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उप-उप  : [सं०√पव्+क] एक संस्कृत उपसर्ग जो क्रियाओं और संज्ञाओं के पहले लगकर उनके अर्थों में अनेक प्रकार की विशेषताएँ उत्पन्न करता है। यथा-१. किसी की ओर या दिशा में। जैसे—उप-क्रमण, उपगमन। २. काल,रूप,मान,संख्या आदि के विचार से किसी के अनुरूप, लगभग या सदृश्य होने पर भी उससे कुछ घटकर, छोटी निम्न कोटि का या हलका। जैसे—उप-देवता, उप-धातु, उप-मंत्री, उप-विष, उपेंद्र (इंद्र का छोटा भाई)। ३. किसी के पास रहने या होनेवाला अथवा स्थित। जैसे—उप-कूप, उप-कूल, उप-तीर्थ। ४. कोई काम करने का विशिष्ट आयास,प्रकार या सामर्थ्य। जैसे—उपदेश, उपकार, उपार्जन। ५. किसी प्रकार की अधिकता या तीव्रता। जैसे—उप-तापन। ६. पूर्वता या प्राथमिकता। जैसे—उपज्ञा। ७. विस्तार या व्याप्ति। जैसे—उपकीर्ण। ८. अलंकारण या सजावट। जैसे—उपस्करण। ९. ऊपर की ओर होनेवाला। जैसे—उप-लेपन। आदि-आदि। विशेष—संस्कृत वैयाकरणों के अनुसार कभी-कभी यह आदेश, इच्छा, प्रयत्न, रोग, विनाश आदि के भावों से भी युक्त होता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उप-उप  : [सं०√पव्+क] एक संस्कृत उपसर्ग जो क्रियाओं और संज्ञाओं के पहले लगकर उनके अर्थों में अनेक प्रकार की विशेषताएँ उत्पन्न करता है। यथा-१. किसी की ओर या दिशा में। जैसे—उप-क्रमण, उपगमन। २. काल,रूप,मान,संख्या आदि के विचार से किसी के अनुरूप, लगभग या सदृश्य होने पर भी उससे कुछ घटकर, छोटी निम्न कोटि का या हलका। जैसे—उप-देवता, उप-धातु, उप-मंत्री, उप-विष, उपेंद्र (इंद्र का छोटा भाई)। ३. किसी के पास रहने या होनेवाला अथवा स्थित। जैसे—उप-कूप, उप-कूल, उप-तीर्थ। ४. कोई काम करने का विशिष्ट आयास,प्रकार या सामर्थ्य। जैसे—उपदेश, उपकार, उपार्जन। ५. किसी प्रकार की अधिकता या तीव्रता। जैसे—उप-तापन। ६. पूर्वता या प्राथमिकता। जैसे—उपज्ञा। ७. विस्तार या व्याप्ति। जैसे—उपकीर्ण। ८. अलंकारण या सजावट। जैसे—उपस्करण। ९. ऊपर की ओर होनेवाला। जैसे—उप-लेपन। आदि-आदि। विशेष—संस्कृत वैयाकरणों के अनुसार कभी-कभी यह आदेश, इच्छा, प्रयत्न, रोग, विनाश आदि के भावों से भी युक्त होता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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