शब्द का अर्थ
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चर्चर :
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वि० [सं०√चर्च+अरन्] गमनशील। चलनेवाला। चर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चर्चरिका :
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स्त्री०[सं०चर्चरी+कन्-टाप्-ह्रस्व] नाटक में वह गीत जो दर्शकों के मनोरंजन के लिए दो अंकों के बीच में अर्थात् ऐसे समय में होता है जब कि रंगमंच पर अभिनय नहीं होता। |
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चर्चरी :
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स्त्री० [सं० चर्चर+ङीष्] १. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में रगण, सगण, दो जगण, भगण और तब फिर रगण (र, स, ज, भ, र) होता है। २. वसंत या होली के दिनों में गाया जानेवाला चाँचर नामक गीत। ३. होली की धूम-धाम और हुल्लड़। ४. ताली बजने या बजाने का शब्द। ५. ताल के ६॰ मुख्य भेदों में से एक। (संगीत)। ६. प्राचीन काल का एक प्रकार का ढोल। ७. आमोद-प्रमोद के समय की जानेवाली कीड़ा। ८. नाच-गाना। ९. दे० ‘चर्चरिका’। |
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चर्चरीक :
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पुं० [सं०√चर्च् (ताड़ना)+ईकन्, नि० सिद्धि] १. महाकाल भैरव। २. साग-भाजी। तरकारी। ३. सिर के बाल गूँथना या बनाना। केश-विन्यास। |
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