकार से उत्पन्न होनेवाला एक प्रकार का विष। (सुश्रुत)।
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चित्र-शिल्पी(ल्पिन्)  : पुं० [ष० त०] चित्रकार।
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चित्र-संग  : पुं० [ब० स०] १६ अक्षरों का एक वर्ण-वृत्त।
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चित्र-सभा  : स्त्री० चित्र=शाला।
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चित्र-सर्प  : पुं० [कर्म० स०] चीतल साँप।
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चित्र-सामग्री  : स्त्री० [ष० त०] चित्र अंकित करने की सामग्री। जैसे–रंग, तूलिका, कागज कपड़ा आदि।
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चित्र-सारी  : स्त्री० [सं० चित्र-शाला] १. चित्र अंकित करने या बनाने की क्रिया या भाव। २. चित्रशाला। ३. राजाओं के भोग-विलास और शयन का कमरा जिसमें अनेक सुंदर चित्र लगे रहते थे। ४. स्त्रियों की वह ओढ़नी जिस पर सलमे-सितारे का काम हुआ हो।
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चित्र-सेन  : पुं० [ब० स०] १. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। २. एक गंधर्व का नाम। ३. पुरुवंशी राजा परीक्षित के एक पुत्र। ४. पुराणानुसार शंबरासुर का एक पुत्र।
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चित्रस्थ  : वि० [सं० चित्र√स्था (ठहरना)+क] १. चित्र में अंकित किया हुआ। २. चित्र में अंकित व्यक्ति के समान निश्चल या स्तब्ध।
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चित्र-हस्त  : पुं० [ब० स०] तलवार या और कोई हथियार चलाने का एक विशिष्ट ढंग या हाथ।
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चित्रांकन  : पुं० [चित्र-अंकन, ष० त०] [भू० कृ० चित्रांकित] चित्र अंकित करने या हाथ में तसवीर बनाने का काम। आलेख्य कर्म। (पेन्टिंग)।
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चित्रांकित  : भू० कृ० [सं० चित्र-अंकित, स० त० जो चित्र के रूप में या चित्र में अंकित किया गया हो। चित्रित।
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चित्रांग  : भू० [चित्र-अंग, ब० स०] जिसके अंग पर चित्तियाँ धारियाँ चिन्ह्र आदि हों। पुं.१.चित्रक या चीता नाम का पेड़। २. चीतल सांप। ३. ईगुर। सिंदूर। ४. हरताल।
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चित्रांगद  : पुं० [चित्र-अंगद, ब० स०] १. सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न राजा शांतनु के एक पुत्र और विचित्रवीर्य्य के छोटे भाई। २. पुराणानुसार एक गंधर्व। ३. महाभारत के अनुसार दशार्ण के एक राजा।
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चित्रांगदा  : स्त्री० [सं० चित्रांगद+टाप्] १. मणिपुर के राजा चित्रवाहन की कन्या जो अर्जुन को ब्याही थी। और जो बभ्रुवाहन की माता थी। २. रावण की एक पत्नी जिसके गर्भ से वीरबाहु का जन्म हुआ था।
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चित्रांगी  : स्त्री० [सं० चित्रांग+ङीष्] १. मँजीठ। २. कनखजूरा।
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चित्रा  : स्त्री० [सं०√चित्र+अच्-टाप्] १. सत्ताइस नक्षत्रों में से चौदहवाँ नक्षत्र जिसमें तीन तारे होते हैं। इसमें गृह-प्रवेश, गृहारंभ और यानों, वाहनों आदि का व्यवहार शुभ कहा गया है। २. मूषिकपर्णी या मूसाकानी लता। ३. ककड़ी खीरा आदि फल। ४. दंती वृक्ष। ५. गाँडर नामक घास। ६. मँजीठ। ७. बायबिंडग। ८. अजवायन। ९. चितकबरी गाय। १॰. एक अप्सरा का नाम। ११. सुभद्रा का एक नाम। १२. एक प्राचीन नदी। १३. एक प्रकार की रागिनी जो भैरव राग की पत्नी कही गई है। १४. संगीत में एक प्रकार की मूर्च्छना। १५. एक प्रकार का पुराना बाजा। १६. पंद्रह अक्षरों की एक वर्णवृत्ति जिसमें पहले तीन नगण, फिर दो यगम होते हैं। १७. एक प्रकार की चौपाई जिसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और अंत में एक गुरु होता है। इसकी पाँचवी, आठवीं और नवीं मात्रा लघु तथा अंतिम मात्रा गुरु होती है।
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चित्राक्ष  : पुं० [चित्र-अक्षि, ब० स० षच्] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। वि० [स्त्री० चित्राक्षी] विचित्र और सुन्दर आँखोंवाला।
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चित्राक्षी  : स्त्री० [सं० चित्राक्ष+ङीष्] मैना पक्षी।
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चित्राटीर  : पुं० [सं० चित्रा√अट् (गति)+ईरच्] १. चंद्रमा। २. शिव का घंटाकर्ण नामक अनुचर।
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चित्रादित्य  : पुं० [चित्र-आदित्य, मध्य० स०] प्रभास क्षेत्र में चित्रगुप्त की स्थापित सूर्य्य की मूर्ति। (स्कंद पुराण)।
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चित्राधार  : पुं० [चित्र-आधार, ष० त०] कोरे पन्नों की नत्थी की हुई वह पुस्तक जिसमें आग्रहण, चित्र, रेखा-चित्र आदि लगाये जाते हैं। (एलबम)।
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चित्रान्न  : पुं० [चित्र-अन्न, कर्म० स०] बकरी के दूध में पकाया और बकरी के कान के रक्त में रंगा हुआ जौ और चावल। (कर्मकांड)।
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चित्रायस  : पुं० [चित्र-अयस्, कर्म० स० टच्] इस्पात। (लोहा)।
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चित्रायुध  : पुं० [चित्र-आयुध, कर्म० स०] १. विलक्षण अस्त्र। २. [ब० स०] धृतराष्ट्र का एक पुत्र। वि० जिसके पास विचित्र या विलक्षण अस्त्र-शस्त्र हों।
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चित्रार  : पुं० चित्रकार। उदाहरण–किरि कठचीत्र पूतली निज करि चीत्रारै लागी चित्रण।–प्रिथीराज।
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चित्राल  : पुं० [?] कश्मीर के पश्चिम का एक पहाड़ी प्रदेश। चितराल।
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चित्रालय  : पुं० [चित्र-आलय, ष० त०] चित्रशाला। (दे०)।
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चित्रावसु  : स्त्री० [सं०] तारों से शोभित रात।
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चित्रा-विरली  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार का पुराना कामदार कपड़ा जो आज-कल की जामदानी की तरह का होता था।
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चित्राश्व  : पुं० [चित्र-अश्व, ब० स०] सत्यवान् का एक नाम।
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चित्रिक  : पुं० [सं० चैत+क, पृषो० सिद्धि] चैत का महीना। चैत मास।
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चित्रिणी  : स्त्री० [सं० चित्र+इनि+ङीप्] कामशास्त्र तथा साहित्य में चार प्रकार की नायिकाओं या स्त्रियों में वह नायिका जो अनेक प्रकार की कलाओं तथा बनाव-सिंगार करने में निपुण हो।
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चित्रित  : भू० कृ० [सं०√चित्र्+क्त] १. चित्र के रूप में खींचा या दिखाया हुआ। २. जिसका रंग-रूप चित्र में दिखाया गया हो। ३. जिस पर चितियाँ बेल-बूटे आदि बनें हों। ४. जिसका चित्रण हुआ हो। ५. जो शब्दों में बहुत ही सुन्दर रूप में लिखा गया हो।
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चित्री(त्रिन्)  : वि० [सं० चित्र+इनि] १. चितकबरा। २. चित्रित।
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चित्रीकरण  : पुं० [सं० चित्र+चिव्, ईत्व० दीर्घ√कृ (करना)+ल्युट्-अन] १. विभिन्न वर्णों से रंग भरकर चित्रित करना। २. चित्र के रूप में लाना या उपस्थित करना। ३. सजाना।
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चित्रेश  : पुं० [चित्रा-ईश, ष० त०] चित्रा नक्षत्र के पति चंद्रमा।
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चित्रोक्ति  : स्त्री० [चित्रा-उक्ति, कर्म० स०] १. आकाश। २. अलंकृत भाषा में कही हुई बात। ३. सुन्दर अलंकारों से युक्त उक्ति या कविता।
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चित्रोत्तर  : पुं० [चित्र-उत्तर, ब० स०] साहित्य में उत्तर अलंकार का एक भेद जिसमें प्रश्न ऐसे विचित्र ढंग से रखे जाते हैं कि उन्हीं के शब्दों में उनके उत्तर भी रहते हैं अथवा कई प्रश्नों का एक ही उत्तर भी रहता है। जैसे–‘मुग्धा तियकी केलि रुचि कोन भौन में होय। में का उत्तर ‘कोन भौन’ अर्थात् भवन का कोना है।
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चित्रोत्पला  : स्त्री० [चित्र-उत्पल, ब० स०] उड़ीसा की एक नदी जिसे आज-कल चितरतला कहते हैं २. पुराणानुसार ऋक्षपाद पर्वत से निकली हुई एक नदी।
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चित्र्य  : वि० [सं०√चित्र+ण्यत्] १. पूज्य २. चुनने या चयन किये जाने के योग्य। ३. जिसे चित्र के रूप में लाया जा सके। ४. जो चित्र के रूप में अंकित किये जाने के लिए उपयुक्त हो।
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