शब्द का अर्थ
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गूढ़ :
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वि० [सं०√Öगुह (छिपाना)+क्त] १. छिपा हुआ। गुप्त। जैसे–गूढ़ापाद। २. (किलष्ट या पेचीदा बात) जिसका अभिप्राय या आशय सहज में लोग न समझ सकते हों। अर्थ-गर्भित। जटिल। दुरूह। जैसे–गूढ़ विषय। ३. जिसमें कोई विशेष अभिप्राय छिपा हो। गंभीर। पुं० १. स्मृति में पाँच प्रकार के साक्षियों में से वह जिसे अर्थी ने प्रत्यर्थी की बात बतला या सुना दी हो। २. गूढ़ोक्ति नामक अलंकार। (साहित्य) |
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समानार्थी शब्द-
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गूढ़चर :
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पुं० =गुप्तचर। उदाहरण–इन्द्रिय अगूढ़ चोर मारि दै।–देव। वि० छिपकर घूमने-फिरनेवाला। |
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गूढ़-चारी (रिन्) :
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वि० पुं० [सं० गूढ़√Öचर् (गति)+णिनि, उप० स०]=गूढ़चर। |
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गूढ़ज :
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पुं० [सं० गूढ़जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] वह पुत्र जिसे पति के घर रहते हुए भी पत्नी ने अपने किसी सवर्ण जार से पैदा किया हो। |
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गूढ़-जात :
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पुं० [पं० त०]=गूढ़ज। |
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गूढ़-जीवी (विन्) :
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पुं० [सं० गूढ़√जीव्(जीना)+णिनि, उप० स०] वह जिसकी जीविका के साधन का किसी को पता न चले। |
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गूढ़ता :
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स्त्री० [सं० गूढ़+तल्-टाप्] गूढ़ होने की अवस्था या भाव। |
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गूढ़त्व :
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पं० [ब० स०] गूढ़ता। |
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गूढ़-नीड़ :
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पुं० [ब० स०] खंजन पक्षी। |
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गूढ़-पत्र :
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पुं० [ब० स०] १. करील वृक्ष। २. अंकोट वृक्ष। ३. [कर्म० स०] मतदान-पत्र (बैलेट)। |
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गूढ़-पथ :
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पुं० [कर्म० स०] १. छिपा हुआ रास्ता। जैसे–सुंरग। २. [ब० स०] अंतःकरण या अंतरात्मा। |
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गूढ़-पद,गूढ़-पाद :
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पुं० [ब० स०] सर्प। साँप। |
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गूढ़-पुरुष :
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पुं० [कर्म.स० ] जासूस। भेदिया। |
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गूढ़-पुष्प :
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पुं० [ब० स०] १. पीपल, बड़, गूलर, पाकर इत्यादि वृक्ष जिनमें फूल नहीं होते अथवा नहीं दिखाई देते। २. मौलसिरी। |
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गूढ़-भाषित :
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पुं० [कर्म० स०] ऐसे शब्दों में कही हुई बात जो सब की समझ मे न आती हो। |
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गूढ़-मंडप :
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पुं० [कर्म० स०] देव मन्दिर के अंदर का बरामदा या दालान। |
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गूढ़-मार्ग :
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पुं० [कर्म० स०] सुरंग। |
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गूढ़-मैथुन :
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पुं० [ब० स०] काक। कौआ। |
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गूढ़-लेख :
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पुं० [कर्म० स०] लिखने या संवाद भेजने की गुप्त लिपि प्रणाली। (साइफर)। |
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गूढ़-व्यंग्य :
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पुं० [कर्म० स०] काव्य में एक प्रकार की लक्षणा जिसमें व्यंग्य का अभिप्राय जल्दी सब की समझ में नहीं आ सकता। |
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गूढ़-संहिता :
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स्त्री० [ष० त०] वह संग्रह जिसमें गूढ़-लेख के नियमों, संकेतों सिद्धान्तों आदि का विवेचन हो। (साइफर कोड)। |
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गूढ़ा :
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स्त्री० [सं० गूढ़] १. ऐसी बात जिसका अर्थ जल्दी सब की समझ में न आवे। २. पहेली। (राज) |
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गूढ़ाशय :
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पुं० [गूढ़-आशय, कर्म० स०]=गूढ़-पुरुष (जासूस)। |
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गूढ़ोक्तर :
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स्त्री० [गूढ़-उत्तर,कर्म० स०] साहित्य में उत्तर अलंकार का एक भेद जिसमें किसी बात का दिया जानेवाला उत्तर अपने में कोई और गूढ़ अर्थ छिपाये होता है। |
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