| शब्द का अर्थ | 
					
				| चांद्र					 : | वि० [सं० चन्द्र+अण्] चंद्रमा संबंधी। चंद्रमा का। जैसे–चांद्र मास, चांद्रवत्सर। पुं० १. चांद्रायण व्रत। २. चंद्रकांत मणि। ३. मृगशिरा नक्षत्र। ४. पुराणानुसार प्लक्ष द्वीप का एक पर्वत। ५. अदरक। आदी। | 
			
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				| चांद्रक					 : | पुं० [सं० चान्द्र√कै(प्रतीत होना)+क]सोंठ। | 
			
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				| चांद्र-पुर					 : | पुं० [कर्म० स०] बृहत्संहिता के अनुसार एक नगर जिसमें एक प्रसिद्ध शिवमूर्ति होने का उल्लेख है। | 
			
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				| चांद्रमस					 : | वि० [सं० चन्द्रमस्+अण्] चंद्रमा संबंधी। पुं० मृगशिरा नक्षत्र। | 
			
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				| चांद्रमसायन					 : | पुं० [सं० चांद्रमसायनि, पृषो० सिद्धि] बुध ग्रह। | 
			
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				| चांद्रमसायनि					 : | पुं० [सं० चंद्रमस्+फिञ्-आयन] बुध ग्रह। | 
			
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				| चांद्रमसी					 : | स्त्री० [सं० चान्द्रमस+ङीप्] बृहस्पति की पत्नी का नाम। | 
			
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				| चांद्र-मास					 : | पुं० [कर्म० स०] वह मास जो चंद्रमा की गति के अनुसार निश्चित होता है। उतना काल जितना चंद्रमा को पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में लगता है। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक का समय। | 
			
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				| चांद्र-वत्सर					 : | पुं० [कर्म० स०]=चांद्रवर्ष। | 
			
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				| चांद्र-वर्ष					 : | पुं० [कर्म० स०] बारह चांद्र मासों का समय। यह सौर वर्ष से लगभग १॰ दिन छोटा है)। | 
			
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				| चांद्रव्रतिक					 : | वि० [सं० चान्द्रव्रत+ठन्-इक] चांद्रायण व्रत करनेवाला। पुं० राजा। | 
			
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				| चांद्रायण					 : | पुं० [चंद्र-अयन, ब० स० णत्व, दीर्घ] [वि० चांद्रायणिक] १. महीने भर का एक व्रत जिसमें चंद्रमा के घटने-बढ़ने के अनुसार आहार के कौर या ग्रास घटाने-बढ़ाने पड़ते हैं। २. २१ मात्राओं का एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में ११ और १॰ पर यति होती है। पहले विराम पर जगण और दूसरे पर रगण होना आवश्यक होता है। | 
			
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				| चांद्रायणिक					 : | वि० सं० चान्द्रायण+ठञ्-इक] चांद्रायण व्रत करने वाला। | 
			
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				| चांद्रि					 : | पुं० [सं० चंद्र+इञ्] बुध ग्रह। | 
			
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				| चांद्री					 : | स्त्री० [सं० चान्द्र+ङीष्] १. चंद्रमा की स्त्री। २. चाँदनी। ज्योत्स्ना। ३. सफेद भटकटैया। वि०=चांद्र। | 
			
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