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चिट्ठा  : पुं० [हिं० चिट्ठी का पुं० रूप] १. आय-व्यय या लेन-देन का वह हिसाब जो मुख्यतः एक ही कागज पर लिखा गया हो। उदाहरण–दिया चिट्ठा चाकरी चुकाई।–कबीर। मुहावरा–चिट्ठा बाँटना-(क) दैनिक मजदूरी पर काम करनेवाले मजदूरों की मजदूरी चुकाना। जैसे–अब मंगल के दिन चिट्ठा बँटेगा। (ख) चिट्ठे पर लिखे हुए आदमियों को अन्न या रसद बाँटना। चिट्ठा बाँधना=आय व्यय आदि का लेखा तैयार करना। २. वह कागज जिस पर नियमित रूप से किसी निश्चित अवधि के आय-व्यय आदि का मोटा हिसाब लिखा रहता है और जिससे यह पता चलता है कि इस काम में कितना आर्थिक लाभ या हानि हुई। जैसे–कोठी या दूकान का छमाही या सालाना चिट्ठा। ३. वह कागज जिस पर प्राप्य धनराशि का विवरण लिखा रहता है। मुहावरा–चिट्ठा उतारना (क) चिट्ठा तैयार करना या बनाना। (ख) चिट्ठे पर लिखी हुई रकम वसूल करना। (ग) लोगों से रकम वसूल करते हुए चिट्ठे पर क्रमशः लिखते या लिखाते चलना। ४. किसी प्रकार के काम में लगनेवाले धन का विवरण। खरच के मदों की सूची। जैसे–ब्याह का चिट्ठा मकान की मरम्मत का चिट्ठा। ५. किसी काम या बात का पूरा ब्योरा या विस्तृत विवरण। पदृ-कच्चा चिट्ठा (क) आय-व्यय आदि का वह आरंभिक विवरण जो अभी पूरी तरह से जँचा न हो अथवा ठीक और पक्का न माना जा सकता हो। जैसे–पहले कच्चा चिट्ठा तैयार कर लो फिर रोकड़ चढ़ाना। (ख) किसी आदमी के आचरण, व्यवहार आदि का अथवा घटना के संबंध की ऐसी बातों का विवरण जो अभी तक पूरी तरह से सबके सामने न आया हो अथवा जिसमें कुछ ऐसी बातें हों जो अनुचित होने के कारण साधारणतः सब लोगों के सामने आने योग्य न हो। जैसे–अब तुम चुपचाप बैठे रहो नहीं तो वह तुम्हारा सारा कच्चा चिट्ठा खोलकर रख देगा। क्रि० प्र०–खोलना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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