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कलेवर  : पुं० [सं० अलुक् स०] १. मनुष्य के शरीर का सारा ऊपरी या बाहरी भाग (आत्मा, प्राण आदि से भिन्न)। चोला। देह। शरीर। मुहा०—कलेवर चढ़ाना=गणेश, महावीर आदि देवताओं की मूर्ति पर घी में मिले सेंदुर का इस प्रकार लेप करना कि उनके सारे शरीर पर एक नया स्तर चढ़ जाय। कलेवर बदलना=(क) एक शरीर त्याग कर दूसरा शरीर धारण करना। चोला बदलना। (ख) पुराना रूप छोड़ कर बिलकुल नया रूप धारण करना। (ग) उपचार, चिकित्सा आदि से रोगी शरीर का पूर्ण रूप से नीरोग होना। (घ) हर बारहवें वर्ष अथवा आषाढ़ में मल-मास होने पर जगन्नाथजी की पुरानी मूर्ति का हटाया जाना और उसके स्थान पर नई मूर्ति का स्थापित होना। २. ऊपरी या बाहरी ढाँचा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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