शब्द का अर्थ
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उष्म :
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पुं० [सं०√उष् (उत्पन्न करना)+मक्] १. गरमी। ताप। २. गरमी की ऋतु। ३. धूप। ४. क्रोध। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उष्मज :
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पुं० [सं० उष्म√जन् (उत्पन्न करना)+ड] वे छोटे कीड़े जो पसीने, मैल आदि से पैदा होते हैं। जैसे—खटमल, मच्छर आदि। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उष्मप :
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पुं० [सं० उष्म√पा (पीना)+क] पितर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उष्म-स्वेद :
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पुं० [कर्म० स०] दे० ‘उष्मा स्वेद’। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उष्मा :
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स्त्री० [सं०√उष्+मनिन्] १. गरमी। ताप। २. धूप। ३. क्रोध। ४. बहुत तनातनी का वातावरण। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उष्मा-स्वेद :
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पुं० [सं० उष्मस्वेद] वह प्रक्रिया जिसमें किसी वस्तु पर इस प्रकार ताप या भाप पहुँचाई जाती है कि वह गीला या तर हो जाय। (वेपर बाथ) |
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उष्म :
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पुं० [सं०√उष् (उत्पन्न करना)+मक्] १. गरमी। ताप। २. गरमी की ऋतु। ३. धूप। ४. क्रोध। |
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उष्मज :
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पुं० [सं० उष्म√जन् (उत्पन्न करना)+ड] वे छोटे कीड़े जो पसीने, मैल आदि से पैदा होते हैं। जैसे—खटमल, मच्छर आदि। |
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उष्मप :
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पुं० [सं० उष्म√पा (पीना)+क] पितर। |
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उष्म-स्वेद :
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पुं० [कर्म० स०] दे० ‘उष्मा स्वेद’। |
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उष्मा :
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स्त्री० [सं०√उष्+मनिन्] १. गरमी। ताप। २. धूप। ३. क्रोध। ४. बहुत तनातनी का वातावरण। |
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उष्मा-स्वेद :
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पुं० [सं० उष्मस्वेद] वह प्रक्रिया जिसमें किसी वस्तु पर इस प्रकार ताप या भाप पहुँचाई जाती है कि वह गीला या तर हो जाय। (वेपर बाथ) |
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