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चमक  : स्त्री० [हिं० चमकना] १. चमकने की क्रिया या भाव। २. किसी वस्तु का वह गुण या तत्त्व जिसके कारण उसमें से प्रकाश निकलता है। जैसे–कपड़े बिजली या सोने की चमक। ३. प्रकाश। रोशनी। ४. आभा कांति। ५. कमर, पीठ आदि में होनेवाली वह आकस्मिक और क्षणिक पीड़ा जो अधिक तनाव या बल पड़ने के कारण होती है। झटका लगने से होनेवाला दर्द। ६. चौंकने की क्रिया या भाव। चौंक।
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चमक चाँदनी  : स्त्री० [हिं०] वह स्त्री जो हर समय खूब बनी-ठनी रहे और खूब चमकती-मटकती रहे।
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चमक-दमक  : स्त्री० [हिं० चमक+दमक (अनु०)] १. चमकने और दमकने की क्रिया, गुण या भाव। २. तड़क-भड़क। ठाठ-बाट।
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चमकदार  : वि० [हिं० चमक+फा० दार] जिसमें चमक हो। चमकीला।
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चमकना  : अ० [सं० चमत्कृ, प्रा० चमक्केइ, बँ० चकान, उ० चमकिबा, मरा० चमकणें] १. किसी प्रकाशमान वस्तु का इतना अधिक तथा सहसा प्रकाश देना कि उस पर आँखें न ठहर सके। जैसे–बिजली चमकना। २. किसी वस्तु का झिल-मिलाती हुई किरणों के माध्यम से प्रकाश देना। जैसे–आकाश में तारों का चमकना। ३. किसी चिकने तलवाली वस्तु का प्रकाश में अधिक उज्जवल तथा प्रकाशपूर्ण भासित होना। जैसे–धूप में गहना या शीशा चमकना। ४. उक्त प्रकार के प्रकाश का आँखों पर ऐसा प्रभाव पड़ना कि वे निरंतर खुली न रह सके। जैसे–धूप में आँक चमकना। ५. किसी वस्तु का बहुत ही उत्कृष्ट रूप में प्रकट या प्रस्तुत होना। जैसे–गला या गाना चमकना। ६.(कार्य वस्तु आदि का) उन्नति या वृद्धि पर होना। जैसे–रोजगार चमकना। ७. (किसी वस्तु, बात आदि का) अपना उग्र या प्रचंड रूप दिखलाना। जैसे–शहर में हैजा चमकना। ८. कीर्ति, प्रताप, वैभव आदि से युक्त होना। जैसे–भाग्य चमकना। ९. किसी को देखने पर घबराते हुएँ चौंक कर पीछे हटना। बिदकना। जैसे–हाथी को देखकर गौ या घोड़े का चमकना। १॰. साधारण रूप से नाराज होना या बिगड़ना। जैसे–गलती तो उन्हीं की थी, पर वे चमके हम पर। ११. जल्दी से दूर हो जाना या हट जाना। चंपत होना। उदाहरण–सखा साथ के चमकि गए सब, गुह्यौ श्याम कर धाइ।-सूर। १२. नाज-नखरे या हाव-भाव से चेष्टाएँ करना। (स्त्रियाँ) जैसे–तुम तो बातों बातों में चमकने लगती हो। वि० [स्त्री० चमकनी] १. खूब चमकनेवाला। २. जरा-सी बात में चिढ़ या बिगड़ जानेवाला। ३. अनुचित रूप से नाज-नखरा या हाव-भाव दिखलानेवाला। ४. जल्दी चौंकने या बिदकनेवाला। जैसे–चमकता घोड़ा या बैल।
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चमकवाना  : स० [चमकाना का प्रे०] १. चमकाने का काम करवाना। २. किसी चीज में चमक उत्पन्न कराना।
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चमकाना  : स० [हिं० चमकना का स०] १. कांति, दीप्ति या चमक से युक्त करना। ओप या चमक लाना। उज्जवल करना। २. चौंकाना। ३. भड़काना। ४. खिझाना। चिढ़ाना। ५. उत्तेजित करके आगे बढ़ाना। जैसे–लड़ाई के मैदान में घोड़ा चमकाना। ६. नखरे में कोई अंग जल्दी-जल्दी हिलाना-डुलाना। जैसे–आँखें या उँगलियाँ चमकाना। ७. कीर्ति, वैभव, सफलता आदि से युक्त करना। जैसे–उनके छोटे भाई ने आकर उनका रोजगार चमका दिया।
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चमकारा  : पुं० [हिं० चमक] चकाचौंध उत्पन्न करने वाली चमक या प्रकाश। वि० [स्त्री० चमकारी] खूब चमकनेवाला। चमकता हुआ। चमकीला। उदाहरण–अधरबिंब दसनन की सोभा, दुति दामिनि चमकारी।–सूर।
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चमकारी  : स्त्री० १. चमक। २. चमकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चमकी  : स्त्री० [हिं० चमक] रुपहले या सुनहरे तारों के वे छोटे-छोटे गोल या चौकोर चिपटे-टुकड़े जो जरदोजी के काम में लगाये जाते हैं। सितारे। तारे।
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चमकीला  : वि० [हिं० चमक+ईला(प्रत्यय)] १. जिसमें चमक हो। चमकदार। जैसे–चमकीला कपड़ा,चमकीले तारे।
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चमकुल  : स्त्री० [हिं० चमकना] १. चमकीला। २. चटकने-मटकने वाला। उदाहरण–बैल मरकहा चमकुल जोय।-घाघ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चमकौवल  : स्त्री० [हिं० चमक+औवल (प्रत्यय)] शरीर के अंगों को नखरे से चमकाने-मटकाने की क्रिया या भाव। जैसे–उँगलियों की चमकौवल।
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चमक्को  : स्त्री० [हिं० चमकना] १. बहुत अधिक चमकने-मटकने वाली स्त्री। चंचल और निर्लज्ज स्त्री। २. झगड़ालू स्त्री।
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