शब्द का अर्थ
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कृमि :
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पुं० [सं०√क्रम् (चलना)+इन्, संप्रसारण] [वि० कृमिल] १. छोटा कीड़ा। जैसे—च्यूँटी जूँ आदि। २. लाख या लाह जो कीड़ों से बनती है। ३. किरमिच नाम का कीड़ा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
कृमिक :
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पुं० [सं० कृमि+कन्] छोटा कीड़ा। |
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कृमि-कोश :
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पुं० [ष० त०] वे छोटे-छोटे प्राकृतिक आवरण जिसमें रेशम के कीड़े रहते हैं। कुसवारी। कोया। |
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कृमिज :
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वि० [सं० कृमि√जन् (उत्पन्न होना)+ड] जो कृमि या कीड़ों से उत्पन्न हुआ या निकला हो। पुं० १. रेशम। २. अगर। ३. किरमिजी (रंग)। |
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कृमिण :
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वि० [सं० कृमि+न, इत्व] (वस्तु) जिसमें कीड़े पड़े या लगे हों। कृमियों या कीड़ों से युक्त। |
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कृमितान :
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पुं० [?] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। |
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कृमि-भोजन :
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पुं० [ष० त०] एक नरक। |
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कृमिभोजी (जिन्) :
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वि० [सं० कृमि√भुज् (खाना)+णिनि] कीड़ों का भक्षण करनेवाला। |
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कृमि-राग :
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पुं० [?] किरमिज या किमिजी नाम का रंग (कारमाइन) |
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कृमि-रोग :
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पुं० [मध्य० स०] पेट का रोग, जिसके कारण आमाशय और पक्वाशय में कीड़े या केंचुए पड़ जाते हैं। |
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कृमिल :
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वि० [सं० कृमि√ला (आदान)+क] कीड़ो से युक्त। कृमिण। |
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कृमिला :
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स्त्री० [सं० कृमिल+टाप्] वह स्त्री जिसके आगे बहुत से बच्चे हों। |
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कृमिलाश्व :
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पुं० [सं० कृमिल-अश्व, ब० स०] आजमीढ़-वंश का एक राजा (हरिवंश पुराण)। |
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कृमि-विज्ञान :
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पुं० [ष० त०] दे० ‘कीट विज्ञान’। |
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कृमिविज्ञानी (नि्न्) :
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वि० पुं० [सं० कृमिविज्ञान+इनि] दे० ‘कीट-विज्ञान’। |
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कृमि-शैल :
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पुं० [ष० त०] दीमकों की बाँधी। विभोट। वल्मीक। |
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